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बड़ी गण्डक को नेपाल ने पांच स्थानों से काटा, भारत और नेपाल सरकार के बीच टकराव की आशंका बढ़ी
पीनी के सवाल को लेकर भारत और नेपाल के बीच टकराव की एक नयी आशंका पैदा हो गयी हैं यह आशंका नेपाल सरकार द्वारा गण्डक नहर को पांच जगहों से काट देने के चलते पैदा हुई है। इन कटानों के चलते गोरखपुर और बस्ती मण्डल के हजारों किसान सिंचाई के लिए मिलने वाले पानी से वंचित हो गये हें। इतना ही नहीं, नेपाल की इस एकतरफा कार्रवाई से उत्तर प्रदेश में स्थित झुलनीपुर एवं अन्य रेगुलेटरों के भी क्षतिग्रस्त होने का भी खतरा बढ़ गया है। उप्र के सिंचाई विभाग ने एक अपील जारी करके किसानों से सिंचाई के प्रबंध स्वयं कर लेने के लिए कहा है। इस अपील के बाद जहां किसानों में अनिश्चय और अफरा-तफरी का माहौल है, वहीं उनमे ंजबर्दस्त आक्रोश है, जो चुनावी वर्ष में सरकार के लिए मुसीबतें पैदा कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि जुलाई महीने की 11 और 14 तारीख को नेपाल और बिहार से गुजरकर उप्र में आने वाली गण्डक परियोजना की मुख्य गण्डक नहर के 3.72 किमी तथा 3.97 किमी वाले बिन्दुओं के बीच नेपाल में स्थित महलबारी गांव के साथ नेपाल सरकार ने पांच जगह कटान की है। इससे गोरखपुर और बस्ती मंडल के 3.32 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए मिलने वाले 7300 क्यूसेक जल प्रवाह से क्षेत्र के किसान मरहूम हो गये हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि पिछले वर्ष इसी खरीफ के मौसम में भीषण बाढ़ ने यहां की समूची पैदावार लील लिया था और किसानों के खलिहान और घर तक को खेत से अनाज ले जाने की नौबत नहीं आयी थी। इसी वर्ष इसके ठीक उलट फिलहाल अवर्पण की आशंका से भयभीत इन दो मंडलों के किसान अभी कुछ उपाय तलाश ही रहे थे कि सूबाई फरमान ने उन्हें और भी गंभीर संकट में डाल दिया है। मौजूदा हालात में जबकि किसानों के लिए गण्डक नहर सबसे बड़ी सिंचाई साधन के रूप में दिखायी पड़ रही थी। सरकार के इस आदेश से वह साधन भी किसानों से छिन सा गया है। दूसरी तरफ दूसरे विकल्प के रूप में विद्युत आधारित नलकूप हो सकते थे लेकिन विद्युत आपूर्ति की खस्ताहाल बेहया व्यवस्था और राजकीय नलकूपों की पारम्परिक बन चुकी खराबी ने यहां के किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है। मौजूदा हालात में उप्र सरकार की सिंचाई विभाग ने महज एक अपील जारी कर जिस तरह अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ा है वह आसन्न लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी दल के लिए भी गंभीर संकट पैदा कर सकता है। पिछले वर्ष भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल चुके तथा उससे उबरने की कोशिश कर रहे पूर्वी उप्र के किसानों के सामने आया यह संकट चुनाव में गंभीर मुद्दे के रूप में भी खड़ा हो सकता है।
