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खरा उतरने का कीर्तिमान

Dr. Yogesh mishr
Published on: 18 April 1998 2:55 PM IST
सरकार की नियति ही होती है उपलब्धियों के  नित नये धरातल तैयार करना और अनुपलब्धियों की शिकायत से रूबरू होना। ये उपलब्धियां और अनुपलब्धियां लोकतंत्र के  आकार के  हिसाब से घटती-बढ़ती रहती हैं, जिसे बताने और जताने के  लिए सरकार के  होते हैं। एक सप्ताह, दो सप्ताह, छह माह, सौ दिन, दो सौ दिन, एक वर्ष, दो वर्ष......पांच वर्ष। समय का यह कालखण्ड जहां विश्लेषण का अवसर प्रदान करता है वहीं वह सरकार को सामने मुंह बायी खड़ी चुनौतियांे से रूबरू होने का मौका भी उपलब्ध कराता है। लोकतंत्र की महत्वपूर्ण कुर्सियों पर बैठे राजनेताओं की कठिन परीक्षा गाहे-बगाहे जहां विपक्ष करता रहता है। वहीं र्पाअी के  अंदर भी जाने-अनजाने कार्यविधियों पर शिकवे-शिकायत जारी रहते हैं। जनता भी लोकतंत्र की सजग प्रहरी होने के  नाते इसमें बराबर से भागीदार रहती है। इन सभी स्थितियों में कठिनतर क्षणों में अग्नि परीक्षा पास करना राजनेता के  सामने चुनौती होती है। इन अग्नि परीक्षा में वही राजनेता जन विश्वास अर्जित कर पाता है, जिसमे अविचलित होने की दक्षता होती है। पिछले तमाम हालातों में अनिश्चितताओं में और राजनैतिक झंझावतों के  परिदृश्य में उभरे कल्याण सिंह निरंतर अग्नि परीक्षा में खरे उतरने के  कीर्तिमान बना रहे हैं।
प्रशासनिक मामलों में गहराई तक समझ पाने की सूझबूझ त्वरित निर्णय की क्षमता, विचार शक्ति और जनसमस्याओं का अद्यतन जानकारी उनकी पूंजी है। अध्यापन से जीवन शुरू करने वाले श्री सिंह राजनीति में हमेशा छात्र बने रहना चाहते हैं। उदारता और सहिष्णुता के  चलते अपनी आलोचनाओं को सहने की शक्ति विकसित कर तकरार की जगह सहकार, उन्माद की जगह उत्थान, तनाव की जगह समरसता को अपने जीवन का उन्होंने मूल मंत्र बनाया। अव्यवस्था में जीने के  आदी लोगों के  सामने उनकी व्यवस्थावादिता भले संकट खड़ा करती हो लेकिन उन्होंने अपनी इसी आदत के  चलते नीति नियोजन बनाने के  साथ ही उसको हकीकत पर उतारने की दिशा में भी सार्थक उपलब्धि हासिल की है। विकास को उन्होंने कागजों और फाइलों से निकालकर धरती पर खड़ा कर दिया। जंगलराज में खड़े हो गये माफिया अपराधी राजनीतिक संरक्षण पाने वाले सफेदपोश असामाजिक तत्व इन सभी पर अंकुश लगाने के  लिए तीव्र राजनीतिक इच्छाशक्ति निष्ठावान प्रशासन तंत्र के  साथ ही प्रतिपक्ष के  रचनात्मक सहयोग की राजनीति को विकसित करके  उन्होंने भयमुक्त समाज, सहयोग के  स्वर की दिशा में एक ऐसी त्रिआयामी व्यवस्था बनायी, जिसमें अनुशासन है। परिणाम है और तालमेल है। उनका मानना है कि कठोर वित्तीय अनुशासन के  बावजूद वित्तीय स्वीकृतियां समय पर जारी हों और जितनी राशि जिस कार्य के  लिए स्वीकृत हो उसका उसी मे ंसमय पर सदुपयोग हो, जो लोक को प्रभावी बनाने के  लिए जरूरी है।
