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फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई में ‘यूनिवर्सिटी एक्ट’ अक्षम
प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री के गृह जनपद में ही फर्जी विश्वविद्यालय चल रहा है। पर फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई करने में यूनिवर्सिटी एक्ट पूरी तरह अक्षम है। उच्च शिक्षा विभाग का पूरा का पूरा अमला प्रदेश में चल रहे फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिसिया कानून का मोहताज है। फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग आजकल नयाय विभाग से परामर्श ले रहा है। वैसे उच्च शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि शीघ्र ही इन फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ ड्राइव चलायी जाएगी। उल्लेखनीय है कि फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों के खिलाफ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने यदि कोई कार्रवाई करके मामले को कोर्ट के सुपुर्द किया है तो उसमें संचालकों को मात्र एक हजार रूपये दण्ड अदा करने के बाद मुक्ति मिल गयी।
फर्जी डिग्रियां बांटने वाली संस्थाओं के खिलाफ तमाम शिकायतों के बाद भी राज्य सरकार कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रही है जबकि देश में लगभग एक लाख ऐसे लोग हैं जो इन फर्जी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों के सहारे नौकरी तक पहुंच गये हैं या नौकरी की तलाश में हैं। उल्लेखनीय है कि फर्जी विश्वविद्यालय चलाने में उच्च शिक्षा विभाग के दोनों मंत्रियों का गृह जनपद भी पीछे नहीं है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश को फर्जी विश्वविद्यालय चलाने में सर्वोच्चता हासिल है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उपलब्ध सूची के अनुसार देश भर में करीब तीस फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में हैं। प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग फर्जी विश्वविद्यालयों की संख्या दस बताता है, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्री ने लोकसभा में फर्जी विश्वविद्यालयों पर अपनी चिंता जताते हुए प्रदेश में बारह फर्जी विश्वविद्यालयों का उल्लेख किया था।
उत्तर प्रदेश में वाराणसी संस्कृृत विश्वविद्यालय, बनारस, भारतीय उत्तर प्रदेश शिक्षा परिषद, लखनऊ, गांधी हिन्दी विद्यापीठ, प्रयाग, राष्ट्रीय इलेक्ट्रो होम्योपैथिक विश्वविद्यालय, कानपुर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विश्वविद्यालय-अलीगढ़, श्रीमती महादेवी वर्मा मुक्त विश्वविद्यालय-मुगलसराय, भारतीय शिक्षा परिषद, उ0प्र0 मुक्त विश्वविद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय कोसीकलां-मथुरा, महाराणा प्रताप शिक्षा निके तन विश्वविद्यालय-प्रतापगढ़, गुरूकुल विश्वविद्यालय-वृन्दावन, अनुपम विश्वविद्यालय-शामली, संत रविदास विश्वविद्यालय-ममरेजपुर-बुलंदशहर चिन्हित फर्जी विश्वविद्यालय हैं।
1987 में लोकसभा की याचिका समिति ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानों में सुधार करके फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालन को संज्ञेय अपराध घोषित करने की सलाह दी थी। 17 फरवरी’89 को मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से भेजे गये पत्र संख्या-एफ-9-8/88 के माध्यम से राज्यों के मुख्य सचिवों को स्वयंभू विश्वविद्यालयों से आगाह करते हुए कड़ाई से पेश आने की सलाह दी गयी थी, परन्तु राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में हुई कार्रवाई का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा। एक जून 91 को मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री ने राज्यसभा में मैथिली विश्वविद्यालय को मान्यता देने के सवाल पर चर्चा के समय उत्तर प्रदेश में फर्जी विश्वविद्यालयों की संख्या दस बतायी थी वह आज बढ़कर बारह हो गयी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जब प्रदेश सरकार को फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कड़ाई से पेश आने को कहा तो 92-93 में प्रदेश सरकार ने विज्ञापन देकर बड़े पैमाने पर इन संस्थाओं के बारे में छात्रों को जानकारी देते हुए कानूनी पहलुओं की खासी चर्चा की थी, लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा विज्ञापन के अलावा कोई ठोस सार्थक कार्रवाई नहीं की गयी।
