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कल्याण सरकार का एक वर्ष एक सिंहावलोकन
------ ने किया उनके छात्र होने पर संदेह ही उठता है। इंका का भारतीय छात्र संगठन इसका विरोध कर रहा था उसके अध्यक्ष गत आधे दशक से कभी किसी विश्वविद्यालय/ महाविद्यालय में छात्र बनकर नहीं गये। वैसे छात्रों को जेल भेजना सराहनीय नहीं है परन्तु जेल जाने की संभावना का होना जरूरी है। महाराष्ट्र में इंका सरकार ने भी नकल विरोधी अध्यादेश लागू किया था। मप्र में भी यह लागू है इसका क्यों विरोध नहीं हुआ लगता है विपक्ष में आने के बाद ही हमारा सामाजिक बोध जागृत होता है।
बेसिक और प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य हुए और अगर इस सत्र में पुस्तकें सरकारी मूल्यों पर उपलब्ध करा ली जाती हैं तो यह उल्लेखनीय होगा। प्रौढ़ शिक्षा विभाग का टूटना अच्छा होगा। प्रौढ़ शिक्षा विभाग का टूटना अच्छा रहा सिर्फ उन लोगों के लिए जो प्रौढ़ शिक्षा में स्वयंसेवी संगठनों के घुसपैठ कर लूट का यथार्थ जानते हैं। अभियान उपागम भी जनपद को शिक्षित करने की प्रशंसनीय योजना है।
भाजपा की उच्च शिक्षा ने सबसे ज्यादा निराश किया, जबकि शिक्षक संघ के नेता रहे मंत्री से काफी आशाएं थीं। सत्र नियमन से लेकर अध्यापकों को बीमा, पेंशन और उन सभी सुविधाओं को मुहैया--- तरह गौड़ हो गया उच्च शिक्षा जैसे मन पसंद विभाग के आगे। वैसे उच्च शिक्षा तदर्थवाद की समाप्ति अगर बरकरार रह जाती है तो श्रेष्ठ होगा।
समर्थन के लिए-पहले भाजपा बनियों/व्यापारियों की पार्टी मानी जाती थी। इसने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में भी बिक्रीकर सरलीकरण की बात कही थी। जिस पर सरकार को इस वर्ग का समर्थन हासिल हुआ था। सरकारी दावा है कि बिक्रीकर सरलीकरण के परिणामस्वरूप 1580 करोड़ रूपये वसूले गये जो गत वर्ष की तुलना में 210 करोड़ अधिक है। प्रदेश के राजस्व में 150 करोड़ के कमी की बात भी कहर विरोधाभासी स्थितियां उत्पन्न की गयी हैं साथ ही बिक्रीकर सरलीकरण के कारण सेल्फ असेसमेन्ट की सीमा बढ़ाकर रिटर्न सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर कर छोटे व्यापारियों को लाभ जरूर पहुंचाया गया। पंजीयन की मौद्रिक सीमा में पचास हजार की वृद्धि आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए एक प्रशंसनीय कदम रहा है। बिक्रीकर सरलीकरण से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 75 प्रतिशत व्यापारी सभी डिस्पोजल से बिक्रीकर के मामले में व्यापारियों से जो टकराव मोल लिया वह जरूरी नहीं क्योंकि व्यापारी उसे उसके चुनाव घोषणा पत्र की स्मृति करा रहे थे तथा पूरे देश में समान बिक्रीकर, उत्पादन के समय ही एकमुश्त बिक्रीकर सहित गल्ले पर 4 प्रतिशत के बजाय एक प्रतिशत टैक्स की बात कर रहे थे। जो नाजायज नहीं है। व्यापारियों का बंद सफल भी रहा। यह भी सत्य है कि इस चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा ने पूर्व के घोषणापत्रों के तर्ज पर बिक्रीकर समाप्त करने की जगह बिक्रीकर सरलीकरण की बात कही थी जिसे उसने किया जरूर लेकिन काफी छोटे अंश में। बिक्रीकर सरलीकरण कमेटी ने 54 वस्तुओं पर बिक्रीकर हटाने की संस्तुति की थी लेकिन सरकार ने मात्र एक दर्जन वस्तुओं पर सरलीकरण किया?
