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भाजपा
दिनांक: 13._x007f_2.2_x007f__x007f_6
सपा से कुछ मिलती-जुलती जंग भाजपा में भी ‘परिक्रमा और पराक्र्रम’ केे जुमलो के साथ जारी है। यहां भी फण्ड मैनेजर और राजनीतिक प्रबन्धन सरीखे श_x008e_द दिग्गज राजनेताओं पर भारी पड़़ते हैं। उमा भारती का पार्टी से निष्कासन अगर केन्द्रीय स्तर पर इसकी जीती जागती मिसाल है तो हाईकमान ने ही राज्य में ‘परिक्र्रमा बनाम पराक्र्रम’ की कई लड़़ाईयों में परिक्रमा को तरजीह देने की कई नजीरेेंं कायम की हैैं। इसका कारण अपनों को रेेवडि़य़ां बांटना और दिग्भ्रम की स्थिति हैै।
कभी भाजपा के राजनीतिक उत्थान का सूत्रधार राज्य था-उ.प्र.। यहीं अयोध्या और अटल थे। लेकिन पिछले एक साल केे अखबारी कतरन में ढूूंंढा जाए तो भाजपा उ.प्र. की वजह से चर्चा में कम कुुचर्चा में ज्यादा हैै। साढ़़े आठ साल तक स_x009e_ाा में रहने केे बाद गुटबाजी के चलते पार्टी का अनुशासन तार-तार हुुआ। मुरादाबाद के विधायक संदीप अग्रवाल बीते साल अपने गृह जनपद में हुुई कार्यसमिति में शरीक होने तक नहीं आए। गाजीपुर केे नरेेन्द्र सिसौदिया रालोद के अजित सिंह के साथ मंच पर दिखाई पड़़ते हैं। इसके अलावा ठाकुुरद्वारा के सर्वेश कुमार सिंह, ललितपुर के पूरन सिंह बुन्देला, बाराबंकी की राजलक्ष्मी वर्मा, महोबा के बादशाह सिंह और कुशीनगर के बाल्टी बाबा सिर्र्फ तन से भाजपा में हैैं। ज्यों-ज्यों दवा की त्योंं-त्यों मर्ज बढ़़ता गया। क्योंकि केेन्द्रीय हाईकमान पार्टी को राज्य में खड़़ा करने की जगह अपने जेबी लोगों को ज्यादा तवज्जो देता हैै। लोकसभा चुनाव में हतप्रभ कर देने वाली पराजय केे बाद पार्टी में अटल की जगह आडवाणी का असर बढ़़ा। तो उसका असर राज्य में केशरीनाथ त्रिपाठी की ताजपोशी केे रूप में हुुआ। दिलचस्प यह हैै कि राष्ट्र्रीय संगठन महामन्त्री रहे संजय जोशी ने फोन पर विनय कटियार को स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों केे चलते इस्तीफा देने का संदेश दिया था। इस्तीफे केे बाद पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कटियार ने कहा था, ‘‘प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफा लेने का एक तरीका होना चाहिए।’’ कटियार ने इस बहाने को अनसुना कर दिया। कटियार जब अध्यक्ष बने तो उनका दिल्ली से तय हुुआ। पहले कल्याण सिंह को पार्टी से निकाला जाना फिर ओमप्रकाश सिंंह को राज्य इकाई के अध्यक्ष पद की कुुर्सी सौंंपकर वापस लेना और फिर बे-आबरू कर कटियार को हटाने से पिछड़़ेे मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में गलत सन्देश गया। आज उमा भारती के साथ किये गये सुलूक इसे पुख्ता करते हैैं कि भाजपा की सियासत में हमेशा पिछड़़ों को बे-आबरू करके अगड़़ों का राजतिलक किया