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कितना सफल है सफलता का दावा

Dr. Yogesh mishr
Published on: 27 Feb 1994 1:19 PM IST
आम जनता से वित्तमंत्री मनमोहन सिंह या के न्द्र सरकार के  बारे में प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करें तो एक बात लगभग सभी लोगों की राय में आमतौर शुमार मिलेगी कि लोग मूल्यवृद्धि से परेशान हैं। नयी आर्थिक नीति के  नाम पर जो परोसा जा रहा है वह उनकी समझ से परे है लोग इस नयी आर्थिक नीति की बौद्धिक खेमेबाजी को अस्वीकार कर देंगे, बाहुलांश की इस धारणा के  बाद भी हमारे लोकतंत्र के  जननायकों के  कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। तभी तो सत्तापक्ष रिमोट वित्तमंत्री की पश्चिमोन्मुखी बौद्धिकता के  आगे ‘लकवा खाये पीठ ठोकाऊ’ की मुद्रा में खड़ा है और संसद में बैठा गैर सत्तापक्ष, आर्थिक संकट का हौवा खड़ा करके  जल्दी से जल्दी से नयी आर्थिक नीति को गले उतरवाने के  सरकारी प्रयास के  खिलाफ लामबन्द नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि अपने पिछले तीन बजटों में आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति न हो पाने के  बाद भी मनमोहन सिंह को चैथा बजट पेश करने देने का व बजट पूर्व मूल्यों में बढ़ोत्तरी करने जेसे अधिकार मिल जाते हैं। रिमोट वित्तमंत्री 93-94 के  बजट के  लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाये। बजट घाटा एवं मुद्रास्फीति उनके  बार-बार के  दावों और आंकड़ों से बाहर निकल गये। विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ाने की जो उपलब्धि मिली थी उसके  पीछे एकमात्र महत्वपूर्ण कारण अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम के  गिरे मूल्य हैं जिससे लगभग 80 करोड़ डालर बचे। सरकारी, गैर सरकारी 1673 अरब डालर का ऋण भी देश में लिया गया।
नयी आर्थिक नीति ने राजगार के  अवसर घटाये हैं। जिसका परिणाम है कि रोजगार कार्यालयों में दर्ज बेरोजगारों की संख्या तीन करोड़ 62 लाख लगभग है। मुद्रास्फीति की दर जिसे सात प्रतिशत लाने का लक्ष्य था, वह 8.2 प्रतिशत है। जबकि अभी हाल में की गयी मूल्यों की वृद्धि को जोड़ा जाए तो यह बढ़ोत्तरी दो अंकों में पहुंच जाएगी। पिछले बजट के  बाद 20 दिसम्बर को वित्तमंत्री ने 6377.75 करोड़ रूपये के  अतिरिक्त व्यय के  प्रस्ताव प्रस्तुत किये थे। जिसे बजट में जोड़ा जाये तो घाटे की राशि दोगुनी से अधिक हो जाएगी।
गत वर्ष विकास दर 5.6 प्रतिशत की तुलना में 3.8 प्रतिशत रही। खेती के  मामले में अच्छा बताने के  बाद भी कृषि विकास दर 2.3 प्रतिशत रही। सोये शेयरों में दहाड़ का दंभ वित्तमंत्री का अभी टूटा नहीं है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि हवाला कारोबार में सेंटिमेंट का विशेष रुख रहता है। फंडामेंट के  आधार पर 30 प्रतिशत शेयर ही अपने मूल्यों पर खरे उतरते हैं।
