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वाराणसी के सियासी अखाड़े में मोदी के खिलाफ चंद्रशेखर का दांव

raghvendra
Published on: 5 April 2019 9:41 AM
वाराणसी के सियासी अखाड़े में मोदी के खिलाफ चंद्रशेखर का दांव
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: वाराणसी के सियासी अखाड़े में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव कौन लड़ेगा, इस पर छाए संशय के बादल अभी तक पूरी तरह छंटे नहीं हैं। सपा-बसपा गठबंधन की ओर से अभी तक भले ही पत्ते नहीं खोले गए हैं लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इशारों में अपने इरादे जताने लगी हैं। उन्होंने रायबरेली में कार्यकर्ताओं का मन टटोला तो कयासबाजी शुरू हो गई कि शायद मोदी से मुकाबला करने के लिए प्रियंका बनारस से चुनाव लड़ सकती हैं। इन सबके बीच भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण ने मोदी के खिलाफ ताल ठोंक दी है।

पिछले दिनों रोड शो के जरिए चंद्रशेखर ने बनारस के सियासी मिजाज को समझने की कोशिश की और अपना इरादा जता दिया। अब सवाल यह है कि जिस मोदी के खिलाफ बड़ी पार्टियां मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही हैं, वहां चंद्रशेखर की क्या बिसात? क्या मोदी के खिलाफ चुनाव लडऩा चंद्रशेखर का पॉलिटिकल स्टंट है या फिर उसकी अतिमहत्वाकांक्षा यहां चुनाव लडऩे के लिए खींच लाई है।

लॉन्चिंग के लिए बनारस बढिय़ा प्लेटफॉर्म

चंद्रशेखर ने पिछले दिनों वाराणसी में कचहरी स्थित अंबेडकर चौराहे से रविदास पार्क तक लगभग 15 किमी लंबा रोड शो किया। रोड शो में भीड़ तो नहीं दिखी, लेकिन दलित युवाओं का जोश सातवें आसमान पर दिखा। रोड शो के दौरान जहां उन्हें बीजेपी कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा, वहीं जिला प्रशासन ने भी अनुमति देने के नाम पर भीम आर्मी को खूब परेशान किया। आलम यह था कि चंद्रशेखर का रोड शो संगीनों के साए में निकाला। चंद्रशेखर के बनारस से चुनाव लडऩे के फैसले पर विश्लेषकों का कहना है कि उन्होंने बहुत सोच समझकर यह फैसला किया है। वह जानते हैं कि उनकी पॉलिटिकल लॉचिंग के लिए बनारस से बेहतर प्लेटफॉर्म और कहीं नहीं हो सकता।

मोदी के खिलाफ चुनाव लडक़र वह खूब सुर्खियां बटोर लेंगे। उनकी गिनती मोदी को टक्कर देने वाले नेताओं में होगी। चंद्रशेखर को उम्मीद है कि आखिरी वक्त पर कांग्रेस का दिल पिघलेगा और बनारस में उनकी राह आसान होगी। चंद्रशेखर मोदी के खिलाफ चुनाव लडक़र एक तीर से दो निशाने कर रहे हैं। एक तो सुर्खियों बटोरेंगे और दूसरे दलितों के बीच अपनी स्थिति को और मजबूत कर लेंगे।

चंद्रशेखर के फैसले पर दलित वर्ग से सवाल भी उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि बनारस से चुनाव लडक़र चंद्रशेखर एक तरह से नरेंद्र मोदी की मदद ही कर रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि यहां सपा-बसपा गठबंधन अपना प्रत्याशी उतारने जा रहा है। सो ऐसे में चंद्रशेखर की दावेदारी की सूरत में बनारस सीट पर गठबंधन कमजोर होगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। बीएचयू के प्रोफेसर एमपी अहिरवार कहते हैं, ‘चंद्रशेखर का बनारस से चुनाव लडऩा राजनीति की अति महत्वाकांक्षा को दिखाता है। ये पहले कहते थे कि हम सामाजिक लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन अब ये चुनाव में आ गए और सीधे तौर पर मोदी के विरोध के नाम पर राजनीति में आए हैं, लेकिन ये मोदी के लिए काम कर रहे हैं। जब यहां पर गठबंधन है तो फिर ये क्यों चुनाव लड़ रहे हैं। सवाल यह है कि ये किसका वोट काटेंगे?’

