TRENDING TAGS :
Interview- सलमान खुर्शीद
दिनांक: 12._x007f_2.200_x007f__x007f_6
राजब_x008e_बर ने सपा के समन्दर में जो पत्थर फेेंकेे हैैं। उसे लेकर कांग्रेस राज्य इकाई केे अध्यक्ष सलमान खुर्शीद खासे उत्साहित हैैं। उन्हेें भरोसा हैै कि राजब_x008e_बर की कोशिशों से दरकनी शुरू हुुई सपा की दीवार जल्दी ढह जायेगी। अकलियत के मतदाता कांग्रेस की ओर रूख करेंगे। स्काई लैब लीडर, पॉलिटिकल मैनेजमेन्ट, दलाल, हाईजैकर, ड्र्राइंग रूम पॉलिटिशियन को लेकर हुुई बेबाक बातचीत में उन्होंने अपनी पार्टी की ही नहीं, अपनी भी उन कमियों को गिनाया जिन्हेें आज के राजनीतिक माहौल की विवशता के चलते अख्तियार करने को मजबूर होना पड़़ रहा हैै। राजनीति की विसंगतियों, संगठन को चाक-चौबन्द करने के साथ-साथ तमाम ज्वलन्त मुद्ïदों पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र ने उनसे लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत हैैं बातचीत के अंश:-
मुलायम केन्द्र्र को बाहर से समर्थन दे रहेे हैैं और आप उ.प्र. में मुलायम को? वह तो अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहे हैैं। आप कब छुुट्ï्ïटी करेेंंगे?
वह समर्थन दे रहेे हैैं। लेकिन हमने मांगा नहींं हैै। उन्होंंने स्वत: समर्थन दिया। मुझे कोई ऐसी सूचना नहीं हैै कि उनके समर्थन को कभी हमने ‘एकनॉलेज’ किया हो। ‘रिकगनाइज’ किया हो। पहले समर्थन वापस लें फिर अविश्वास प्रस्ताव लाएं। वह धमकी दे रहेे हैैं। उकसा रहे हैंं। हमारा समर्थन होता तब न हम वापस लेते। हम यह मानते थे कि वैकल्पिक सरकार बननी चाहिए। भाजपा सरकार की गुंजाइश पर रोक लगे इसलिए हमने राज्यपाल को लिखकर दिया था, अगर कोई सेक्यूलर सरकार बनाने की कोशिश करता हैै तो हमारा समर्थन है। उनके पास संख्या बल पूरा है।
फिर राज्यपाल को चिट्ï्ïठी क्यों नहीं दे देते?
जब राज्यपाल पूछते हैैं तब जवाब दिया जाता हैै। राज्यपाल केे पूछने का अवसर आए। जब पूछेेंंगे तो हम जवाब दे देंंगे कि हम समर्थन नहीं दे रहे हैैं।
पॉलिटिक्स में मैनेजमेन्ट कितना जरूरी मानते हैैंं?
कुुछ हद तक राजनीति में यह हमेशा रहा हैै। मसलन, प्रेस के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए रखना भी तो मैनेजमेन्ट ही हैै। यह शुरू से है। अपनी अच्छाइयों को उजागर करना, कमजोरियों को दबाना, विज्ञापन का काम हैै। लोकतन्त्र का बाजारतन्त्र से सीधा रिश्ता हैै। पॉलिटिकल च्वाइस को प्रभावित करने के लिए मैनेजमेन्ट जरूरी हैै।
राजनीति में दलाल संस्कृृति जैसी अवधारणा से आप जरूर परिचित होंंगे? यह कब से हैै?