रिमोट वित्तमंत्री प्रशासनिक मूल्यों से बेतहाशा वृद्धि पर असफल रहे। तमाम वस्तुओं के  मूल्यों में बढ़ोत्तरी के  बाद भी राजकोषीय घाटे में बढ़ोत्तरी होने की आशंका स्वयं मनमोहन सिंह ने व्यक्त की है। सब्सिडी घटाने को भी अपनी उपलब्धि मानने वाले वित्तमंत्री ने यह तर्क दिया है कि पिछले पांच सालों में सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में सब्सिडी आधी रह गयी है। विकास की दर लक्ष्य से कम है। इसके  पीछे वित्तमंत्री ने यह कहा कि विश्व की विकास दर 1990 से 1993 तक लगातार औसत से कम रही है। इतना ही नहीं अपनी नयी आर्थिक नीति के  अपेक्षित परिणाम न आने के  पीछे भी मनमोहन सिंह ने अन्तरराष्ट्रीय विकास दर की ओट ली है और कहा है कि विश्व के  इन्हीं हालातों के  कारण आर्थिक सुधारों में अपेक्षित लाभ नहीं प्राप्त हो सके  हैं।
ये तर्क तो बेहद शर्मनाक हैं। इतना ही नहीं आर्थिक समीक्षा में वित्तमंत्री यह कहने में भी नहीं हिचके  कि औषधि क्षेत्र व्याप्त आशंकाओं के  संदर्भ में या गैट समझौता, दवा, रसायन, खाद्य उत्पादों में उत्पाद पेटेंट की शुरूआत करने के  लिए 10 वर्ष की संक्रमण अवधि प्रदान करता है। जबकि सच्चाई यह है कि गैट की धारा 70.8 के  तहत करार पर हस्ताक्षर करने के  एक वर्ष के  अन्तराल में ही सरकार को उत्पाद पेटेंटीकरण के  लिए आवेदन कबूल करने के  लिए बंदोबस्त करने होंगे।
पिछले वर्ष औद्योगिक क्षेत्र को दी गयी 45 अरब रूपये की राहत के  बावजूद औद्योगिक विकास दर अक्टूबर तक पिछले साल के  4.3 प्रतिशत की तुलना में 2.4 प्रतिशत मात्र रही। औद्योगिकीकरण के  समर्थक वित्तमंत्री के  कार्यकाल में हमारा औद्योगिक उत्पादन 1.7 प्रतिशत रहा। मुद्रा आपूर्ति जो 12 से 13 प्रतिशत होनी चाहिए वह 15 प्रतिशत है। वित्तमंत्री बराबर विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। विदेशी मुद्रा भण्डार के  लिए विदेशी ऋण उदारीकरण की जो प्रक्रिया अपनायी जा रही है इसके  1995-96 में गम्भीर परिणाम होंगे क्योंकि तब तक हमारे उद्योग विदेशी उद्योगों के  सामने संरक्षण विहीनता के  कारण चूक चुके  होंगे तथा 1995-96 में ऋणों का भुगतान भी करना पड़ेगा।
पिछले वर्ष के  बजट के  52वें पैरा में मूल्यवर्धित कर प्रणाली लागू करने के  प्रस्ताव की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ। अनाज, चीनी, रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल जैसी आम जरूरत की चीजों का दाम पिछले दरवाजे से बढ़ाने के  बाद भी संसद में कोई खास सुगबुगाहट नहीं हुई। इस मूल्य वृद्धि और सब्सिडी को इस वर्ष बजट पूर्व लागू किया गया है। क्योंकि इससे वर्ष का बजट घाटा जो दोगुने से भी अधिक हो रहा था उसके  आकार को कम किया जा सके । क्योंकि हमारे रिमोट वित्तमंत्री इस घाटे को बजट पूर्व पूरा न करके  श्रेष्ठ और बौद्धिक होने के  सुख से वंचित नहीं होना चाहते हैं। बढ़ा हुआ बजट घाटा इनकी असफलता का संके त भी दे रहा है। परन्तु आंकड़ों की बाजीगरी करने के  कौशल का वित्तमंत्री ने लाभ उठाया। वैसे भी वे एक ऐसी भ्रष्ट सरकार के  मंत्री हैं जिसने संसद में एक भ्रष्ट न्यायाधीश को संरक्षण दिया हो। सात हजार करोड़ रूपये के  घोटाले को दूसरे पर टाला हो, सीधी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं की हो। इतना ही नहीं, इस बार जो आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया उसमें गलत आंकडे़ एवं झूठी उपलब्धियां दर्ज करायी हों। प्रधानमंत्री पर एक करोड़ रूपये की रिश्वत का आरोप लगा हो परन्तु फिर भी