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बार-बार टूटे-जुड़े फिर भी होती जीत

Dr. Yogesh mishr
Published on: 28 April 1993 9:32 PM IST

बार-बार टूटे-जुड़े फिर भी होती जीत



लोकतंत्र कहते इसे नयी नहीं यह रीति



नयीं नहीं यह रीति, तभी तो कुछ न बोले



पी जाने की ‘शपथ’ उन्हें थी मुंह न खोले



मनमोहन हैं तोड़ते मोह यहां हर बार



उत्तर कोई है नहीं प्रश्नों का अम्बार।

Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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