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Nagaland Issue: सुलझने का नाम नहीं ले रही नागा समस्या, जानें क्यों छिड़ी ये जंग

Nagaland Issue: बीते 24 वर्षों से नागा समस्या के स्थायी समाधान के लिए जारी शांति प्रक्रिया अब भी किसी नतीजे पर पहुंच नहीं सकी है। अब नागालैंड के सभी दलों ने मिल कर समस्या के समाधान का बीड़ा उठाया है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 20 Aug 2021 9:20 AM GMT (Updated on: 20 Aug 2021 9:22 AM GMT)
Nagaland Issue: सुलझने का नाम नहीं ले रही नागा समस्या, जानें क्यों छिड़ी ये जंग
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नागालैंड समस्या (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Nagaland Issue: बीते 24 वर्षों से नागा समस्या के स्थायी समाधान के लिए जारी शांति प्रक्रिया अब भी किसी नतीजे पर पहुंच नहीं सकी है। कभी अलग झंडे तो कभी अलग संविधान की मांग ने इस शांति प्रक्रिया की राह में लगातार रोड़े अटकाए हैं। समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार ने 6 साल पहले ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौता किया था लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकल सका है और अब सरकार ने भी चुप्पी साध ली है। ऐसे में नागालैंड के सभी दलों ने मिल कर समस्या के समाधान का बीड़ा उठाया है और इस क्रम में सभी दल सरकार में शामिल हो गए हैं।

क्या है नागा समस्या (Naga Samasya Kya Hai)

भारत में 1881 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विस्तार के पहले नागा समुदाय (Naga Community) के इलाके पूर्ण संप्रभुता वाले इलाके थे। जब अंग्रेजी हुकूमत ने भारत पर शासन जमाया तो नागा इलाके भी उसकी जद में आ गए। उस समय असम राज्य (Assam) के भीतर 'नागा हिल्स' (Naga Hills) नामक क्षेत्र होता था जो बाद में चल कर नागालैंड (Nagaland) राज्य बना।

लेकिन इस नागालैंड में मूल नागा हिल्स के बहुत कम इलाके शामिल थे। नागा हिल्स का बहुत बड़ा हिस्सा मणिपुर (Manipur) में चला गया जबकि बहुत से इलाके असम (Assam) और अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में शामिल कर दिए गए। नागा समुदायों (Naga Community) का बहुत सा इलाका म्यांमार (Myanmar) में भी चला गया।

नागा समुदाय (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जब भारत की आजादी और स्वायत्त क्षेत्रों की बात शुरू हुई थी तभी नागा कबीलों ने ब्रिटिश हुकूमत को सूचित कर दिया था कि वे भारत गणराज्य (India) में शामिल नहीं होंगे। इसीलिए भारत की आजादी के एक दिन पहले यानी 14 अगस्त 1947 को नागा ने अपनी आज़ादी (Independence Day) की घोषणा कर दी। तबसे हर साल विभिन्न नागा गुट 14 अगस्त को आज़ादी का समारोह मनाते हैं और इस साल भी ऐसा ही हुआ। नागा इलाकों को चूंकि भारत में शामिल कर लिया गया था सो तभी से ये मसला एक परेशान करने वाला कांटा बना हुआ है।

आज़ादी के बाद से हिंसा

देश आजाद होने के बाद नागा कबीलों ने संप्रभुता की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। उस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई जिससे निपटने के लिए उपद्रव वाले इलाकों में सेना तैनात की गयी थी।

- 1957 में केंद्र सरकार और नागा गुटों के बीच शांति बहाली पर आम राय बनी और सहमति के आधार पर असम के पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले तमाम नागा समुदायों को एक साथ लाया गया। लेकिन जमीनी हालात ज्यों के त्यों रहे, और इलाके में उग्रवादी गतिविधियां जारी रहीं।

- 1960 में आयोजित नागा सम्मेलन में तय हुआ कि इस इलाके को भारत का हिस्सा बनना चाहिए।

- वर्ष 1963 में नागालैंड राज्य बनाया गया और 1964 में यहां पहली बार चुनाव कराए गए। लेकिन अलग राज्य बनने के बावजूद नागालैंड में उग्रवादी गतिविधियां खत्म नहीं हुईं।

- 1975 में तमाम उग्रवादी नेताओं ने हथियार डाल कर भारतीय संविधान के प्रति आस्था जताई, लेकिन यह शांति ज्यादा दिन टिक नहीं सकी।

- 1980 में राज्य में सबसे बड़े उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का गठन किया गया और उसके बाद राज्य में उग्रवाद का लंबा दौर जारी रहा।

- राज्य में शांति बहाली के मकसद से केंद्र सरकार ने सबसे बड़े उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आई-एम) के साथ 1997 में युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

फ्रेमवर्क समझौता

वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट यानी समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर करने के बाद शांति प्रक्रिया के मंजिल तक पहुंचने की कुछ उम्मीद जरूर पैदा हुई थी। लेकिन इस प्रक्रिया में अक्सर गतिरोध पैदा होते रहे हैं। एनएससीएन (आई-एम) शुरू से ही असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नागा-बहुल इलाकों को मिला कर नागालिम यानी ग्रेटर नागालैंड के गठन की मांग करता रहा है। इलाके के यह तीनों राज्य केंद्र से कोई भी समझौता करने से पहले बाकी राज्यों की संप्रभुता बरकरार रखने की अपील करते रहे हैं।

वर्तमान स्थिति

एनएससीएन (आईएम) का कहना है कि- फ्रेमवर्क समझौते (Framework Agreement) के छह साल बीत जाने के बाद भी भारत सरकार की ओर से अब तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। नागाओं के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जा सकता। संगठन का दावा है कि केंद्र सरकार अपने वादे को पूरा करने में नाकाम रही है।

दरअसल, नगालैंड में स्थायी शांति लाने के प्रयास ठप्प हैं क्योंकि केंद्र सरकार ने एनएससीएन की ओर से अवैध रूप से टैक्स की वसूली रोक दी है। यह उग्रवादी संगठन अपनी स्थापना के समय से ही राज्य के तमाम लोगों, व्यापारियों और सरकारी कर्मचारियों तक से टैक्स वसूलता रहा है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

क्या है फ्रेमवर्क समझौता

केंद्र सरकार ने 3 अगस्त 2015 को एनएससीएन के इसाक मुइवा गुट के साथ एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन उसके प्रावधानों को गोपनीय रखा गया था। बाद में वर्ष 2017 में नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप जैसे सात विद्रोही गुटों को शांति समझौते में शामिल किए जाने से कुछ नागा संगठनों ने निराशा जताई थी और इसे शांति प्रक्रिया को लंबा खींचने का बहाना बताया था। कुछ दिनों पहले एनएससीएन ने फ्रेमवर्क समझौते के प्रावधानों को सार्वजनिक करते हुए लंबे अरसे तक शांति प्रक्रिया में मध्यस्थ रहे एन.रवि पर मूल समझौते की कुछ लाइनें बदलने का आरोप लगाया था।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एनएससीएन अलग संविधान और झंडे की मांग पर अड़ा है जबकि केंद्र सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। यही शांति प्रक्रिया की राह में सबसे बड़ी बाधा है। अब देखना है कि सभी राजनीतिक दल जब सरकार में शामिल हो रहे हैं तो वे मिलकर क्या कोई सर्वस्वीकार्य समाधान खोज पाएंगे?

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