×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

मूल्यों के प्रति जागरूक रहे गुलजारी लाल नंदा

Dr. Yogesh mishr
Published on: 19 Jan 1998 10:02 PM IST
आज देश में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो सिद्धांतों और मूल्यों की बात करने के  साथ-साथ उन्हें जीते भी हों। और वे कोई समझौता न करते हों। राजनेताओं पर नजर डालें तो ऐसे व्यक्तित्व का मिलना दिवास्वप्न लगता है। जुझारू, श्रमिक, राजनीति से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले देश के  दो बार अन्तरिम प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा का प्रयाण कर जाना एक ऐसे राजनीतिक युग का अंत है, जिसमंे सत्य के  संकल्प जनतंत्र के  प्रति आस्था और ठोस राजनीतिक मूल्यों की स्थापना की अटूट अभिलाषा थी। एक ऐसे काल विशेष में गुलजारी लाल नंदा संसार से अलविदा हुए। जब वे भ्रष्टाचार से लड़ने के  कुछेक शेष प्रतीकों में रह गये थे।
गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित मजदूर आंदोलन के  शिल्पी नंदा 1922 से 1946 तक अहमदाबाद कपड़ा मजदूर संघ के  सचिव रहे। गुलजारी लाल नंदा ने इंदौर में मिल मजदूरों को संगठित कर बोनस के  सवाल पर मजदूरों की बड़ी जमात खड़ी की। आज भी एक मात्र मजदूर बस्ती नंदा नगर उनकी श्रमिक सेवाओं की स्मारक है। आजादी के  बाद भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले गुलजारी लाल नंदा ने कई बार विदेशों मंे भी भारतीय मजदूर आंदोलन का प्रतिनिधित्व किया। 1947 में सम्पन्न हुए अन्तराषर््ट्रीय श्रम सम्मेलन में भारत से शरीक होने वाले लोगों में से एक थे। उन्होंने स्वीडन, बेल्जियम, फ्रांस, इंग्लैण्ड और स्विट्जरलैण्ड की यात्राएं श्रमिक समस्याओं व आंदोलनों के  संदर्भ में करते हुए भी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। 1932 और 1942 के  आंदोलनांे में वे कई बार जेल गये। वे अहमदाबाद म्युनिसिपल बोर्ड की स्थायी समिति के  सदस्य रहे और पहली बार 1937 में बी.जे. खेर के  बम्बई मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव बनाये गये। 46 में वे बम्बई के  श्रम और आवास मंत्री बने। 52 में भारत सरकार के  योजना सिंचाई और विद्युत मंत्री रहते हुए उन्होंने भांखड़ा नांगल और हीराकुण्ड जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित कीं। 1957 में योजना, श्रम और नियोजन मंत्री के  महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए 66 तक वे लगातार के न्द्रीय मंत्रिमण्डल में सक्रिय सदस्य बने रहे। जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के  निधन के  बाद दो बार अन्तरिम प्रधानमंत्री भी रहे।
गो हत्या विरोधी आंदोलन के  दौरान पुलिस फायरिंग के  फलस्वरूप स्वेच्छा से गृहमंत्री पद छोड़ दिया।
