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पश्चिमी यूपी में मुस्लिम मतदाता तय करेंगे चुनावी नतीजे

raghvendra
Published on: 29 March 2019 7:23 AM GMT
पश्चिमी यूपी में मुस्लिम मतदाता तय करेंगे चुनावी नतीजे
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सुशील कुमार

मेरठ: लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए पश्चिमी यूपी की आठ सीटों पर चुनावी व्यूह तैयार है। सहारनपुर, बिजनौर, बागपत, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर इन आठ सीटों पर पिछले चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत का रास्ता खुला था। इस बार भी भाजपा यहां क्लीन स्वीप करना चाहती है। गठबंधन की परीक्षा भी इसी इलाके में

होनी है।

जाहिर कि पहले चरण की आठों लोकसभा सीटें अपने में खास हैं जो प्रदेश ही नहीं, देश की सियासत में अहम स्थान रखती हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती के गृहक्षेत्र और कर्मक्षेत्र में इस चरण में चुनाव है। रालोद मुखिया अजित सिंह और बेटे जयंत चौधरी के लिए इस बार राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है। भाजपा के तीन केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा, जनरल वी.के. सिंह और डा. सत्यपाल सिंह तथा एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान गठबंधन के चलते बदले समीकरणों में दोबारा जीत हासिल कर पाएंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है।

गठबंधन के कारण इस बार पश्चिमी यूपी में समीकरण बदले हैं और मुकाबले कड़े हैं। इस बार पश्चिम में मुस्लिम मतदाताओं पर सबकी नजरें टिकी हैं क्योंकि जाट और अनुसूचित जाति के अलावा जो सभी सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं उनमें मुस्लिम मतदाता भी शामिल हैं। सहारनपुर और बिजनौर में मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की तरफ दिख रहा है।

1. मेरठ - हापुड़ लोकसभा सीट

भाजपा ने यहां अपने दो बार के लगातार विजेता राजेंद्र अग्रवाल को ही मैदान में उतारा है। सामने गठबंधन से हाथी पर सवार होकर हाजी याकूब कुरैशी मैदान में हैं। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र अग्रवाल पर दांव खेला है। बसपा दलित मुस्लिम वोटों पर दांव खेल रही है। उसके लिए बाकी वर्गों को अपने साथ लाना बड़ी चुनौती है। भाजपा अन्य वर्गों के अलावा वैश्य, ब्राह्मण व अति पिछड़ों के सहारे चुनावी मैदान में है।

कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल वैश्य मतों में खासी सेंध लगा सकते हैं। भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल से आम जनता के साथ ही उनकी अपनी पार्टी के लोग नाराज हैं। जाहिर है कि भीतरघात हुआ तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। यहां हरेन्द्र अग्रवाल खुद जीते या नहीं लेकिन वह भाजपा उम्मीदवार की जीत में रोड़ा जरूर माने जा रहे हैं। उधर प्रसपा ने नासिर अली को टिकट दिया है पर मुस्लिम या अन्य वोटों में बड़ी सेंध लगाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। बहरहाल यहां सीधा मुकाबला भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी के बीच है।

2. मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट

यहां का नतीजा जाट राजनीति की दिशा तय करेगी। इस क्षेत्र में जाटों के बड़े नेता चौधरी अजित सिंह पहली बार परंपरागत सीट बागपत छोडक़र मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला भाजपा के डा. संजीव बालियान से है।

संजीव ने 2014 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद हुए चुनाव में चार लाख वोटों से बसपा के कादिर राणा को हराया था। इस बार समीकरण बदले हुए है। तब सपा, बसपा और कांग्रेस ने भी अपने प्रत्याशी उतारे थे। इस बार सपा व बसपा का रालोद के साथ गठबंधन है और कांग्रेस ने भी अजित सिंह के सामने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। इस सीट पर इस बार भाजपा और रालोद के बीच सीधा मुकाबला है।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 653391, बसपा - 252241, सपा - 160810

3. बागपत लोकसभा सीट

रालोद का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर भाजपा के केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच सीधा मुकाबला है। सत्यपाल सिंह ने 2014 बागपत से पहला चुनाव लड़ा था और चौधरी अजित सिंह को हराया था। जयंत चौधरी यहां पहली बार चुनाव मैदान में हैं।

2009 में मथुरा सीट से सांसद चुने गए जयंत चौधरी 2014 में हेमा मालिनी से हार गए थे। यहां भाजपा और रालोद में आमने सामने की लड़ाई है। कांग्रेस ने यहां भी दोस्ती धर्म में अपना उम्मीदवार खड़ा नही किया है। वर्ष 1977 से अब तक दो अवसरों को छोड़ दें तो यहां जयन्त के परिवार का ही कब्जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह तीन बार और रालोद अध्यक्ष अजित सिंह छह बार यहां से सांसद चुने गए हैं।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा -423475, रालोद - 199516, सपा - 213609

4. कैराना लोकसभा सीट

साढ़े 16 लाख मतदाताओं वाली कैराना सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा वाली सीट है। इस बार यहां त्रिकोणीय मुकाबला है। यह सीट भाजपा के पूर्व नेता स्व. हुकुम सिंह की परंपरागत सीट मानी जाती है। 2014 में यहां हुकुम सिंह सांसद चुने गए थे। उनके निधन के बाद हुए उप चुनाव में रालोद के चुनाव चिह्न पर तबस्सुम बेगम चुनाव लड़ी थीं और उन्होंने हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को हराया था। इस बार भाजपा ने मृगांका सिंह की जगह गंगोह से विधायक प्रदीप चौधरी पर दांव खेला है। सपा ने मौजूदा सांसद तबस्सुम हसन को ही प्रत्याशी बनाया है।

