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विवाह सूत्र और रामाराव
एन.टी. (रामाराव) व एलिजाबेथ टेलर दोनों का जिक्र वैसे तो ना इत्तफाक गुजरेगा। परंतु इधर दोनों में एक खास समानता दिखायी देने लगी है। एलिजाबेथ टेलर को लोग उनके विवाह से जानते हैं और एन.टी.आर. को भी अभी हाल में 36 वर्षीया शिव पार्वती से दूसरा विवाह करने के कारण खासी लोकप्रियता मिलती है। शिव पार्वती व एनटीआर में एक समानता है। एक विधवा और दूसरा विधुर है। 71 वर्षीय रामाराव का विधुर होना कोई खास महत्व नहीं रखता। क्योंकि भारतीय संस्कृतिव समाज की दृष्टि से उनके पास एक खासा भरापूरा परिवार है।
यह कोई खास घटना नहीं है। भारत में पाश्चात्य समर्थकों की एक लाॅबी ऐसी भी है, जो जीवन में शुचिता पर विश्वास नहीं करती। जिसका मूलतंत्र ‘लिविंग टू गैदर’ खाओ पियो मौज मनाओ तक आकर सिमट गया है। ऐसे लोगों की दृष्टि इतिहास बोध नहीं है वरन वर्तमान बोध उनकी दृष्टि में ज्यादा है। इसी वर्तमान बोध का कारण है कि आम आदमी निजी जिन्दगी, व्यावसायिक जिन्दगी व सामाजिक जिन्दगी सरीखे कई विभक्त दृष्टियों व संचेतनाओं में जी रहा है। यह विभाजन उसका अपने को किसी भी कर्म को उचित ठहराने में सहायक भी हुआ है। तभी तो विवाह के बाद रामाराव ने एक तरफ यह टिप्पणी की कि उन्हें अपने परिवार के लोगों की प्रतिक्रिया की चिंता नहीं है। दूसरी ओर उनकी यह स्वीकृति है कि जब मैं कलाकारों, निर्देशकों का धन्यवाद ज्ञापन कर सकता हूं तो शिव पार्वती ने तो मेरी जान बचाई है। शिव पार्वती का एहसान चुकाने के लिए शादी ही इकलौता रास्ता है।
यह बात किसी देश की राष्ट्रीय पार्टी का नेता कहे कि न किसी महिला का एहसान चुकाने के लिए विवाह अंतिम रास्ता है। तो यह सोचना ही पड़ेगा कि देश के विकल्पों का कितना अभाव है। रामाराव जैसे व्यक्ति के सामने इतने कम विकल्प हैं तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी। जिस रामाराव को अपने परिवार के लोगों की प्रतिक्रिया किी चिंता नहीं है। उसमें एहसान चुकाने का जुमला फबता नहीं है। (जबकि रामराव के भरे पूरे परिवार में सभी बालिग सदस्य हैं)।
इन बातांे से साफ हो जाता है कि हमारा राजनीतिक पटल कितनी विसंगति भरे नेतृत्व का शिकार हो उठा है। कितना दोहरापन है इन राजनेताओं के जीवन में। वैसे यह स्थिति हमारे समाज के आमजन में भी है। परंतु आमजन में इन स्थितियों का होना उतना खतरनाक संदेश नहीं है, जितना राजनीतिज्ञों में। नेता किसी भी संस्कृति व परिवेश का रीढ़ होता है, जिस पश्चिमी जगत से हम यह पतितोन्मुखता सीख रहे हैं वहां भी नेतृत्व के चरित्र का संकट स्वीकार नहीं किया जाता।
