बार-बार टूटे-जुड़े फिर भी होती जीतलोकतंत्र कहते इसे नयी नहीं यह रीतिनयीं नहीं यह रीति, तभी तो कुछ न बोलेपी जाने की ‘शपथ’ उन्हें थी मुंह न खोलेमनमोहन हैं तोड़ते मोह यहां हर बारउत्तर कोई है नहीं प्रश्नों का अम्बार।