----- की नौबत आये बिना मंदिर बनाना पसंद करेंगे तो यह शुभ संके त नहीं है। राम मंदिर के मुद्दे को भाजपा ने आम चुनावों के साथ-साथ उप चुनावों में भी जिंदा रखा। पर हाल के चुनावों में इस मुद्दे में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकी यद्यपि 11 अक्टूबर को भाजपा ने 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया। विवादित स्थल पर आसपास के मंदिर गिराये गये जिसमें विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ जनसामान्य भड़काने में सफल नहीं हो पाये। राम मंदिर के आन्दोलन की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुंची कल्याण सरकार ने न तो इस दिशा में कोई प्रगति की और न ही पिछले वर्ष अयोध्या में कारसेवा के दौरान हुई हिंसा की जांच का कोई सक्रिय प्रयास किया।
वैसे भी मंदिर निर्माण किसी राजनीतिक पार्टी का लक्ष्य हो ही नहीं सकता। उसका लक्ष्य है सरकार चलाना, लोगों को सुशासन देना और उस प्रदेश, देश के हित में आर्थिक और राजनीतिक नीतियां तैयार करना। कल्याण सिंह सरकार मंदिर निर्माण के लक्ष्य से काफी दूर है जो काम हुए भी हैं उन्हें पर्यटन की आड़ में किया गया है। ऐसा करने के पीछे कौन से कारण हैं? कल्याण सिंह सरकार की मंशा और एक वर्ष पूर्व के उसके राममयी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ हो जाता है।-- जाने कहां सरक गये।
आंकड़ांे के सहारे-प्रदेश की आठवीं पंचवर्षीय योजना में व्यक्ति को विकास का के न्द्र बिन्दु मानकर जो लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं यथा वार्षिक विकास दर 6 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की जनसंख्या 45.3 प्रतिशत से घटाकर योजना के अन्त तक 24.3 प्रतिशत तक लाना, योजना काल में 50 लाख अतिरिक्त रोजगार के अवसर सृजित करना तथा कृषि दर का वार्षिक लक्ष्य 4.3 प्रतिशत रखना आदि। इन सभी लक्ष्यों को कल्याण सिंह के उस वक्तव्य के परिदृश्य में देखें जिससे उन्होंने के न्द्र पर आठवीं योजना हेतु पर्याप्त धन न देने का आरोप लगाया है तो इन लक्ष्यों की प्राप्ति संभव नहीं है क्योंकि कोई भी प्रदेश अपने निजी संसाधनों से इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। अगर कलयाण सिंह की बात मान भी ली जाय तो आंकड़ों के सहारे अपनी उपलब्धियों को दर्शाने वाली बात सिद्ध हो जाती है।
भयमुक्त समाज का दावा-प्रदेश को दंगारहित और भयमुक्त समाज करने का दावा खोखला साबित हो गया। माफिया सरगना की स्थिति को कमजोर करने में भी भाजपा ने पिछली सरकारों जैसी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का -------- सकता है-पत्रकारों को थाने पर नहीं जाना चाहिए।
यानि सरकार अपराध नहीं अपराध की सूचनायें कम करना चाह रही है। थानों पर शिकायत पेटिकाएं कागजी उपलब्धियां हैं। उप महानिरीक्षक के कार्यालय में संगणक लगाने से अपराध कम नहीं होंगे। तराई क्षेत्र में टास्क फोर्स के गठन के बाद भी आतंकवाद अपने क्षेत्र और घटनाओं की पुनरावृत्ति में विस्तार पाता जा रहा है। इतना ही नहीं भाजपा शासन में पुलिसिया आदर्श ‘परित्राणाय साधुनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्’ भी समाप्त हो गया। यहां तक की इसका उल्लेख भी बंद कर दिया।
अनुसूचित जाति/जनजाति के उत्पीड़न के मामले में अधिकारियों को 24 घंटे में घटनास्थल पर पहुंचने के के निर्देश को भी भाजपा अपनी उपलब्धि मान रही है जबकि यातायात के साधन इतने सुगम हैं। फिर इस निर्देश मात्र को उपलब्धि मानना कितना न्यायसंगत है। हरिजन शब्द के प्रयोग पर रोक लगाने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। प्रदेश में आवश्यक वस्तु निगम द्वारा शराब की बिक्री का प्रयोग सरकार की वरीयताओं को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। गांधीवाद और दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मक-मानववाद के दार्शनिक प्रभावों वाली सरकार इसे कई जिलों में आवश्यक वस्तु निगम का कारोबार समेटकर कर रही है। इससे यह अभिप्राय तो जुटाया ही जा सकता है कि गांधी और उपाध्याय के दार्शनिक व नैतिक सिद्धांतों का जो कथित मुल्लमा इस सरकार पर था वह भी गिर गया।
गन्ना भुगतान का यथार्थ-गन्ना और चीनी मिलों पर कथित रूप से दिखावे के लिए चाहे जो कार्यवाही की गयी हो परन्तु गन्ना भुगतान का यथार्थ अभी भी पहले जैसा कड़वा ही है। किसान गन्ना बोने के लिए 25 प्रतिशत पर ऋण लेता है और गन्ना बेचने के बाद पर्ची न भुनने के कारण जीविका चलाने के लिए 25 प्रतिशत कर्ज लेता है। यानि पूरा जीवन कर्ज में रहता है। तभी तो यह उक्ति सत्य लगती है कि भारतीय किसान कर्ज में ही पैदा होता और कर्ज में ही मर जाता है।’ इस तरह किसानों को इस संदर्भ में कोई राहत नहीं मिली।
उद्योगों के नाम पर-प्रदेश में स्वस्थ औद्योगिक वातावरण बनाने एवं उद्योगपतियांे के पलायन को रोकने के लिए एकल स्थल व्यवस्था लागू की गयी। उद्योगों में विद्युत सम्बन्धी मांगों को पूरा करने के लिए कैप्टिव ऊर्जा संयत्र स्थापना की अनुमति दी गयी है---- आयुक्त प्रवासी भारतीय का नया पद सृजित किया गया। नोएडा की भांति गोरखपुर में गीडा एवं सीतापुर में सीडा जैसी कांग्रेसी संकल्पनाओं व योजनाओं को भी अगर भाजपा सरकार अपनी झोली में डाल ले फिर भी उसके सभी प्रयासों के उत्तर में एक भी बड़ा उद्योगपति पूरे प्रदेश में नहीं आया तो क्या कहा जाएगा? आवेदन पत्र चाहे जितने पड़े हों।
औद्योगिक विकास के खाते में कोई उपलब्धि गिनानी हो तो राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा 630 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर 2.38 करोड़ के लाभ की प्राप्ति तथा बुनकरों को बुनकर बहबूदी फंड आदि के माध्यम से हालत सुधारने हेतु सहायता प्रदान करना ही हो सकता है। कृषि क्षेत्र में वारानी खेती हेतु राष्ट्रीय जलागम विकास कार्यक्रम का विस्तार किसानों को नहरों से निःशुल्क सिंचन सुविधा एवं यूरिया उर्वरक के मूल्य में वृद्धि के बाद भी प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को अपनी ओर से प्रति बोरा 9.37 रूपये का अनुदान उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण कार्य है। जगदीशपुर व शाहजहांपुर में क्रमशः 210 एवं 600 मेगावाट क्षमता के गैस आधारित विद्युत गृहों की स्थापना निजी क्षेत्रों में की जाएगी।