ब्रिटेन और फ्रांस के लोगों के यौन व्यवहार पर किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश वयस्क व्यक्तियों के एक ही समय पर एक से अधिक लोगों से यौन सम्बन्ध हैं। ब्रिटेन में प्रति 16 व्यक्तियों में से एक समलैंगिक है। फिर भी वहां पर प्रधानमंत्री जाॅन मेजर के चरित्र से तमाम पवित्र आदर्शों के अनुपालन की आशा की जाती है। लेबर समर्थक डेली मिरर ने अपने मुखपृष्ठ पर जान मेजर के नौकरानी के साथ कथित संबंधों को लेकर एक खासी विवादास्पद खबर छापी थी। इस खबर मात्र से जाॅन मेजर की कुर्सी खतरे में पड़ती दिखायी दी। खबर प्रकाशित होने के समय मेजर भारत यात्रा पर थे और उनके सभी कार्यक्रम इस खबर के चलते अस्त-व्यस्त हो गए। मेजर के कार्यक्रम तब तब साधारण नहीं हुए जब तक कि डेली मिरर की खबर का खंडन नहीं आया। ब्रिटेन में चाल्र्स एवं डायना के विवाह व तलाक की खबरें भी खूब छपीं। डायना के तलाक के बाद ब्रिटेन में राजशाही के सामने एक संकट खड़ा हो गया है। परन्तु इसके लिए ब्रिटेन की जनता ने राजशाही को किसी तरह की उन्मुक्तता स्वीकार करने का अवसर नहीं दिया। इंग्लैण्ड के गिरजाघर के धार्मिक प्रमुख को यह अधिकार है कि वे शाही परिवार के किसी भी सदस्य को तलाक के बाद शादी करने का लाइसेंस नहीं दे सकते।
अमरीका जैसे देश में जहां समलैंगिकों को सेल में भर्ती करने का चुनावी वायदा किया जाता हो, वहां भी नेतृत्व के ऊपर किसी तरह के यौनाचार की स्वीकृति नहीं है। वहां राष्ट्रपति चुनाव में अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण शर्त है कि प्रत्याशी का पारिवारिक जीवन, उसकी पवित्रता, एकरसता यहां नेतृत्व व महत्वपूर्ण पदों पर चरित्रगत नैतिकता का इतना ख्याल रखा जाता है कि बिल क्लिंटन ने जिस महिला का नाम एटार्नी जनरल के लिए संस्तुत करके सीनेट को भेजा था, उसने यह कहकर अपना नाम वापस ले लिया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है। उसके विवाहेतर सम्बन्ध हैं। प्रबल संस्कृति समर्थक व धार्मिक आस्थाओं से अनुप्रेरित व प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले हम लोगों को क्यों नही प्रेम की यह सीख मिलती है। हम प्रेम में फ्लर्ट की ओर बढ़ रहे हैं और पाश्चात्य जगत में प्रेम में उत्सर्ग समा रहा है।
वैसे रामाराव का दूसरा विवाह कुछ लोगों के लिए चारित्रिक अनैतिकता का प्रश्न नहीं हो सकता है। क्योंकि वे इतने साधन सम्पन्न हैं, चाहते तो समानान्तर रूप से शिव पार्वती को जीते रहते। स्वीकार नहीं करते। परंतु मूल प्रश्न यहां यक्ष प्रश्न में इसलिए तब्दील हो जाता है क्योंकि 71 वर्षीय रामाराव को 36 वर्षीय शिव पार्वती का सहारा लेना पड़ा। रामाराव और शिव पार्वती कोई खास घटना नहीं वरन् हमारे राजनीतिक विकृति का प्रतीक है।
रामाराव का यह विवाह हमारे नेतृत्व में पिछले तीन दशक से चलती, बढ़ती उस विसंगति एवं विकृति का परिणाम है, जिसमें निजी जिन्दगी का सामाजिक जिन्दगी से अलग करके देखने का प्रखर अहम बोध है। नारी विकास के तमाम कार्यक्रमों व आयोजन सम्पन्न करने वाले नेता के घर में ही स्त्री दोयम दर्जे की सदस्यता जीती है। घर में स्त्री को मध्ययुगीन समाज के परिवेश में जीने पर विवश होना पड़ता है। बाहर स्त्री उपभोक्ता संस्कृति की सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है, जिसकी परिणति/प्राप्ति शार्टकट पथ से ही अनिवार्य होना हमारे नेतृत्व की मानसिकता है।