बिल्कुल हैं। इसका रिश्ता हमारेे देश की अर्थ व्यवस्था से हैै। दलाल के लिए मार्र्केेट की जरूरत होती हैै। मार्र्केेट जिसमें थोक बिकेे। वह थोक मार्र्केेट में ‘आपरेेट’ करता हैै। ये १९६० केे बाद प्रभावी हुए। इसी दौर में समाजवाद, वामदल और स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ी कांग्रेस में परिवर्तन आ रहेे थे। तभी दलालों ने पहले मन्त्रालयों में सम्पर्क बनाया। मन्त्रालयों में पहली दफ ा निजी क्षेत्र के लोगोंं केे लिए पैसा लगाने केे द्वार खुले। इसके पहले लोग सरकार के साथ काम करते थे। जिसमें कम पैसा। कम कमीशन मिलता था। बाजार खुला। प्रतियोगिता आई। प्रतियोगिता को ‘सर्व’ करने केे लिए दलाल पैदा हुुए। एकतरफ बिजनेस और इन्डस्ट्र्री केे लोग राजनीति में आने लगे। दूसरी तरफ अपराधी प्रभावी होने लगे। दोनों को पहले राजनीतिक संरक्षण मिला। बाद में ये खुद राजनीति में प्रवेश कर गए। लोकतन्त्र में संख्याबल के महत्व के चलते जातिप्रथा जीवित हुुई। नतीजतन, इन्हें फ लने -फ ूलने का मौका मिला।
इसकेे लिए आप अपनी पार्टी को कितना जिम्मेदार मानते हैैंं?
मेरी ही पार्टी क्यों, यह सभी पार्र्टियों में हैै। पैसा, कान्टैक्ट और ‘मसल्स पावर’ के प्रलोभन में अपनी-अपनी सीमा के दायरे में हमने इन्हेें ‘टालरेेट’ किया। हमने इनसे समझौता किया। इसमें मैं भी हंंूू। राजब_x008e_बर भी। यह कहना मैने समझौता नहीं किया, झूठ होगा। लेकिन इतना जरूर हैै कि समझौते केे बाद मेरेे अंदर का नैतिक व्यक्ति मरा नहीं। जो राजब_x008e_बर और अमर सिंह केे बीच हुुआ है। कमोबेश वही भाजपा में उमा भारती और प्रमोद महाजन केे बीच इन्हींं के चलते हो रहा है।
ऐसे समझौतों की जरूरत क्यों पड़़ती हैै?
वर्तमान लोकतन्त्र में येे राजनीति के पर्याय हो गए हैैं। कोई कह दे कि हमने एक अवैध वोट नहीं डलवाया। हमने नियम-कानून केे मुताबिक चुनाव लड़़ा। खर्च का सही-सही हिसाब चुनाव आयोग को दिया। निश्चित तौर पर कोई इसका दावा नहींं कर सकता।
आखिर आपकी पार्टी में इस तरह के कौन लोग हंंैै?
हमारेे यहां ऐसे लोग नहींं हैै। लेकिन प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स या प्रोफे शनल पॉलिटिक्स जो भी कह लें, करने वाले मुरली देवड़़ा, प्रफुल्ल पटेेल और कपिल सि_x008e_बल हैैंं। सब चुने हुए सफ ल उम्मीदवार हैैं। लोकसभा जीतकर आए हैंं। लिहाजा किसी से कम नहीं हैैं। इनका ‘एप्रोच प्रोफेशनल’ हैै। जिसमें काम करना है, अच्छा करना हैै। आप चाहेें तो इसे सेवा कह लें। पायलट जहाज उड़़ाकर दिल्ली से लखनऊ लाता हैै। वह भी कहता हैै हम सेवा कर रहेे हैैं। भले ही पगार दो लाख रूपये लेता हो।
प्रोफेशनल और प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स की आड़़ में सिद्घान्त और उसूलों की कितनी हत्या होती हैै?
यह हमारे राजनीति की वास्तविकता हैै कि हम सब सिद्घान्त और उसूल कहींं न कहीं तोड़़ते हैैंं। लेकिन कितना और किस सीमा तक तोड़़ते हैंं। इसमें अन्तर हैै।
क्या राजब_x008e_बर कांग्रेस में आ रहेे हैैं?
राजब_x008e_बर के सामने समस्या हैै। कहां जाऐंंगेï? मेरेे मित्र हैैं। अगर गुरूद_x009e_ा, सत्यजीत रेे और बलराज साहनी राजनीति में आए होते तो उनकी अलग सोच होती। लेकिन इसके बाद केे जो लोग आए हैंं वह प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स की बात करने लगे हैंं। जिसे आप प्रोफेशनल पॉलिटिक्स भी कह सकते हैैं। यही प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स या प्रोफेेशनल पॉलिटिक्स घालमेल ही विवादों का सबब हैै।
राजब_x008e_बर और अमर सिंह की लड़़ाई क्या आपको समाजवाद केे प्रति प्रतिबद्घता का सबब नजर आती है?