बाजार तंत्र पर पकड़-यह सरकार के न्द्र के मूल्य वृद्धि की भले ही आलोचना करती रही है परन्तु अपने यहां इसने मूल्यों को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दूध जैसी आम उपयोग की वस्तु के मूल्यों के प्रति किलो 2.50 रूपये की एक वर्ष में वृद्धि की गयी जो कि गैर सरकारी दुग्ध के मूल्य से काफी ज्यादा है। जबकि सरकारी आंकड़े दुग्ध उत्पादन में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी स्वीकार करते हैं। बिक्रीकर में छूट की घोषणा सरकार ने भले करके उपलब्धि का अहसास किया हो परन्तु इससे रियायतों वाली वस्तुओं के बाजार मूल्य गिरे नहीं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बाजार तंत्र पर सरकार की पकड़ कितनी है।
परिवहन निगम की बसों के किराये में 30 प्रतिशत वृद्धि भी कोई अपना औचित्य नहीं रखती। यातायात में वृद्धि से सभी वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाएंगे क्योंकि इसे अन्तिम विक्रेता लागत में समाहित कर लेता है। परन्तु परिवहन राज्यमंत्री ने इसे पुराने घाटे की भरपाई के लिए आवश्यक मानते हुए यात्रियांे को बेहतर सुविधायें जुटाने के लिए औचित्यपूर्ण स्वीकारा है।
परेशानियांे का दौर-भाजपा आजकल जितनी परेशानी में है उतनी कभी नहीं थी। उनके सामने समस्या यह है कि क्या यह मध्यमार्गी पार्टी की लोकप्रिय छवि के लिए उस सुरक्षा का बलिदान कर दे जो उसे हासिल हुई है जिसे विपक्षी दलों ने ------इसे डुबोने में मदद न करें।
प्रखर राष्ट्रवाद-भाजपा ने स्वयं को हिंदुत्ववादी विचारधारा से जोड़ा है। हिंदुत्ववादी विचारधारा सनातनी है। भाजपा के साथ जुड़ने से इस विचारधारा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इससे जुड़कर भाजपा जरूर मजबूत हुई है, यह विचारधारा नहीं। भाजपा प्रखर राष्ट्रवाद के आदर्शों की भी वाहिका है लेकिन यह प्रखर राष्ट्रवाद एक वर्ग तक ही सीमित है। एक स्थिति के बाद यह नकारात्मक हो जाता है।
भाजपा ने उत्तराखण्ड को पृथक राज्य का दर्जा देने में जो तत्परता बरती है और जो परम्परा डाली है वह लम्बे समय में विघटन की दिशा तय करने लगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा करने के पीछे राष्ट्रवादी भाजपाई मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो उठता है। और इन तंग आर्थिक स्थितियों जहां पदों की कटौती को स्वीकार किया जा रहा हो वहां प्रदेश की मान्यता दोषपूर्ण मानसिकता का संके त देने के लिए पर्याप्त है। तर्क और प्रमाण के आधार पर देखें तो भाजपा ने ऐसा करके के न्द्र के अधिकारों का अतिक्रमण किया है। संविधान में उल्लिखित अपने अधिकारों के दायरे से बाहर चली गयी है।
सत्ता बदली, चरित्र नहीं-नयी राजनैतिक संस्कृति देने का भाजपा का दावा प्रदेश सरकार में पूरा होता नहीं दीख रहा है क्योंकि सत्ता का जो चरित्र रहा है वह पिछली सरकारों जैसा ही है। सत्ता बदली है, सत्ता का चरित्र नहीं क्योंकि भाजपाई मतंत्रीयों ने अपने लिए संसाधन जुटाने की होड़ में इतनी शीघ्रता बरती कि वो एक ही वर्ष में सत्ता के विषयी चरित्र के शिकार हो उठे जबकि पिछली सरकारों के मंत्री अपने पूरे कार्यकाल में होते थे।
