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Dr. Yogesh mishr
Published on: 13 Feb 2006 6:39 PM IST
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आजादी केे बाद राजनीति की श_x008e_दावली में जुड़़ेे श_x008e_दोंं से कांग्रेस भी अछूूती नहीं हैै। एक साल पहले तक कांग्रेस की अहम कुुर्सियों पर काबिज लोगों को भी उन्हींं की पार्टी के लोग इन्हीं श_x008e_दों से नवाजते थे। कांग्रेस तोडऩे के साथ-साथ कांग्रेस का समर्थन लेकर ही सूबे में खड़़ेे होने की ताकत जताने वाले मुलायम सिंह के ऊपर कांग्रेस को हाशिये पर पहुुंंचाने केे तमाम तिकड़़म करने केे आरोप चस्पा हैं। फिर भी कई कांग्रेसी मुलायम केे लिए कारपोरेेट हाऊसेस की तरह काम करते नजर आते थे। हालांकि सूबे में दो बार मुलायम की जिद के चलते कांग्रेस पार्टी टूूटी। लेकिन इसका मलाल राज्य इकाई की जगह कांग्रेस हाईकमान को हुुआ। आज कांग्रेस केे एजेण्डे पर अगर कुुछ भी सबसे ऊपर हैै- वह उ.प्र. हैै। ऐसा इसलिए भी क्योंकि १४वीं लोकसभा के नतीजे इस बात केे गवाह हैैं कि कांग्रेस की ताजपोशी उसके अपने प्रदर्शन से ज्यादा इस राज्य में भाजपा के खराब प्रदर्शन के चलते हुुई।

अब कांग्रेसियों को यह समझ में आ गया है कि उसका और सपा का वोट बैंक तकरीबन समान है। मुस्लिम मतदाताओं पर दावेदारी हो या फिर ठाकुुर वोटरों को लुभाने का सवाल। दोनों मुद्ïदोंं पर ये राजनीतिक दल आमने-सामने खड़े हंंैै। कानून व्यवस्था और बिजली के सवाल पर सोनिया और राहुुल ही नहीं कांग्रेसी मन्त्री भी मुलायम सिंह को आड़़ेे हाथों ले चुकेे हैंं। कांग्रेस का सपा से दूरी बनाये रखना इसी सबक का सबब हैै। जिसके तहत मुलायम केे ‘माई’ समीकरण को तोड़ऩे केे लिए कांग्रेस ने खासी तैयारी कर ली हैै। उ.प्र. से आने वाले अकलियत के सभी नेताओं को तकरीबन लालब_x009e_ाी से नवाज दिया गया है। मायावती को छोड़क़र कांग्रेस मेंं आए राशिद अल्वी राज्यसभा पा चुकेे हैैंं।