इस पूरे प्रकरण का गंभीरता से अध्ययन करने पर जो तथ्य प्रमाणिक तौर पर उभर कर सामने आए हैं, उनके मुताबिक गण्डक, इरिगेशन एण्ड पावर प्रोजेक्ट के लिए हिज मेजेस्टी गवर्नमेन्ट आॅफ नेपाल और एम्बेस्डर आॅफ इण्डिया एट द कोर्ट आॅफ नेपाल के बीच 4 दिसंबर 1959 को एक समझौता हुआ। 30 अप्रैल, 1964 को इस समझौते के अनुबंधों में कुछ सुधार हुआ। दोनों देशों के बीच हुए अनुबंध के अनुसार भारत सरकार इस परियोजना की 18.90 किमी नहर नेपाल के अंदर से ले जाएगी। जिसके एवज में नेपाल को जमीन का मुआवजा देय होगा। जब तक नहर रहेगी तब तक लगान देने का काम भी भारत सरकार के जिम्मे होगा। नहर के रखरखाव की जिम्मेदारी भारत सरकार को सौंपी गयी। इतना ही नहीं नेपाल में इस परियोजना की 18.90 किमी नहर बिछाने के एवज में भारत सरकार ने नेपाल को मुख्य नेपाल नहर तथा पांच-पांच मेगावाट वाले तीन यूनिट का सूरजपुरवा पावर हाउस बनाकर दस साल तक मेनटेन करने के बाद सौंपा।
परियोजना के आर्किटेक्ट के अनुसार पहाड़ों एवं आसपास के पानी से उत्पन्न जलभराव को रोकने के लिए साइफन को इस तरह लगाया गया था कि नहर के आसपास इकट्ठा पानी साइफन द्वारा नहर में पहुंच जाता था। साइफन के उचित रखरखाव न हो पाने के कारण भारी वर्षा के बाद पहाड़ों से उतरा पानी नहर में आकर आसपास जमा होने लगा। इससे आसपास के गांवों में संकट पैदा हो गया। परिणामतः नेपाल सरकार ने महलबारी गांव के आसपास गण्डक परियोजना की नहर को पांच जगहों पर काट दिया। बैराज का गेट बंद कर नहर में पानी का संचालन बंद कर दिया।
नेपाल सरकार वर्तमान स्थिति के लिए बिहार सरकार को दोषी ठहरा रही है जबकि बिहार सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। उप्र सरकार गोरखपुर व बस्ती मंडल के किसानों को सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध करवाने के लिए कागजी घोड़े दौड़ा रही है। उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई/बैठक नहीं हुई है। इस नहर का 112.50 किमी भाग उप्र तथा 71किमी भाग बिहार में पड़ता है। मुख्य नहर की शीर्ष प्रवाह क्षमता 18,800 क्यूसेक है किन्तु सिल्ट जैक्टर के बाद 15,800 क्यूसेक पानी इन दोनों प्रांतों को मिलता है। इसमें उप्र के बस्ती एवं गोरखपुर मण्डल के जनपदों को 7300 क्यूसेक और बिहार से गोपालगंज सिवान और छपरा जिले के किसानों को 8500 क्यूसेक जल प्रवाह मिलता है।
सूत्र बताते हैं कि 1959 मंे हुए इस समझौते का बिहार सरकार द्वारा उल्लंघन करने की स्थिति से के न्द्र सरकार को शीघ्र ही नेपाल अवगत कराएगा।
उल्लेखनीय है कि जुलाई महीने की 11 और 14 तारीख को नेपाल और बिहार से गुजरकर उप्र में आने वाली गण्डक परियोजना की मुख्य गण्डक नहर के 3.72 किमी तथा 3.97 किमी वाले बिन्दुओं के बीच नेपाल में स्थित महलबारी गांव के साथ नेपाल सरकार ने पांच जगह कटान की है। इससे गोरखपुर और बस्ती मंडल के 3.32 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए मिलने वाले 7300 क्यूसेक जल प्रवाह से क्षेत्र के किसान मरहूम हो गये हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि पिछले वर्ष इसी खरीफ के मौसम में भीषण बाढ़ ने यहां की समूची पैदावार लील लिया था और किसानों के खलिहान और घर तक को खेत से अनाज ले जाने की नौबत नहीं आयी थी। इसी वर्ष इसके ठीक उलट फिलहाल अवर्पण की आशंका से भयभीत इन दो मंडलों के किसान अभी कुछ उपाय तलाश ही रहे थे कि सूबाई फरमान ने उन्हें और भी गंभीर संकट में डाल दिया है। मौजूदा हालात में जबकि किसानों के लिए गण्डक नहर सबसे बड़ी सिंचाई साधन के रूप में दिखायी पड़ रही थी। सरकार के इस आदेश से वह साधन भी किसानों से छिन सा गया है। दूसरी तरफ दूसरे विकल्प के रूप में विद्युत आधारित नलकूप हो सकते थे