वैचारिक आधार पर पलायन-भाजपा आज संसद में 2 से 86 व 86 से 119 भले ही पहुंच गयी है। चार प्रान्तों में उसकी सरकारें भले ही हैं लेकिन जनसंघ के रूप में उसने जो एक वैचारिक आधार प्राप्त किया था उसे वह प्रदेश में खो चुकी है। वैचारिकता ही किसी पार्टी का प्राण है। मुद्दे आते हैं और चुक जाते हैं। मुद्दे भी तभी काम आते हैं जब उन पर विश्वास दिलाने की दलीय स्थिति हो। भाजपा को अपना वैचारिक आधार जुटाना चाहिए। भाजपा में संभावनायें भी हैं और नेतृत्व में शैक्षणिक, वैचारिक मजबूती भी। अटल जैसा उदार व राष्ट्रवादी सोच का हस्ताक्षर भी। वैसे प्रदेश की राजनीतिक भूमि बनाये रखने के लिए कल्याण सिंह को अपने नाम की सार्थकता जुटानी होगी।
बेसिक और प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य हुए और अगर इस सत्र में पुस्तकें सरकारी मूल्यों पर उपलब्ध करा ली जाती हैं तो यह उल्लेखनीय होगा। प्रौढ़ शिक्षा विभाग का टूटना अच्छा होगा। प्रौढ़ शिक्षा विभाग का टूटना अच्छा रहा सिर्फ उन लोगों के लिए जो प्रौढ़ शिक्षा में स्वयंसेवी संगठनों के घुसपैठ कर लूट का यथार्थ जानते हैं। अभियान उपागम भी जनपद को शिक्षित करने की प्रशंसनीय योजना है।
भाजपा की उच्च शिक्षा ने सबसे ज्यादा निराश किया, जबकि शिक्षक संघ के नेता रहे मंत्री से काफी आशाएं थीं। सत्र नियमन से लेकर अध्यापकों को बीमा, पेंशन और उन सभी सुविधाओं को मुहैया--- तरह गौड़ हो गया उच्च शिक्षा जैसे मन पसंद विभाग के आगे। वैसे उच्च शिक्षा तदर्थवाद की समाप्ति अगर बरकरार रह जाती है तो श्रेष्ठ होगा।
समर्थन के लिए-पहले भाजपा बनियों/व्यापारियों की पार्टी मानी जाती थी। इसने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में भी बिक्रीकर सरलीकरण की बात कही थी। जिस पर सरकार को इस वर्ग का समर्थन हासिल हुआ था। सरकारी दावा है कि बिक्रीकर सरलीकरण के परिणामस्वरूप 1580 करोड़ रूपये वसूले गये जो गत वर्ष की तुलना में 210 करोड़ अधिक है। प्रदेश के राजस्व में 150 करोड़ के कमी की बात भी कहर विरोधाभासी स्थितियां उत्पन्न की गयी हैं साथ ही बिक्रीकर सरलीकरण के कारण सेल्फ असेसमेन्ट की सीमा बढ़ाकर रिटर्न सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर कर छोटे व्यापारियों को लाभ जरूर पहुंचाया गया। पंजीयन की मौद्रिक सीमा में पचास हजार की वृद्धि आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए एक प्रशंसनीय कदम रहा है। बिक्रीकर सरलीकरण से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 75 प्रतिशत व्यापारी सभी डिस्पोजल से बिक्रीकर के मामले में व्यापारियों से जो टकराव मोल लिया वह जरूरी नहीं क्योंकि व्यापारी उसे उसके चुनाव घोषणा पत्र की स्मृति करा रहे थे तथा पूरे देश में समान बिक्रीकर, उत्पादन के समय ही एकमुश्त बिक्रीकर सहित गल्ले पर 4 प्रतिशत के बजाय एक प्रतिशत टैक्स की बात कर रहे थे। जो नाजायज नहीं है। व्यापारियों का बंद सफल भी रहा। यह भी सत्य है कि इस चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा ने पूर्व के घोषणापत्रों के तर्ज पर बिक्रीकर समाप्त करने की जगह बिक्रीकर सरलीकरण की बात कही थी जिसे उसने किया जरूर लेकिन काफी छोटे अंश में। बिक्रीकर सरलीकरण कमेटी ने 54 वस्तुओं पर बिक्रीकर हटाने की संस्तुति की थी लेकिन सरकार ने मात्र एक दर्जन वस्तुओं पर सरलीकरण किया?