वे रेलमंत्री भी रहे। रेलयात्रियों और कर्मचारियों की समस्याओं से सीधे तौर पर जुड़ने और उसे ठीक-ठीक ढंग से महसूस करने के  लिए उन्होंने कई बार प्रोटोकाल को धता बताते हुए तीसरे दर्जे के  रेल डिब्बों में यात्राएं कीं। 4 जुलाई 1898 में पंजाब के  सियालकोट जिले (अब पाकिस्तान) में जन्में गुलजारी लाल नंदा महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये ब्रिटिश शासन के  खिलाफ असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़ने के  लिए महात्मा गांधी का आशीर्वाद प्राप्त करने साबरमती आश्रम जा पहुंचे। यहीं उन्हें गांधीवाद की दीक्षा प्राप्त हुई। गांधीवाद की दीक्षा प्राप्त करने के  बाद उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया।
पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. शंकरदयाल शर्मा ने अपने कार्यकाल के  समापन दिवस के  रोज इस गांधीवादी नेता को भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया था। देर आयद दुरूस्त आयद करने वाली कहावत को चरितार्थ करता हुआ यह अलंकरण आजादी की स्वर्ण जयंती के  ठीक पहले हमारे राजनीति में बढ़ रही अस्थिरता, असमंजस के  सामने कई सवाल खड़े करता है। जिन चीजों पर हमें कभी गर्व था या होना चाहिए था, वे हमसे दूर हो रही हैं
यह हमारे सामाजिक विस्मृति का ही लक्षण है कि आजादी के  अर्धशती पूरी होने के  आसपास हम गुलजारी लाल नंदा और उनकी सेवाओं का मूल्यांकन करने की सुधि में बैठें।
भारत सेवक समाज व भारत साधु समाज जैसी संस्थाओं की स्थापना करके  समतावादी समाज कायम करने की दिशा मंे अनथक प्रयास करने वाले गुलजारी लाल नंदा को कुरुक्षेत्र के  कायाकल्प का भी श्रेय जाता है। 1971 मंे मानव धर्म मिशन की स्थापना के  साथ ही उन्हांेने सदाचार समिति नवजीवन संघ, भारतीय संस्कृृति, रक्षा संस्था, पीपुल्स फोरम आॅफ इण्डिया और नेशनल फोरम फार पीस सिक्योरिटी एण्ड जस्टिस की भी स्थापना की।
उन्हांेने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक तथा एलएल.बी. की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थीं। प्रकारान्तर वे बम्बई नेशनल काॅलेज में अर्थशास्त्र के  अध्यापक बन गये। 1969 में कांग्रेस के  विभाजन के  साथ ही उन्होंने अपने को एस. निजलिंगप्पा के  सिंडिके ट के  अलग करके  कांग्रेस की करिश्माई नेता इन्दिरा गांधी के  साथ रहना स्वीकार किया लेकिन श्रीमती गांधी के  नेतृत्व वाली कांग्रेस के  प्रबल बहुमत से सत्ता में आने के  बाद उन्होंने अपने को स्वेच्छा से राजनीति से अलग कर लिया।
वे बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियांे में स्वयं को सहज महसूस नहीं कर पा रहे थे। दलालों को झेल रही समकालीन राजनीति किन प्रवृत्तियों और प्रभावों की गिरफ्त में हो गयी है, यह सवाल उन्हें लगातार सालता रहता था। अपनी विरासत के  प्रति वे बेहद संवेदनशील थे और वर्तमान के  प्रति उनका संवाद एक मिशन के  रूप में छीजती जिंदगी और मूल्यों से कटते जा रहे समाज से कट सा गया था।