पिछले तीन दशकों में राजनीति, निजी जीवन में बेहद विकृति का शिकार हो उठी है। हमारे समाज के निजी जीवन के परीक्षण के लिए रोज-ब-रोज मानदंड बनते हैं। उनसे ही गुजरना पड़ता है। परन्तु हमारा नेतृत्व इस मानदंडों से परे है। सुविधा भोगी है।
यह कोई खास घटना नहीं है। भारत में पाश्चात्य समर्थकों की एक लाॅबी ऐसी भी है, जो जीवन में शुचिता पर विश्वास नहीं करती। जिसका मूलतंत्र ‘लिविंग टू गैदर’ खाओ पियो मौज मनाओ तक आकर सिमट गया है। ऐसे लोगों की दृष्टि इतिहास बोध नहीं है वरन वर्तमान बोध उनकी दृष्टि में ज्यादा है। इसी वर्तमान बोध का कारण है कि आम आदमी निजी जिन्दगी, व्यावसायिक जिन्दगी व सामाजिक जिन्दगी सरीखे कई विभक्त दृष्टियों व संचेतनाओं में जी रहा है। यह विभाजन उसका अपने को किसी भी कर्म को उचित ठहराने में सहायक भी हुआ है। तभी तो विवाह के बाद रामाराव ने एक तरफ यह टिप्पणी की कि उन्हें अपने परिवार के लोगों की प्रतिक्रिया की चिंता नहीं है। दूसरी ओर उनकी यह स्वीकृति है कि जब मैं कलाकारों, निर्देशकों का धन्यवाद ज्ञापन कर सकता हूं तो शिव पार्वती ने तो मेरी जान बचाई है। शिव पार्वती का एहसान चुकाने के लिए शादी ही इकलौता रास्ता है।
यह बात किसी देश की राष्ट्रीय पार्टी का नेता कहे कि न किसी महिला का एहसान चुकाने के लिए विवाह अंतिम रास्ता है। तो यह सोचना ही पड़ेगा कि देश के विकल्पों का कितना अभाव है। रामाराव जैसे व्यक्ति के सामने इतने कम विकल्प हैं तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी। जिस रामाराव को अपने परिवार के लोगों की प्रतिक्रिया किी चिंता नहीं है। उसमें एहसान चुकाने का जुमला फबता नहीं है। (जबकि रामराव के भरे पूरे परिवार में सभी बालिग सदस्य हैं)।
इन बातांे से साफ हो जाता है कि हमारा राजनीतिक पटल कितनी विसंगति भरे नेतृत्व का शिकार हो उठा है। कितना दोहरापन है इन राजनेताओं के जीवन में। वैसे यह स्थिति हमारे समाज के आमजन में भी है। परंतु आमजन में इन स्थितियों का होना उतना खतरनाक संदेश नहीं है, जितना राजनीतिज्ञों में। नेता किसी भी संस्कृति व परिवेश का रीढ़ होता है, जिस पश्चिमी जगत से हम यह पतितोन्मुखता सीख रहे हैं वहां भी नेतृत्व के चरित्र का संकट स्वीकार नहीं किया जाता।
ब्रिटेन और फ्रांस के लोगों के यौन व्यवहार पर किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश वयस्क व्यक्तियों के एक ही समय पर एक से अधिक लोगों से यौन सम्बन्ध हैं। ब्रिटेन में प्रति 16 व्यक्तियों में से एक समलैंगिक है। फिर भी वहां पर प्रधानमंत्री जाॅन मेजर के चरित्र से तमाम पवित्र आदर्शों के अनुपालन की आशा की जाती है। लेबर समर्थक डेली मिरर ने अपने मुखपृष्ठ पर जान मेजर के नौकरानी के साथ कथित संबंधों को लेकर एक खासी विवादास्पद खबर छापी थी। इस खबर मात्र से जाॅन मेजर की कुर्सी खतरे में पड़ती दिखायी दी। खबर प्रकाशित होने के समय मेजर भारत यात्रा पर थे और उनके सभी कार्यक्रम इस खबर के चलते अस्त-व्यस्त हो