----- की नौबत आये बिना मंदिर बनाना पसंद करेंगे तो यह शुभ संके त नहीं है। राम मंदिर के मुद्दे को भाजपा ने आम चुनावों के साथ-साथ उप चुनावों में भी जिंदा रखा। पर हाल के चुनावों में इस मुद्दे में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकी यद्यपि 11 अक्टूबर को भाजपा ने 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया। विवादित स्थल पर आसपास के मंदिर गिराये गये जिसमें विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ जनसामान्य भड़काने में सफल नहीं हो पाये। राम मंदिर के आन्दोलन की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुंची कल्याण सरकार ने न तो इस दिशा में कोई प्रगति की और न ही पिछले वर्ष अयोध्या में कारसेवा के दौरान हुई हिंसा की जांच का कोई सक्रिय प्रयास किया।
वैसे भी मंदिर निर्माण किसी राजनीतिक पार्टी का लक्ष्य हो ही नहीं सकता। उसका लक्ष्य है सरकार चलाना, लोगों को सुशासन देना और उस प्रदेश, देश के हित में आर्थिक और राजनीतिक नीतियां तैयार करना। कल्याण सिंह सरकार मंदिर निर्माण के लक्ष्य से काफी दूर है जो काम हुए भी हैं उन्हें पर्यटन की आड़ में किया गया है। ऐसा करने के पीछे कौन से कारण हैं? कल्याण सिंह सरकार की मंशा और एक वर्ष पूर्व के उसके राममयी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ हो जाता है।-- जाने कहां सरक गये।
आंकड़ांे के सहारे-प्रदेश की आठवीं पंचवर्षीय योजना में व्यक्ति को विकास का के न्द्र बिन्दु मानकर जो लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं यथा वार्षिक विकास दर 6 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की जनसंख्या 45.3 प्रतिशत से घटाकर योजना के अन्त तक 24.3 प्रतिशत तक लाना, योजना काल में 50 लाख अतिरिक्त रोजगार के अवसर सृजित करना तथा कृषि दर का वार्षिक लक्ष्य 4.3 प्रतिशत रखना आदि। इन सभी लक्ष्यों को कल्याण सिंह के उस वक्तव्य के परिदृश्य में देखें जिससे उन्होंने के न्द्र पर आठवीं योजना हेतु पर्याप्त धन न देने का आरोप लगाया है तो इन लक्ष्यों की प्राप्ति संभव नहीं है क्योंकि कोई भी प्रदेश अपने निजी संसाधनों से इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। अगर कलयाण सिंह की बात मान भी ली जाय तो आंकड़ों के सहारे अपनी उपलब्धियों को दर्शाने वाली बात सिद्ध हो जाती है।
भयमुक्त समाज का दावा-प्रदेश को दंगारहित और भयमुक्त समाज करने का दावा खोखला साबित हो गया। माफिया सरगना की स्थिति को कमजोर करने में भी भाजपा ने पिछली सरकारों जैसी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का -------- सकता है-पत्रकारों को थाने पर नहीं जाना चाहिए।
यानि सरकार अपराध नहीं अपराध की सूचनायें कम करना चाह रही है। थानों पर शिकायत पेटिकाएं कागजी उपलब्धियां हैं। उप महानिरीक्षक के कार्यालय में संगणक लगाने से अपराध कम नहीं होंगे। तराई क्षेत्र में टास्क फोर्स के गठन के बाद भी आतंकवाद अपने क्षेत्र और घटनाओं की पुनरावृत्ति में विस्तार पाता जा रहा है। इतना ही नहीं भाजपा शासन में पुलिसिया आदर्श ‘परित्राणाय साधुनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्’ भी समाप्त हो गया। यहां तक की इसका उल्लेख भी बंद कर दिया।
