चिंता में डूबे दिखें हलकू और करीमदर्द व्यवस्था किससे कहें दिखता नहीं हकीमदिखता नहीं हकीम मर्ज है बढ़ता जातानंगा-भूखा पेट कर्ज है चढ़ता जाताराजनीति के जाल का है कुछ ऐसा हालमरते-करते काम वे, बैठा छाने माल।