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सीताराम के सरी को हाशिये पर रखा जाए
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के प्रचार की मुहिम का जिम्मा लेने वाली विज्ञापन एजेंसी परफेक्ट रिलेशन्स ने पार्टी को सुझाव दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम के सरी को हाशिये पर रखा जाए। एजेंसी का तर्क है कि श्री के सरी को आम जनता मध्यावधि चुनाव के लिए दोषी मानती है तथा उनमें चुनाव प्रचार के लिए कोई करिश्माई व्यक्तित्व नहीं है जबकि चुनाव प्रचार में सोनिया को के न्द्र में रखने पर कांग्रेस के दस फीसदी वोट बढ़ने की सम्भावना है।
परफेक्ट रिलेशन्स ने अपनी रायशुमारी में पाया है कि देश की जनता मौजूदा मध्यावधि चुनाव के लिए पार्टी अध्यक्ष सीताराम के सरी को दोषी मान रहे हैं और ऐसे में प्रचार सामग्रियों में के सरी की उपस्थिति दिखेगी तो पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। एजेंसी के तर्कों को लेकर के सरी विरोधी खेमा इन दिनों काफी सक्रिय हो गया है और के सरी को इसी बहाने हाशिये पर लाने की तैयारी में जुट गया है। हमारा हाथ तुम्हारा साथ जैसे स्लोगन को के न्द्र बनाकर बारहवीं लोकसभा चुनाव में उतरने जा रही कांग्रेस राजीव के सपनों का भारत बनाने की बात को भी अपने प्रचार में जोर-शोर से उठाएगी। राजीव के सपनों का भारत जैसे नारे को साकार करने के लिए सोनिया गांधी के अलावा अन्य कोई ऐसा कद्दावर नेता कांग्रेस में नहीं है जिससे कि किसी करिश्मे की उम्मीद देश के मतदाता कर सकें।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने लगभग अपने सभी चुनाव करिश्माई नेतृत्व के भरोसे लड़े हैं। अगर कांग्रेस कार्यसमिति में परफेक्ट रिलेशन्स की बात मान ली जाए तो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 1952 के पहले आम चुनाव से 96 के ग्यारहवें संसदीय निर्वाचन तक अपने अध्यक्ष के भरोसे चुनाव लड़ी कांग्रेस इस चुनाव में अपने अध्यक्ष को कोई ज्यादा तवज्जो नहीं देने जा रही है। सोनिया के सक्रिय राजनीति में आने के बाद से ही पार्टी अध्यक्ष होते हुए भी सीताराम के सरी अब दूसरे नम्बर पर दिख रहे हैं। सम्भावना है कि इस बार के चुनाव में सभी संसदीय क्षेत्रों में के न्द्रीय प्रचार समिति द्वारा वितरित किये जाने वाले बैनरों व पोस्टरों में महात्मा गांधी, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी को जहां प्रमुखता दी जाएगी वहीं सोनिया और प्रियंका के चित्रों वाले पोस्टर की भी भरमार दिखेगी। यह संके त कांग्रेस सेवादल के स्थापना दिवस के अवसर पर जारी किये विशेषांक दल जगत से भी मिलते हैं।
सोनिया व प्रियंका की सभा में जुटी भीड़ की ओट लेकर भी के सरी विरोधी मुहिम चलाने वाले सफल होते नजर आ रहे हैं। के सरी विरोधी लाॅबी तो चुनाव के दौरान ही सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाना चाहती है, परन्तु कांग्रेस पार्टी के संविधान में अध्यक्ष को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए यह जरूरी हो गया है कि के सरी को इतने हाशिये पर कर दिया जाये, जिससे वे स्वयं ही अध्यक्ष पद से हटकर सोनिया गांधी को पद दे दें। के सरी को अध्यक्ष बनाये रखने वालों का तर्क है कि सोनिया गांधी विदेशी हैं, इसलिए जनता उन्हें अध्यक्ष और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सहजता से स्वीकार नहीं करेगी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में अब तक छह विदेशी मूल के अध्यक्ष रह चुके हैं। इनमें हैं-जार्ज यूले (1888), वेडेनबर्ग (1889), एल्फ्रेड वेव (1894), हेनरी काटन (1904), एनी बेसेंट (1917)।
श्रीपेरुम्बुदूर में 11 जनवरी को सोनिया की सभा में उमड़े जनसैलाब को आधार बनाते हुए सोनिया समर्थक यह कह रहे हैं कि सीताराम के सरी के नाते उत्तर प्रदेश के 22 विधायक कांग्रेस से अलग हो गये। इनका यह भी तर्क है कि यदि मात्र सोनिया को प्रचार सामग्री के के न्द्र में रखा जाए तो सहानुभूति लहर के जरिये कांग्रेस के वर्तमान वोटों में दहाई तक का इजाफा किया जा सकता है।