व्यवस्था के  सभी मोर्चों पर अपना ध्यान के न्द्रित करते हुए कानून व्यवस्था बनाये रखने के  लिए उन्होंने जहां चुस्त, दुरूस्त निष्ठावान प्रशासन तंत्र को तरजीह दी, वहीं समय की पाबंदी को भी हाथ से सरकने नहीं दिया और यह सुनिश्चित किया कि जो कुछ घटित हो रहा है, वह सभी पर उद्घटित हो। पारदर्शी हो। लोकतंत्र में यदि तंत्र लोक पर हावी हो गया तो लोकतंत्र कलुषित हो जाता है। इसलिए लोक को सर्वोपरि समझ कर ही दायित्व का निर्वाह होना चाहिए। समाज के  सभी वर्गों में मातृत्व भाव पनपे। समरसता की नींव पर निर्मित समाज का ढांचा ही लोकतंत्र में लोक को प्रभावी बना सकता है। इस धारणा के  तहत काम करते हुए उन्होंने अनिश्चित काल का एक निश्चित खण्ड पूरा किया है। राजनीतिक अस्थिरता के  कारण विकास कार्यों में आए ठहराव को स्वीकार करने और दूर करने की दिशा में समयबद्धता के  साथ वित्तीय संसाधनों की परिधि का तालमेल बैठाकर कार्य करने की उनकी विशेषता का ही परिणाम है कि प्रदेश की जनता आर्थिक स्थितियों पर जारी श्वेत पत्र से रूबरू हो पायी है। इस श्वेत पत्र में प्रदेश के  हालात पर चिंता भले ही जतायी गयी हो लेकिन उसे दूर करने की दिशा में सार्थक और निष्ठावान प्रयास कर बेहतर आर्थिक स्थिति बनाने के  नुस्खे भी बताए गये। तभी तो जहां सीमित संसाधनों के  बावजूद राज्य कर्मचारियों के  हितों को ध्यान में रखते हुए के न्द्र सरकार के  कर्मचारियों को स्वीकृत वेतनमान देकर इस दिशा में पहले की वही भौतिक उपलब्धियों की समीक्षा से वित्तीय उपलब्धियां कागजों से भले ही नदारद हो गयी हांे लेकिन लोकतंत्र की आधारभूत इकाई पंचायती संस्थाओं को वित्तीय एवं प्रशासनिक दृष्टि से मजबूत बनाने के  स्वशासी प्रशासन तथा विके न्द्रित नियोजन की परिकल्पना साकार हुई।
पंचायती संस्थाओं का वित्तीय संकट तो समाप्त हुआ ही, उनकी परिलब्धियों में तेरह गुना वृद्धि हुई और राज्य को प्राप्त होने वाली राजस्व आय का अंश भी पंचायतों को देने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। पंजीकरण की व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन कर स्टाम्प पेपर की अनिवार्यता और समतुल्य राशि सरकारी खजाने में जमा करके  बैंक की रसीद दिखाने पर बैमाना कराने की सुविधाजनक प्रक्रिया निःसंदेह लंबे समय से शोषित हो रहे लोगों के  लिए वरदान है। माह के  पहले और तीसरे मंगलवार को तहसील दिवस पर अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाने तथा समस्याओं के  निराकरण के  लिए न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किसान सेवा के न्द्रों को धुरी बनाने से ग्राम देवता एक बार फिर महत्वपूर्ण हो उठा है और लगने लगा ग्राम देवता के  माटी से हुए प्यार को सम्मान देने की दिशा में सम्भावनाओं के  द्वार खुल रहे हैं।
