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जल्दी निष्कर्ष न निकालें
पाक चुनावों में भारत की आलोचना और कश्मीर मसला किसी भी पार्टी के चुनाव प्रचार में मुद्दों के रूप में शामिल नहीं रहा यह बात पाक चुनाव रिश्तों को देखने वाले दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ देशों के प्रतिनिधिमण्डल के लिए कुछ महत्वपूर्ण भले ही ठहरती हो, लेकिन इधर कश्मीर मसले में पाक की लगातार बढ़ती रूचि एवं भारत-पाक सम्बन्धों के बीच पाक की ओर से जो प्रतिक्रियावादी रुख अख्तियार किया गया था, उस पर भी दृष्टिपात करें तो यह बात कोई शुभ संके त नहीं देती है, क्योंकि इस बात के भी पूरे प्रमाण हैं कि कश्मीर में पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने घाटी में अधिकांश उग्रवादी संगठनों की कमान किराये के विदेशी सैनिकों के हाथों सौंप दी है। इतना ही नहीं जकात फण्ड के नाम पर घाटी में रूपये भेजने के भी साक्ष्य उपलब्ध हैं।
इस बार जिन स्थितियों में पाक में चुनाव सम्पन्न हुए उन्हीं स्थितियों का ही दबाव कहा जाएगा कि पाक में भारत विरोधी स्वपर मुखर नहीं हो पाया, कयोंकि पाक चुनाव में नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो दोनों एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के अलावा देश में कोई बात नहीं कर रहे थे। प्रचार के मुद्दों में स्थानीय बातें, अपने-अपने शासनकाल की उपलब्धियों के किस्से ही प्रभावी रहे। अंतरराष्ट्रीय पक्ष पूरी तरह गौण रहा। इतना ही नहीं पाक में त्रिशंकुसंसद की भविष्यवाणी सभी देशों के राजनीतिक पण्डितों द्वारा की जा चुकी थी, ऐसी स्थिति में यह सम्भव नहीं था कि पाक में भारत विरोधी स्वर मुखर हो पाता, क्योंकि पाक की नेशनल असेम्बली में अल्पसंख्यक समुदाय भी दस सीटों पर मतदान कर सकता है और त्रिशंकु संसद के भय सहित साझा सरकार में तालमेल की सम्भावना को नजरअंदाज करके कोई भी प्रबुद्ध व समझदार राजनीतिक पार्टी दस सीटों को हाथ से जाने नहीं देगी।
इन्हीं सब स्थितियों का परिणाम था कि भारत विरोधी तेवर और कश्मीर मसला कोई प्रभावी स्वरूप ग्रहण नहीं कर पाया। इन स्थितियों का दबाव और कितने दिनों तक बना रहता, यही देखना है। जितने दिनों तक यह दबाव प्रभावी रहेगा, उतने दिनों तक ही ये स्थितियां कायम रहेंगी। भारत-पाक सम्बन्धों की पृष्ठभूमि का सिंहावलोकन करने पर उपलब्ध साक्ष्यों से यह बात बहुत साफ हो उठती है कि इन स्थितियों में कोई दीर्घकालिक स्थिरता नहीं हो सकती है। फिर इससे प्रसन्न होने की बात नहीं उठती है और नयी सरकार के गठन के बाद ही अब तय होंगे भारत-पाक रिश्ते वैसे भी पाक में चाहें जो भी सरकार रही हो भारत-पाक रिश्तों में कटुता विभाजन के समय से ही हमेशा लगातार बरकरार रही है। इस संदर्भ में यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस कटुता की शुरूआत पाकिस्तान के तरफ से ही रही है। इसके पृष्ठभूमि से पाक का 1971 में बांग्लादेश के रूप में विभाजन भी एक महत्वपूर्ण बात रही। इस क्षणिक सफलता पर इतराने का कोई मतलब नहीं रह जाता है और हमें अपने आन्तरिक स्थितियों को मजबूत करने की ओर लगना चाहिए।
इस बार जिन स्थितियों में पाक में चुनाव सम्पन्न हुए उन्हीं स्थितियों का ही दबाव कहा जाएगा कि पाक में भारत विरोधी स्वपर मुखर नहीं हो पाया, कयोंकि पाक चुनाव में नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो दोनों एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के अलावा देश में कोई बात नहीं कर रहे थे। प्रचार के मुद्दों में स्थानीय बातें, अपने-अपने शासनकाल की उपलब्धियों के किस्से ही प्रभावी रहे। अंतरराष्ट्रीय पक्ष पूरी तरह गौण रहा। इतना ही नहीं पाक में त्रिशंकुसंसद की भविष्यवाणी सभी देशों के राजनीतिक पण्डितों द्वारा की जा चुकी थी, ऐसी स्थिति में यह सम्भव नहीं था कि पाक में भारत विरोधी स्वर मुखर हो पाता, क्योंकि पाक की नेशनल असेम्बली में अल्पसंख्यक समुदाय भी दस सीटों पर मतदान कर सकता है और त्रिशंकु संसद के भय सहित साझा सरकार में तालमेल की सम्भावना को नजरअंदाज करके कोई भी प्रबुद्ध व समझदार राजनीतिक पार्टी दस सीटों को हाथ से जाने नहीं देगी।
इन्हीं सब स्थितियों का परिणाम था कि भारत विरोधी तेवर और कश्मीर मसला कोई प्रभावी स्वरूप ग्रहण नहीं कर पाया। इन स्थितियों का दबाव और कितने दिनों तक बना रहता, यही देखना है। जितने दिनों तक यह दबाव प्रभावी रहेगा, उतने दिनों तक ही ये स्थितियां कायम रहेंगी। भारत-पाक सम्बन्धों की पृष्ठभूमि का सिंहावलोकन करने पर उपलब्ध साक्ष्यों से यह बात बहुत साफ हो उठती है कि इन स्थितियों में कोई दीर्घकालिक स्थिरता नहीं हो सकती है। फिर इससे प्रसन्न होने की बात नहीं उठती है और नयी सरकार के गठन के बाद ही अब तय होंगे भारत-पाक रिश्ते वैसे भी पाक में चाहें जो भी सरकार रही हो भारत-पाक रिश्तों में कटुता विभाजन के समय से ही हमेशा लगातार बरकरार रही है। इस संदर्भ में यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस कटुता की शुरूआत पाकिस्तान के तरफ से ही रही है। इसके पृष्ठभूमि से पाक का 1971 में बांग्लादेश के रूप में विभाजन भी एक महत्वपूर्ण बात रही। इस क्षणिक सफलता पर इतराने का कोई मतलब नहीं रह जाता है और हमें अपने आन्तरिक स्थितियों को मजबूत करने की ओर लगना चाहिए।
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