कविता: बस इतना अब चलना होगा, फिर अपनी-अपनी राह हमें

raghvendra
Published on: 9 Feb 2018 11:03 AM GMT
कविता: बस इतना अब चलना होगा, फिर अपनी-अपनी राह हमें
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भगवतीचरण वर्मा

बस इतना अब चलना होगा

फिर अपनी-अपनी राह हमें।

कल ले आई थी खींच, आज

ले चली खींचकर चाह हमें

तुम जान न पाईं मुझे, और

तुम मेरे लिए पहेली थीं;

पर इसका दुख क्या? मिल न सकी

प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।

तुम मुझे भिखारी समझे थीं,

मैंने समझा अधिकार मुझे

तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,

था बना वही तो प्यार मुझे।

तुम लोक-लाज की चेरी थीं,

मैं अपना ही दीवाना था

ले चलीं पराजय तुम हँसकर,

दे चलीं विजय का भार मुझे।

सुख से वंचित कर गया सुमुखि,

वह अपना ही अभिमान तुम्हें

अभिशाप बन गया अपना ही

अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें

तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,

तुम समझ न पाईं जीवन को

जन-रव के स्वर में भूल गया

अपने प्राणों का गान तुम्हें।

था प्रेम किया हमने-तुमने

इतना कर लेना याद प्रिये,

बस फिर कर देना वहीं क्षमा

यह पल-भर का उन्माद प्रिये।

फिर मिलना होगा या कि नहीं

हँसकर तो दे लो आज विदा

तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,

यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।

raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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