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महिलाओं के लिए हर शाम कुछ यूं बदतमीज़ हो जाता है तहज़ीब का शहर लखनऊ
शाम का वक़्त,लखनऊ की सड़को पर रेंगता ट्रैफिक, ऑफिस से घर जाने की जद्दोजहद करते लोग कुछ यही नज़ारा राजधानी की हर सड़को पर रोज़ नज़र आता है। आप सोच रहे इसमें ऐसा नया क्या है तो हम आपको लखनऊ की कड़वी हक़ीक़त से रूबरू करवाते है की कैसे बदतमीज़ हो जाता है तहज़ीब का शहर।
लखनऊ: शाम का वक़्त,लखनऊ की सड़को पर रेंगता ट्रैफिक, ऑफिस से घर जाने की जद्दोजहद करते लोग कुछ यही नज़ारा राजधानी की हर सड़को पर रोज़ नज़र आता है। आप सोच रहे इसमें ऐसा नया क्या है तो हम आपको लखनऊ की कड़वी हक़ीक़त से रूबरू करवाते है की कैसे बदतमीज़ हो जाता है तहज़ीब का शहर।
जान हथेली पर ले कर सफर करती है महिलाएं
महिला सशक्तीकरण के इस दौर में महिलाये हर क्षेत्र में पुरुष के कन्धा से कन्धा मिला कर चल रही है ,यही वजह है की ऑफिस से छूटने के वक़्त सड़को पर जितनी भीड़ पुरुषो की दिखती है ,उनती ही महिलाये भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इंतज़ार करती नज़र आती है। घर जाने की जद्दोजहद में भीड़ से लड़ती महिलाये कई बार पहले से खचाखच भरी बस में चढ़ने में कामयाब हो जाती है तो कभी कभी धक्कामुक्की में न चढ़ पाने का मलाल साल जाता है। सडक़ो पर बढ़ते अँधेरे और घडी की भागती सुइयों के हिसाब से चलने की दौड़ में अक्सर जान हथेली पर ले कर यह महिलाये बस से लटक कर सफर करने को मजबूर होती है।
महिला सीटो पर भी अपना हक़ जमाते है पुरुष
शहर के प्रमुख चौराहो पर लोगो की भीड़ ,दूर से आती सिटी बस की बस को देखते ही उसपर सवार होने की रणनीति बनाते हुए कमर कसने के अंदाज़ में आ जाती है। घर जाने की इस जंग में को महिलाओ को पीछे छोड़ते हुए पुरुष बाज़ी मार ले जाते है लेकिन आपको हैरानी होगी की कई यह सभ्य पुरुष सीट पाने के लिए बस में चढ़ती महिलाओ को धक्का मारने से भी नही चूकते। हालांकि तत्कालीन डी आई जी नवनीत सिकेरा की पहल पर सिटी बस में महिलाओ के लिए आगे की 6 सीट आरक्षित की गयी थी। इसके बावजूद भी पुरुष इन सीट पर बैठ कर महिलाओ पर अपना रोब गांठते देखे जा सकते है इस दौरान बस में भरी भीड़ में बेइज़्ज़ती से बचने के महिलाये या तो अपनी सीट के लिए आवाज़ नही उठाती अगर उठाती भी है तो या तो पब्लिक महिला को चुप करा देती है या बस का कन्डेक्टर महिला को भीड़ में चिकचिक न करने की नसीहत दे डालता है।
आगे कि स्लाइड में पढ़ें सखी बस में क्या है खास...
क्यों ख़ास है सखी बस सेवा
- सखी बस में सिर्फ महिला यात्री ही सफर कर सकती है
- महिलाओ के चलाई गयी इस बस में किसी भी पुरुष यात्री के सवार होने पर पाबन्दी है
- सखी बस में महिलाओ की सुरक्षा के लिए महिला पुलिसकर्मी के तैनात होने के निर्देश है
- सखी बस सेवा में पुरुष नही बल्कि महिला कंडक्टर को तैनात किया गया है
सखी ने दिलायी थी महिलाओ को राहत
सूबे में महिला शक्तिकरण और महिला सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई योजनाओ की शुरुआत की। इन्ही योजनाओ की एक धुंधली याद है सखी बस सेवा। प्रदेश में महिलाओ को सुरक्षित सफर देने का वादा करने के साथ समाजवादी सरकार ने स्पेशल सखी बस सेवा की शुरुआत की थी। महिलाओ के लिए ख़ास तौर पर चलाई गयी इस सेवा ने महिलाओ को राहत की सांस दी थी
1 लाख से ज़्यादा कामकाजी महिलाओ के लिए राजधानी के 52 रुट पर 260 बसों में सिर्फ 1 सखी बस
करीब तेरह लाख की महिला तादाद वाली राजधानी लखनऊ में कामकाजी महिलाओ की संख्या लगभग 1 लाख के आस पास है। इन कामकाजी महिलाओ को हर रोज़ घर से बाहर निकलना पड़ता है। इन 1 लाख महिलाओ में करीब 10 हज़ार ही ऐसी महिलाये होंगी जो अपनी गाड़ियों से सफर करती है बाकी 90 हज़ार महिलाओ के लिए कोई ख़ास परिवहन साधन न होने की वजह से उन्हें हर रोज़ परेशानी का सामना करना पड़ता है। जब अपना भारतने महिलाओ की इस परेशानी को महकमे तक पहुचाने के लिए सिटी बस के प्रबन्धन निदेशक से बात की तो उन्होंने बड़े फख्र के साथ बताया की 35 रुट पर एक सखी सेवा( up32 CZ 8202) चल रही है,लेकिन बाकी बसों को शुरू करने के सवाल पर उन्होने कहा कि सखी सेवा के ख़राब रिज़ल्ट देख कर ही उसे बंद कर दिया गया।
सखी को लग गयी घाटे की नज़र
लेकिन कुछ ही दिनों में सखी को परिवहन निगम के घाटे की नज़र लग गयी जिसके बाद राजधानी की महिलाओ की सखी (सखी बस) का ठिकाना शहर की सड़के नही बल्कि सिटी बस का यार्ड बन गया। मुश्किल से महीना भर चली सखी सेवा को घाटा बता कर बंद कर दिया गया। हैरानी इस बात की है कि सुबह-शाम बेशुमार बहनें-बेटियां बस-आटो के लिए भटकती है। इस दौरान होने वाली धक्का मुक्की में उन्हें पुरुषों की उलूल-जुलूल हरकतें भी बर्दाश्त करनी पड़ती है। ऐसे में घाटा कैसे हुआ? बड़ा सवाल यह है मुफ़्त लैपटाप-टैबलेट, बेरोजगारी भत्ता , जैसी कई कल्याणकारी कार्यक्रम पर करोड़ों रुपया की योजना चलाने वाली टीपू भैया की सरकार ’महिला सुरक्षा के नाम पर ’सखी बस सेवा’ का कथित छोटा सा घाटा क्यों नहीं सहन कर सकती?
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