अम्बेडकर उद्यान, नोएडा की औद्योगिक एवं व्यवसायिक उपयोग वाली भूमि कौड़ियों के  मोल बेंच देने कृषि फार्मों को लीज पर देने जैसे मामलों में कड़े रुख के  नाते उन्होंने आलोचनाओं का शिकार भले ही बनना पड़ा लेकिन इससे राजनेताओं और नौकरशाहों की मिली भगत से राजकोष को क्षति पहुंचाने वाली प्रवृत्तियों पर अंकुश तो जरूर लगा है। गन्ना मूल्यों के  बैंकों द्वारा भुगतान से गन्ना किसानों को थोड़ी राहत जरूर महसूस हुई लेकिन अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना अपेक्षित है। प्रदेश के  औद्योगिक वातावरण को समृद्ध बनाने और विकसित करने के  लिए कानपुर तथा उन्नाव के  बीच निकिडा सिटी निर्माण सहित औद्योगिक विकास की स्वयं सभी सकारात्मक परिवर्तन आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
शिक्षा के  क्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाने के  लिए प्रदेश सरकार ने नकल अध्यादेश जारी करके  नकल को संज्ञेय अपराध भले ही बनाया हो लेकिन इस बार के  अध्यादेश में पिछले अध्यादेश से काफी कुछ सीखने की छवि प्रतिध्वनि दिखायी/सुनायी देती है। तभी तो छात्रों को नकल के  लिए प्रेरित करने वालों को ज्यादा दंड का प्राविधान इस अध्यादेश में किया गया है। हाईस्कूल कक्षा तक के  सामान्य पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के  अनुरूप ही अनुरूपता लायी गयी है। विषयों की संख्या 72 से 40 तथा प्रश्नपत्रों की संख्या 150 से 43 करने के  निर्णय से छात्रों के  ऊपर से एक अनावश्यक मानसिक बोझ तो उतारा ही है साथ ही पिछड़े वर्गों के  गरीब छात्रों की राशि को दोगुना करने से प्रदेश की साक्षरता के  विषय में सार्थक पहल हुई है। कल्याण सिंह चुनौतियों को अग्नि परीक्षा तो मानते ही हैं और धैर्यवान तो हैं लेकिन स्थितिप्रज्ञ नहीं।
उनमें आह्वान की वाणी है जो जीवन को दुष्कर बनाने वाली शक्तियों से संघर्ष करते हुए ताकतवर होती जा रही है। जाहिरा तौर पर बन चुके  और तर्कहीन वस्तुगत यथार्थ से मनचाहा खिलवाड़ सिर्फ प्रौद्योगिकी का ही विकृत रूप या ठोस को पुननिर्मित करने की अति यथार्थवादी अवधारणा या फिर अनिश्चित संहिताओं का उन्मुक्त प्ले आज की वास्तविकता से विचारधारा की रिट्रीट और मुक्त बाजार की गतिमान प्रतिमानता में कोई रिश्ता है अथवा जो हो रहा है अति यथार्थवादी वास्तविकता के  प्रति न्यूरोटिक विकास ग्रस्त प्रतिक्रिया है। पूंजी माध्यम बाजार जनता, जनतंत्र, गरीबी, विकास औद्योगीकरण समृद्धि और सिद्धांत के  क्षेत्रों में समस्या बिन्दुओं का हमारी प्राथमिकताओं में क्या और कितना स्पेस है। हो सकता है आज कुछ ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिन पर वे गाहे-बगाहे ही नहीं अक्सर और अहर्निश सोचते ही नहीं कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। हां वे भव्य और चकाचैंध प्रदर्शनों से सन्तुष्ट नहीं होते। अभाव का रोना उन्हें नहीं भाता। उपलब्धियों अनुपलब्धियों के  नए धरातल की समीक्षा तो निश्चित और निर्धारित कालखंड के  बाद ही ठीक-ठीक हो पाएगी। लेकिन फिर भी उपलब्धियां गिनाने के  जो छोटे-छोटे सोपान उपलब्ध हुए हैं, उन पर अभी तक वे लोक को प्रभावी करने के  संघर्ष में जुटे ही दिखे हैं।
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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