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बदलाव से कदमताल की जरूरत

Dr. Yogesh mishr
Published on: 14 Aug 2018 6:45 PM IST


इन दिनों मीडिया में बदलाव का दौर है। बड़े बदलाव का दौर है। बदलाव ‘कंटेंट‘ और ‘फार्म‘ दोनों स्तरों पर जारी है। लेकिन बदलाव के अकल्पनीय त्वरा से कदमताल करने को हम पत्रकार तैयार नहीं दिख रहे हैं। शब्द और विचार का जुड़ना संप्रेषण की एक स्वीकृत सामाजिक व्यवस्था के तहत होता है। पत्रकार शब्द और विचार के जुड़ने को लेकर भले ही तैयार बैठा हो। लेकिन सोचना या विचारना जिस समय की अपेक्षा करता है, समय के वेग की मांग करता है। उसके लिए कोई तैयारी नहीं दिख रही है। रेडियो-प्रिंट से टीवी, आॅडियो और फिर विजुअल, फिर वेब पत्रकारिता ने जो जगह बनाई है वह यह बता रही है कि 4-जी के आने के बाद मीडिया अपने फार्म में बड़े बदलाव का स्वरूप लिए तैयार बैठा है। यह सहज स्वीकार्य नहीं है। लेकिन हकीकत है कि टेलीविजन ने अखबारों को पढ़ने की जगह देखने की विषय वस्तु बना दिया। क्योंकि पहले पेज की सारी की सारी खबरें पाठक किसी चैनल के स्क्रीन पर पहले ही देख चुका होता है। एक खबर कई बार देख कर वह टीवी स्क्रीन से भी ऊब चुका है, तभी तो उसने मीडिया के एक ऐसे माध्यम को तरजीह देनी शुरू कर दी है जो आॅडियो और विजुअल भी है, चलायमान भी है। जिसमें अपने पसंद के कार्यक्रम बाद में भी देखे जा सकते हैं। कई रेगुलर कार्यक्रमों के यूट्यूब पर देखने वालों की संख्या इतनी अधिक रहती है कि टीआरपी के खेल में फेल हुआ कार्यक्रम यूट्यूब पर धमाल मचा देता है।




यह सब इंटरनेट की वजह से संभव हो पाया है। अब इंटरनेट टेलीविजन का युग दिख रहा है। जब सारा देश टेलीविजन पर नेशनल चैनल लेकर आ रहा था तब मीडिया मुगल रामोजी राव ने अपने ई-टीवी के मार्फत रिजनल चैनल की दुनिया में प्रवेश करके कीर्तिमान रच दिया। यह वह दौर था जब राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबार एक जिले की खबर दूसरे जिलों में पढ़ा नहीं पा रहे थे। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में इनके इतने संस्करण थे कि एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने पर पूरा अखबार बदल जाता था। आज वही रामोजी राव इंटरनेट टेलीविजन की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं। मुकेश अंबानी जिओ गीगाफाइबर की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना सामने है। अंबानी की यह परियोजना इंटरनेट की गति में अप्रत्याशित तेजी करेगी। सस्ते स्मार्ट फोन, अमेजन प्राइम, हाॅटस्टार, नेटफ्लििक्स जैसे वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म और इंटरनेट के घटते दर ने इंटरनेट टीवी के रास्ते के सारे अवरोध हटा दिए हैं।




वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म हाॅटस्टार के छह करोड़ ग्राहक हैं। यूट्यूब पर रियल टाइम में 21 करोड़ लोग एक साथ आॅनलाइन रहते हैं। बार्क की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मौजूदा वक्त में 29.80 करोड़ घर हैं। इनमें 19.70 करोड़ घरों में टीवी सेट हैं। 83.60 करोड़ टेलीविजन दर्शक हैं। टीवी देखने वाले दर्शकों की संख्या में 7.2 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।