के सरी समर्थक हालांकि सोनिया गांधी के सामने खड़े नहीं हो पा रहे हैं परन्तु वे के सरी को महज औपचारिक हैसियत से ऊपर लाने के लिए प्रयासरत हैं। उनका तर्क है कि यदि सोनिया गांधी को ही मात्र के न्द्र में रखा गया तो एक बार फिर बोफोर्स चुनाव का मुद्दा बन जाएगा।
परफेक्ट रिलेशन्स ने अपनी रायशुमारी में पाया है कि देश की जनता मौजूदा मध्यावधि चुनाव के लिए पार्टी अध्यक्ष सीताराम के सरी को दोषी मान रहे हैं और ऐसे में प्रचार सामग्रियों में के सरी की उपस्थिति दिखेगी तो पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। एजेंसी के तर्कों को लेकर के सरी विरोधी खेमा इन दिनों काफी सक्रिय हो गया है और के सरी को इसी बहाने हाशिये पर लाने की तैयारी में जुट गया है। हमारा हाथ तुम्हारा साथ जैसे स्लोगन को के न्द्र बनाकर बारहवीं लोकसभा चुनाव में उतरने जा रही कांग्रेस राजीव के सपनों का भारत बनाने की बात को भी अपने प्रचार में जोर-शोर से उठाएगी। राजीव के सपनों का भारत जैसे नारे को साकार करने के लिए सोनिया गांधी के अलावा अन्य कोई ऐसा कद्दावर नेता कांग्रेस में नहीं है जिससे कि किसी करिश्मे की उम्मीद देश के मतदाता कर सकें।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने लगभग अपने सभी चुनाव करिश्माई नेतृत्व के भरोसे लड़े हैं। अगर कांग्रेस कार्यसमिति में परफेक्ट रिलेशन्स की बात मान ली जाए तो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 1952 के पहले आम चुनाव से 96 के ग्यारहवें संसदीय निर्वाचन तक अपने अध्यक्ष के भरोसे चुनाव लड़ी कांग्रेस इस चुनाव में अपने अध्यक्ष को कोई ज्यादा तवज्जो नहीं देने जा रही है। सोनिया के सक्रिय राजनीति में आने के बाद से ही पार्टी अध्यक्ष होते हुए भी सीताराम के सरी अब दूसरे नम्बर पर दिख रहे हैं। सम्भावना है कि इस बार के चुनाव में सभी संसदीय क्षेत्रों में के न्द्रीय प्रचार समिति द्वारा वितरित किये जाने वाले बैनरों व पोस्टरों में महात्मा गांधी, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी को जहां प्रमुखता दी जाएगी वहीं सोनिया और प्रियंका के चित्रों वाले पोस्टर की भी भरमार दिखेगी। यह संके त कांग्रेस सेवादल के स्थापना दिवस के अवसर पर जारी किये विशेषांक दल जगत से भी मिलते हैं।
सोनिया व प्रियंका की सभा में जुटी भीड़ की ओट लेकर भी के सरी विरोधी मुहिम चलाने वाले सफल होते नजर आ रहे हैं। के सरी विरोधी लाॅबी तो चुनाव के दौरान ही सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाना चाहती है, परन्तु कांग्रेस पार्टी के संविधान में अध्यक्ष को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए यह जरूरी हो गया है कि के सरी को इतने हाशिये पर कर दिया जाये, जिससे वे स्वयं ही अध्यक्ष पद से हटकर सोनिया गांधी को पद दे दें। के सरी को अध्यक्ष बनाये रखने वालों का तर्क है कि सोनिया गांधी विदेशी हैं, इसलिए जनता उन्हें अध्यक्ष और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सहजता से स्वीकार नहीं करेगी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में अब तक छह विदेशी मूल के अध्यक्ष रह चुके हैं। इनमें हैं-जार्ज यूले (1888), वेडेनबर्ग (1889), एल्फ्रेड वेव (1894), हेनरी काटन (1904), एनी बेसेंट (1917)।
श्रीपेरुम्बुदूर में 11 जनवरी को सोनिया की सभा में उमड़े जनसैलाब को आधार बनाते हुए सोनिया समर्थक यह कह रहे हैं कि सीताराम के सरी के नाते उत्तर प्रदेश के 22 विधायक कांग्रेस से अलग हो गये। इनका यह भी तर्क है कि यदि मात्र सोनिया को प्रचार सामग्री के के न्द्र में रखा जाए तो सहानुभूति लहर के जरिये कांग्रेस के वर्तमान वोटों में दहाई तक का इजाफा किया जा सकता है।
के सरी समर्थक हालांकि सोनिया गांधी के सामने खड़े नहीं हो पा रहे हैं परन्तु वे के सरी को महज औपचारिक हैसियत से ऊपर लाने के लिए प्रयासरत हैं। उनका तर्क है कि यदि सोनिया गांधी को ही मात्र के न्द्र में रखा गया तो एक बार फिर बोफोर्स चुनाव का मुद्दा बन जाएगा।
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