यह ‘पर्सनल क्लैश’ हैै। आधुनिक युग में प्रोफे शन और प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स, इन दोनों ‘एलीमेन्ट’ का कितना ‘मिक्स’ होना चाहिए यही उनकेे अन्दर का क्लैश हैै । मसलन, राजब_x008e_बर खुद को सोशलिस्ट बता रहे हैैं। हालांकि मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि वह सोशलिस्ट नहींं हैै। क्योंंकि उनकेे पास ‘सोशलिज्म’ का कोई न कोई ‘कांसेप्ट’ होगा। जिसमें फि ल्म बनाने के लिए एक करोड़़ रूपये लेने, अच्छी गाड़़ी मेंं घूमने, हालीडेे मनाने को भी समाजवाद के दायरे में माना जाता हैै। अन्तर महज यह हैै कि अमर सिंह के समाजवाद के लिए यह राशि और सुविधाएं कुुछ ज्यादा हैंं।
राजनीतिक दलोंं में ड्र्राइंगरूम पॉलिटिक्स, पॉलिटिकल मैनेजमेन्ट, हाइजैकर, फ ण्ड रेेजर और स्काई लैब नेताओं की लम्बी कतार हैै। जिनके चलते आंतरिक विवाद बना रहता हैै?
यह सच हैै। सपा की आप देख रहे हैैंं। भाजपा में उमा भारती कई ऐसे लोगों को इंगित करती आ रही हैैंं। हमारी पार्टी में भी हैै। केेरल में करूणाकरण इसी के चलते पार्टी छोड़क़र चले गए। पंजाब में दो गुट हैंं। महाराष्ट्र्र में पहले संघर्ष रह चुका हैै। पश्चिम बंगाल मेंं ममता पार्टी छोड़क़र गईं। अलग-अलग प्रदेशोंं में अलग-अलग कारण हैैंं। लेकिन सीधा-सीधा ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता हैै। जैसा सपा मेंं अमर सिंह और राजब_x008e_बर, भाजपा में उमा भारती और प्रमोद महाजन। फ ण्ड रेेजर की जगह सभी पार्र्टियोंं में हमेशा रही हैै। कभी रजनी पाटिल हमारी पार्टी में फण्ड रेेजर माने जाते थे। इनका बड़़ा महत्व था। कोई फण्ड देता हैै इसलिए उसे राजनीतिक महत्व न मिले यह गलत हैै। स्पोर्र्ट्ï्स स्टार, फिल्म स्टार को जगह दी जाती है क्योंकि वह राजनीतिक दल का ‘फेस’ बन सकता हैै। ड्र्राइंग रूम पॉलिटिक्स करने वाले और स्काई लैब नेता हर जगह हैैंं जो पार्टी के ढंंाचे और स्ट्र्रक्चर से न गुजर कर सीधे हाईकमान से सम्पर्क बनाना चाहते हैैं। लेकिन इन श_x008e_दों के दोनो पहलू होते हैैंं। काफ ी जगहों पर मिसयूज भी किया जाता हैै। जैसे किसी कारगिल विजेता को पार्टी में शामिल किया जाय तो लोग यही कहने लगते हैैं। लेकिन वे स्काई लैब नहीं हैैंं। वह भी एक वर्ग का वोट जुटाने का काम करते हैैं। हां, दलाल श_x008e_द के दो पहलू नहीं हो सकते।
चिन्तन शिविर के फार्मूले केे फ्ïलाप होने के बाद कांग्रेस की ओर से शुरू होने जा रही यात्राओं का आप क्या भविष्य देखते हैंं?