उन्होंने कोई सफाई देना उचित नहीं समझा हो। साथ ही न्यूयार्क के  बैंक आॅफ स्टेट के  अधीक्षक ने न्यूयार्क के  दक्षिण जिला कोर्ट में एक शिकायत दायर करते हुए उल्लेख किया है कि विवादास्पद और अब दिवालिया हो चुके  बैंक आॅफ क्रेडिट एवं कामर्स इंटरनेशनल की न्यूयार्क की एजेंसी से गबन की गयी रकम जिन लोगों को मिली थी उनमें पेट्रोलियम राज्यमंत्री सतीश शर्मा भी हैं। वे ब्रिटिश द्वीप वर्जिन की कम्पनी टुरकिनो कार्पोरेशन के  मालिक हैं। चैनल द्वीपों में नके  कई बैंक खाते हैं और अमरीकी कम्पनियों में उनका विशेष निवेश है।
यह तब है जब गत 22 दिसम्बर को सतीश शर्मा ने संसद में बयान देकर अमरीका में अपना किसी भी तरह का खाता होने की बात का खण्डन किया था। संसद में ऐसे बयान देना, गलत आंकड़े पेश करना, संसद को गुमराह करना इस कांग्रेस सरकार की फितरत में है। फिर इस पर कोई दुश्चिन्ता क्यों जतायी जानी चाहिए कि देश की सबसे बड़ी पंचाट को गुमराह करने वाले हमारे खेतोंके  बारे मंे नहीं सोचते। वैसे वो सोचें और सोचते हुए दिखें तो यह सीधे सीधे स्वीकार कर लें कि अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष या विश्वबैंक का निर्देश है। जैसे अभी कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री शिक्षा पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत करने के  लिए तैयार, उत्सुक व चिन्तित दिखे। कुछ दिनों में स्वास्थ्य एवं गरीबी के  प्रति उनकी संवेदना जागृत हो जाएगी परन्तु इन सबके  पीछे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं हैं।
चूंकि विश्व बैंक के  प्रतिनिधि ओक्ते येनाल ने प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं गरीबी उन्मूलन को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है, इसलिए भारत के  वर्तमान बजट में भी यही प्राथमिकताएं होंगी। मनमोहन सिंह के  कार्यकाल में कारपोरेट क्षेत्रों को विशेष अवसर मिला और मिलेगा। सीमा शुल्क को घटाकर लगभग 50 प्रतिशत किया जाएगा। चलैय्या समिति ने पूंजीगत माल के  आयात पर सीमा शुल्क आठवीं योजनाके  आखिर तक घटाकर 20 प्रतिशत करने की सिफारिश की थी और जबकि आठवीं योजना के  अंतिम वर्ष 96-97 हैं। चलैय्या समिति के  ही अनुमोदन के  कारण उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क भी घटाये जाएंगे। जिससे लगभग साढ़े चार करोड़ राजस्व घटेगा। एक ओर सरकार ने खाद्यान्नों  के  मूल्यों को पिछले दरवाजों से घटाकर ढाई-तीन हजार करोड़ रूपये का राजस्व बढ़ाया दूसरी ओर एक ऐसा वित्तमंत्री जिसकी प्राथमिकताओं में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं गरीबी उन्मूलन हैं, वह आवश्यक वस्तुओं (खाद्यान्नों आदि) का मूल्य बढ़ाकर या सब्सिडी कम करके  राजस्व उगाहता हो, साथ ही सीमा शुल्क एवं उत्पाद शुल्क में कमी करने की दूरदृष्टि रखता हो तो उसके  अर्थबोध पर सवाल उठना लाजिमी ही है।
हमारे वित्तमंत्री अर्थव्यवस्था से कर उगाहने में असफल रहे हैं। अब तक इन्होंने काले धन की अर्थव्यवस्था को तोड़ने के  लिए काले धन को बाहर लाने के  लिए कोई ठोस विकल्प नहीं सुझाये हैं। जबकि यह हमारे अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख समस्या है। लगभग 80 हजार करोड़ रूपये से एक लाख करोड़ रूपये तक का काला धन हमारे पास मौजूद है। अगर इसे बाहर लाया गया होता तो हम अपने वर्तमान संकट की स्थिति से बाहर होते।