वे यह महसूस करने लगे थे कि दुर्भाग्य से राजनीति का सामाजिक दायित्व पूंजी के  चरित्र के  आगे घुटने टेक चुका है और इस दायित्व विहीनता को छिपाये रखने के  लिए अब राजनीति में नए स्वरूप और मुहावरे गढ़े जा रहे हैं, कहीं न कहीं उनके  मन में यह अहसास था कि देश की गरीबी के  समुद्र में आज की राजनीति सम्पन्नता के  उस द्वीप का हिस्सा है, जो बाकी देश के  शोषण पर टिका हुआ है, वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शिकायत करना नहीं चाहते थे, लगता था कि वे स्वीकार कर चुके  हैं समय असीम होता है। उस पर आपका काबू नहीं पा सकते। उसे जीना पड़ता है। आप समाज को अपने अनुसार नहीं ढाल सकते। यथार्थ के  कलात्मक प्रत्याभिज्ञान और अन्य किस्म के  प्रतिभिज्ञानाओं में सूक्ष्म सम्बद्धताएं होने के  बावजूद बुनियादी और गुणात्मक अंतर होता है। अनुभवावाद और विचारधारा की जायज दार्शनिक बहस को भी उन्होंने शुरू करना बेहतर नहीं समझा। सादगी, सख्ती और विशुद्धावाद के  प्रतीक माने जाने वाले गुलजारी लाल नंदा को बहस को अनुभव बनाम विचारधारा का विकृत रूप देकर अपने अनुभवांे और कुछ स्थूल जड़ीभूत धारणाओं को विचारधारा कहकर थोपने के  पक्षधर नहीं थे। यह सच है कि उनके  जीवन में कथनी और करनी में बेहद महीन अंतर भी एकदम मिट से गये थे। उनकी विचारधारा कुछ आरम्भिक विचार बिन्दुओं और अनुभवों की द्वंदात्मकता पर निरंतर और निःसंकोच स्वयं को ही संशोधित और संवर्द्धित करते हुए एक दशक पूरा कर गयी। सरल रेखीय वैचारिकी आज जब माधवी पूरे आत्म तोष का वाहक और प्रतीक बनकर एक शताब्दी पूरी कर लेने और उदासीन असंतोष के  बाद भी जय घोष करना एक महान कार्य है, जिसे सफलतापूर्वक पूरा करने के  लिए ही गुलजारी लाल नंदा याद किये जायेंगे। पिछले कुछ दशकों में जितने मूलगामी और त्वरित परिवर्तन का शिकार हमारा समाज हुआ है, उतने ही इसके  प्रत्याभिज्ञान के  विभिन्न अनुशासनों में नई विचारधारा मूल्य दृष्टियां और स्वहित पोषी तर्कों का प्रतिपादन हुआ है।
गुलजारी लाल नंदा ने अपने जीवन के  उत्पीड़न, उपेक्षित साधारणजनांे के  स्वतः स्फूर्त और लोकमानस की भावनाओं, विद्रोहों का सूक्ष्म आख्यान लिखा है। वे देश के  एकमात्र ऐसे राजनीतिक थे, जिन्होंने सरकार में रहकर भ्रष्टाचार के  खिलाफ मोर्चा खोला था। उनका मानना था कि अगर गांधी जी के  दिखाए रास्ते पर देश को चलाया गया तो आज की विषम स्थितियां पैदा नहीं हो पातीं। समआस्पेक्ट्स आॅफ खादी नामक अपनी पुस्तक में उन्होंने गांधी के  कई सिद्धांतों की चिर प्रासंगिकता को स्थापित भी किया है।
लोगों को जोड़ने और उन्हें आंदोलित करने की उनकी प्रबल इच्छा रहती थी, लेकिन उम्र और स्वास्थ्य से साथ छोड़ दिया था। वे मानते थे कि मनुष्य के  लिए धर्म जितना आवश्यक है उतना ही जरूरी है राष्ट्र। राष्ट्रहित के  खिलाफ बोलने वालों से लोहा लेने के  लिए वे युवकों को प्रेरित तो करते ही थे, स्वयं भी तैयार रहते थे। गुलजारी लाल नंदा दिल्ली की बसों में यात्रा करते हुए लोगों को कई बार मिले थे। वे चाहते थे देश का नौजवान नम्र हो, देश और समाज की परम्परा से परे किसी चीज को मंजूर न करें। अपना लक्ष्य ऊंचा रखते हुए देश की सेवा करें। सरकार ने उन्हें भारत रत्न प्रदान करके  अपने कर्तव्यों की इतिश्री भले ही मान लिया हो, लेकिन उनके  प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि देश का नौजवान राजनीति और समाज के  प्रति पारदर्शी, इमानदारी कायम रखते हुए देश और समाज की परम्परा से परे किसी चीज को मंजूर न करे।


\
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

Next Story