चिन्तन शिविर फ्ïलाप हुए यह कहना गलत हैै। हमने पहले साल में संगठन के ढांचे को बनाने का प्रयास किया था। उसे सिर्र्फ फाइलों पर नहीं बनाया जा सकता। प्रशिक्षण, पहचान, परीक्षा, अनुभव और चिन्तन साथ-साथ चलते हैंं। यह पूरा हो गया। अब हमने संघर्ष का ऐलान किया हैै। एक पखवाड़़ेे की आठ यात्राएं जो सूबे के हर क्षेत्र से गुजरेेंगी फिर पांच नदियों -गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, राप्ती के किनारेे से यात्राओं का दौर शुरू होगा। इसके बाद आपको पता चल जाएगा कि चिन्तन शिविर और यात्राओं ने कांग्रेस को कहां लाकर खड़़ा कर दिया।
राजब_x008e_बर-अमर विवाद का उनकी पार्टी और कांग्रेस दोनों को क्या नफ ा-नुकसान होगा?
कई इमारतेंं बाहर से बड़़ी पुख्ता लगती हैैंं। लेकिन डिजाइन में ऐसी कमी होती हैै कि जरा सी हिली कि ढह जाती हैैं। राजब_x008e_बर को यह डिजाइन पता हैै। उन्होंंने उसी पर उंंगली रख दी हैै। समाजवादी पार्टी एक ‘एक्सीडेेन्ट’ हैै। जिसका सम्बन्ध बाबरी से हैै। जिस आधार पर उसका जन्म हुुआ उसमेंं कोई डिजाइन नहींं हैै। आधार नहीं हैै। अब कई जगह से दबाव बन रहा हैै। सपा का ढंंाचा गिरेेगा। उ.प्र. में जातीय आधार पर राजनीति की बर्र्फ पिघलनी शुरू हो गई हैै। इस बर्र्फ को मुसलमानों ने जमाया था। मुसलमान वोट शिफ्ïट हुुआ हैै। कांग्रेस विकल्प के रूप में सामने आ गर्ई हैै।
आपकी पार्टी केे कई नेता आप पर भी पांच सितारा और शहर की राजनीति करने का अरोप मढ़़ते हैं?
इसका जवाब नहीं दूंगा। क्योंंकि वे जब गांव में मुझे मिलेंंगे तब खुद देख लेंंगे। यह आरोप लगाने वालों को क्या मालूम कि गांव कैैसा होता हैै।
-योगेश मिश्र
राजब_x008e_बर ने सपा के समन्दर में जो पत्थर फेेंकेे हैैं। उसे लेकर कांग्रेस राज्य इकाई केे अध्यक्ष सलमान खुर्शीद खासे उत्साहित हैैं। उन्हेें भरोसा हैै कि राजब_x008e_बर की कोशिशों से दरकनी शुरू हुुई सपा की दीवार जल्दी ढह जायेगी। अकलियत के मतदाता कांग्रेस की ओर रूख करेंगे। स्काई लैब लीडर, पॉलिटिकल मैनेजमेन्ट, दलाल, हाईजैकर, ड्र्राइंग रूम पॉलिटिशियन को लेकर हुुई बेबाक बातचीत में उन्होंने अपनी पार्टी की ही नहीं, अपनी भी उन कमियों को गिनाया जिन्हेें आज के राजनीतिक माहौल की विवशता के चलते अख्तियार करने को मजबूर होना पड़़ रहा हैै। राजनीति की विसंगतियों, संगठन को चाक-चौबन्द करने के साथ-साथ तमाम ज्वलन्त मुद्ïदों पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र ने उनसे लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत हैैं बातचीत के अंश:-
मुलायम केन्द्र्र को बाहर से समर्थन दे रहेे हैैं और आप उ.प्र. में मुलायम को? वह तो अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहे हैैं। आप कब छुुट्ï्ïटी करेेंंगे?
वह समर्थन दे रहेे हैैं। लेकिन हमने मांगा नहींं हैै। उन्होंंने स्वत: समर्थन दिया। मुझे कोई ऐसी सूचना नहीं हैै कि उनके समर्थन को कभी हमने ‘एकनॉलेज’ किया हो। ‘रिकगनाइज’ किया हो। पहले समर्थन वापस लें फिर अविश्वास प्रस्ताव लाएं। वह धमकी दे रहेे हैैं। उकसा रहे हैंं। हमारा समर्थन होता तब न हम वापस लेते। हम यह मानते थे कि वैकल्पिक सरकार बननी चाहिए। भाजपा सरकार की गुंजाइश पर रोक लगे इसलिए हमने राज्यपाल को लिखकर दिया था, अगर कोई सेक्यूलर सरकार बनाने की कोशिश करता हैै तो हमारा समर्थन है। उनके पास संख्या बल पूरा है।
फिर राज्यपाल को चिट्ï्ïठी क्यों नहीं दे देते?
