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किसका निशाना कितना सटीक

Dr. Yogesh mishr
Published on: 15 Dec 1993 12:43 PM IST
प्रदेश के  विधानसभा चुनाव के  दौरान विभिन्न एजेंसियों ने चुनाव पूर्व तथा सर्वेक्षण के  आधार पर भाजपा तथा गैर भाजपा दल न्यूनतम तथा अधिकतम कितनी सीटें जीत सकते हैं, को लेकर अपने-अपने दावे किए थे। अब जब कि स्थिति साफ है सरकार भी बन चुकी है। आइये देखें कि किसका निशाना कितना सटीक बैठा।
उप्र विधानसभा चुनाव में प्रमुख रूप से इंडिया टुडे, एक्सप्रेस-सी.एम.एस., स्वतंत्र भारत, कोफ्ट, दी वीक-मोड तथा राष्ट्रीय सहारा ने अपने दावे प्रस्तुत किये थे। इनमें से दी वीक-मोड, स्वतंत्र भारत, कोफ्ट तथा राष्ट्रीय सहारा ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किये थे। जबकि इंडिया टुडे, मार्ग तथा एक्सप्रेस-सीएमएस ने मतदान सर्वेक्षण (एग्जिट पोल) किये थे। जहां तक चुनाव सर्वेक्षणों का सवाल है। राष्ट्रीय सहारा ने सबसे पहले 13 नवंबर, 1993 को सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जो बाद में चुनाव परिणाम आने तक तथा उसके  बाद भी चर्चा का आधार बनी रही। उसके  बाद दी वीक-मोड तथा सबसे आखिर में स्वतंत्र भारत की रिपोर्ट आयी।
दी वीक-मोड ने भाजपा को 240 से 270 सीटें मिलने का दावा किया था। एक्सप्रेस-सीएमएस का कहना था कि भाजपा को 230 से 240 सीटें मिलेंगी। इण्डिया टुडे, मार्ग तथा स्वतंत्र भारत, कोफ्ट के  सर्वेक्षणों में भाजपा को क्रमशः 185 से 210 तथा 170 से 200 सीटें मिलने का दावा किया गया था। राष्ट्रीय सहारा के  चुनाव पूर्व सर्वेक्षण-2 में कहा गया था कि भाजपा को 164 से 193 सीटें मिलने के  संके त हैं। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि के वल राष्ट्रीय सहारा के  सर्वेक्षण मंे ही यह बात सामने आयी थी कि भाजपा 200 सीटों की गिनती तक भी पहुंचने वाली नहीं है। इससे पहले अक्टूबर के  तीसरे सप्ताह में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण रिपोट-1 प्रकाशित कर त्रिशंकु विधानसभा के  गठन की बात कही थी। जो बाद में शत प्रतिशत सही निकली।
विभिन्न सर्वेक्षण परिणामों की तुलना में वास्तविक त्रुटि सूचकांक (एईआई) को आधार बनाया गया है। इसकी गणना प्रेक्षित अंतराल के  मध्य बिन्दु से वास्तविक स्थिति के  विचलन के  आधार पर की गयी है। जिस सर्वेक्षण के  प्रेक्षित अंतराल का एईआई जितना कम होता है, उस सर्वेक्षण को उतना ही अच्छा माना जाता है। एईआई का मान न्यूनतम शून्य अधिकतम एक होता है। आदर्श सर्वेक्षणों में एईआई शून्य होता है लेकिन व्यवहार में इसकी संभावना नगण्य है।
राष्ट्रीय सहारा के  प्रेक्षित अंतराल (164 से 193) का एईआई सबसे कम .0084 रहा। जबकि दी वीक-मोड के  प्रेक्षित अंतराल का एईआई सबसे ज्यादा .4407 रहा। एक्सप्रेस सीएमएस का एईआई काफी ज्यादा .3277 रहा। इंडिया टुडे, मार्ग तथा स्वतंत्र भारत, कोफ्ट के  प्रेक्षित अंतरालांे का एईआई क्रमशः .1158 तथा .0452 रहा।
