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जेलों में क्षमता से तीन गुना कैदियों को ठूंसना उनके मानवाधिकारों का हनन: चीफ जस्टिस

Shivakant Shukla
Published on: 10 Dec 2018 9:33 PM IST
जेलों में क्षमता से तीन गुना कैदियों को ठूंसना उनके मानवाधिकारों का हनन: चीफ जस्टिस
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लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने कहा है कि यूपी के जेलें में क्षमता से तीन गुना कैदी बंद है। यह हालात दुखद हैं और यह उन कैदियें के मानवाधिकारें का हनन है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अपराध से पीड़ित व्यक्ति के मानवाधिकारों का हनन तो होता ही है साथ ही पीड़ा पहुंचाने वालों के भी मानवाधिकारों का हनन हो जाता है।

चीफ जस्टिस ने यूपी में ओपन एअर कैम्प यानि खुली जेल की वकालत की और कहा कि पूरे प्रदेश में केवल लखनऊ में आदर्श कारागार ही खुली जेल का उदाहरण है। यह स्थिति बताती है कि खुली जेल की अवधारणा केवल सिद्धान्तः ही है न कि वास्तव में उसे धरातल पर उतारा गया है।

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चीफ जस्टिस हाई कोर्ट में अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर जस्टिस डी के उपाध्याय द्वारा आयेजित एक गोष्ठी पर बोल रहे थे। उन्होंने जस्टिस उपाध्याय के इस प्रकार का कार्यक्रम आयेजित करने के लिए साधुवाद दिया। इस अवसर पर अपने उद्गार प्रकट करते हुए चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि उनके संज्ञान में आया है कि विचारण अदालतें सजा सुनाते समय नाम मात्र का ही मुआवजा फाइन के रूप में मुल्जिमों पर ठोंकती है। जबकि वास्तव में पीड़ित को समुचित मुआवजा दिलाया जाना चाहिए जिसके लिए सीआरपीसी में ही प्रावधान मौजूद हैं। चीफ जस्टिस ने जेलों में कई वर्षों से बंद कैदियों के आजीवन पैरोल पर छोड़ने की वकालत की।

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उन्होंने कहा कि यदि कैदी को छोड़ने से समाज के खतरा ना हो तो उसके पैरोल पर छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने प्रदेश में 1938 में बने पैरोल अधिनियम का कम उपयोग होने पर अपनी चिंता जतायी। अपने उद्बोधन में मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि विचारण के दौरान गवाहों की खरीद फरोख्त हो जाती है इससे पीड़ित के न्याय नहीं मिल पाता जिससे उनके मानवाधिकारों का हनन हेता है। उन्होंने निचली अदालतों के जजों से अपेक्षा की कि मुख्य परीक्षा के बाद जिरह के लिए अधिक सयम नहीं दिया जाना चाहिए जिससे गवाह के खरीदने के लिए अभियुक्तगणों के समय ना मिल पाये।

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चीफ जस्टिस ने अपने उद्बोधन में पीड़ितो के साथ पीड़ा पहुंचाने वालें केमानवाधिकारों की वकालत की और कहा कि प्राकृतिक न्याय सब के लिए है। इस अवसर पर बतौर वक्ता बोलते हुए भारत सरकार के पूर्व एडीशनल सालिसिटर जनरल के वी विश्वनाथन एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि विभाग के पूर्व प्रोफेसर एस एन सिह ने कहा कि कानून का शासन की अवधारणा सभी के लिए है चाहे वह पीड़ित हो या मुल्जिम।

वक्ताआें ने पीड़ितो के लिए जाति व राजनीतिक आधार से आगे निकलकर मुआवजा देने की वकालत की। जस्टिस अजय लांबा ने कार्यक्रम के अंत में सभी के धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर लखनऊ बेंच के सभी न्यायाधीशगण, वरिष्ठ वकील, अवध बार एसोसियेशन के अध्यक्ष ए एम त्रिपाठी सहित अन्य पदाधिकारीगण, केंद्र सरकार के असिस्टेंट सालिसिटर जनरल एस बी पांडे व प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता ज्याति सिक्का व कुलदीप पति त्रिपाठी, मुख्य स्थायी अधिवक्ता श्रीप्रकाश सिंह तथा शैलेंद्र सिंह व कोर्ट की रजिस्ट्री के अधिकारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्वलन एवं समापन राष्ट्रगान से हुआ।



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