लेकिन विद्युत आपूर्ति की खस्ताहाल बेहया व्यवस्था और राजकीय नलकूपों की पारम्परिक बन चुकी खराबी ने यहां के किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है। मौजूदा हालात में उप्र सरकार की सिंचाई विभाग ने महज एक अपील जारी कर जिस तरह अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ा है वह आसन्न लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी दल के लिए भी गंभीर संकट पैदा कर सकता है। पिछले वर्ष भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल चुके तथा उससे उबरने की कोशिश कर रहे पूर्वी उप्र के किसानों के सामने आया यह संकट चुनाव में गंभीर मुद्दे के रूप में भी खड़ा हो सकता है।
इस पूरे प्रकरण का गंभीरता से अध्ययन करने पर जो तथ्य प्रमाणिक तौर पर उभर कर सामने आए हैं, उनके मुताबिक गण्डक, इरिगेशन एण्ड पावर प्रोजेक्ट के लिए हिज मेजेस्टी गवर्नमेन्ट आॅफ नेपाल और एम्बेस्डर आॅफ इण्डिया एट द कोर्ट आॅफ नेपाल के बीच 4 दिसंबर 1959 को एक समझौता हुआ। 30 अप्रैल, 1964 को इस समझौते के अनुबंधों में कुछ सुधार हुआ। दोनों देशों के बीच हुए अनुबंध के अनुसार भारत सरकार इस परियोजना की 18.90 किमी नहर नेपाल के अंदर से ले जाएगी। जिसके एवज में नेपाल को जमीन का मुआवजा देय होगा। जब तक नहर रहेगी तब तक लगान देने का काम भी भारत सरकार के जिम्मे होगा। नहर के रखरखाव की जिम्मेदारी भारत सरकार को सौंपी गयी। इतना ही नहीं नेपाल में इस परियोजना की 18.90 किमी नहर बिछाने के एवज में भारत सरकार ने नेपाल को मुख्य नेपाल नहर तथा पांच-पांच मेगावाट वाले तीन यूनिट का सूरजपुरवा पावर हाउस बनाकर दस साल तक मेनटेन करने के बाद सौंपा।
परियोजना के आर्किटेक्ट के अनुसार पहाड़ों एवं आसपास के पानी से उत्पन्न जलभराव को रोकने के लिए साइफन को इस तरह लगाया गया था कि नहर के आसपास इकट्ठा पानी साइफन द्वारा नहर में पहुंच जाता था। साइफन के उचित रखरखाव न हो पाने के कारण भारी वर्षा के बाद पहाड़ों से उतरा पानी नहर में आकर आसपास जमा होने लगा। इससे आसपास के गांवों में संकट पैदा हो गया। परिणामतः नेपाल सरकार ने महलबारी गांव के आसपास गण्डक परियोजना की नहर को पांच जगहों पर काट दिया। बैराज का गेट बंद कर नहर में पानी का संचालन बंद कर दिया।
नेपाल सरकार वर्तमान स्थिति के लिए बिहार सरकार को दोषी ठहरा रही है जबकि बिहार सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। उप्र सरकार गोरखपुर व बस्ती मंडल के किसानों को सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध करवाने के लिए कागजी घोड़े दौड़ा रही है। उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई/बैठक नहीं हुई है। इस नहर का 112.50 किमी भाग उप्र तथा 71किमी भाग बिहार में पड़ता है। मुख्य नहर की शीर्ष प्रवाह क्षमता 18,800 क्यूसेक है किन्तु सिल्ट जैक्टर के बाद 15,800 क्यूसेक पानी इन दोनों प्रांतों को मिलता है। इसमें उप्र के बस्ती एवं गोरखपुर मण्डल के जनपदों को 7300 क्यूसेक और बिहार से गोपालगंज सिवान और छपरा जिले के किसानों को 8500 क्यूसेक जल प्रवाह मिलता है।
सूत्र बताते हैं कि 1959 मंे हुए इस समझौते का बिहार सरकार द्वारा उल्लंघन करने की स्थिति से के न्द्र सरकार को शीघ्र ही नेपाल अवगत कराएगा।
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