प्रदेश में बढ़ रहे फर्जी विश्वविद्यालयों के बारे में जब उच्च शिक्षा मंत्री नरेन्द्र कुमार सिंह गौर से बातचीत की गयी तो उन्होंने बताया, ‘हमने कार्रवाई के आदेश दे दिये हैं। पहले जब मैं मंत्री था तब भी मैंने इन फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की थी। वैसे इसके लिए पुलिस द्वारा आईपीसी के तहत ठोस कार्रवाई कराने की दिशा में काम हो रहा है।’ उच्च शिक्षा सचिव अतुल चतुर्वेदी ने प्रदेश के फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई करने के सवाल पर कहा, ‘हम न्याय विभाग से परामर्श ले रहे हैं। यूनिवर्सिटी एक्ट में तो बहुत कुछ संभव नहीं है। इस एक्ट में एक्शन नहीं लिया जा सकता। यह तो उच्च शिक्षा को संचालित करने के लिए बनाया गया है। वैसे देखा जाये तो फर्जी डिग्रियां देना फ्राॅड है। इसलिए आईपीसी के तहत कार्रवाई की जाएगी। यह पूछे जाने पर कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या मानव संसाधन मंत्रालय से आपको इस संदर्भ में कोई निर्देश प्राप्त हुआ है, श्री चतुर्वेदी ने कहा, ‘मैंने तो आपके यहां भी छपी खबर के आधार पर इनीसिएट किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से आपके यहां जो सूची छपी थी उसे भेजकर मैंने पुष्ट कराया वह सूची सही निकली। मुझे अध्यापक संघ, छात्र संघों एवं कई राजनीतिज्ञों के पत्र जरूर प्राप्त हुए परन्तु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग व मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कोई भी निर्देश नहीं मिला है। मैंने स्वयं आयोग को लिखा है। शीघ्र ही ड्राइव चलाया जाएगा। न्याय मंत्रालय से राय लेने की बात भी कही गयी है पर मुझे लगता है कि जब प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल ही नहीं है तो फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई में कोई विधिक अड़चन नहीं हो सकती। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री राके श धर त्रिपाठी इस सवाल पर बेहद तल्ख थे और बोले, ‘ऐसे लोगों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों के खिलाफ सीधी और फौरी कार्रवाई जरूरी है।’
फर्जी विश्वविद्यालय की बढ़ती संख्या से चिन्तित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर जी.राम रेड्डी की पहल पर फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों के खिलाफ छः माह की कड़ी कैद और एक लाख रूपये के जुर्माने की सजा का मसौदा तैयार किया था, परन्तु इस पर भी कोई खास अमल नहीं हो पाया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के तहत वही विश्वविद्यालय डिग्रियां देने के हकदार हैं जो संसद/राज्य विधानसभा अधिनियम के तहत स्थापित किये गये हों या उन्हें सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया हो। आयोग ने फर्जी डिग्रियां बांटने वाले इन संस्थानों के संचालकों के खिलाफ न्यायालय में जब भी मुकदमा दायर किया तो संचालक को मात्र एक हजार रूपये देकर छुट्टी मिल गयी।
फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा, ‘राजस्थान सरकार ने वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय को मान्यता दे दी है, यह फर्जी विश्वविद्यालय की सूची में था। मैथिली विश्वविद्यालय को मान्यता देने के लिए लोकसभा में बहस चल सकती है तो लेटलतीफ हम भी जब मनी पावर और पाॅलिटिकल पावर से लैसे हो जाएंगे तो हमें भी मान्यता मिल ही जाएगी।
फर्जी डिग्रियां बांटने वाली संस्थाओं के खिलाफ तमाम शिकायतों के बाद भी राज्य सरकार कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रही है जबकि देश में लगभग एक लाख ऐसे लोग हैं जो इन फर्जी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों के सहारे नौकरी तक पहुंच गये हैं या नौकरी की तलाश में हैं। उल्लेखनीय है कि फर्जी विश्वविद्यालय चलाने में उच्च शिक्षा विभाग के दोनों मंत्रियों का गृह जनपद भी पीछे नहीं है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश को फर्जी विश्वविद्यालय चलाने में सर्वोच्चता हासिल है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उपलब्ध सूची के अनुसार देश भर में करीब तीस फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में हैं। प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग फर्जी विश्वविद्यालयों की संख्या दस बताता है, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्री ने लोकसभा में फर्जी विश्वविद्यालयों पर अपनी चिंता जताते हुए प्रदेश में बारह फर्जी विश्वविद्यालयों का उल्लेख किया था।
उत्तर प्रदेश में वाराणसी संस्कृृत विश्वविद्यालय, बनारस, भारतीय उत्तर प्रदेश शिक्षा परिषद, लखनऊ, गांधी हिन्दी विद्यापीठ, प्रयाग, राष्ट्रीय इलेक्ट्रो होम्योपैथिक विश्वविद्यालय, कानपुर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विश्वविद्यालय-अलीगढ़, श्रीमती महादेवी वर्मा मुक्त विश्वविद्यालय-मुगलसराय, भारतीय शिक्षा परिषद, उ0प्र0 मुक्त विश्वविद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय कोसीकलां-मथुरा, महाराणा प्रताप शिक्षा निके तन विश्वविद्यालय-प्रतापगढ़, गुरूकुल विश्वविद्यालय-वृन्दावन, अनुपम विश्वविद्यालय-शामली, संत रविदास विश्वविद्यालय-ममरेजपुर-बुलंदशहर चिन्हित फर्जी विश्वविद्यालय हैं।
