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‘कैट’ ने दायर याचिका खारिज की
के न्द्रीय प्रशासनिक अभिकरण (कैट) की लखनऊ बेंच ने सात अतिरिक्त पुलिस अधीक्षकों द्वारा दायर की गयी उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें यह मांग की गयी थी कि प्रदेश में आईपीएस संवर्ग के बढ़े हुए सभी पदों पर प्रोन्नति से चयन की प्रक्रिया एक ही बार में पूरी की जाय। उल्लेखनीय है कि के न्द्र सरकार ने प्रदेश में आईपीएस संवर्ग में प्रदेश पुलिस सेवा से प्रोन्नत किये जाने वाले कोटे की संख्या को सौ से बढ़ाकर 120 कर दिया था। जिसके अनुसार 1997 में दो और 1998-99 एवं 2000 में प्रोन्नति से भरे जाने वाले पदों की संख्या छह-छह बढ़ गयी थी।
सरयू प्रसाद सोनकर, प्रदीप चन्द्रा, राहुल अस्थाना, रामानंद, शिवदान सिंह, के शव शरण, पिप्पल एवं श्रीमती पूर्णिमा सिंह ने अपनी याचिका में अभिकरण से यह अनुरोध किया था कि भारतीय पुलिस सेवा संवर्ग में पीपीएस अधिकारियों के बढ़े हुए कोटे को मद्देनजर रखते हुए सभी प्रोन्नति के लिए चयन एक ही बार मंे कर लिए जाएं। यह चयन 22 जुलाई, 98 को किया जाना था। याचिका में कहा गया कि इन 18 पदों को अलग-अलग करके 98-99 और 2000 में प्रतिवर्ष छह पदों को प्रोन्नति के आधार पर न भरकर एक साथ भरा जाय। याची के वकील आईबी सिंह ने अपनी बहस में कहा कि एक बार जब नियमों और कानूनों में संशोधन करके आईपीएस संवर्ग में पीपीएस संवर्ग के अधिकारियों की प्रोन्नति का कोटा 100 से बढ़ाकर 120 कर दिया है। ऐसे में के न्द्र सरकार इन बढ़े हुए पदों को चार वर्षों में इस प्रकार विभाजित नहीं कर सकती है कि 1997 में 2 और 98-99 एवं 2000 में छह-छह पदों पर प्रोन्नति की जाय। इन चार वर्षों के बढ़े हुए पदों को रिलीज करते समय के न्द्र सरकार ने राज्य सरकार से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया। जबकि इसके विपरीत राज्य सरकार ने ही के न्द्र सरकार को इस प्रकार की संस्तुति भेजी थी कि इन सभी 18 पदों को 1998 में एक ही बार में जारी कर दिया जाय न कि अलग-अलग। केंद्र सरकार ने 6 अप्रैल 98 के अपने एक पत्र के माध्यम से राज्य सरकार के इस अनुरोध को ठुकरा दिया।
सरकार की ओर से अपनी बहस में अधिवक्ता असित कुमार चतुर्वेदी ने अभिकरण से कहा कि उप्र के लिए आईपीएस अधिकारियों का 395 का वर्तमान कोटा अभी तक परिवर्तित नहीं किया गया है। इसलिए सिर्फ सीधी भर्ती तथा प्रोन्नति के जरिये कैडर में आने वाले लोगों की संख्या में ही परिवर्तन हुआ है। और यही बढाकर 120 कर दी गयी है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जनवरी 1998 को अब 120 पद प्रोन्नति के लिए उपलब्ध थे। इसलिए रिक्त पदों को जारी करने के प्रश्न पर के न्द्र सरकार और राज्य सरकार के बीच सलाह मशविरा किए जाने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसी जरूरत कैडर रिव्यू के समय ही पड़ती है। चार वर्षों में जो रिक्तियां केंद्र सरकार ने रिलीज की हैं वह सिर्फ कैडर प्रबंधन की दृष्टि से की गयी हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने आईपीएस, आईएफएस एवं आईएएस जैसी तीन अखिल भारतीय सेवाओं में चयन के लिए प्रोन्नति कोटे के पदों पर बढ़ोत्तरी की है और केंद्र सरकार ने इन बढ़े हुए पदों को सभी राज्यों पर प्रत्येक वर्ष में विभाजित कर सामान्य रूप से जारी किया है। इसलिए उप्र का आईपीएस संवर्ग इस मामले में अपवाद नहीं हो सकता। अभिकरण के न्यायिक सदस्य डीसी वर्मा ने कहा कि 24 अप्रैल 98 को इन सात अधिकारियों के पक्ष में जो अन्तरिम आदेश दिया गया है, वह इनके हितों की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है और उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता नहीं है।