जब राज्यपाल पूछते हैैं तब जवाब दिया जाता हैै। राज्यपाल केे पूछने का अवसर आए। जब पूछेेंंगे तो हम जवाब दे देंंगे कि हम समर्थन नहीं दे रहे हैैं।
पॉलिटिक्स में मैनेजमेन्ट कितना जरूरी मानते हैैंं?
कुुछ हद तक राजनीति में यह हमेशा रहा हैै। मसलन, प्रेस के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए रखना भी तो मैनेजमेन्ट ही हैै। यह शुरू से है। अपनी अच्छाइयों को उजागर करना, कमजोरियों को दबाना, विज्ञापन का काम हैै। लोकतन्त्र का बाजारतन्त्र से सीधा रिश्ता हैै। पॉलिटिकल च्वाइस को प्रभावित करने के लिए मैनेजमेन्ट जरूरी हैै।
राजनीति में दलाल संस्कृृति जैसी अवधारणा से आप जरूर परिचित होंंगे? यह कब से हैै?
बिल्कुल हैं। इसका रिश्ता हमारेे देश की अर्थ व्यवस्था से हैै। दलाल के लिए मार्र्केेट की जरूरत होती हैै। मार्र्केेट जिसमें थोक बिकेे। वह थोक मार्र्केेट में ‘आपरेेट’ करता हैै। ये १९६० केे बाद प्रभावी हुए। इसी दौर में समाजवाद, वामदल और स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ी कांग्रेस में परिवर्तन आ रहेे थे। तभी दलालों ने पहले मन्त्रालयों में सम्पर्क बनाया। मन्त्रालयों में पहली दफ ा निजी क्षेत्र के लोगोंं केे लिए पैसा लगाने केे द्वार खुले। इसके पहले लोग सरकार के साथ काम करते थे। जिसमें कम पैसा। कम कमीशन मिलता था। बाजार खुला। प्रतियोगिता आई। प्रतियोगिता को ‘सर्व’ करने केे लिए दलाल पैदा हुुए। एकतरफ बिजनेस और इन्डस्ट्र्री केे लोग राजनीति में आने लगे। दूसरी तरफ अपराधी प्रभावी होने लगे। दोनों को पहले राजनीतिक संरक्षण मिला। बाद में ये खुद राजनीति में प्रवेश कर गए। लोकतन्त्र में संख्याबल के महत्व के चलते जातिप्रथा जीवित हुुई। नतीजतन, इन्हें फ लने -फ ूलने का मौका मिला।
इसकेे लिए आप अपनी पार्टी को कितना जिम्मेदार मानते हैैंं?
मेरी ही पार्टी क्यों, यह सभी पार्र्टियों में हैै। पैसा, कान्टैक्ट और ‘मसल्स पावर’ के प्रलोभन में अपनी-अपनी सीमा के दायरे में हमने इन्हेें ‘टालरेेट’ किया। हमने इनसे समझौता किया। इसमें मैं भी हंंूू। राजब_x008e_बर भी। यह कहना मैने समझौता नहीं किया, झूठ होगा। लेकिन इतना जरूर हैै कि समझौते केे बाद मेरेे अंदर का नैतिक व्यक्ति मरा नहीं। जो राजब_x008e_बर और अमर सिंह केे बीच हुुआ है। कमोबेश वही भाजपा में उमा भारती और प्रमोद महाजन केे बीच इन्हींं के चलते हो रहा है।
ऐसे समझौतों की जरूरत क्यों पड़़ती हैै?
वर्तमान लोकतन्त्र में येे राजनीति के पर्याय हो गए हैैं। कोई कह दे कि हमने एक अवैध वोट नहीं डलवाया। हमने नियम-कानून केे मुताबिक चुनाव लड़़ा। खर्च का सही-सही हिसाब चुनाव आयोग को दिया। निश्चित तौर पर कोई इसका दावा नहींं कर सकता।
आखिर आपकी पार्टी में इस तरह के कौन लोग हंंैै?