1987 में लोकसभा की याचिका समिति ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानों में सुधार करके फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालन को संज्ञेय अपराध घोषित करने की सलाह दी थी। 17 फरवरी’89 को मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से भेजे गये पत्र संख्या-एफ-9-8/88 के माध्यम से राज्यों के मुख्य सचिवों को स्वयंभू विश्वविद्यालयों से आगाह करते हुए कड़ाई से पेश आने की सलाह दी गयी थी, परन्तु राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में हुई कार्रवाई का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा। एक जून 91 को मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री ने राज्यसभा में मैथिली विश्वविद्यालय को मान्यता देने के सवाल पर चर्चा के समय उत्तर प्रदेश में फर्जी विश्वविद्यालयों की संख्या दस बतायी थी वह आज बढ़कर बारह हो गयी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जब प्रदेश सरकार को फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कड़ाई से पेश आने को कहा तो 92-93 में प्रदेश सरकार ने विज्ञापन देकर बड़े पैमाने पर इन संस्थाओं के बारे में छात्रों को जानकारी देते हुए कानूनी पहलुओं की खासी चर्चा की थी, लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा विज्ञापन के अलावा कोई ठोस सार्थक कार्रवाई नहीं की गयी।
प्रदेश में बढ़ रहे फर्जी विश्वविद्यालयों के बारे में जब उच्च शिक्षा मंत्री नरेन्द्र कुमार सिंह गौर से बातचीत की गयी तो उन्होंने बताया, ‘हमने कार्रवाई के आदेश दे दिये हैं। पहले जब मैं मंत्री था तब भी मैंने इन फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की थी। वैसे इसके लिए पुलिस द्वारा आईपीसी के तहत ठोस कार्रवाई कराने की दिशा में काम हो रहा है।’ उच्च शिक्षा सचिव अतुल चतुर्वेदी ने प्रदेश के फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई करने के सवाल पर कहा, ‘हम न्याय विभाग से परामर्श ले रहे हैं। यूनिवर्सिटी एक्ट में तो बहुत कुछ संभव नहीं है। इस एक्ट में एक्शन नहीं लिया जा सकता। यह तो उच्च शिक्षा को संचालित करने के लिए बनाया गया है। वैसे देखा जाये तो फर्जी डिग्रियां देना फ्राॅड है। इसलिए आईपीसी के तहत कार्रवाई की जाएगी। यह पूछे जाने पर कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या मानव संसाधन मंत्रालय से आपको इस संदर्भ में कोई निर्देश प्राप्त हुआ है, श्री चतुर्वेदी ने कहा, ‘मैंने तो आपके यहां भी छपी खबर के आधार पर इनीसिएट किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से आपके यहां जो सूची छपी थी उसे भेजकर मैंने पुष्ट कराया वह सूची सही निकली। मुझे अध्यापक संघ, छात्र संघों एवं कई राजनीतिज्ञों के पत्र जरूर प्राप्त हुए परन्तु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग व मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कोई भी निर्देश नहीं मिला है। मैंने स्वयं आयोग को लिखा है। शीघ्र ही ड्राइव चलाया जाएगा। न्याय मंत्रालय से राय लेने की बात भी कही गयी है पर मुझे लगता है कि जब प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल ही नहीं है तो फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई में कोई विधिक अड़चन नहीं हो सकती। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री राके श धर त्रिपाठी इस सवाल पर बेहद तल्ख थे और बोले, ‘ऐसे लोगों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों के खिलाफ सीधी और फौरी कार्रवाई जरूरी है।’
फर्जी विश्वविद्यालय की बढ़ती संख्या से चिन्तित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर जी.राम रेड्डी की पहल पर फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों के खिलाफ छः माह की कड़ी कैद और एक लाख रूपये के जुर्माने की सजा का मसौदा तैयार किया था, परन्तु इस पर भी कोई खास अमल नहीं हो पाया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के तहत वही विश्वविद्यालय डिग्रियां देने के हकदार हैं जो संसद/राज्य विधानसभा अधिनियम के तहत स्थापित किये गये हों या उन्हें सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया हो। आयोग ने फर्जी डिग्रियां बांटने वाले इन संस्थानों के संचालकों के खिलाफ न्यायालय में जब भी मुकदमा दायर किया तो संचालक को मात्र एक हजार रूपये देकर छुट्टी मिल गयी।
फर्जी विश्वविद्यालयों के संचालकों से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा, ‘राजस्थान सरकार ने वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय को मान्यता दे दी है, यह फर्जी विश्वविद्यालय की सूची में था। मैथिली विश्वविद्यालय को मान्यता देने के लिए लोकसभा में बहस चल सकती है तो लेटलतीफ हम भी जब मनी पावर और पाॅलिटिकल पावर से लैसे हो जाएंगे तो हमें भी मान्यता मिल ही जाएगी।
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