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मौका भी है... दस्तूर भी है

Dr. Yogesh mishr
Published on: 27 March 1994 1:24 PM IST
होली रंगों का उमंगों का हुडदंगों का मौसम है। रंगने का अवसर लिए आती है होली। रंग पुतने और पोतने का एक ऐसा अवसर जहां वय के  लिए कोई सीमा तक नहीं है। यहां मस्ती है। मस्ती मदहोशी तक की पूरे बसंत के  मौसम में मदमस्ती का एक आलम रहता है। बहकने, बहकाने का एक अवसर भी। बसंत का फागुनी फाग होता ही ऐसा है कि कोई भी भूल जाए। कोई भी बहक जाय। तभी तो कहा जाता है कि फागुन भर बाबा देवर लागे। यही तो है मदमस्ती का आलम। भूलने का दौर। फाग और कबीरा के  बीच बड़ा सीधा रिश्ता है। फाग में कबीरा गाइये और एक दूसरे से गाली गलौज कर लीजिए। कबीर वैसे भी हमारे साहित्य में, संस्कृत में एक ऐसे उदार चेता का पर्याय हैं, जिसमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों को उनकी कुरीतियों के  लिए डाटने, डपटने का दम तो है ही। परंतु इस दम के  पीछे कोई निजी प्रतिबद्धताएं, निजी हित लाभ का दृष्टिकोण नहीं है। इसलिए तो होली में कबीरा गाने का रिवाज है। इस फागुनी कबीरा में भी कोई निजी विद्वेष, निजी हित लाभ की सोच नहीं होती है। यही कारण है कि होली का हुड़दंग भी क्षम्य होता है। प्रथम पुरूष के  लिए और अन्य पुरूष के  लिए भी इस बसंती फाग की अलमस्ती दौर में कुछ भांग खा लेने, कुछ शराब पी लेने और अब कुछ निजी हितों के  लिए अपने वर्ष भर की विद्वेषात्मक प्रतिबद्धताओं के  लिए भी ओट ढूंढ लेते हैं लोग। तभी तो किसी शायर ने इस मौके  पर अपनी माशूका के  लिए ठीक ही कहा है-अब तो गले लग जा, मौका भी है... दस्तूर भी।
इसी मदमस्ती भरे हुड़दंग का प्रभाव है कि मायावती ने महात्मा गांधी को शैतान की औलाद कहा है। हरिजन शब्द पर आपत्ति की। इतना ही नहीं, गांधी पर देश का बंटवारा कराने का आरोप लगाया। अपने आरोप की पुष्टि के  लिए बाबा साहब अम्बेडकर और उनके  गुरू दादा साहब गायकवाड़ का सहारा लिया। कभी छोटे लोहिया के  रूप में स्थापित रहे पूर्व के न्द्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र ने भी गांधी पर आपत्तियों से सहमति जतायी। यह फागुन की मस्ती का असर ही तो है कि जनेश्वर मिश्र सरीखा नेता समाजवादी और गांधीवादी दोनों को भिन्न समझता हो। एक ओर बसपाइयांे को कुर्सी और सत्ता पर बैठना सीखने की सलाह देता हो तो फिर दूसरी ओर गांधी पर आपत्तियों से सहमति जताता हो। जब ये के न्द्रीय मंत्री थे तो अपने बंगले में लोहिया के  भूले भटके  लोगों के  लिए इन्होंने छप्पर डलवाया था और इनके  कार्यालय में गांधी जी की एक बड़ी सी मूर्ति लटकी रहती थी। कांग्रेसी भी इस फागुन में गांधी पर की गयी टिप्पणियों के  खिलाफ जीपीओ पर जब लामबंद हुए तो गांधी के  एक चित्र के  सामने उन्होंने अपनी चप्पलें उतारीं। एक अंग्रेजी दैनिक ने फोटो छापकर इस ओर इशारा किया।