हमारेे यहां ऐसे लोग नहींं हैै। लेकिन प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स या प्रोफे शनल पॉलिटिक्स जो भी कह लें, करने वाले मुरली देवड़़ा, प्रफुल्ल पटेेल और कपिल सि_x008e_बल हैैंं। सब चुने हुए सफ ल उम्मीदवार हैैं। लोकसभा जीतकर आए हैंं। लिहाजा किसी से कम नहीं हैैं। इनका ‘एप्रोच प्रोफेशनल’ हैै। जिसमें काम करना है, अच्छा करना हैै। आप चाहेें तो इसे सेवा कह लें। पायलट जहाज उड़़ाकर दिल्ली से लखनऊ लाता हैै। वह भी कहता हैै हम सेवा कर रहेे हैैं। भले ही पगार दो लाख रूपये लेता हो।
प्रोफेशनल और प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स की आड़़ में सिद्घान्त और उसूलों की कितनी हत्या होती हैै?
यह हमारे राजनीति की वास्तविकता हैै कि हम सब सिद्घान्त और उसूल कहींं न कहीं तोड़़ते हैैंं। लेकिन कितना और किस सीमा तक तोड़़ते हैंं। इसमें अन्तर हैै।
क्या राजब_x008e_बर कांग्रेस में आ रहेे हैैं?
राजब_x008e_बर के सामने समस्या हैै। कहां जाऐंंगेï? मेरेे मित्र हैैं। अगर गुरूद_x009e_ा, सत्यजीत रेे और बलराज साहनी राजनीति में आए होते तो उनकी अलग सोच होती। लेकिन इसके बाद केे जो लोग आए हैंं वह प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स की बात करने लगे हैंं। जिसे आप प्रोफेशनल पॉलिटिक्स भी कह सकते हैैं। यही प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स या प्रोफेेशनल पॉलिटिक्स घालमेल ही विवादों का सबब हैै।
राजब_x008e_बर और अमर सिंह की लड़़ाई क्या आपको समाजवाद केे प्रति प्रतिबद्घता का सबब नजर आती है?
यह ‘पर्सनल क्लैश’ हैै। आधुनिक युग में प्रोफे शन और प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स, इन दोनों ‘एलीमेन्ट’ का कितना ‘मिक्स’ होना चाहिए यही उनकेे अन्दर का क्लैश हैै । मसलन, राजब_x008e_बर खुद को सोशलिस्ट बता रहे हैैं। हालांकि मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि वह सोशलिस्ट नहींं हैै। क्योंंकि उनकेे पास ‘सोशलिज्म’ का कोई न कोई ‘कांसेप्ट’ होगा। जिसमें फि ल्म बनाने के लिए एक करोड़़ रूपये लेने, अच्छी गाड़़ी मेंं घूमने, हालीडेे मनाने को भी समाजवाद के दायरे में माना जाता हैै। अन्तर महज यह हैै कि अमर सिंह के समाजवाद के लिए यह राशि और सुविधाएं कुुछ ज्यादा हैंं।
राजनीतिक दलोंं में ड्र्राइंगरूम पॉलिटिक्स, पॉलिटिकल मैनेजमेन्ट, हाइजैकर, फ ण्ड रेेजर और स्काई लैब नेताओं की लम्बी कतार हैै। जिनके चलते आंतरिक विवाद बना रहता हैै?
