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वाह! जहां पूजी जाती हो माता..वहां ऐसे होती है महिलाओं की इज्जत!

कई साल पहले महिला सशक्तीकरण विषय पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में एक छात्रा ने कुछ ऐसी ही टूटी फूटी कविता के साथ बोलना शुरू किया था।

tiwarishalini
Published on: 28 Sep 2017 11:08 AM GMT
वाह! जहां पूजी जाती हो माता..वहां ऐसे होती है महिलाओं की इज्जत!
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"लछमी देवी दर दर भटकें बेबस निर्धन चार टके को

दुर्गा पर गुंडे लहटे हैंं निर्बल अबला जान समझ के।

सरस्वती को दिया मजूरी डाट दपटकर बेलदार ने,

लिया अँगूठा मस्टर बुक पर काट-पीट कर ठेकेदार ने।

मातृशक्ति का पर्व मनाते जाएं हम हर वर्ष

रात-जागरण,भजन-कीर्तन क्या बढ़िया उत्कर्ष।।"

कई साल पहले महिला सशक्तीकरण विषय पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में एक छात्रा ने कुछ ऐसी ही टूटी फूटी कविता के साथ बोलना शुरू किया था। मैं निर्णायक था। इस छात्रा के बोलने के बाद मैंने घोषणा कर दी कि अब इससे ज्यादा बोलने को कुछ नहीं बचा। प्रतियोगिता सरकारी थी लिहाजा आयोजक यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि लाडली लक्ष्मी, से लेकर महिलाओं से जुड़ी जितनी योजनाएं हैंं प्रतिभागीगण उस पर बोलेंगे। कई छात्राएं तैयारी के साथ अच्छा बोलीं भी,कि सरकार क्या क्या कर रही है, पर उस छात्रा ने नाम के प्रतीकों को जोड़कर महिलाओं की स्थिति को जो सहज बयान किया वह अंतस को झिंझोड़ देने वाला रहा।

मातृशक्ति का नौ दिन का पर्व चल रहा है। इसके बाद दीवाली आएगी। फिर वसंत पंचमी को हम सरस्वती पूजन करेंगे। यह सनातन से करते आ रहे हैं और आगे भी इसी उत्साह और पवित्रता के साथ करते जाएंगे। दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती यही तीन नाम हैं जो हम लोग अपनी बच्चियों का सबसे ज्यादा रखते हैं। नए जमाने में इन नामों के पर्यायवाची ढूंढ के रखते हैं। एक शक्ति की देवी, मधु कैटभ विध्वंसिनी, महिषासुरमर्दनी, रूप,यश,शक्तिदायनी। एक ऐश्वर्य, वैभव की देवी गरीबों का छप्पर फाड़कर धनधान्य से भर देने वाली। एक ज्ञान,मेधा बुद्धि,चातुर्य की अधिष्ठात्री। वेद, पुराण कथाओं में अद्भूत बखान है इन देवियों का। कथाओं में तो ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों को अपनी अँगुलियों में नचाए रखती हैं। यह सब कहानियां युगों से चलती चली आ रही हैं।

जिस देश में मातृशक्ति का इतनी महत्व रहा हो उस देश को तो कायदे से स्वर्ग होना चाहिए। महिलाओं की स्थिति हर दृष्टि से विश्व में सर्वोपरि होनी चाहिए। पर है क्या..? चलिए ये भी जानें। दुनिया के प्रायः सभी समर्थ देशों ने पर्यटन पर जाने वाली अपनी महिला नागरिकों को यह एडवायजरी जारी कर रखी है कि यदि वे भारत जाएं तो जरा संभल के। विश्व में हमारी ख्याति महिलाओं पर बुरी नजर रखने वालों की है, यानी कि वे हमें अव्वल दर्जे के दुष्कर्मी मानते हैं। कब क्या घटित हो जाए भगवान जाने। और अब तो भगवान के आगे ही उनके नाम से घटित हो जाता है। जेल में गुरमीत की चर्बी अभी तक अच्छे से पिघल भी नहीं पाई कि एक फलाहारी बाबा आ गए। कई बाबा लोग जेल में हैं। मुहिम चले तो नब्बे फीसदी जेल पहुंच जाएं। एक बाबा प्रवचन दे रहे ..यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र रमंते देवताः..हम लोगों को देवता ही समझो..नारी में रमने का हमें आदियुग से अधिकार प्राप्त है। अब हम देख रहे हैंं कि जेल जाने से पहले तक अपनी अपनी गुफाओं में कैसे रमे रहते हैं।