अनुसूचित जाति/जनजाति के उत्पीड़न के मामले में अधिकारियों को 24 घंटे में घटनास्थल पर पहुंचने के के निर्देश को भी भाजपा अपनी उपलब्धि मान रही है जबकि यातायात के साधन इतने सुगम हैं। फिर इस निर्देश मात्र को उपलब्धि मानना कितना न्यायसंगत है। हरिजन शब्द के प्रयोग पर रोक लगाने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। प्रदेश में आवश्यक वस्तु निगम द्वारा शराब की बिक्री का प्रयोग सरकार की वरीयताओं को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। गांधीवाद और दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मक-मानववाद के दार्शनिक प्रभावों वाली सरकार इसे कई जिलों में आवश्यक वस्तु निगम का कारोबार समेटकर कर रही है। इससे यह अभिप्राय तो जुटाया ही जा सकता है कि गांधी और उपाध्याय के दार्शनिक व नैतिक सिद्धांतों का जो कथित मुल्लमा इस सरकार पर था वह भी गिर गया।
गन्ना भुगतान का यथार्थ-गन्ना और चीनी मिलों पर कथित रूप से दिखावे के लिए चाहे जो कार्यवाही की गयी हो परन्तु गन्ना भुगतान का यथार्थ अभी भी पहले जैसा कड़वा ही है। किसान गन्ना बोने के लिए 25 प्रतिशत पर ऋण लेता है और गन्ना बेचने के बाद पर्ची न भुनने के कारण जीविका चलाने के लिए 25 प्रतिशत कर्ज लेता है। यानि पूरा जीवन कर्ज में रहता है। तभी तो यह उक्ति सत्य लगती है कि भारतीय किसान कर्ज में ही पैदा होता और कर्ज में ही मर जाता है।’ इस तरह किसानों को इस संदर्भ में कोई राहत नहीं मिली।
उद्योगों के नाम पर-प्रदेश में स्वस्थ औद्योगिक वातावरण बनाने एवं उद्योगपतियांे के पलायन को रोकने के लिए एकल स्थल व्यवस्था लागू की गयी। उद्योगों में विद्युत सम्बन्धी मांगों को पूरा करने के लिए कैप्टिव ऊर्जा संयत्र स्थापना की अनुमति दी गयी है---- आयुक्त प्रवासी भारतीय का नया पद सृजित किया गया। नोएडा की भांति गोरखपुर में गीडा एवं सीतापुर में सीडा जैसी कांग्रेसी संकल्पनाओं व योजनाओं को भी अगर भाजपा सरकार अपनी झोली में डाल ले फिर भी उसके सभी प्रयासों के उत्तर में एक भी बड़ा उद्योगपति पूरे प्रदेश में नहीं आया तो क्या कहा जाएगा? आवेदन पत्र चाहे जितने पड़े हों।
औद्योगिक विकास के खाते में कोई उपलब्धि गिनानी हो तो राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा 630 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर 2.38 करोड़ के लाभ की प्राप्ति तथा बुनकरों को बुनकर बहबूदी फंड आदि के माध्यम से हालत सुधारने हेतु सहायता प्रदान करना ही हो सकता है। कृषि क्षेत्र में वारानी खेती हेतु राष्ट्रीय जलागम विकास कार्यक्रम का विस्तार किसानों को नहरों से निःशुल्क सिंचन सुविधा एवं यूरिया उर्वरक के मूल्य में वृद्धि के बाद भी प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को अपनी ओर से प्रति बोरा 9.37 रूपये का अनुदान उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण कार्य है। जगदीशपुर व शाहजहांपुर में क्रमशः 210 एवं 600 मेगावाट क्षमता के गैस आधारित विद्युत गृहों की स्थापना निजी क्षेत्रों में की जाएगी।
बाजार तंत्र पर पकड़-यह सरकार के न्द्र के मूल्य वृद्धि की भले ही आलोचना करती रही है परन्तु अपने यहां इसने मूल्यों को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दूध जैसी आम उपयोग की वस्तु के मूल्यों के प्रति किलो 2.50 रूपये की एक वर्ष में वृद्धि की गयी जो कि गैर सरकारी दुग्ध के मूल्य से काफी ज्यादा है। जबकि सरकारी आंकड़े दुग्ध उत्पादन में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी स्वीकार करते हैं। बिक्रीकर में छूट की घोषणा सरकार ने भले करके उपलब्धि का अहसास किया हो परन्तु इससे रियायतों वाली वस्तुओं के बाजार मूल्य गिरे नहीं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बाजार तंत्र पर सरकार की पकड़ कितनी है।
