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अंबेडकर के इन 20 विचारों को जीवन में करें आत्मसात, मिलेगा मार्गदर्शन

Admin
Published on: 14 April 2016 4:50 AM GMT
अंबेडकर के इन 20 विचारों को जीवन में करें आत्मसात, मिलेगा मार्गदर्शन
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लखनऊ: 20वीं सदी के श्रेष्ठ चिंतक, ओजस्वी वक्ता और यशस्वी लेखक और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माणकर्ता डॉ. भीमराव अंबेडकर किसी परिचय के मोहताज नहीं है। संघर्ष और सफलता की अद्भुत मिसाल जिन्होंने बचपन से ही असमानता का दंश झेला, लेकिन परिस्थितियों से घबराएं नहीं उनका डटकर मुकाबला किया। कुछ विचारों को जीवन में आत्मसात किया उन्ही पर चले और आज हम उन्हें बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर कहते है। 14 अप्रैल 1891 को उनका जन्म हुआ था। जन्मदिन पर जानते है बाबा साहेब के श्रेष्ठ विचार और कोशिश किया जाए उन्हें आत्मसात करने की।

पढ़िए उनके श्रेष्ठ विचार-

पहला विचार

एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।

दूसरा विचार

लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए । अगर धर्म को लोगों के भले के लिए आवश्यक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।

तीसरा विचार

बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए

चौथा विचार

हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता।

पांचवां विचार

एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है। जिसकी आवश्यकता है वो है न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था।

छठां विचार

इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है । निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।

सातवां विचार

मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारा सीखाएं।

आठवां विचार

मैं किसी समुदाय की प्रगति में महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की है उससे मापता हूं।

नौवां विचार

हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।

दशवां विचार

आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता और भाई -चारे को स्थापित करते हैं और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।

ग्यारहवां विचार

क़ानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा ज़रूर दी जानी चाहिए।

बारहवां विचार

जीवन लम्बा होने की बजाए महान होना चाहिए।

तेरहवां विचार

मनुष्य नश्वर है। उसी तरह विचार भी नश्वर हैं । एक विचार को प्रचार -प्रसार की जरूरत होती है , जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं।

चौदहवां विचार

राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को ख़ारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं।

पंद्रहवां विचार

जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं।

सोलहवां विचार

पति-पत्नी के बीच का सम्बन्ध घनिष्ठ मित्रों के सम्बन्ध के सामान होना चाहिए ।

सत्रहवां विचार

यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए ।

अट्ठाहरहवां विचार

सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूंद के विपरीत इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता। इंसान का जीवन स्वतंत्र है, वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।

उन्नीसवां विचार

हम भारतीय हैं, पहले और अंत में।

बीसवां विचार

हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है ? हमारे पास ये स्वत्नत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था , जो असमानता , भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी है , जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है को सुधार सकें।

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