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भाजपा में टूटता अनुशासन

Dr. Yogesh mishr
Published on: 27 Oct 1993 2:36 PM IST
भारतीय जनता पार्टी के  टिकटों के  बंटवारे को लेकर पार्टी में जिस तरह से विरोध के  स्वर मुखर हुए, उससे यह बात साफ होती जा रही है कि पार्टी में अनुशासन का जो पुराना ढांचा था, वह अब चरमरा गया है। उत्तर प्रदेश के  टिकटों की घोषणा के  साथ ही जिन 28 विधायकों व चार पूर्व मंत्रियों का टिकट कटा है उन सभी लोगों में पार्टी के  मानदण्डों के  प्रति असंतोष का स्वर मुखर हो रहा है। इसी विरोध का परिणाम है कि उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के  कार्यालय के  सामने उम्मीदवारों के  समर्थक अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। पार्टी मुख्यालय के  सामने पूरे दिन भर नारेबाजी होती रही। टिकट न मिलने वालों में से दो पूर्व विधायकों ने पार्टी से त्याग-पत्र भी दे दिया है। आत्मदाह का भी प्रयास हुआ। स्पष्ट रूप से सत्ता में आने के  बाद उत्तर प्रदेश की घटना को पहली वारदात मानकर नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा। क्योंकि इससे पहले भी दिल्ली विधानसभा के  टिकटों के  बंटवारे को लेकर दिल्ली प्रदेश भाजपा कार्यालय के  सामने कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की कार को घेरकर जमकर नारेबाजी, प्रदर्शन व हंगामा किया।
ये सारी घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि सत्ता सुख ले लेने के  बाद भारतीय जनता पार्टी में भी कांग्रेसी संस्कृति समा गयी, जिसके  कारण उसका अनुशासन व संस्कृति का जो पारम्परिक ढांचा था उस पर चोट पहुंच रही है।
ऐसा होने के  पीछे कारण यह है कि पिछले चुनाव में भाजपा ने टिकट वितरण में जिस तरह किसी भी पार्टी एवं किसी भी स्थिति में आये लोगों को तरजीह दी उससे पार्टी के  संस्कारों व अनुशासन में कार्यकर्ता निराश हुआ। उसका पार्टी के  संस्कार और अनुशासन से मोहभंग हुआ।
उसे लगने लगा कि कैडर बेस पार्टी होने का भाजपा का नारा और यथार्थ महज एक स्वांग था। इससे भाजपा को जो विशेष हानि हुई, वह यह थी कि भाजपा के  प्रति लोगों की प्रतिबद्धता कम हुइई यह बात दूसरी है कि भाजपा के  सीटों की संख्या बढ़ी।
इस बार भी भाजपा ने टिकट देने में अन्य पार्टियों से आए लोगों व गैर राजनीतिक लोगों को टिकट देने की अपनी नीति जारी रखी, इससे आम कार्यकर्ता में निराशा बढ़ना स्वाभाविक था। आम कार्यकर्ताओं को लगने लगा कि भाजपा अपने मूल्यों से हटकर कांग्रेसी संस्कृति की अनुगामी बन गयी है और यह बात सच भी है, क्योंकि किसी भी पार्टी के  सरकार में रहने के  बाद उसकी एक सरकारी संस्कृति बन जाती है। यह सरकारी संस्कृति ही भाजपा में स्थान पा चुकी है? इससे यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि राजनीति को अब सभी पार्टियां मिशन के  रूप में नहीं, व्यवसाय के  रूप में स्वीकार करने लगी हैं और जब राजनीति व्यवसाय के  रूप में स्वीकारी जाएगी, तब समाज में निरंकुशता, भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ेगी तथा पार्टियों में कैडर संस्कृति टूटेगी। परिणामतः ये विरोध के  स्वर झेलने ही पड़ेंगे, इससे बचने की कोशिश देश में होनी ही चाहिए।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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