एक ओर सपा के  नेता एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जनेश्वर मिश्र गांधी और समाजवाद में दृृष्टिभेद रखते हैं। वहीं दूसरी ओर सपा के  राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव यह कहते पाये जाते हैं कि उनकी सरकार समाज में गैर बराबरी खत्म करने के  लिए महात्मा गांधी के  बताए हुए रास्ते पर ही चलेगी। मेरी सरकार गांधी के  सपनों को साकार करने के  लिए कटिबद्ध है। यह दृष्टि भेद, विचार भेद, फागुनी मस्ती का ही परिणाम तो नहीं है। एक बसपाई मंत्री पर अम्बेडकरवाद का इतना रंग चढ़ा कि उन्होंने लोहिया वाद को भी इस बसंत में खारिज कर दिया।
उड़ीसा की विधानसभा में जद और भाजपा विधायकों पर फागुनी मस्ती सवार है और वे हाथापाई पर जुटे हैं। उप्र विधानसभा में जद के  नेता रेवती रमण सिंह ने बसंती फाग का रंग इतना चढ़ा कि अलविदा जद कह बैठे। कांग्रेसी नेता विट्ठल नरहरि गाडगिल और शरद पवार के  समर्थकों के  बीच फागुन में हाथापाई की नौबत आ गयी। बिहार में फागुनी बंद का भाकपा और माकपा ने आयोजन किया। इतना ही नहीं, लालू ने रामलखन को बैल कहा और रामलखन ने लालू को सियार। होली में दोनों एक दूसरे की तुलना जानवरों से कर रहे हैं।
फागुनी मस्ती का आनंद लूटने वाले किसी मनचले के  सुरूर ने राष्ट्रपति पर गोली चलाने की अफवाह गर्म कर दी। फागुन में होली पर अखबार चैंकाने वाली अविश्वसनीय खबरें छापते हैं। फागुन के  नशे में गोरखपुर के  एक विधायक ने चिकित्सा अधिकारी को पीटा और पिटवाया। फागुन में गोरखपुर में अखिल भारतीय हिजड़ा सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया। फागुन के  नशे में बनारस में फूहड़ कवि सम्मेलन की परम्परा है। दिल्ली के  भाजपा विधायक विनोद शर्मा ने डेसू के  एक अफसर को मारने के  लिए इसी नशे में जूता उतार लिया। राजस्थान मंे एक नंबर वाली लाटरी बंद करने का फागुनी राग छेड़ा गया।
फागुन में ही महाशिवरात्रि जैसा पर्व होता है। इसमें एक ओर सत्यम, शिवम, सुन्दरम का आदर्श की प्राप्ति का लक्ष्य होता है तो दूसरी ओर भांग और नशे के  अलमस्ती में डूब जाने का अवसर। जिससे तमाम विचित्रताओं के  साथ वैविध्य भरा सुख मिलता है।
राजस्थान के  हड़ौती अंचल में होली पर विभीषण की पूजा देवता के  रूप में होती है और होली पर विभीषण मेला भी आयोजित होता है। यह फागुनी नशे की ही परिणति है कि घर का भेदी लंका ढाये की जगह वह पूजनीय और देवता हो जाता है।
अपने वित्त मंत्री भी कम सयाने नहीं हैं। बसंती फाग का मजा लेने से नहीं चूके । बोल उठे-मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखा जाएगा। अब तीन साल बाद ऋण की जरूरत नहीं पड़ेगी। आयात बढ़ेंगे। अगले पांच-छह सालों में नयी कृषि और औद्योगिक क्रान्ति आएगी। लब्ध प्रतिष्ठित शिक्षा शास्त्री महरोत्रा ने अभी हाल में अपनी रिपोर्ट देते समय छात्र संघों पर प्रतिबंध की वकालत कर दी। उन्हें शिक्षक संघ पर भी प्रतिबंध लगाने की बात करनी चाहिए थी। छात्र इन्हीं की अनुकृति करता है। पर महरोत्रा साहब पर भी फागुनी नशा सवार था।
