TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

श्रद्धांजलि कुंवर नारायण: वह इतिहास और मिथक में देखते थे वर्तमान

raghvendra
Published on: 17 Nov 2017 4:43 PM IST
श्रद्धांजलि कुंवर नारायण: वह इतिहास और मिथक में देखते थे वर्तमान
X

कुंवर नारायण नहीं रहे। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कवि कुंवर नारायण का 90 साल की उम्र में बुधवार को निधन हो गया। मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले कुंवर तकरीबन 51 साल से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय थे। हिन्दी के लिए तो वह एक पूरा युग थे। वह अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1959) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिए वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है।

कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच में भी अहम योगदान दिया। उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 2005 में कुंवर नारायण को साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी पहली किताब ‘चक्रव्यूह’ 1956 में आई थी।

1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और 2009 में पद्म भूषण सम्मान भी मिला था। वह आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और सत्यजीत रे से काफी प्रभावित रहे। कुंवर नारायण की सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वह इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने में दिलचस्पी लेते थे। यह उनकी सबसे बड़ी ताकत भी थी और विशेषता भी।

कुंवर नारायण ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। 1973 से 1979 तक वे संगीत नाटक अकादमी के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। 1975 से 1978 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की माता, चाचा और फिर बहन की असमय ही टीबी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी।

इससे उन्हें बड़ा कष्ट और दु:ख पहुंचा था। कुंवर नारायण के अनुसार मृत्यु का यह साक्षात्कार व्यक्तिगत स्तर पर तो था ही सामूहिक स्तर पर भी था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद सन पचपन में मैं पौलेंड गया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी गए थे मेरे साथ। वहां मैंने युद्ध के विध्वंस को देखा। तब मैं सत्ताइस साल का था। इसीलिए मैं अपने लेखन में जिजीविषा की तलाश करता हूं। मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।

यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता ही रही है, ङ्क्षकतु इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी। उनकी कविताओं और कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। तनाव पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया। उनके संग्रह परिवेश हम तुम के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या हम सबके सामने आई।

उन्होंने अपने प्रबंध आत्मजयी में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ सबके सामने रखा। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, मृत्य वे त्वा ददामीति अर्थात मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूं, को शिरोधार्य करके यम के द्वार पर चला जाता है, जहां वह तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहकर यमराज के घर लौटने की प्रतीक्षा करता है। उसकी इस साधना से प्रसन्न होकर यमराज उसे तीन वरदान मांगने की अनुमति देते हैं। नचिकेता इनमें से पहला वरदान यह मांगता है कि उसके पिता वाजश्रवा का क्रोध समाप्त हो जाए।

वाजश्रवा के बहाने कुंवर नारायण ने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। नचिकेता के इसी कथन को आधार बनाकर कुंवर नारायण की कृति वाजश्रवा के बहाने 2008 में आई। उसमें उन्होंने पिता वाजश्रवा के मन में जो उद्वेलन चलता रहा उसे अत्यधिक सात्विक शब्दावली में काव्यबद्ध किया है। जहां एक ओर आत्मजयी में कुंवरनारायण ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत वाजश्रवा के बहाने कृति में अपनी संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है।

साहित्य अकादमी ने 2010 में कुंवर नारायण को महत्तर सदस्यता प्रदान की। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कुंवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक के प्रमुख कवियों में रहे हैं।

फिल्म और कविता

कुंवर नारायण ने लिखा है कि जिस तरह फिल्मों में रशेज इकट्ठा किए जाते हैं और बाद में उन्हें संपादित किया जाता है उसी तरह कविता रची जाती है। फिल्म की रचना-प्रक्रिया और कविता की रचना-प्रक्रिया में साम्य है। आर्सन वेल्स ने भी कहा है कि कविता फिल्म की तरह है। मैं कविता कभी भी एक नैरेटिव की तरह नहीं बल्कि टुकड़ों में लिखता हूं। ग्रीस के मशहूर फिल्मकार लुई माल सडक़ पर घूमकर पहले शूटिंग करते थे और उसके बाद कथानक बनाते थे। क्रिस्तॉफ क्लिस्वोव्स्की, इग्मार बर्गमैन, तारकोव्स्की, आंद्रेई वाज्दा आदि मेरे प्रिय फिल्मकार हैं।

इनमें से तारकोव्स्की को मैं बहुत ज्यादा पसंद करता हूं। उन्हें मै फिल्मों का कवि मानता हूं। हम शब्द इस्तेमाल करते हैं, वो बिम्ब इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दोनों रचना करते हैं। कला, फिल्म, संगीत ये सभी मिलकर एक संस्कृति, मानव संस्कृति की रचना करते हैं लेकिन हरेक की अपनी जगह है, जहां से वह दूसरी कलाओं से संवाद स्थापित करे। साहित्य का भी अपना एक कोना है, जहां उसकी पहचान सुदृढ़ रहनी चाहिए। उसे जब हम दूसरी कलाओं या राजनीति में मिला देते हैं तो हम उसके साथ न्याय नहीं करते।

कुंवर नारायण की प्रमुख कृतियां

चक्रव्यूह - 1956

तीसरा सप्तक - 1959

परिवेश : हम-तुम - 1961

आत्मजयी/प्रबन्ध काव्य - 1965

आकारों के आसपास - 1971

अपने सामने - 1979

वाजश्रवा के बहाने

कोई दूसरा नहीं

इन दिनों

पुरस्कार व सम्मान

कुंवर नारायण को 2009 में वर्ष 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार‘ से सम्मानित किया गया। कुंवर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार‘, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, मेडल ऑफ वॉरसा यूनिवॢसटी, पोलैंड और रोम के अन्तरराष्ट्रीय प्रीमियो फेरेनिया सम्मान और 2009 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story