जो नारी शक्ति की प्रतीक है वह इतनी निर्बल, बेबस। इतने तो जानवर भी नहीं। अभी भी स्त्रीधन, भोग की वस्तु। कहीं भी,कभी भी, कोई भी। मधुकैटभ, महिषासुर, गली-गली, सड़क-सड़क,दफ्तर-दफ्तर, बस,ट्रेन, हवाई जहाज हर जगह। इन राक्षसों की माटी की प्रतिमा को शेरों से नुचवाइए या त्रिशूल से छेदिए। असली तो सड़क पर घूम रहे हैं, मठमंदिरों,आश्रमों में घात लगाए बैठे हैं। बड़े दांत, नाखून और सींग वाले नहीं। रेशमी अंगवस्त्रम से सुसज्जित। कहां बचकर जाइएगा।

शुरुआत ही कुछ ऐसी है। अंकुरण के साथ ही मशीन से पता लगाया पेट में है..गर्भ में पल रही है। वहीं मार दो। सुपारी लेने के लिए सफेद कोट पहने वाले खड़े हैं। कौन भगवान् है यहां जो नृसिंह की तरह आपरेशन थियेटर फाड़ के प्रकट हो जाए और प्रह्लाद की तरह बचा ले उस नन्ही अजन्मी को। ज़ो बच भी गई उनमें न जाने कितनी दुर्गा, लक्ष्मी,सरस्वती नाम वाली होंगी। और उन्हीं के पीछे बचपन से न जाने कितने मधुकैटभ पड़े होंगे। कितने ढोंगी हैं हम। दुर्गा कोख में वध्य। राक्षस सड़क में आजाद। यही चल रहा है, यही चलेगा। और ये कोई नई बात नहीं।

हर साल नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट जारी होती है। प्रदेशों में होड़ सी मची रहती है कि महिलाओं के साथ अत्याचार में कौन आगे..? भ्रूणहत्या कहां ज्यादा होती है। एक प्रदेश के मुखिया ने कैफियत दी कि चूँकि महिलाओं के मामले में हम संवेदनशील हैं,थाने में रिपोर्ट दर्ज करते हैं, इसलिए आँकडे़ हमें ऊपर बताते हैं, ज्यादा दुष्कर्मी त़ो वो प्रदेश है जहाँ अत्याचार भी होता है और कोई रिपोर्ट भी दर्ज नहीं होती। वे शायद सही कहते हैं। महिला अत्याचार के आधे से ज्यादा मामले गरीबी और लोकलाज की वजह से दबे ही रहते हैं। महिलाओं पर जुल्म वहां ज्यादा हैं जहाँ सभ्य लोग रहते हैं। जितना बड़ा शहर वहां उतने ही बड़े दुष्कर्मी। दिल्ली में सत्ता का सिंहासन है,यहीं कानून बनता है,यहीं लागू होता,न्याय की सर्वोच्च पीठ भी यहीं, सबसे बड़े मानवाधिकारवादी भी यहीं बैठते हैं पर क्राइम ब्यूरो बताता है कि हर मिनट इस महानगर में कहीं न कहीं किसी की इज्ज्त उतरती है।

इससे बेहतर तो वो असभ्य गांव हैं। जहाँ शिक्षा और संस्कृति नहीं पहुंच पाई। वनवासियों के बीच अभी भी महिलाओं का रसूख है। ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों में महिला मुखियागीरी का औसत 36 प्रतिशत है जबकि शहरों में मात्र 9 प्रतिशत। विधायी संस्थाओं, यानी ल़ोकसभा,विधानसभाओं में हर नौ निर्वीचित पुरुष के बाद एक महिला है। यह औसत वैश्विक पैमाने पर 20 प्रतिशत कम है। महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के मामले में बांग्लादेश और श्रीलंका हमसे आगे है। नारी अर्धांगिनी कही जाती है। भवानीशंकर जब एकाकार होते हैं तो अर्धनारीश्वर बनते हैंं। नर-नारी समानता ई्श्वरीय आदेश है। हर देवी देवता से पहले।राधा-कृष्ण,सीता-राम, लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर। इस संस्कृति की दुहाई देने वाले देश में नारी अभी तक पुरुष के घुटने से ऊपर नहीं आ पाई। नगरीय और पंचायत चुनावों में जहाँ इन्हें थोडा़ प्रतिनिधित्व मिला वहां पतियों ने इन्हें अपनी छाया से ही मुक्त नहीं किया।

-जय राम शुक्ल

tiwarishalini

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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