जहां तक गैर भाजपा दलों को मिली सीटों का सवाल है-राष्ट्रीय सहारा, इंडिया टुडे-मार्ग तथा स्वतंत्र भारत-कोफ्ट का आंकलन मोटे तौर पर सही रहा। इन सर्वेक्षणों को परिणामों को देखने के  बाद साफ है कि धु्रवीकरण भाजपा तथा गैर भाजपा दलों के  मध्य नहीं बल्कि भाजपा तथा सपा-बसपा के  बीच हुआ। यही कारण है कि गैर भाजपा दलों की सीटों के  बारे में सारे आंकलन गड़बड़ा गये। फिर भी मोटे तौर पर गैर भाजपा दलों को मिली कुल सीटों की तुलना आंकलित सीटों से की जा सकती है।
सभी चुनाव सर्वेक्षणों में जो किसी भी सांख्यिकीय के  जानकार के  लिए खटकने वाली बात रही, वह रही किसी के  द्वारा सर्वेक्षण परिणामों की मानक त्रुटि (स्टैण्डर्ड एरर) का न दिया जाना। राष्ट्रीय सहारा ने 13 नवंबर को प्रकाशित चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में इतना तो दिया कि उसके  द्वारा प्रेक्षित सीट अंतराल का विश्वसनीयता प्रतिशत क्या है लेकिन इतना काफी नहीं है। जबकि कोई पाॅलिटिकल साइंटिस्ट कोई राजनीतिक दल अथवा पत्रकार आदि इन सर्वेक्षणों का उपयोग करना चाहता है तो उसे यह नहीं पता होता है कि इसमें कितना रिस्क फैक्टर है। रिस्क फैक्टर साफ कर दिये जाने से इन जनमत सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता तथा उपयोगिता दोनों बढ़ सकती है।
इसके  अतिरिक्त इन अति तकनीकी सर्वेक्षणों के  परिणामों की विश्लेषण और जानकार लोगों द्वारा किये जाने की प्रवृत्ति सामने आ रही है, जो अखबारों, सर्वेक्षण एजेन्सियों के  लिए खतरनाक होता है। होता यह है कि जब ऐसा व्यक्ति विश्लेषण करता है, जिसे जनमत सर्वेक्षण विज्ञान (सेफोलाॅजी) की जानकारी तो होती ही नहीं बल्कि सांख्यिकीय के  आधारभूत सिद्धांतों से भी अनभिज्ञ होता है तो अर्थ का अनर्थ कर बैठता। ऐसा एक उदाहरण सामने आया है।एक स्थानीय हिंदी अखबार ने सर्वेक्षणों का विश्लेषण करते हुए पिछले दिनों विस्तृत रिपोर्ट छापी, जिसमें कहा गया कि उसने जितनी भविष्यवाणियां की, सब सही निकलीं। रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे पहले उसने ही छापा था कि मुलायम सिंह यादव को 44 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। श्रीयादव मुख्यमंत्री बन गये। यहां पर ध्यान देने योग्य दो बाते हैं। पहली सपा-बसपा गठबंधन को मात्र 28 प्रतिशत वोट मिले और दूसरी ओर मुख्यमंत्री लोगों की राय से नहीं बनता। यदि यह मान भी लें कि लोगों की राय से किसी को मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तो यह कैसे संभव होगा कि पार्टी या गठबंधन को वोट मिले लगभग 27 प्रतिशत उसी गठबंधन के  एक नेता को 44 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री के  रूप में देखना चाहते हों। यदि यह भी मान लिया जाय कि जनता दल के  समर्थक भी मुलायम को मुख्यमंत्री के  रूप में देखना चाहते हैं तब भी कुल सीटों का प्रतिशत 44 प्रतिशत से काफी कम रह जाता है। इससे एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सर्वेक्षण पार्टी विशेष के  प्रभाव क्षेत्र में किया गया है। कोई भी प्रोफेशनल सर्वेक्षण एजेन्सी किसी पार्टी विशेष का पक्ष लेकर अपनी संभावनाओं को जोखिम में नहीं डालती और कोफ्ट ने भी ऐसा नहीं किया होगा। लोग ऊटपटांग निष्कर्ष निकालें और सेफोलाॅजी की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाएं। इससे सबक लेना जरूरी है कि गैर जानकार लोगों को ऐसा करने से रोका जाय।
Dr. Yogesh mishr

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