ट्राई के मुताबिक देश में सौ करोड़ मोबाइल ग्राहक हैं। जिनमें 30 करोड़ से अधिक ग्राहकों के पास स्मार्ट फोन है। बार्क की रिपोर्ट बताती है कि शहरों में औसतन आम आदमी चार घंटे छह मिनट और गांव में तीन घंटे सत्ताइस मिनट टीवी देखने में खर्च करता है। शहर में टेलीविजन पर अधिक समय देने की वजह एकल परिवारों की संख्या में इजाफा है। जबकि फोन पर प्रति व्यक्ति औसतन तीन घंटे समय देता है। डाटा के और सस्ता होने तथा इंटरनेट का सरल प्रवाह ग्राहकों को तेजी से अपनी ओर खींच रहा है। विकसित देशों में टीवी दर्शकों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है। निःसंदेह इसका प्रदर्शन प्रभाव भारत पर पड़ेगा ही। क्योंकि अच्छा स्मार्ट फोन तीन-चार हजार रुपये में मिल सकता है। लेकिन कोई टीवी सेट इसके दोगुने-तिगुने दाम में ही उपलब्ध है। यह जरूर है कि अभी विज्ञापनदाता मीडिया के इस बदल रहे ‘फार्म‘ को लेकर रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इंटरनेट टीवी उनको अभी नहीं भा रहा है। यही वजह है की टेलीविजन में विज्ञापन की बढ़ोत्तरी दर 14.10 फीसदी है। वर्ष 2015-16 में टेलीविजन उद्योग को 5,42,003 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।




देश में डीटीएच उपभोक्ताओं की संख्या 5,59,81,376 है। जबकि एयरटेल उपभेक्ताओं की संख्या 1,13,43,424 है। रिलायंस के पास 17,76,705, सन डायरेक्ट के पास 56,98,544, टाटा स्काई के पास 1,20,45,410 ग्राहक हैं। जबकि वीडियोकाॅन डीटूएच के ग्राहकों की संख्या 1,11,54,427 तथा डिस टीवी के उपभोक्ताओं की तादाद 1,39,52,866 है। इस लिहाज से देखें तो 11 करोड़ 20 लाख लोग इन सेवा प्रदाताओं के माध्यम से टीवी देख रहे हैंैं। बाकि केविल उपभोक्ता हैं। 2018 में पहली तिमाही में 38 फीसदी स्मार्ट फोन आॅनलाइन बिके। इस काल में 5.28 करोड़ फोन आयात किये गए जो पिछले साल से चार फीसदी अधिक हैं। हर साल भारत में 11 फीसदी की दर से स्मार्ट फोन की मांग बढ़ रही है। इसमें सबसे अधिक भागीदारी चीन के हुवावे के सब ब्रांड हाॅनर की है। स्मार्ट फोन की बढ़ती मांग टीवी दर्शकों की बढ़ती संख्या से तकरीबन चार फीसदी अधिक है। आॅनलाइन पोर्टल या इंटरनेट टीवी पर विज्ञापन देने के बाद विज्ञापनदाता यह जांच-परख सकता है कि उसका विज्ञापन कितने लोगों ने कितने समय तक कहां-कहां देखा। किसने सिर्फ क्लिक किया। कौन कितनी देर रुका। यह सुविधा प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक दोनों, अखबार, रेडियो, टीवी किसी में नहीं है। लेट-लतीफ यह आंकड़ा विज्ञापनदाताओं को लुभाएगा ही। क्योंकि उसे पता चलेगा कि देश के किस कोने में बैठा कौन सा व्यक्ति उसका विज्ञापन देख रहा है। मीडिया के इस नये फार्म में तत्काल फीडबैक का भी सिस्टम है। ऐसे में इस विकल्प को चुनना उसकी विवशता होगी। जब तक विज्ञापनदाता इसको समझे, इसे स्वीकारे, इस ओर अपने विज्ञापन का मुंह मोड़े उससे पहले मीडिया के इस बदले हुए ‘फार्म‘ पर काम करने के लिए हमें खुद को तैयार कर लेना चाहिए। क्योंकि इसका जीवन काल टीवी पत्रकारिता से कम नहीं दिख रहा है।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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