उ.प्र. में कांग्रेस की ताकत बढ़़ाना इसलिए भी जरूरी हैै क्योंकि कांग्रेस की नैया पार लगाने वाली सोनिया गांधी और राहुुल गांधी का मुख्य क्षेत्र यही प्रदेश है। लेकिन राज्य इकाई के अध्यक्ष और प्रभारियों के निरन्तर बदले जाने के चलते संगठन का ढांचा ही नहीं खड़़ा हो पा रहा हैै। ‘गांव-गांव’, ‘पांव-पांव’, ‘नगर-नगर’ ‘डगर-डगर’ कार्यक्र्रम चले। लेकिन संगठन के अभाव में दम तोड़़ गए। अरूण कुुमार सिंह मुन्ना ने इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान को लेकर कांग्रेस को गर्म करने की कोशिश की। एक प्रदर्शन भी किया। लेकिन अर्जुन सिंह के चलते मुन्ना की विदाई और पाल की ताजपोशी हो गई। पाल ने खूब दौरेे किए। वह कुुछ करते इससे पहले सलमान खुर्शीद को यह सोचकर बिठा दिया गया कि मुलायम से लड़ऩा हैै। लेकिन समर्थन और लड़़ाई की रणनीति जनता की समझ में नही आई। हालांकि सलमान को बिठाने केफैैसले केे पीछे अकलियत केे मतदाताओं को संदेश देने की रणनीति भी थी जो मुलायम का एक बड़़ा आधार हैै। राज्य इकाई के अध्यक्ष खुर्शीद की मानें तो, ‘‘अब यह पिघलने लगा हैै।’’ (देखेंं साक्षात्कार) लेकिन ईरान और कार्र्टूून केे मुद्ïदे पर सपा की सक्रियता और अन्य राजनीतिक दलोंं को लामबन्द करने की रणनीति से ऐसा दिखता हुुआ लग नहींं रहा हैै। उ.प्र. की राजनीतिक जमीन इस बात की गवाह हैै कि जब कोई बड़़ी पार्टी छोटी पार्टी से साझेदारी करती है तो फायदा हमेशा छोटी पार्टी को होता है। पहले प्रयोग केे रूप में मुलायम और कांग्रेस देखे जा सकते हैैं। नतीजतन, मुलायम सिंह ताकतवर होकर उभरेे। दूसरा प्रयोग भाजपा और बसपा का हैै। जो भाजपा पर भारी पड़़ा। इस लिहाज से मुलायम केे उद्ïभव के मूल में कांग्रेस हैै। अत: कांग्रेस को भी खड़़ा होने के लिए मुलायम को नेस्तनाबूद करना होगा।

लेकिन मुलायम से लड़ऩे की जगह कांग्रेसी आपस में भिड़ऩे लगे। सलमान आए ही थे कि जगदम्बिका पाल और सलमान समर्थकों में लट्ï्ïठम-लट्ï्ïठा हो गई। सलमान पर फाइव स्टार कल्चर और शहरी राजनीति के आरेाप चस्पा हुए। पाल कहते हैैं, ‘‘राहुुल की स्पीच कांग्रेस केे रिवाइवल का दस्तावेज है। सब पार्र्टियां चुनाव की तैयारियां कर रही हैं। हम बसपा से समझौते का दिवा स्वप्न देख रहे हैंं।’’ सलमान ने पहली बार बिना किसी करिश्माई नेता के बड़़ी रैैली करके भले ही दिखा दी हो। राहुुल और सोनिया गांधी चिन्तन बैठकेेंं और रोड शो कर चुकेे हों। लेकिन राज्य में कांग्रेस को खड़़ा करने के सभी फार्मूले फेेल होते नजर आ रहे हैैंं। राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष अरूण कुुमार सिंह मुन्ना इसे कुुछ यूं स्वीकार करते हैैंं, ‘‘हम लोग चरण सिंह, बहुुगुणा, जगजीवन राम, जनेश्वर मिश्र, राज नारायण, अटल बिहारी बाजपेई और नानाजी देशमुख सरीखे दिग्गज नेताओं से लड़क़र जीत चुकेे हैैं। अब तो मायावती और मुलायम से लड़ऩा हैै। आखिर उनसे लडऩे में क्यों दिक्कत हो रही हैै। लडऩे और लड़ाने वालों की कमजोरी हैै। ’’ जाति केे खांचे में बॅटे राजनीतिक चौसर पर कांग्रेसी गोटियां लगातार मिसफिट हो रही हैैं। कांग्रेस के एक पुराने नेता की मानें तो, ‘‘एक ऐसे समय में जब ठौर तलाश रहे अगड़े मतदाताओं को लुभाने की कोशिश होनी चाहिए थी। तब उसकी जगह वैश्य जाति के एक और सांसद को मन्त्री पद से नवाज कर अदूरदर्शिता का परिचय दिया गया।’’ हालांकि हाल में मन्त्री बनाए गए अखिलेश दास की पकड़, राजनीतिक पृष्ठभूमि और अनुभव नि:सन्देह श्रीप्रकाश जायसवाल से मीलोंं आगे हैैंं।
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राज्य इकाई केे अध्यक्ष रहे कांगे्रसी नेता अरूण कुुमार सिंह मुन्ना की मानें तो, ‘‘दलाल, चापलूस हमेशा राजनीतिक दलों में रहेे हैैं। पहले दलाल को भोजन-पानी, माल- मसाला दे दिया जाता था। ये नेताओं का मनो विनोद करते थे। लेकिन अब वे पॉलिटिक्स शेयर करने लगे हैैं। यही गलत है।’’