सरयू प्रसाद सोनकर, प्रदीप चन्द्रा, राहुल अस्थाना, रामानंद, शिवदान सिंह, के शव शरण, पिप्पल एवं श्रीमती पूर्णिमा सिंह ने अपनी याचिका में अभिकरण से यह अनुरोध किया था कि भारतीय पुलिस सेवा संवर्ग में पीपीएस अधिकारियों के बढ़े हुए कोटे को मद्देनजर रखते हुए सभी प्रोन्नति के लिए चयन एक ही बार मंे कर लिए जाएं। यह चयन 22 जुलाई, 98 को किया जाना था। याचिका में कहा गया कि इन 18 पदों को अलग-अलग करके 98-99 और 2000 में प्रतिवर्ष छह पदों को प्रोन्नति के आधार पर न भरकर एक साथ भरा जाय। याची के वकील आईबी सिंह ने अपनी बहस में कहा कि एक बार जब नियमों और कानूनों में संशोधन करके आईपीएस संवर्ग में पीपीएस संवर्ग के अधिकारियों की प्रोन्नति का कोटा 100 से बढ़ाकर 120 कर दिया है। ऐसे में के न्द्र सरकार इन बढ़े हुए पदों को चार वर्षों में इस प्रकार विभाजित नहीं कर सकती है कि 1997 में 2 और 98-99 एवं 2000 में छह-छह पदों पर प्रोन्नति की जाय। इन चार वर्षों के बढ़े हुए पदों को रिलीज करते समय के न्द्र सरकार ने राज्य सरकार से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया। जबकि इसके विपरीत राज्य सरकार ने ही के न्द्र सरकार को इस प्रकार की संस्तुति भेजी थी कि इन सभी 18 पदों को 1998 में एक ही बार में जारी कर दिया जाय न कि अलग-अलग। केंद्र सरकार ने 6 अप्रैल 98 के अपने एक पत्र के माध्यम से राज्य सरकार के इस अनुरोध को ठुकरा दिया।
सरकार की ओर से अपनी बहस में अधिवक्ता असित कुमार चतुर्वेदी ने अभिकरण से कहा कि उप्र के लिए आईपीएस अधिकारियों का 395 का वर्तमान कोटा अभी तक परिवर्तित नहीं किया गया है। इसलिए सिर्फ सीधी भर्ती तथा प्रोन्नति के जरिये कैडर में आने वाले लोगों की संख्या में ही परिवर्तन हुआ है। और यही बढाकर 120 कर दी गयी है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जनवरी 1998 को अब 120 पद प्रोन्नति के लिए उपलब्ध थे। इसलिए रिक्त पदों को जारी करने के प्रश्न पर के न्द्र सरकार और राज्य सरकार के बीच सलाह मशविरा किए जाने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसी जरूरत कैडर रिव्यू के समय ही पड़ती है। चार वर्षों में जो रिक्तियां केंद्र सरकार ने रिलीज की हैं वह सिर्फ कैडर प्रबंधन की दृष्टि से की गयी हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने आईपीएस, आईएफएस एवं आईएएस जैसी तीन अखिल भारतीय सेवाओं में चयन के लिए प्रोन्नति कोटे के पदों पर बढ़ोत्तरी की है और केंद्र सरकार ने इन बढ़े हुए पदों को सभी राज्यों पर प्रत्येक वर्ष में विभाजित कर सामान्य रूप से जारी किया है। इसलिए उप्र का आईपीएस संवर्ग इस मामले में अपवाद नहीं हो सकता। अभिकरण के न्यायिक सदस्य डीसी वर्मा ने कहा कि 24 अप्रैल 98 को इन सात अधिकारियों के पक्ष में जो अन्तरिम आदेश दिया गया है, वह इनके हितों की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है और उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता नहीं है।
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