फागुन का ही यह असर है कि दतिया में शेर के  शाकाहारी हो जाने की खबर प्रकाश में आयी। होली वाले दिन ही देश के  प्रसिद्ध दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनगिरि दतिया में सिंहस्थ महोत्सव में दो शेर श्रावक रथ खीचेंगे। अमरीका की विदेश राज्य सचिव सुश्री राबिन राफेल पर भी फागुन का रंग इतना चढ़ा कि वह शिमला समझौता की वकालत करते हुए कह बैठीं कि पाक इस पर अमल करे। साथ ही अपने मौनी बाबा को अमरीका आने के  लिए आमंत्रित किया। फागुन में ही भारत की छवि दुनिया में सुधारने का जिम्मा के वल टीवी सीएनएन को देेने का प्रस्ताव मंजूरी के  लिए मंत्रिमंडल सचिवालय को भेजा गया। इनसेट-2 बी पर सीएनएन को एक ट्रांसपोडर देने का प्रस्ताव भी इसमें शामिल हैं। सोंचे हमें समझाने की जिम्मेदारी उन्हें दी जा रही है, जो हमें न समझने की प्रतिबद्धता के  दम्भ में चूर बैठे हैं। ऐसे ही हैं जैसे भोर का पहाड़ा पढ़ने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी जाय जो सूर्य उगने तक संस्कृति के  बिस्तर पर बेड टी की आशा में पड़े रहते हैं।
ब्रज में होली 45 दिनों की मनायी जाती है। जिसमें गोपिकाएं, गोपों को कोड़ों से पीटती हैं। बरसाने की लट्ठमार होली तो आप जानते ही होंगे। होली एक मात्र ऐसा त्यौहार है जो पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है और फिल्मों में भी सबसे अधिक गाने इसी त्यौहार पर फिल्माये गये हैं। यही कारण है कि पूरे बसंत भर होली की मदमस्ती में समाज तर रहता है। कोई किसी की आड़ में, कोई किसी की ओट में। इसी मदमस्ती बसंत के  नशे का प्रभाव है कि पूरे के  पूरे कुएं में भांग घुली लगती है और भंग के  रंग में एक माह सभी वय की सीमाएं जहीनियत की सीमाएं तोड़कर कुछ लोग कबीराना मस्ती के  तहत और आजकल कुछ निजी कुटिल प्रतिबद्धताओं के  तहत आपे से बाहर रहते हैं। जीते हैं। इस पूरे माह जो भी चाहते हैं करते हैं। अपने रंगों से लोगों को रंगते हैं। यह सब होली के  बाद बंद हो जाता है। क्योंकि हमें नए वर्ष की शुरूआत करनी होती है और कहना होता है-बुरा न मानो होली है।
इसी के  तहत सबको भूल जाना चाहिए चाहें वह गांधी पर की गयी टिप्पणियां हों। गांधीवाद, समाजवाद में महसूस किया गया दृष्टिभेद हो। भारत की छवि बनाने का जिम्मा विदेशांे को देना हो। वित्त मंत्री का बयान हो। ब्रज की होली के  कोड़े और बरसाने की होली के  डंडे हों तथा गोरी के  गालों को छू लेने का मौका हो या दस्तूर, उसको नहला देने, उसके  साथ छेड़छाड़ करने की कबीराई मस्ती या निजी जरूरतें हों, सभी को भूलना ही पड़ेगा। इस सबको भूलने के  बाद ही नयी उमंग और नई तरंग के  साथ नए वर्ष से जो हमारे स्वागत में खड़े हैं, मिलना होगा। उसे अर्थवत्ता का आश्वासन देना होगा तथा बुरा न मानो होली है कि परम्परा का निर्वाह भी करना पड़ेगा। तो आइये इस बसंती फाग के  राग से उबरें। पौधों की तर्ज पर नए सृजन में जुटें। क्योंकि नये वर्ष को अर्थवत्ता का आश्वासन चाहिए तभी फिर एक वर्ष बाद इस फाग के  राग के  अधिकारी रहेंगे और रंग, उमंग, हुड़दंग के  लिए वय की सीमाओं का अतिक्रमण करने के  अवसरगामी भी।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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