जाता है। भाजपा के ग्राफ की गिरावट संभलने का नाम नहीं ले रही है। उपचुनाव में ६ सीटों पर भाजपा, कांग्रेस से भी पीछे चली गई। महज दो सवा दो साल पहले तक राज्य में शासन करने वाले किसी राजनीतिक दल की जमानत ज_x008e_त होने का दौर अगर शुरू हो जाए तो चिन्ता का सबब बनता ही हैै। सदन में भले ही भाजपा मुख्य विपक्षी दल हो लेकिन सदन केे बाहर यह अहमियत बसपा को हासिल हैै।
राज्य में जो भी नया अध्यक्ष आया उसने पार्टी चलाने की बजाय अपना गुट खड़़ा करने को ज्यादा तरजीह दी। नतीजतन, केशरी गुट, कटियार गुट, कलराज गुट, राजनाथ गुट, टन्डन गुट, कल्याण सिंह गुट सहित संघ और विहिप विचारधारा वालों के अलग-अलग गुट पार्टी में द्वीप की तरह दिखते हैैंं। राज्य इकाई का अध्यक्ष कोई और होता हैै तो संविद सरकार की मुख्यमन्त्री बहन मायावती के भाई की भूमिका मेें किसी की ‘सक्र्रियता’ कार्यकर्ताओं को दिग्भ्रमित करती हैै। लोकसभा चुनाव में केेशरी और कटियार दोनों की पराजय के बाद एक को पुरस्कार और दूसरेे को दण्ड का औचित्य हाईकमान समझा नहीं पाया। परिक्र्रमा बनाम पराक्र्रम की लड़ाई में गणेश परिक्र्रमा करने वाले हवाई नेताओं को दी जा रही तरजीह पार्टी की अधोगति का कारण हैै।
दिग्भ्रम की स्थिति तो यहां तक हैै कि किस नेता को कहां बिठाना है, किस दल के साथ क्या रिश्ते रखने हैैं। यह तय कर पाना भी मुश्किल हो रहा हैै। कल्याण सिंह की वापसी हुुई। लेकिन संसदीय बोर्र्ड मेंं जगह नहीं मिली। नेता प्रतिपक्ष लालजी टण्डन इस पद के उपयुक्त नहीं हैै। यह बात कहते हुए विधायक मिलते हैैं। केशरीनाथ त्रिपाठी की यही स्थिति राज्य इकाई के अध्यक्ष पद पर हैै। पार्टी केे एक पूर्व अध्यक्ष की मानें तो, ‘‘केशरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया जाना चाहिए। टन्डन, अटल के खासमखास हैंं। यही उनकेे रसूख और इकबाल केे लिए कम नहीं है।’’ राज्य में पार्टी की कोई निश्चित दशा व दिशा नहीं दिखाई दे रही हैै। कभी मायावती के साथ खड़़ी होती हैै। कभी मुलायम की सरकार बनवाने मेंं जुटी दिखती हैै तो कभी स_x009e_ाा पक्ष और कभी विपक्ष की भूमिका में दिखती हैै।
भाजपा को उबारने केे जो भी प्रयास हुए वे या तो इतने सतही थे कि उनसे अंजाम की उम्मीद करना किसी भी समझदार आदमी के लिए वाजिब नहीं था अथवा वे वूमरेेंग कर गए। भाजपा केे कार्यकर्ता ने राज्य में पार्टी की दुर्गति बयान करते हुए कहा, ‘‘भाजपा की उ.प्र. इकाई में हर आदमी अपनी हनक चलाना चाहता हैै। केन्द्रीय हाईकमान ने राज्य केे नेताओं पर पूरा भरोसा कभी नहीं किया।’’ पार्टी ‘प्रभारी’, ‘महाप्रभारी’ और ‘सुपर प्रभारी’ के बीच झूलती रही। राज्य में भाजपा की लड़़ाई विपक्ष के बजाय अपनों तक सिमट गई हैै। लेकिन दिलचस्प यह हैै कि इतने संकटों से घिरी पार्टी को काफी लम्बे समय दिल्ली हाईकमान तदर्थ आधार पर ही चलाता आ रहा हैै। ओमप्रकाश सिंह, कलराज मिश्र, विनय कटियार केे बाद केशरी की भी तदर्थ नियुक्ति ही हुुई हैै।