कैराना उप चुनाव से परिणाम के बाद ही गठबंधन ने सियासी आकार लिया और एक नया समीकरण बनाया। इस बार प्रदीप चौधरी और तबस्सुम बेगम के बीच होने वाले मुकाबले को कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र सिंह ने त्रिकोणीय बना दिया है। कैराना पलायन का मामला सपा और भाजपा के बीच अभी भी एक बड़ा सियासी मुद्दा बना है।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 565909, सपा - 329081, बसपा - 160414

5. सहारनपुर लोकसभा सीट

उत्तर प्रदेश की नम्बर एक सीट सहारनपुर को कांग्रेस अपने लिए सबसे मजबूत आंक रही है। प्रदेश में पार्टी के सात विधायकों में से दो विधायक इसी इसी लोकसभा क्षेत्र से हैं। यहां भाजपा के राघव लखनपाल, कांग्रेस के इमरान मसूद और बसपा के हाजी फजलुर्रहमान के बीच मुकाबला माना जा रहा है। 2014 में भाजपा के राघव लखनपाल ने कांग्रेस के इमरान मसूद को हराकर यह सीट जीती थी। इस बार गठबंधन ने भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। इमरान मसूद भी तगड़ी टक्कर देंगे।

गठबंधन में बसपा के लिए यह सीट अहम है। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने शब्बीरपुर प्रकरण को लेकर राज्यसभा से इस्तीफा दिया था और वह इसे बड़ा मुद्दा बनाए हुए हैं। वह स्वयं यहां से दो बार चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इस सीट पर करीब छह लाख मुस्लिम मतदाता हैं। वह गठबंधन के साथ जाएंगे या इमरान मसूद या फिर दोनों के बीच बटेंगे, इसी पर परिणाम निर्भर रहेगा।

कांग्रेस, बसपा और भाजपा में अनुसूचित जाति के मतों को लेकर भी होड़ है। बसपा का परंपरागत वोट रहे यह मतदाता पिछले चुनाव में भाजपा के साथ चले गए थे। इस बार शब्बीरपुर कांड के बाद बदले माहौल में यह भाजपा से नाराज चल रहे हैं। भीम आर्मी भी भाजपा के खिलाफ काफी मुखर है। कांग्रेस प्रत्याशी को भीम आर्मी के साथ का भरोसा है।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 472999, कांग्रेस - 407909, बसपा - 235035

6. बिजनौर लोकसभा सीट

यह इलाका बसपा का गढ़ माना जाता है और मायावती यहां से सांसद रह चुकी हैं। इस सीट पर भाजपा के भारतेंद्र सिंह, बसपा के मलूक नागर और कांग्रेस प्रत्याशी नसीमुद्दीन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। 2014 में भारतेंद्र सिंह ने सपा प्रत्याशी शाहनवाज राणा को दो लाख मतों के अंतर से हराया था।

सपा-बसपा और रालोद के बीच गठबंधन होने के कारण समीकरण बदले हुए हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं और पहले मायावती के करीबी नेताओं में उनकी गिनती होती थी। यहां मुसलमान एकजुट होकर जिस पाले में खड़े होंगे वही उम्मीदवार मुख्य लड़ाई में रहेगा।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 486913, सपा - 281139, बसपा - 230124

7. गाजियाबाद लोकसभा सीट

दिल्ली से सटी यह सीट वीवीआईपी मानी जाती है। इस सीट से पूर्व में गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी सांसद रह चुके हंै। कांग्रेस से राजबब्बर भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार भाजपा से केंद्रीय मंत्री वी.के. सिंह दूसरी बार प्रत्याशी हैं। इन्होंने 2014 में कांग्रेस के राज बब्बर को हराया था। इस बार वीके सिंह के सामने गठबंधन से पूर्व विधायक सुरेश बंसल मैदान में हैं तो कांग्रेस ने डॉली शर्मा को उतारा है। त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं।

इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 25 लाख मतदाता हैं। इसमें ब्राह्मण व मुस्लिम मतदाता करीब छह-छह लाख हैं। वैश्य और अनुसूचित जाति के मतदाता तीन से साढ़े तीन लाख हैं। इस वोट बैंक में सेंधमारी के लिए कांग्रेस ने ब्राह्मण और गठबंधन से वैश्य कार्ड खेला है।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 758482, कांग्रेस - 191222, बसपा - 173085

8. गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट

राजधानी दिल्ली से सटी 19 लाख वोटरों वाली गौतमबुद्धनगर सीट पर भाजपा के डा.महेश शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। महेश शर्मा ने पिछले चुनाव में सपा के नरेंद्र भाटी को हराया था। यहां मुकाबला त्रिकोणीय है। महेश शर्मा ब्राह्मणों व वैश्य अन्य के अलावा शहरी वोटरों के दम पर चुनाव लड़ रहे हैं।

गठबंधन के बसपा प्रत्याशी सत्यवीर नागर की गुर्जर वोटों में तगड़ी पैठ रहेगी। इस क्षेत्र में चार लाख से ज्यादा गुर्जर वोटर हैं। कांग्रेस से डा. अरविंद कुमार भी मजबूती से चुनावी मैदान में उतरे हैं। ठाकुर वोटरों की यहां खासी संख्या हैए कांग्रेस के परंपरागत वोटर तो हैं ही। आम आदमी पार्टी से प्रो. श्वेता वर्मा भी ताल ठोंक रही हैं।

2014 में पार्टियों को मिले मत : भाजपा - 599702, सपा - 319490, बसपा - 198237

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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