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हरिशंकर ने त्रिनिदाद में भी भारतीय संस्कृति को जीवन्त रखा

Dr. Yogesh mishr
Published on: 24 March 1998 10:18 PM IST
’कविता ही मेरा जीवन/मेरा जीवन ही कविता/मैं परिभाषा कविता की/मेरी परिभाषा कविता’ कहकर अपना परिचय जताने वाले हरिशंकर ‘आदेश’ ने त्रिनिदाद में रहकर भी महाकवि की परम्परा को जीवित रखा है। त्रिनिदाद को संगीत के  सात सुरों सा..रे..गा..मा.. से परिचय कराने और अक्षर ज्ञान से लेकर बी.ए. तक की कक्षाओं में चलने वाली हिन्दी की पुस्तकें तो दी हीं, त्रिनिदाद के  राष्ट्रगीत का हिन्दी में अनुवाद भी किया है। अंग्रेजी में हिन्दी पढ़ाने का फन विकसित कर लगभग सत्तर पुस्तकों सहित अड़सठ वोकल कैसेट देने वाले श्री आदेश साहित्य, खासकर हिन्दी साहित्य के  साथ-साथ संगीत के  क्षेत्र में भी खासी दखल रखते हैं। गिटार, तबला, वायलिन, जलतरंग, संतूर पर प्रवीणता और कौशल उनका हुनर है। अपनी प्रिय पुस्तक ‘शकुंतला’ के  साथ वे आजकल भारत में है। हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदान किये जाने वाले प्रवासी भारतीय हिन्दी भूषण सम्मान इन्हें आज प्रदान किया गया।
प्रयाग संगीत समिति और भातखण्डे के  आधार पर संगीत का पाठ्यक्रम तेयार करके  हिन्दी के  साथ-साथ संगीत की दीक्षा देने वाले श्री आदेश का मानना है कि भारत की संस्कृति को त्रिनिदाद में जीवित और जीवन्त बनाये रखने में रामचरित मानस की खासी भूमिका है। अपने महाकाव्य ‘शकुंतला’ को अपनी उपलब्धि बताते हुए वे कहते हैं... अनुराग पर आधारित शकुंतला और दुष्यंत के  प्रचलित कथा को मैंने अपने महाकाव्य का विषय बनाया है। खड़ी बोली का पहला महाकाव्य अनुराग भी मैंने ही लिखा है। शकुंतला दूसरा महाकाव्य है। मानवतावादी विचारधारा पर आधारित इस महाकाव्य में महज प्रणय कथा ही नहीं है वरन् ग्लोबल विलेज की परिकलपना को भी खास तौर पर रेखांकित किया गया है।’
‘अहिंसा (अन्तरराष्ट्रीय हिन्दू समाज) के  माध्यम से काम करने वाले श्री आदेश ने कनाडा में हिन्दी नागरी प्रचारणी सभा की शाखा खोलने का भी साहसिक कार्य किया है। नागरी प्रचारणी सभा, काशी द्वारा तैयार किये जा रहे ‘हिन्दी साहित्य का वृहद इतिहास’ के  प्रवासी खण्ड के  श्री आदेश सम्पादक भी हैं। इसमें इन्हें भारतेत्तर साहित्यकारों का इतिहास लिखना है। बातचीत में वे बताते हैं, ‘प्रवासी भारतीयों की पीड़ा हर्ष और विषाद को विषय बनाकर मैंने स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती के  अवसर पर पचास रचनाओं की एक पुस्तक ‘प्रवासी की पाती’ लिखी है। चाहती हूं उसका विमोचन अटल बिहारी वाजपेयी करें।’ अपनी बात को जोड़ते हुए वे खुद कहते जाते हैं यह पुस्तक मैंने अटल जी को समर्पित की है इसलिए चाहता हूं।
नवम्बर, 1966 में भारत सरकार द्वारा हिन्दी के  प्रचार-प्रसार के  लिए कश्मीर से त्रिनिदाद भेजे गये श्री आदेश ने वहां भारतीय हाई कमीशन में दस वर्ष तक काम किया। वे बताते हैं कि मेरा ‘एक्सटेंशन पब्लिक डिमाण्ड’ पर कई बार करना पड़ा। वैसे तो ‘टेन्योर’ तीन साल का ही होता है। मेरा क्या ‘हजरते दाग जहां बैठ गये’ की तर्ज पर मैं वहीं बैठ गया हूं। उन्होंने त्रिनिदाद में भारतीय विद्या संस्थान की स्थापना पहुंचने के  साथ ही तीस छात्रों को लेकर की थी। आज उसके  विभिन्न जगहों पर 32 के न्द्र हैं। वे हिन्दी साहित्य की ‘ज्योति’ पत्रिका भी निकालते हैं जिसकी शुरूआत उन्होंने साइक्लोस्टाइल कापी से की थी।
हिन्दी की प्रचार-प्रसार कथा बताते हुए वे कहते हैं, ‘जब मैं गया तो वहां कोई हिन्दी पढ़ना नहीं चाहता था, मैंने अपनी कक्षाओं में कहा कि संगीत सिखाऊंगा’। त्रिनिदाद का सात सुरों से परिचय कराया। संगीत उन्हीं को सिखाया जिन्होंने हिन्दी को अनिवार्य विषय के  रूप में अंगीकार किया था। मेरे इस ‘आइडिया’ का परिणाम यह निकला कि लोग बड़े मनोयाग से हिन्दी सीखने लगे।
संगीत का पाठ्यक्रम भारतखण्डे और प्रयाग संगीत समिति के  पाठ्यक्रम के  आधार पर बनाया। और संगीत में बेचर डिग्री संगीत कला निधि दी जाने लगी। भारत और त्रिनिदाद के  संगीत में जो खास अन्तर तैयार किया गया उसमें रेखांकित करने लायक यही है कि भारत में शास्त्रीय संगीत को खासी तरजीह दी जाती है परन्तु वहां के  पाठ्यक्रम में सेमी क्लासिकल और लाइट म्युजिक को प्रमुखता मिली।
यह पूछने पर कि वहां हिन्दी का पाठ्यक्रम क्या और कैसा है। वे बोले, ‘महादेवी वर्मा और हरिवंश राय ‘बच्चन’ की कविताएं पढ़ाते हैं हम। प्रेमचंद की कहानियां, तुलसीदास की कवितावाली वहां के  पाठ्यक्रम में है। एक बात और है वहां जो भी रामायण पढ़ सकता है, उसका समाज में सम्मान होता है। इसलिए भी हिन्दी पढ़ने में लोगों की रूचि बढ़ी।’ श्री आदेश बताते हैं, ‘वहां हिन्दू, मुसलमान और ईसाइयों में इतनी एकता है कि यहां बैठा आम आदमी उसकी कल्पना नहीं कर सकता। कोई मनोमालिन्य भी नहीं है। मैंने तो मुसलमानों को उर्दू भी पढ़ायी है। नयी पीढ़ी में हिन्दी सीखने की खासी ललक है। भोजपुरी भी काफी लोग बोलते हैं।’
श्री आदेश वहां मिनिस्टर आॅफ रिलीजन भी हैं।
Dr. Yogesh mishr

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