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कांग्रेसी झण्डागीत और पार्षद जी
कांग्रेस अधिवेशन की बात चलते ही 1925 से बराबर सभी अधिवेशनों में गाया जाने वाला झण्डागीत के रचयिता का नाम आज भी लोगों के लिए जिज्ञासा का कारण है। झण्डागीत हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणा के रूप में प्रयुक्त हुआ। इसके रचयिता कानपुर जिले के नरवल ग्रामवासी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ थे, जिन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के अनुरोध पर यह गीत रचा था। श्री पार्षद सर्वप्रथम 1919 में गांधी जी के आह्वान पर सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन में जेल की यात्राएं कीं। कांग्रेस पार्टी के इस झण्डागीत को सर्वप्रथम 1925 के कानपुर कांग्रेस अधिवेश में गाया गया। इसमें सात पद थे। राजर्षि पुरूषोत्तम दास टण्डन के सुझाव पर इनमें से दो पद निकाल दिये गये, जो निम्न थे।
पहला पद-
लाल रंग बजरंग बली का,
हरा अहल इस्लाम अली का,
श्वेत सभी धर्मों का टीका
रंग हुआ एक न्यारा-प्यारा।
दूसरा पद-
इस झण्डे का चित्त संवारा,
चरखा सुदर्शन प्यारा
मोहन की आंखों का तारा
स्वतंत्रता प्राप्ति तक इस गीत के पांचों पद गाए जाते थे, जो निम्न थे-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झण्डा ऊंचा रहे हमारा
सदा सत्य बरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
प्रेम सुधा सरसाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा
इस झण्डे के नीचे निर्भय
ले स्वराज हम अविचल निश्चय
बोलो भारत माता की जय।
स्वतंत्रता है ध्येय हमारा,
स्वतंत्रता के भीषण रण में
लखकर जोश बहे क्षण-क्षण में
कांपे शत्रु देख कर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा
आओ प्यारों वीरों आओ,
देश धर्म पर बलि-बलि जाओ
एक साथ सब मिलकर गाओ
प्यारा भारत देश हमारा
इसकी शान न जाने पाए
चाहे जान भले ही जाए।
विश्व विजय करके दिखलाएं
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।
पार्षद जी 1920 से 1927 तक फतेहपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 13 वर्षों तक कानपुर जिला परिषद की सदस्यता निभायी। बाद में अपने गांव में गणेश सेवा आश्रम में लगे रहे।
इन्होंने एक दूसरा झण्डा गीत भी लिखा था। जिसे कांग्रेस सेवा दल ने अपनाया। उसकी प्रथम पंक्ति थी-राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति, राष्ट्र पताका नमो-नमो। भारत जननी के गौरव की अविचल शाखा नमो-नमो।
पहला पद-
लाल रंग बजरंग बली का,
हरा अहल इस्लाम अली का,
श्वेत सभी धर्मों का टीका
रंग हुआ एक न्यारा-प्यारा।
दूसरा पद-
इस झण्डे का चित्त संवारा,
चरखा सुदर्शन प्यारा
मोहन की आंखों का तारा
स्वतंत्रता प्राप्ति तक इस गीत के पांचों पद गाए जाते थे, जो निम्न थे-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झण्डा ऊंचा रहे हमारा
सदा सत्य बरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
प्रेम सुधा सरसाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा
इस झण्डे के नीचे निर्भय
ले स्वराज हम अविचल निश्चय
बोलो भारत माता की जय।
स्वतंत्रता है ध्येय हमारा,
स्वतंत्रता के भीषण रण में
लखकर जोश बहे क्षण-क्षण में
कांपे शत्रु देख कर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा
आओ प्यारों वीरों आओ,
देश धर्म पर बलि-बलि जाओ
एक साथ सब मिलकर गाओ
प्यारा भारत देश हमारा
इसकी शान न जाने पाए
चाहे जान भले ही जाए।
विश्व विजय करके दिखलाएं
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।
पार्षद जी 1920 से 1927 तक फतेहपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 13 वर्षों तक कानपुर जिला परिषद की सदस्यता निभायी। बाद में अपने गांव में गणेश सेवा आश्रम में लगे रहे।
इन्होंने एक दूसरा झण्डा गीत भी लिखा था। जिसे कांग्रेस सेवा दल ने अपनाया। उसकी प्रथम पंक्ति थी-राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति, राष्ट्र पताका नमो-नमो। भारत जननी के गौरव की अविचल शाखा नमो-नमो।
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