यह सच हैै। सपा की आप देख रहे हैैंं। भाजपा में उमा भारती कई ऐसे लोगों को इंगित करती आ रही हैैंं। हमारी पार्टी में भी हैै। केेरल में करूणाकरण इसी के चलते पार्टी छोड़क़र चले गए। पंजाब में दो गुट हैंं। महाराष्ट्र्र में पहले संघर्ष रह चुका हैै। पश्चिम बंगाल मेंं ममता पार्टी छोड़क़र गईं। अलग-अलग प्रदेशोंं में अलग-अलग कारण हैैंं। लेकिन सीधा-सीधा ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता हैै। जैसा सपा मेंं अमर सिंह और राजब_x008e_बर, भाजपा में उमा भारती और प्रमोद महाजन। फ ण्ड रेेजर की जगह सभी पार्र्टियोंं में हमेशा रही हैै। कभी रजनी पाटिल हमारी पार्टी में फण्ड रेेजर माने जाते थे। इनका बड़़ा महत्व था। कोई फण्ड देता हैै इसलिए उसे राजनीतिक महत्व न मिले यह गलत हैै। स्पोर्र्ट्ï्स स्टार, फिल्म स्टार को जगह दी जाती है क्योंकि वह राजनीतिक दल का ‘फेस’ बन सकता हैै। ड्र्राइंग रूम पॉलिटिक्स करने वाले और स्काई लैब नेता हर जगह हैैंं जो पार्टी के ढंंाचे और स्ट्र्रक्चर से न गुजर कर सीधे हाईकमान से सम्पर्क बनाना चाहते हैैं। लेकिन इन श_x008e_दों के दोनो पहलू होते हैैंं। काफ ी जगहों पर मिसयूज भी किया जाता हैै। जैसे किसी कारगिल विजेता को पार्टी में शामिल किया जाय तो लोग यही कहने लगते हैैं। लेकिन वे स्काई लैब नहीं हैैंं। वह भी एक वर्ग का वोट जुटाने का काम करते हैैं। हां, दलाल श_x008e_द के दो पहलू नहीं हो सकते।
चिन्तन शिविर के फार्मूले केे फ्ïलाप होने के बाद कांग्रेस की ओर से शुरू होने जा रही यात्राओं का आप क्या भविष्य देखते हैंं?
चिन्तन शिविर फ्ïलाप हुए यह कहना गलत हैै। हमने पहले साल में संगठन के ढांचे को बनाने का प्रयास किया था। उसे सिर्र्फ फाइलों पर नहीं बनाया जा सकता। प्रशिक्षण, पहचान, परीक्षा, अनुभव और चिन्तन साथ-साथ चलते हैंं। यह पूरा हो गया। अब हमने संघर्ष का ऐलान किया हैै। एक पखवाड़़ेे की आठ यात्राएं जो सूबे के हर क्षेत्र से गुजरेेंगी फिर पांच नदियों -गंगा, यमुना, घाघरा, गोमती, राप्ती के किनारेे से यात्राओं का दौर शुरू होगा। इसके बाद आपको पता चल जाएगा कि चिन्तन शिविर और यात्राओं ने कांग्रेस को कहां लाकर खड़़ा कर दिया।
राजब_x008e_बर-अमर विवाद का उनकी पार्टी और कांग्रेस दोनों को क्या नफ ा-नुकसान होगा?
कई इमारतेंं बाहर से बड़़ी पुख्ता लगती हैैंं। लेकिन डिजाइन में ऐसी कमी होती हैै कि जरा सी हिली कि ढह जाती हैैं। राजब_x008e_बर को यह डिजाइन पता हैै। उन्होंंने उसी पर उंंगली रख दी हैै। समाजवादी पार्टी एक ‘एक्सीडेेन्ट’ हैै। जिसका सम्बन्ध बाबरी से हैै। जिस आधार पर उसका जन्म हुुआ उसमेंं कोई डिजाइन नहींं हैै। आधार नहीं हैै। अब कई जगह से दबाव बन रहा हैै। सपा का ढंंाचा गिरेेगा। उ.प्र. में जातीय आधार पर राजनीति की बर्र्फ पिघलनी शुरू हो गई हैै। इस बर्र्फ को मुसलमानों ने जमाया था। मुसलमान वोट शिफ्ïट हुुआ हैै। कांग्रेस विकल्प के रूप में सामने आ गर्ई हैै।
आपकी पार्टी केे कई नेता आप पर भी पांच सितारा और शहर की राजनीति करने का अरोप मढ़़ते हैं?
इसका जवाब नहीं दूंगा। क्योंंकि वे जब गांव में मुझे मिलेंंगे तब खुद देख लेंंगे। यह आरोप लगाने वालों को क्या मालूम कि गांव कैैसा होता हैै।
-योगेश मिश्र
Next Story