मायावती की छटपटाहट

चंद्रशेखर के चुनाव लडऩे के ऐलान के साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती की छटपटाहट दिखने लगी है। मायावती जानती हैं कि अगर पूर्वांचल में भीम आर्मी पैर पसारती है तो इसका खामियाजा उनकी पार्टी को भुगतना पड़ेगा। मायावती की असल नाराजगी प्रियंका गांधी से है। मायावती को अंदेशा है कि कांग्रेस जानबूझकर पूर्वांचल में भीम आर्मी को मजबूत कर रही है। दूसरी ओर प्रियंका जानती हैं कि गैर जाटव दलित जो बीजेपी के पाले में चला गया था, उसमें सेंध लगाई जा सकती है। दरअसल उत्तर प्रदेश में लगभग 23 प्रतिशत दलित आबादी, खासतौर से जाटव पर बसपा अपना एकाधिकार मानती थी। साल 1992 से लेकर 2012 तक दलितों ने मायावती का खूब साथ दिया, लेकिन अब मायावती का तिलिस्म टूटने लगा है।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा ने मायावती के दलित वोट बैंक में, जिसमें गैर जाटव सबसे अधिक थे, सेंधमारी की। ये सिलसिला विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। भाजपा की कोशिश है कि किसी तरह इस वोट बैंक को सहेजकर रखा जाए। भाजपा दलितों को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि उसके दरवाजे दलितों के लिए खुल चुके हैं। मायावती के लिए मुश्किल यही है। अब तक भाजपा उसके वोट बैंक के पीछे पड़ी थी और अब भीम आर्मी भी तैयार हो गई है। बहरहाल चंद्रशेखर न तो मायावती पर कटाक्ष कर रहे हैं और न ही राहुल या अखिलेश पर। उनके निशाने पर सिर्फ मोदी हैं। बताया जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी का पहले सिर्फ पश्चिम यूपी पर ही पूरा फोकस था लेकिन प्रियंका गांधी से मिलने के बाद चंद्रशेखर पूर्वांचल आए।

केजरीवाल भी बटोर चुके हैं सुर्खियां

साल 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लडऩे वालों में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी प्रमुख थे। केजरीवाल को यहां मोदी के मुकाबले पौने चार लाख वोट से हार का सामना करना पड़ा। केजरीवाल मोदी से मुकाबला करके देश को ये संदेश देना चाहते थे कि सिर्फ वही हैं जो मोदी को टक्कर दे सकते हैं। देश की राजनीति में केजरीवाल खुद को मोदी के समानांतर खड़ा करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि उन्हें बनारस में एंटी मोदी वोटों का अच्छा खासा साथ मिला। केजरीवाल को मुस्लिम वोट एकतरफा मिले थे। चंद्रशेखर भी केजरीवाल के रास्ते पर चलते दिखाई पड़ रहे हैं।

केजरीवाल की तरह चंद्रशेखर भी सोशल मीडिया के घोड़े पर सवार हैं। भीम आर्मी को उम्मीद है कि बनारस में मोदी के खिलाफ सभी पार्टियां उसे समर्थन देंगी। भीम आर्मी के मुताबिक उसने महागठबंधन या विपक्षी दलों को यूपी की 79 सीटों पर पूरा सपोर्ट देने का वादा किया है, लेकिन बनारस में चंद्रशेखर को संयुक्त प्रत्याशी बनाए जाने की अपील सभी से की है। अगर बाकी दल ऐसा नहीं करते हैं तो निश्चित तौर पर वे दल मोदी को जिताने की कोशिश कर रहे हैं।

सवाल यह भी है कि अगर विपक्ष के अलग-अलग चेहरे बनारस से पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठोकेंगे तो हालात क्या होंगे? 2014 में अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस से अजय राय, समाजवादी पार्टी से कैलाश चौरसिया और बहुजन समाजवादी पार्टी से विजय जायसवाल, इन चारों ने मिलकर उतने वोट हासिल नहीं किए थे, जितने प्रधानमंत्री मोदी ने अकेले हासिल किए थे। इसके बाद अब यह सवाल बार बार हर कोई पूछ रहा है कि क्या इस बार भी विपक्ष के अलग-अलग चेहरे प्रधानमंत्री मोदी को जरा भी टक्कर दे पाएंगे।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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