पार्टी में भगदड़़ मची हुुई हैै। तकरीबन २३ विधायक या पूर्व विधायक बसपा, रालोद तथा समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुकेे हैैं। कभी अटल बिहारी बाजपेई के खास सिपहसालार रहे गुड्ï्ïडेे पाण्डेेय को भाजपा में दम नजर नहीं आया। नतीजतन, कांग्रेस में चले गए। पूर्व गृह राज्यमन्त्री रंंगनाथ मिश्र को जब भाजपा जिताऊ नजर नहीं आई तो हाथी पर सवार हो लिए। युवा मोर्चे को छोड़़ दें तो ज्यादातर संगठन कुुम्भकर्णी नींद सो रहेे हैैंं। हालात इतने बदतर हो गए कि युवा मोर्चे के प्रदर्शन में गिरफ्ï्तार पार्टी कार्यकर्ताओं को जमानतदार नहीं मिले। नतीजतन, वे तीन दिन बाद छूूट पाए। बची-खुची कसर उमा भारती की जनादेश यात्रा और राम-रोटी यात्रा ने निकाल दी। असली बनाम नकली भाजपा की लड़़ाई में कार्यकर्ताओं के साथ बाजी मारती दिख रही उमा भारती केे पार्टी के मौलिक मुद्ïदों से जुड़़ाव और कार्यकर्ताओं की मनचाही कहे जाने से यह तो साफ हो गया है कि उमा भारती राज्य में भाजपा को कल्याण सिंह से अधिक नुकसान पहुंंचाएंगी। ऐसा नहीं कि इसे लेकर पार्टी किसी गफलत में हैै। क्योंंकि उमा के सवाल पर केशरीनाथ त्रिपाठी से लेकर राजनाथ सिंह तक सब यह कहकर कन्नी काट लेते हैैंं कि, ‘‘उनकी यात्रा राजनीतिक नहींं हैै। वे पार्टी की सदस्य नहींं हैैं। लिहाजा नो कमेन्ट।’’ लेकिन राजनाथ और केशरीनाथ के गढ़ में हुुंंकार भरने के साथ-साथ भाजपा के उत्कर्ष के मुद्ïदे राम मन्दिर के अयोध्या में अभूतपूर्व उपस्थिति दर्ज करा चुकी उमा भारती भाजपा की ताबूत में अन्तिम कील साबित न हों इसके लिए अब सबको मिलकर कोशिश करनी होगी। क्योंंकि कार्यकर्ताओं की न_x008e_ज पर हाथ रखा जाए तो यह संदेश साफ तौर से पढ़़ा जा सकता हैै।
-योगेश मिश्र
सपा से कुछ मिलती-जुलती जंग भाजपा में भी ‘परिक्रमा और पराक्र्रम’ केे जुमलो के साथ जारी है। यहां भी फण्ड मैनेजर और राजनीतिक प्रबन्धन सरीखे श_x008e_द दिग्गज राजनेताओं पर भारी पड़़ते हैं। उमा भारती का पार्टी से निष्कासन अगर केन्द्रीय स्तर पर इसकी जीती जागती मिसाल है तो हाईकमान ने ही राज्य में ‘परिक्र्रमा बनाम पराक्र्रम’ की कई लड़़ाईयों में परिक्रमा को तरजीह देने की कई नजीरेेंं कायम की हैैं। इसका कारण अपनों को रेेवडि़य़ां बांटना और दिग्भ्रम की स्थिति हैै।