परिवहन निगम की बसों के किराये में 30 प्रतिशत वृद्धि भी कोई अपना औचित्य नहीं रखती। यातायात में वृद्धि से सभी वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाएंगे क्योंकि इसे अन्तिम विक्रेता लागत में समाहित कर लेता है। परन्तु परिवहन राज्यमंत्री ने इसे पुराने घाटे की भरपाई के लिए आवश्यक मानते हुए यात्रियांे को बेहतर सुविधायें जुटाने के लिए औचित्यपूर्ण स्वीकारा है।
परेशानियांे का दौर-भाजपा आजकल जितनी परेशानी में है उतनी कभी नहीं थी। उनके सामने समस्या यह है कि क्या यह मध्यमार्गी पार्टी की लोकप्रिय छवि के लिए उस सुरक्षा का बलिदान कर दे जो उसे हासिल हुई है जिसे विपक्षी दलों ने ------इसे डुबोने में मदद न करें।
प्रखर राष्ट्रवाद-भाजपा ने स्वयं को हिंदुत्ववादी विचारधारा से जोड़ा है। हिंदुत्ववादी विचारधारा सनातनी है। भाजपा के साथ जुड़ने से इस विचारधारा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इससे जुड़कर भाजपा जरूर मजबूत हुई है, यह विचारधारा नहीं। भाजपा प्रखर राष्ट्रवाद के आदर्शों की भी वाहिका है लेकिन यह प्रखर राष्ट्रवाद एक वर्ग तक ही सीमित है। एक स्थिति के बाद यह नकारात्मक हो जाता है।
भाजपा ने उत्तराखण्ड को पृथक राज्य का दर्जा देने में जो तत्परता बरती है और जो परम्परा डाली है वह लम्बे समय में विघटन की दिशा तय करने लगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा करने के पीछे राष्ट्रवादी भाजपाई मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो उठता है। और इन तंग आर्थिक स्थितियों जहां पदों की कटौती को स्वीकार किया जा रहा हो वहां प्रदेश की मान्यता दोषपूर्ण मानसिकता का संके त देने के लिए पर्याप्त है। तर्क और प्रमाण के आधार पर देखें तो भाजपा ने ऐसा करके के न्द्र के अधिकारों का अतिक्रमण किया है। संविधान में उल्लिखित अपने अधिकारों के दायरे से बाहर चली गयी है।
सत्ता बदली, चरित्र नहीं-नयी राजनैतिक संस्कृति देने का भाजपा का दावा प्रदेश सरकार में पूरा होता नहीं दीख रहा है क्योंकि सत्ता का जो चरित्र रहा है वह पिछली सरकारों जैसा ही है। सत्ता बदली है, सत्ता का चरित्र नहीं क्योंकि भाजपाई मतंत्रीयों ने अपने लिए संसाधन जुटाने की होड़ में इतनी शीघ्रता बरती कि वो एक ही वर्ष में सत्ता के विषयी चरित्र के शिकार हो उठे जबकि पिछली सरकारों के मंत्री अपने पूरे कार्यकाल में होते थे।
वैचारिक आधार पर पलायन-भाजपा आज संसद में 2 से 86 व 86 से 119 भले ही पहुंच गयी है। चार प्रान्तों में उसकी सरकारें भले ही हैं लेकिन जनसंघ के रूप में उसने जो एक वैचारिक आधार प्राप्त किया था उसे वह प्रदेश में खो चुकी है। वैचारिकता ही किसी पार्टी का प्राण है। मुद्दे आते हैं और चुक जाते हैं। मुद्दे भी तभी काम आते हैं जब उन पर विश्वास दिलाने की दलीय स्थिति हो। भाजपा को अपना वैचारिक आधार जुटाना चाहिए। भाजपा में संभावनायें भी हैं और नेतृत्व में शैक्षणिक, वैचारिक मजबूती भी। अटल जैसा उदार व राष्ट्रवादी सोच का हस्ताक्षर भी। वैसे प्रदेश की राजनीतिक भूमि बनाये रखने के लिए कल्याण सिंह को अपने नाम की सार्थकता जुटानी होगी।
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