रिमोट वित्तमंत्री की उपलब्ध्यिों को ऐसे आंका जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के  मानव विकास संके तक के  अनुसार 1993 में 173 देशों में भारत का 134वां स्थान है। मानव विकास संके तक में क्रय शक्ति, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, जीवन सम्भावना एवं शैक्षणिक उपलब्धियां शामिल होती हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि जहां क्रय शक्ति नहीं होगी वहां उत्पादन, रोजगार भी प्रभावित होंगे। यह प्रभाव मन्दी की स्थिति उत्पन्न करेगा। जब हम मानव विकास संके तक में इतने नीचे स्तर पर खड़े हैं फिर नयी आर्थिक नीति पर इतराने का या पीठ ठोकाऊ गर्व से फूले नहीं समाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। परन्तु संसद व संसद के  बाहर तमाम प्रतिमानों को ढहाने वाली सरकार का रिमोट मंत्री ऐसा न करे तो फिर उसके  उस कैबिनेट में रहने के  लक्षण का बोध कैसे होगा।
हमारे वित्तमंत्री जिन आर्थिक नीतियांे की दुहाई दे रहे हैं, उनका परिणाम है कि अनाज के  मूल्यों में 8.8 प्रतिशत, चीनी के  भाव 30 प्रतिशत, कपड़े की कीमत 10 प्रतिशत, इस्पात के  मूल्यों में 9 प्रतिशत, रासायनिक पदार्थ 5 प्रतिशत महंगे हुए एवं रहन-सहन का व्यय 10.7 प्रतिशत बढ़ा लेकिन वित्तमंत्री के  सुधारों के  कारण हमारे ऊपर जो कुप्रभाव पड़ रहे हैं, और जिन कुप्रभावों से हमें निजात दिलाने की नाकाम कोशिशों के  प्रयोग की गिरफ्त में हम फंसे हैं, उसके  खिलाफ हमारा समूचना विपक्ष भी असहाय एवं नपुंसक स्थिति में खड़ा है। लगता है उन्हें नहीं पता कि हमारे आर्थिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों से राजनीतिक संरचना भी प्रभावित होगी। राजनीतिक संरचना में किसी तरह के  परिवर्तन के  लिए हमारा नेतृत्व तैयार नहीं है।
ईस्ट इंडिया कम्पनी जब भारत में आयी तो उसने पहला काम यही किया था कि मौजूदा आर्थिक संरचना का निर्माण किया। बाद में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक परिवर्तन करके  दो सौ वर्षों तक उसने शासन किया। आज विश्व साम्राज्यवादियों की यह मंशा है कि भारत में मौजूदा आर्थिक संरचना को तबाह कर अपने हिसाब से नयी आर्थिक संरचना तैयार करायी जाये। इसके  लिए इस बार नयी आर्थिक नीति, बाजार अर्थव्यवस्था, ग्लोबलाइजेशन जैसे आकर्षक शब्दों की ओट में पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है और हमें समझाया जा रहा है कि विश्व बैंक, मुद्राकोष, विदेशी पूंजी, विदेशी निवेश, विदेशी उद्योग हमारे अर्थतंत्र के  विकास के  लिए तैयार हैं। यह हमारे हित चिन्तक हैं। यह बताने वाले हमारे रिमोट वित्तमंत्री की पिछले तीन वर्षों की उपलब्धियां देख ली जाएं तो उनकी हित चिन्ता, बौद्धिकपन, सब साफ हो जाएगा पर जो लोग साम्राज्यवाद को आमंत्रण दे रहे हैं, वे संगठित हैं, साधन सम्पन्न हैं, अधिकार सम्पन्न हैं, प्रचार के  माध्यम के  बड़े हिस्सों को गुमराह करने में सक्षम हैं।
Dr. Yogesh mishr

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