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मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं क्या है कहानी नहीं पता तो पढ़िये, जानिये खिचड़ी की भी है कहानी
रामकृष्ण वाजपेयी
मकर संक्रांति इस देश का राष्ट्रीय पर्व है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है पूरे देश में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में तमिलनाडु में इसे पोंगल तो तेलंगाना, आन्ध्र, कर्नाटक और केरल में यह केवल संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा में लोहिड़ी तो पूर्वी भारत में असम में बीहू के नाम से और पूर्ण मध्यभारत में इसे मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है ।
इस दिन सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। मल मास या खर मास होने के कारण रुके हुए मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है। पौष मास में जब भगवान सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करते है तब इस त्योहार को मनाया जाता है। कभी इस पर्व को 12 से लेकर 15 जनवरी तक मनाया जाता था। लेकिन बीते कुछ वर्षों से इसे 14 या 15 जनवरी को मनाया जाने लगा है। इस वर्ष भी यह दिन 15 जनवरी को मनाया जावेगा।
मकर संक्रांति के बारे में श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में एक कथा है। कथा के अनुसार शनि देव का हमेशा से ही अपने पिता सूर्य देव से वैर था। एक दिन सूर्य देव ने शनि और उसकी माता छाया को अपनी पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद भाव करते देख लिया। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने अपने जीवन से छाया और शनि को निकालने का कठोर फैसला लिया। इस पर क्रोधित होकर शनि और छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग हो जाने का शाप दे दिया और वहां से चले गए।
पिता को कुष्ठ रोग से परेशान होते देख यमराज ने तपस्या की। आखिरकार सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हुए. किन्तु उनके मन में अभी भी शनि देव को लेकर क्रोध था। क्रोधित अवस्था में ही वे शनि देव के घर (कुंभ राशि में) गए और उसे जलाकर काला कर दिया। इसके बाद शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा। अपनी सौतेली मां और भाई शनी देव को दुख में देखकर यमराज ने उनकी मदद की। यम ने अपने पिता सूर्य देव को दोबारा उनसे मिलने भेजा। इस बार जब सूर्य देव वहां पहुंचें तो शनि देव ने 'काले तिल' से उनकी पूजा की। चूंकि घर में सब कुछ जल चुका था, इसलिए शनि देव के पास केवल तिल ही थे। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि देव को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे दूसरे घर 'मकर' में आने पर तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा। इसी कारण से मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की तिल से पूजा की जाती है और अगले दिन तिल का सेवन किया जाता है।
मकर संक्रांति पर क्यों बनाते हैं खिचड़ी
इसकी भी एक कहानी है। कथा के अनुसार खिचड़ी का आविष्कार पहली बार भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाली बाबा गोरखनाथ ने किया था। बात उस समय की है जब खिलजी ने आक्रमण किया था तब नाथ योगियों के पास युद्ध के बाद खाना बनाने का समय ही नहीं बचता था। इस परेशानी को देखते हुए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ एक ही बर्तन में पकाने की सलाह दे दी। इससे जो व्यंजन तैयार हुआ वह झट से बन भी गया और स्वादिष्ट भी लगा। इसे खाने में भी कम समय लगा और इससे शरीर में ऊर्जा भी बनी रही। बाबा गोरखनाथ ने स्वयं इस पकवान का नाम खिचड़ी रखा। कहते हैं कि जिस दिन यह व्यंजन बना वह मकर संक्रांति का ही दिन था। इसलिए इसके बाद से हमेशा इस दिन खिचड़ी बनाई जाने लगी।
एक कथा यह भी प्रचिलित है कि गंगा जी भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर मिलन इसी दिन हुआ था। इसी दिन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिये तर्पण भी किया था।
इसी लिये मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है । महाभारत में गंगापुत्र पितामह भीष्म ने भी प्राण त्यागने के लिये इसी दिन का चुनाव किया था। इस दिन देह त्यागने वाले लोगो को श्रीकृष्ण के धाम में स्थान मिलता है।
वैसे देखा जाए तो मकर संक्रांति एक वैज्ञानिक पर्व है। 15 जनवरी से 15 जुलाई तक सूर्य उत्तरायण में रहते है वंही 16 जुलाई से 14 जनवरी तक सूर्य देव दक्षिणायन की ओर भ्रमण करते हैं। चूंकि पूर्व से उत्तर की भ्रमण ईशान के रास्ते है। उत्तर की ओर ईशान में ईश्वर का वास होता है। अतः इस काल में जिसकी मृत्यु होती है वह ईश्वर की ओर जाने वाले होते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत जब सूर्य देव दक्षिणायन की ओर
होते है अर्थात दक्षिण की ओर जाना दक्षिण दिशा में यम का वास माना जाता है अतः नरक के द्वार पर पंहुचते हैं उन्हे लेने के लिए यमदूत आते हैं। अतः उन्हें नरकवासी कहा जाता है।