कभी भाजपा के राजनीतिक उत्थान का सूत्रधार राज्य था-उ.प्र.। यहीं अयोध्या और अटल थे। लेकिन पिछले एक साल केे अखबारी कतरन में ढूूंंढा जाए तो भाजपा उ.प्र. की वजह से चर्चा में कम कुुचर्चा में ज्यादा हैै। साढ़़े आठ साल तक स_x009e_ाा में रहने केे बाद गुटबाजी के चलते पार्टी का अनुशासन तार-तार हुुआ। मुरादाबाद के विधायक संदीप अग्रवाल बीते साल अपने गृह जनपद में हुुई कार्यसमिति में शरीक होने तक नहीं आए। गाजीपुर केे नरेेन्द्र सिसौदिया रालोद के अजित सिंह के साथ मंच पर दिखाई पड़़ते हैं। इसके अलावा ठाकुुरद्वारा के सर्वेश कुमार सिंह, ललितपुर के पूरन सिंह बुन्देला, बाराबंकी की राजलक्ष्मी वर्मा, महोबा के बादशाह सिंह और कुशीनगर के बाल्टी बाबा सिर्र्फ तन से भाजपा में हैैं। ज्यों-ज्यों दवा की त्योंं-त्यों मर्ज बढ़़ता गया। क्योंकि केेन्द्रीय हाईकमान पार्टी को राज्य में खड़़ा करने की जगह अपने जेबी लोगों को ज्यादा तवज्जो देता हैै। लोकसभा चुनाव में हतप्रभ कर देने वाली पराजय केे बाद पार्टी में अटल की जगह आडवाणी का असर बढ़़ा। तो उसका असर राज्य में केशरीनाथ त्रिपाठी की ताजपोशी केे रूप में हुुआ। दिलचस्प यह हैै कि राष्ट्र्रीय संगठन महामन्त्री रहे संजय जोशी ने फोन पर विनय कटियार को स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों केे चलते इस्तीफा देने का संदेश दिया था। इस्तीफे केे बाद पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कटियार ने कहा था, ‘‘प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफा लेने का एक तरीका होना चाहिए।’’ कटियार ने इस बहाने को अनसुना कर दिया। कटियार जब अध्यक्ष बने तो उनका दिल्ली से तय हुुआ। पहले कल्याण सिंह को पार्टी से निकाला जाना फिर ओमप्रकाश सिंंह को राज्य इकाई के अध्यक्ष पद की कुुर्सी सौंंपकर वापस लेना और फिर बे-आबरू कर कटियार को हटाने से पिछड़़ेे मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में गलत सन्देश गया। आज उमा भारती के साथ किये गये सुलूक इसे पुख्ता करते हैैं कि भाजपा की सियासत में हमेशा पिछड़़ों को बे-आबरू करके अगड़़ों का राजतिलक किया जाता है। भाजपा के ग्राफ की गिरावट संभलने का नाम नहीं ले रही है। उपचुनाव में ६ सीटों पर भाजपा, कांग्रेस से भी पीछे चली गई। महज दो सवा दो साल पहले तक राज्य में शासन करने वाले किसी राजनीतिक दल की जमानत ज_x008e_त होने का दौर अगर शुरू हो जाए तो चिन्ता का सबब बनता ही हैै। सदन में भले ही भाजपा मुख्य विपक्षी दल हो लेकिन सदन केे बाहर यह अहमियत बसपा को हासिल हैै।
राज्य में जो भी नया अध्यक्ष आया उसने पार्टी चलाने की बजाय अपना गुट खड़़ा करने को ज्यादा तरजीह दी। नतीजतन, केशरी गुट, कटियार गुट, कलराज गुट, राजनाथ गुट, टन्डन गुट, कल्याण सिंह गुट सहित संघ और विहिप विचारधारा वालों के अलग-अलग गुट पार्टी में द्वीप की तरह दिखते हैैंं। राज्य इकाई का अध्यक्ष कोई और होता हैै तो संविद सरकार की मुख्यमन्त्री बहन मायावती के भाई की भूमिका मेें किसी की ‘सक्र्रियता’ कार्यकर्ताओं को दिग्भ्रमित करती हैै। लोकसभा चुनाव में केेशरी और कटियार दोनों की पराजय के बाद एक को पुरस्कार और दूसरेे को दण्ड का औचित्य हाईकमान समझा नहीं पाया। परिक्र्रमा बनाम पराक्र्रम की लड़ाई में गणेश परिक्र्रमा करने वाले हवाई नेताओं को दी जा रही तरजीह पार्टी की अधोगति का कारण हैै।
