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वेलेन्टाइन डे

Dr. Yogesh mishr
Published on: 14 Feb 1993 4:17 PM IST
प्रणय दिवस - ‘वेलेन्टाइन डे।’  प्रणय जीवन का एक खास अहसास है। प्रणय में जितना कुछ मिल जाता है उतना कम लगता है। जितना कम मिलता है उतना ज्यादा लगता है। पाश्चात्य सभ्यता के  अंध प्रवाह से भारत में भी प्रणय दिवस मनाने की शुरूआत हुई। वैसे तो हमारे देश के  साहित्य में प्रणय निवेदन के  तमाम दृष्टांत हैं। दुष्यन्त का शकुन्तला से प्रणय सबसे खास माना जाता है। कालीदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् में इस प्रणय निवेदन के  बारे मेे खासा लिखा हैं। भारत में प्रणय को किसी दिन, क्षण और स्वीकृति में बांधने की कोई परम्परा नहीं रही है। परन्तु प्रणय के  इस खास मुकाम को पाने और जीने के  लिए यंात्रिक सभ्यता के  इस युग मेें एक दिन मुकर्रर करना ही पड़ा।
प्रणय दिवस रोम के  जाने-माने संत वेलेन्टाइन के  नाम पर पूरी दुनिया में मनाया जाता है। ‘लवर्स डे’ के  नाम से प्रचलित ‘टीन एजर्स’ का यह पर्व साथ-साथ रहने, सपने बुनने, जीने और प्रणय की मौन पी अभिव्यक्ति के  व्यक्तिकरण का अवसर देता है। किंवदन्ती है रोम का सम्राट क्लायिस रोम को एक बेहद मजबूत और गौरवशाली राष्ट्र बनाना चाहता था। क्लाडियस की धारण थी कि विवाह के  बाद व्यक्ति में बल एवं शक्ति का पतन हो जाता है। इसीलिए क्लायिस ने अपने साम्राज्य में सैनिकों के  विवाह पर रोक लगा दी थी। सम्राट के  इस आज्ञा का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को फांसी की सजा दी जाती थी। इसी साथ उस पादरी को भी फांसी पर लटका दिया जाता था जो विवाह करवाता था। सम्राट क्लायिस की इस आज्ञा का उल्लंघन कर सेंट वेलेन्टाइन ने कई सैनिकों का विवाह करवाया था। सम्राट ने संत वेलेन्टाइन को फांसी पर चढ़ा दिया। वेलेन्टाइन को जिस तारीख को फांसी दी गयी थी, वही दिन ‘प्रणय दिवस - वेलेन्टाइन डे’ के  नाम से स्वीकृत हुआ। कुछ लोगों की धारण है कि इस दिवस को मनाने से जंगली जानवरों के  आक्रमण से भी बचा जा सकता है। कहा जाता है कि इंग्लैण्ड में ‘वेलेन्टाइन डे’ के  दिन अविवाहित युवती सुबह उठते ही जिस नौजवान का मुंह देखती हैं। उसी से उसका विवाह कर दिया जाता है।
प्रणय दिवस के  रोज हमें लगता है कि हम हठीले व साहसी पे्रम के  सामने हैं। उससे साक्षात्कार करते हंै। अन्यकथ ढंग से प्रेमिका के  नये सौंदर्य, रूप, पे्रमी के  नितान नये प्रमाण निवेदनों, प्रेमिका के  समर्पण का अवसर देता है प्रणय दिवस। आज प्रेम पुराने प्रेमियों की तरह ‘सिद्धी’ नहीं है। यह एक समस्या है-घनघोर तात्विक समस्या। प्रणय दिवस के  रोज अनकथ ढंग से उसे सुलाने की कोशिश होती है। प्रेमी- प्रेमिका पे्रेम में अंधे में होते हंै। दोनों एक दूसरे का पे्रम पाने के  लिए पूरी की पूरी पृथ्वी दे देना चाहते हैं। चाहते है सुबह के  हल्के उजास में, रात के  गहन अंधकार में अपने प्रेम को पुकार सकंे। उम्मीद करते हैं कि निमंत्रण पर वह आये भी। हवा जो उसके  प्रेम को छूकर आयी है, उसे चाहते हंै अपने पास बन्द कर लेना। रोक लेना। वह कभी अपने प्रेम को देखकर/पाकर ईद के  चांद होने का गुमान कर लेते है और न पाने पर दूज का चांद मानकर नाशाद हो जाते हंै। वैसे तो जिन्दगी में प्रेम प्रतिदिन होता है। परन्तु प्रणय दिवस के  रोज टीवी, रेडियो और जहां भी देखें सब प्रेम के  रंग मेें रंग उठते हंै। इस दिन प्रेम एकांत नहीं खोजता। उसे भी चाहिए होती है। उसे अपने तरह के  आकुल व व्याकुल लोगों की अपने आसपास उपस्थिति भाती है। यही वजह है कि महानगरीय सभ्यता के  पाश में जकड़े शहरों के  रेस्तरां और पार्क ‘लवर्स डे’ पर गुमान करने लगने हैं। कुछ शहर में फ्रैस्टेटे लवर्स - वन साइड लवर्स एसोसिएशन का भी तात्कालिक तौर पर गठन हो जाता है। कहीं-कहीं प्रणय की स्वीकृति का सचमुच एहसास भी होता है। कुछ लोग बिछड़ी प्रेमिका के  सदमें में और डूब जाते हैं तो कुछ नया प्रेम तलाशने की जुगत पूरी कर लेते हैं।