गए। मेजर के कार्यक्रम तब तब साधारण नहीं हुए जब तक कि डेली मिरर की खबर का खंडन नहीं आया। ब्रिटेन में चाल्र्स एवं डायना के विवाह व तलाक की खबरें भी खूब छपीं। डायना के तलाक के बाद ब्रिटेन में राजशाही के सामने एक संकट खड़ा हो गया है। परन्तु इसके लिए ब्रिटेन की जनता ने राजशाही को किसी तरह की उन्मुक्तता स्वीकार करने का अवसर नहीं दिया। इंग्लैण्ड के गिरजाघर के धार्मिक प्रमुख को यह अधिकार है कि वे शाही परिवार के किसी भी सदस्य को तलाक के बाद शादी करने का लाइसेंस नहीं दे सकते।
अमरीका जैसे देश में जहां समलैंगिकों को सेल में भर्ती करने का चुनावी वायदा किया जाता हो, वहां भी नेतृत्व के ऊपर किसी तरह के यौनाचार की स्वीकृति नहीं है। वहां राष्ट्रपति चुनाव में अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण शर्त है कि प्रत्याशी का पारिवारिक जीवन, उसकी पवित्रता, एकरसता यहां नेतृत्व व महत्वपूर्ण पदों पर चरित्रगत नैतिकता का इतना ख्याल रखा जाता है कि बिल क्लिंटन ने जिस महिला का नाम एटार्नी जनरल के लिए संस्तुत करके सीनेट को भेजा था, उसने यह कहकर अपना नाम वापस ले लिया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है। उसके विवाहेतर सम्बन्ध हैं। प्रबल संस्कृति समर्थक व धार्मिक आस्थाओं से अनुप्रेरित व प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले हम लोगों को क्यों नही प्रेम की यह सीख मिलती है। हम प्रेम में फ्लर्ट की ओर बढ़ रहे हैं और पाश्चात्य जगत में प्रेम में उत्सर्ग समा रहा है।
वैसे रामाराव का दूसरा विवाह कुछ लोगों के लिए चारित्रिक अनैतिकता का प्रश्न नहीं हो सकता है। क्योंकि वे इतने साधन सम्पन्न हैं, चाहते तो समानान्तर रूप से शिव पार्वती को जीते रहते। स्वीकार नहीं करते। परंतु मूल प्रश्न यहां यक्ष प्रश्न में इसलिए तब्दील हो जाता है क्योंकि 71 वर्षीय रामाराव को 36 वर्षीय शिव पार्वती का सहारा लेना पड़ा। रामाराव और शिव पार्वती कोई खास घटना नहीं वरन् हमारे राजनीतिक विकृति का प्रतीक है।
रामाराव का यह विवाह हमारे नेतृत्व में पिछले तीन दशक से चलती, बढ़ती उस विसंगति एवं विकृति का परिणाम है, जिसमें निजी जिन्दगी का सामाजिक जिन्दगी से अलग करके देखने का प्रखर अहम बोध है। नारी विकास के तमाम कार्यक्रमों व आयोजन सम्पन्न करने वाले नेता के घर में ही स्त्री दोयम दर्जे की सदस्यता जीती है। घर में स्त्री को मध्ययुगीन समाज के परिवेश में जीने पर विवश होना पड़ता है। बाहर स्त्री उपभोक्ता संस्कृति की सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है, जिसकी परिणति/प्राप्ति शार्टकट पथ से ही अनिवार्य होना हमारे नेतृत्व की मानसिकता है।
पिछले तीन दशकों में राजनीति, निजी जीवन में बेहद विकृति का शिकार हो उठी है। हमारे समाज के निजी जीवन के परीक्षण के लिए रोज-ब-रोज मानदंड बनते हैं। उनसे ही गुजरना पड़ता है। परन्तु हमारा नेतृत्व इस मानदंडों से परे है। सुविधा भोगी है।
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