-उ.प्र. के प्रभारी कल्याण सिंह ने राजब_x008e_बर-अमर विवाद को लेकर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से बातचीत में कहा, ‘‘घरेलू लड़ाई तो शुरू हो गई हैै। निपटे चाहेे जैसे।’’

-कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘राजब_x008e_बर ने जो आवाज उठाई हैै। वह आम जनता और सपा केे आम कार्यकर्ता की आवाज हैै। देखने में भले ही यह न लगे कि राजब_x008e_बर के साथ इस मुद्ïदे पर कितने लोग हैैं। परन्तु इस विचारधारा के साथ सपा में बहुुत बड़ा तबका हैै जो महसूस करता हैै समाजवाद पूंजीवाद के हवाले हो गया है।’’

-प्रमोद तिवारी इस बात से इनकार करते हैं कि हाईजैैकर कांग्रेस में है। उनकी मानें तो, ‘‘कांग्रेस की लीडरशिप इतनी मजबूत हैै कि उसे हाईजैक नहीं किया जा सकता।’’ लेकिन वह यह कहना नहीं भूलते हैैं कि, ‘‘पहले कांशीराम को मायावती ने हाईजैक कर रखा था। इस बावत सर्वोच्च अदालत में याचिका भी दायर हो चुुकी है। अब मायावती खुद हाईजैक हो गई हैैं।’’

-पुराने समाजवादी और उ.प्र. केमुख्यमन्त्री रहे रामनरेश यादव की मानें तो, ‘‘आजादी के बाद शुरू हुुई इन राजनीतिक श_x008e_दावलियों का अमली स्वरूप समाजवादी सरकार केसमय से देखने में आने लगा। जब राजनीतिक लोगों को प्रश्रय न देकर ऐसे लोगों का प्रभाव बढ़ाने का काम हुुआ जो अपने स्वार्थ के लिए राजनीति में आए थे।’’

-राजनीति विज्ञान के प्रोफेेसर जमुना प्रसाद पाण्डेय बताते हैैंं, ‘‘दलाल संस्कृृति, हाईजैकर्स, ड्र्राइंग रूम पालिटिशियन तब से प्रभावी हुए जब से राजनीतिक दलोंं में वैचारिक प्रतिबद्घता खत्म हुुई। मूल्यों का महत्व नहीं रह गया।’’

-केेशरीनाथ त्रिपाठी की मानें तो, ‘‘क्षेत्रीय दलों ने राजनीति में इस संस्कृृति को बढ़ावा दिया। पहले इन्होंने केेन्द्र की सरकारों को राज्य की योजनाओं के लिए _x008e_लैकमेल किया। बाद में _x008e_लैकमेलिंग का यह सिलसिला व्यक्तिगत स्तर पर उतर आया और कई राजनीतिक दलों व व्यक्तियों का संस्कार बन गया।’’

समाज विज्ञानी बृजेश श्रीवास्तव बताते हैैं, ‘‘राजब_x008e_बर ने जो सवाल उठाए हैंं। उससे सपा का कितना नुकसान होगा यह कहना अभी मुश्किल हैै। लेकिन इतना तो तय हैै कि इस सवाल को लेकर पूरे राजनीतिक परिदृश्य में किसी न किसी नए बदलाव की उम्मीद या फिर ऐसी प्रवृ_x009e_िायों व व्यक्तियों केे खिलाफ लगातार खड़़ेे होने केे साहस का सिलसिला दिखेगा। जो नि:सन्देह एक शुभ संकत है।’’

-योगेश मिश्र


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Dr. Yogesh mishr

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