अट्ठारहवीं शताबदी के  पूर्व तक बधाई पत्रों का संबंध मुख्य रूप से नव वर्ष तथा ‘वेलेन्टाइन डे’ तक ही सीमित था। प्रेमी र्का अथवा गिफ्ट चुनने में भी खासा समय देते हैं। कार्डो का चुनाव करते समय प्रेमी के  चिन्तन और उसके  साथ सम्बन्ध की सीमाओं को रेखांकित करने की कोशिश की जाती है। उनमें अव्यक्त का प्रकटीकरण भी होता है। तो जो कुछ न कहा जा सका हो वह सब कहने के  अल्फाज व चित्र होते हैं। एक बड़ी जमात यह भी मानती है कि प्रणय दिवस पर कार्ड नहीं होते। प्रेम मेें भाषा कभी भी आड़े नहीं आती। तमाम बातें जो न कहीं जाएं वे कहने से अधिक बोल जाती है। बोली गयी बातों से अधिक हो जाता है उनका मतलब। उनका अर्थ। इस अनकही में ही छिपी होती है सुन्दरता। जो प्रणय बोलता हुआ लगता अधिक अक्सर वह सुन्दर हो जाता है जो कुछ नहीं कह पाता। मौन प्रणय -‘साइलेंट लव’ । यही वजह है कि प्रेमी मौन की भाषा में भी संवाद जारी रखते हैं। पर इसके  लिए उन्हें बस पास-पास होना जरूरी होता है। जीवन के  कई अन्य रिश्तों के  साथ हम कई बार साथ-साथ तो होते हैं पर पास-पास नहीं। कई बार इसके  ठीक उलट भी होता है। लेकिन प्रेम ऐसा नहीं होता। इसमें पास-पास और साथ-साथ दोनों होना जरूरी होता है। यह साथ-साथ और पास-पास रहने की प्यास कभी बुझती नहीं है। यह लगातार बढ़ती जाती है।
प्रणय सौंदर्य से होता है। काफी तादाद में लोग इसे मानते हैं। तभी तो कहा जाता है कि प्रेम हमेशा ‘फस्र्ट साइट’ होता है। यह ‘ फस्र्ट साइट’ कभी देह, हाव-भाव या किसी और कुछ में तलाश लिया जाता है। प्रेम करते के  लिए सुन्दरता को भी आलम्बन के  रूप में माना गया है। सुन्दरता का रिश्ता भी बोध से है। जैसे दार्शनिक की सुन्दरता मनुष्य के  लगातार विश्लेषण में है। कार्ल माक्र्स की सुन्दरता मजदूरों के  हालात के  लिए जंग लड़ने में हैं। षेक्सपीसर के  लिए सुन्दरता रंगमंच में है। गांधी के  लिए सुंदरता अहिंसा में है। लेकिन आज ‘मेटेरियलिस्ट’ सुन्दता के  पीछे भागम-भाग मची है तभी तो शिक्षण संस्थाओं के  परिसरों में फूहता, छेड़छाड़ के  माहौल में वेलेन्टाइन डे का लाभ उठाते हुए कुछ नौजवान मिल जाते है। वे देह का प्रणय करते है। उन्हें प्रणय दिवस स्त्री और दैहिक प्रेम का पाठ पाता है। ‘इस्सटेंट लव’ के  पोषक होते हैं। प्रणय महज रोमांस नहीं है। रोमांस और रोमांच के  बीच भी प्रणय नहीं होता। यह अनुभूति के  अहसास से गहरे उतरता है। तभी तो खुुली बाहों से ‘वेलेन्टाइन डे’ का स्वागत  हुआ। पश्चिम से पूरब तक, उत्तर से दक्षिण तक यह स्वीकृत हो गया है। पश्चिमी सभ्यता की तमाम विकृतियों से ‘वेलेन्टाइन डे’ भी अछूता नहीं है। ऐसे में अब आप को तय करना है कि इस दिन सेंट वेलेन्टाइन के  उत्सर्ग को आप कैसी श्रद्धांजलि देते है-‘इंस्सटेंट लव’ की और / या पुराने प्रेमियों की ’सिद्धी’ की।


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Dr. Yogesh mishr

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