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नये लोकतंत्र की तलाश
पाकिस्तान राष्ट्रीय असेम्बली के चुनाव में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत न मिल सकने के कारण वहां की कार्यवाहक मुइन सरकार एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश में है जो वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक स्थायित्व की गारंटी प्रदान कर सके । सन् 1988 और 1990 के आम चुनावों में बेगम बेनजीर भुट्टों और नवाज शरीफ की सरकारें तो बनीं, लेकिन स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकीं। उन्हे दो-दो वर्ष की अवधि में जाना पड़ा। तीसरे चुनाव के परिणाम इससे भिन्न संके त नहीं दे रहे हैं। सेना समर्थित कार्यवाहक मुइन सरकार कोई ऐसी व्यवस्था चाहती है कि जिससे पाकिस्तान में अगले पांच वर्ष के लिए राजनीतिक स्थायित्व की गारंटी दी जा सके । इस सिलसिले में कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुइन कुरैशी और राष्ट्रपति वसीम सज्जाद ने पीपुल्स पार्टी की नेता बेनजीर भु्ट्टो के सामने एक ऐसी संयुक्त सरकार बनाने की पेशकश की है जिसमें सत्ता के दावेदार दोनों दलों के बीच टकराव के बजाय पारस्परिक रचनात्मक सहयोग की सृष्टि की जा सके । इसके लिए फार्मूला यह ईजाद किया गया है कि आधे समय यानी ढाई वर्ष बेगम भुट्टो और शेष अवधि में नवाज शरीफ के नेतृत्व में संयुक्त सरकार काम करे।
संयुक्त सरकार के गठन की इस पेशकश कार्यवाहक सरकार की पाकिस्तानी लोकतंत्र की अस्थिर प्रवृत्ति के प्रति चिन्ता झलकती है। एक अच्छे सुझाव के बाद भी यह कहां तक व्यावहारिक है, कहना कठिन है। इस प्रकार के संयुक्त सरकार बनाने के किसी प्रस्ताव की चर्चा नवाज शरीफ के सूत्रों ने की है, परन्तु बेगम भुट्टो ने इसकी पुष्टि नहीं की है। इसका अर्थ है कि वे इस प्रकार के संयुक्त सरकार के गठन के विचार से बहुत अधिक सहमत नहीं हैं। इस संदर्भ में उनकी यह टिप्पणी भी काफी हद तक नकारात्मक है कि वे सरकार बनाने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी। शायद इसकी कारण कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्रीय प्रसारण में इसकी चर्चा करना उचित नहीं समझा। वैसे अस्थिर राजनीतिक परिसिथतियों का इस ढंग से हल निकालने का प्रयास अपने में नया नहीं है। आठवें दशक में भारत में जनता पार्टी के शासन के दौरान प्रतिद्वंदी महत्वाकांक्षाओं को समेटने के लिए क्रमानुसार पार्टी के विभिन्न नेताओं को प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव दिया गया था, परन्तु इसके पहले कि यह कोई ठोस रूप ग्रहण करे जनता पार्टी सरकार ढाई साल में ही चली गयी।
पाकिस्तान के ताजे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि पाकिस्तानी सत्ता के प्रमुख के न्द्र सेना अध्यक्ष जनरल वहीद देश के उन सैनिक अधिकारियों में हैं जो लोकतंत्र को हड़पने के बजाय उसे पटरी पर बनाये रखने में दिलचस्पी रखते हैं। इसमें उनकी लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने की आकांक्षा झलकती है। क्योंकि पाकिस्तान के जीवन काल के आधे समय तक सैनिक तानाशाही के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। वैसे आम जनता के समान ही सेना की भी मुइन कुरैशी की सरकार को बनाये रखने की इच्छा हो सकती है।
परन्तु पाकिस्तानी संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। सेना के सहयोग से यदि मुइन सरकार संयुक्त सरकार बनाने की कल्पना को साकार रूप देने में सफल हो सकती तो यह के न्द्र सरकार तक ही सीमित नहीं रह सके गा। चारों राज्यों में भी इस प्रकार की सरकार की कल्पना की जा सकती है। परन्तु बेगम भुट्टो और नवाज शरीफ की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं कुछ ऐसी हैं कि उसमें मेल-मिलाप की सम्भावनाएं काफी सीमित हैं। फिर भी यदि प्रयास सफल हो सका तो राजनीतिक स्थायित्व की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।
संयुक्त सरकार के गठन की इस पेशकश कार्यवाहक सरकार की पाकिस्तानी लोकतंत्र की अस्थिर प्रवृत्ति के प्रति चिन्ता झलकती है। एक अच्छे सुझाव के बाद भी यह कहां तक व्यावहारिक है, कहना कठिन है। इस प्रकार के संयुक्त सरकार बनाने के किसी प्रस्ताव की चर्चा नवाज शरीफ के सूत्रों ने की है, परन्तु बेगम भुट्टो ने इसकी पुष्टि नहीं की है। इसका अर्थ है कि वे इस प्रकार के संयुक्त सरकार के गठन के विचार से बहुत अधिक सहमत नहीं हैं। इस संदर्भ में उनकी यह टिप्पणी भी काफी हद तक नकारात्मक है कि वे सरकार बनाने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी। शायद इसकी कारण कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्रीय प्रसारण में इसकी चर्चा करना उचित नहीं समझा। वैसे अस्थिर राजनीतिक परिसिथतियों का इस ढंग से हल निकालने का प्रयास अपने में नया नहीं है। आठवें दशक में भारत में जनता पार्टी के शासन के दौरान प्रतिद्वंदी महत्वाकांक्षाओं को समेटने के लिए क्रमानुसार पार्टी के विभिन्न नेताओं को प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव दिया गया था, परन्तु इसके पहले कि यह कोई ठोस रूप ग्रहण करे जनता पार्टी सरकार ढाई साल में ही चली गयी।
पाकिस्तान के ताजे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि पाकिस्तानी सत्ता के प्रमुख के न्द्र सेना अध्यक्ष जनरल वहीद देश के उन सैनिक अधिकारियों में हैं जो लोकतंत्र को हड़पने के बजाय उसे पटरी पर बनाये रखने में दिलचस्पी रखते हैं। इसमें उनकी लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने की आकांक्षा झलकती है। क्योंकि पाकिस्तान के जीवन काल के आधे समय तक सैनिक तानाशाही के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। वैसे आम जनता के समान ही सेना की भी मुइन कुरैशी की सरकार को बनाये रखने की इच्छा हो सकती है।
परन्तु पाकिस्तानी संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। सेना के सहयोग से यदि मुइन सरकार संयुक्त सरकार बनाने की कल्पना को साकार रूप देने में सफल हो सकती तो यह के न्द्र सरकार तक ही सीमित नहीं रह सके गा। चारों राज्यों में भी इस प्रकार की सरकार की कल्पना की जा सकती है। परन्तु बेगम भुट्टो और नवाज शरीफ की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं कुछ ऐसी हैं कि उसमें मेल-मिलाप की सम्भावनाएं काफी सीमित हैं। फिर भी यदि प्रयास सफल हो सका तो राजनीतिक स्थायित्व की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।
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