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20 करोड़ की स्थायी निधि की स्थापना के प्रति आश्वस्त हैं गोस्वामी

Dr. Yogesh mishr
Published on: 23 Nov 1997 7:36 PM IST
नये तंत्र के  प्रति आशान्वित पुराने तंत्र से मुक्ति से प्रसन्न और 20 करोड़ रूपए की स्थायी निधि की मांग के  शीघ्र पूरा होने के  प्रति आश्वस्त हैं हिन्दी संस्थान के  कार्यकारी अध्यक्ष शरण बिहारी गोस्वामी। अपने छह माह के  कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते समय वे जहां पिछले छह माह के  कार्यकाल से निराश थे, वहीं आगामी छह माह की उपलब्धियों के  प्रति उनमें अति उत्साह है। श्री नारायण चतुर्वेदी कम्प्यूटरीकृत सेवा के  शीघ्र शुरू होने, 15 साहित्यिक कार्यक्रमों के  आयोजन प्रयाग के  कुम्भ मेले में संस्थान के  विक्रय के न्द्र खोलने जैसी बातें कहकर गोस्वामी अपने छह माह के  कार्यकाल की उपलब्धियों को रेखांकित करना चाहे रहे थे। उनसे संस्थान के  कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से छह माह पूरे करने के  अवसर पर ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने बातचीत की।
बात शुरू होते ही श्री गोस्वामी ने कहा तंत्र जिसके  साथ, आगे बढ़ना था, जिस ढंग से बढ़ना था, वह मैं नहीं कर बढ़ पा रहा था (वे तंत्र की बात कहकर निदेशक की ओर साफ-साफ संके त कर रहे थे)। अब नया तंत्र है। सम्भावना और आशा है इस तंत्र के  साथ रचनात्मक गति बढ़ेगी। हमारी जानकारी के  बिना जो फिजूल खर्च होता था, वह बंद होगा। पिछले वर्षों विभिन्न मदों में जो फिजूलखर्ची हुई, उसके  कारण संस्थान के  सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। अपनी बात को जोड़ते हुए श्री गोस्वामी ने कहा कि संस्थान की स्वायत्तता को कायम रखने के  लिए मैंने सरकार से 20 करोड़ रूपये की स्थायी निधि की मांग की है। साहित्यिक आयोजनों के  बावत पूछे गये सवाल का जवाब देते हुए श्री गोस्वामी बोले, हमसे पहले के  छह माह के  कार्यकाल में सात समारोह/गोष्ठियां हुई थीं लेकिन हमने 15 कार्यक्रम पूरे प्रदेश भर में किये। श्री नारायण चतुर्वेदी जयंती समारोह जो बंद हो गयी थी, उसे शुरू कराया। श्री नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में आरम्भ किये गये कम्प्यूटर के न्द्र को चलाने की दिशा में सार्थक प्रयास को गिनाते हुए बोले, सरकार से दस लाख रूपये की मांग की है। पत्रकारिता दिवस पर आयोजित संगोष्ठी मगहर में जाकर कबीर जयंती का आयोजन, मुंशी प्रेमचंद जयंती, पंडित परशुराम चतुर्वेदी जयंती, मैथिलीशरण गुप्त जयंती, तुलसी जयंती गोला गोकरन नाथ, लखीमपुर खीरी में आयोजित अनंत राम पुरवार स्मृति समारोह, गणेश शंकर विद्यार्थी के  जन्मदिन पर कानपुर में मनाया गया विराट साहित्यिक पर्व जैसे वार्षिक एवं औपचारिक कार्यक्रम भी कार्यकारी अध्यक्ष की उपलब्धियों का काॅलम भर नहीं सके । हिंदी दिवस पर आयोजित होने वाले सम्मान समारोह को गिनाते हुए कहने लगे, सम्मान समारोह आयोजित होने से पहले हमारे कार्यक्रम की चाहे जितनी आलोचना हुई हो, परंतु बाद में कोई आलोचना का स्वर नहीं उभरा। यह भी उपलब्धि ही है। पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने के  लिए आयोजित किये गये मेले कुम्भ में संस्थान का बिक्री स्टाल लगाने, 21 दिसम्बर को इटावा मे श्री नारायण चतुर्वेदी की प्रतिमा लगाने सहित निराला व पन्त की प्रतिमा स्थापना सहित साहित्यकार कल्याण कोष से दो लाख से अधिक की धनराशि के  वितरण की बात बताते हुए वे गौरवान्वित हो रहे हैं। अपनी स्थायी उपलब्धियों को गिनाने की कोशिश में श्री गोस्वामी जोड़ते गए ब्रजभाषा कोष का चैथा खण्ड शीघ्र आपको मिलेगा, अवधी कोष पर दस सम्पादक कार्य कर रहे हैं। स्वरों पर कार्य हो गया है। व्यंजन पर तेजी से काम जारी है। अतएव पत्रिका को हम नया कलेवर दे रहे हैं। दो लाख रूपये का प्रकाशन अनुदान हमारे कार्यकाल में दिया गया है। भारत में सब्जी, बीज उत्पादन, प्राकृतिक चिकित्सा, बाल दिवस के  गीत, वृहद अवधि लोकोक्ति कोष, कबीर, तुलसी, संत रविदास, पढ़ीस ग्रन्थावली, मराठी साहित्य का इतिहास, धातुआंे का इतिहास, बाल कल्याण कोष में बाल साहित्य की भूमिका, हिन्दी में बाल विज्ञान लेखन, बाल साहित्य की अवधारणा, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, बाल काव्य एक अविराम यात्रा आदि 19 पुस्तकें मुद्रणाधीन हैं। शीघ्र ही बाजार में आ जाएंगी। श्री गोस्वामी विज्ञान एवं विधि विषयों पर संगोष्ठी करके  इन विषयों के  हिंदी लेखन को प्रोत्साहित करने की दिशा में संस्थान की ओर से सार्थक सहयोग करना चाहते हैं। वे कुछ विशिष्ट रचनाकारों को रेखांकित करते हुए उनके  कार्यक्रम की चर्चा में बोले, शिवानी मेरी प्रिय लेखिका रही है। मैं उनकी बहुत इज्जत करता हूं। शीघ्र ही रचनाकार के  आमने-सामने के  एक आयोजन में उन्हें आमन्त्रित करना चाहता हूं। यह भी मेरी एक इच्छा है।
स्वयं को हिंदी और भारतीय के  प्रति समर्पित कहने वाली श्री गोस्वामी चाहें जितनी उपलब्धियों को रेखांकित करें, परन्तु वे संस्थान की समस्याओं से रूबरू होने से आज के  दिन कतराना चाहते थे। तभी उन्होंने अपनी बातचीत में इस बात का उल्लेख नहीं किया कि अप्रैल से अतएव के  लेखकों का भुगतान क्यों नहीं हुआ। साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षा करने वाले समीक्षक आज तक पारिश्रमिक से वंचित हैं। पिछले चार माह से लगभग चार लाख रूपये के  लम्बित भुगतान क्यों नहीं हो पा रहे हैं। कल्याण कोष के  अन्तर्गत चैदह साहित्यकारों को सहायता प्रदान करने का निर्णय लेने के  बाद भी आज तक उन्हें धनराशि उपलब्ध क्यों नहीं करायी गयी? पत्रिका के  प्रकाशन के  मद में चार लाख का अनुदान मिला और नवम्बर माह तक सब अनुदान चुक ही नहीं गया वरन एक लाख की देनदारियां भी बाकी हैं। इसे कैसे निपटायेंगे? संस्थान के  प्लान का बजट जो पचास लाख से घटाकर पच्चीस लाख कर दिया गया था, वह फिर पचास लाख क्यों नहीं हो पा रहा है? उसकी दिशा में क्या प्रयास किये जा रहे हैं। समारोह योजना में प्राप्त अनुदान से संस्थान की ही पत्रिकाएं क्यों खरीदी गयीं?
अपने कार्यकाल में पिछले छह माह को श्री गोस्वामी तंत्र की आड़ में भले ही बचा ले जाएं परन्तु उसके  सामने चुनौतियां काफी हैं और करने के  लिए विस्तृत फलक भी। देखना है यह तंत्र उनकी आगामी सम्भावनाओं को रेखांकित होने में कितनी मदद देता है?
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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