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क्या कहूं ‘लखनऊ तुमसे इतना प्यार क्यों हैं.....

Charu Khare
Published on: 9 March 2018 10:36 AM GMT

क्या कहूं ‘लखनऊ’ तुमसे इतना प्यार क्यों है।

धड़कने कैद हो रखी हैं यहां के गलियारों में...

सुकून है यह तक की यहां के मलिन बस्ती के उजियारों में...

‘अजनबियों’ को पलभर में अपना बना लेता है।

अगर कोई एक बार ‘हजरतगंज’ की सड़कों पर शाम बिता लेता है।

अच्छे-अच्छे तारीफें करते-करते हो जाते हैं लाजवाब...

जो एक बार जाकर चख आते हैं ‘चौक’ के ‘टुंडे कबाब’

जबरदस्त ठरकी भी बोल आते हैं शराब, दारु, विस्की को ‘बाय-बाय’

जब वो लालबाग़ में गली के अंदर मिल जाती है उन्हें ‘शर्मा वालों की चाय’

स्कूल के सारे कार्टून करैक्टर मुझे तब याद पड़ते हैं।

कदम मेरे जब लखनऊ ‘जू’ की तरफ बढ़ते हैं।

‘एसिड अटैक विक्टिम्स’ के दर्द को ये संजोता है।

‘शिरोज हैंगआउट’ ‘मन की खूबसूरती’ को एक तोहफा है।

किसी ने किसी को किया यहां प्रपोज...

तो किसी ने अपने यादगार लम्हों को बनाया यहां ख़ास है।

ऐ अम्बेडकर पार्क! तू ही बता, तेरा क्यों इतना गजब सा मिजाज है।

अगर हो कभी उदासी या दिल जो कभी परेशां हो उठता है।

यकीन मानो तब-तब दोस्तों संग ‘मरीन ड्राइव’ का चक्कर लगाना जरुरी होता है।

ऐसे ही नहीं कहलाता ये ‘लखनऊ’ मेरा ‘नवाबों का शहर’

दिलदार है बड़ा ये, हर किसी को अपना दिल दे बैठता है।

(चारु खरे)

Charu Khare

Charu Khare

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