दिग्भ्रम की स्थिति तो यहां तक हैै कि किस नेता को कहां बिठाना है, किस दल के साथ क्या रिश्ते रखने हैैं। यह तय कर पाना भी मुश्किल हो रहा हैै। कल्याण सिंह की वापसी हुुई। लेकिन संसदीय बोर्र्ड मेंं जगह नहीं मिली। नेता प्रतिपक्ष लालजी टण्डन इस पद के उपयुक्त नहीं हैै। यह बात कहते हुए विधायक मिलते हैैं। केशरीनाथ त्रिपाठी की यही स्थिति राज्य इकाई के अध्यक्ष पद पर हैै। पार्टी केे एक पूर्व अध्यक्ष की मानें तो, ‘‘केशरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया जाना चाहिए। टन्डन, अटल के खासमखास हैंं। यही उनकेे रसूख और इकबाल केे लिए कम नहीं है।’’ राज्य में पार्टी की कोई निश्चित दशा व दिशा नहीं दिखाई दे रही हैै। कभी मायावती के साथ खड़़ी होती हैै। कभी मुलायम की सरकार बनवाने मेंं जुटी दिखती हैै तो कभी स_x009e_ाा पक्ष और कभी विपक्ष की भूमिका में दिखती हैै।
भाजपा को उबारने केे जो भी प्रयास हुए वे या तो इतने सतही थे कि उनसे अंजाम की उम्मीद करना किसी भी समझदार आदमी के लिए वाजिब नहीं था अथवा वे वूमरेेंग कर गए। भाजपा केे कार्यकर्ता ने राज्य में पार्टी की दुर्गति बयान करते हुए कहा, ‘‘भाजपा की उ.प्र. इकाई में हर आदमी अपनी हनक चलाना चाहता हैै। केन्द्रीय हाईकमान ने राज्य केे नेताओं पर पूरा भरोसा कभी नहीं किया।’’ पार्टी ‘प्रभारी’, ‘महाप्रभारी’ और ‘सुपर प्रभारी’ के बीच झूलती रही। राज्य में भाजपा की लड़़ाई विपक्ष के बजाय अपनों तक सिमट गई हैै। लेकिन दिलचस्प यह हैै कि इतने संकटों से घिरी पार्टी को काफी लम्बे समय दिल्ली हाईकमान तदर्थ आधार पर ही चलाता आ रहा हैै। ओमप्रकाश सिंह, कलराज मिश्र, विनय कटियार केे बाद केशरी की भी तदर्थ नियुक्ति ही हुुई हैै।
पार्टी में भगदड़़ मची हुुई हैै। तकरीबन २३ विधायक या पूर्व विधायक बसपा, रालोद तथा समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुकेे हैैं। कभी अटल बिहारी बाजपेई के खास सिपहसालार रहे गुड्ï्ïडेे पाण्डेेय को भाजपा में दम नजर नहीं आया। नतीजतन, कांग्रेस में चले गए। पूर्व गृह राज्यमन्त्री रंंगनाथ मिश्र को जब भाजपा जिताऊ नजर नहीं आई तो हाथी पर सवार हो लिए। युवा मोर्चे को छोड़़ दें तो ज्यादातर संगठन कुुम्भकर्णी नींद सो रहेे हैैंं। हालात इतने बदतर हो गए कि युवा मोर्चे के प्रदर्शन में गिरफ्ï्तार पार्टी कार्यकर्ताओं को जमानतदार नहीं मिले। नतीजतन, वे तीन दिन बाद छूूट पाए। बची-खुची कसर उमा भारती की जनादेश यात्रा और राम-रोटी यात्रा ने निकाल दी। असली बनाम नकली भाजपा की लड़़ाई में कार्यकर्ताओं के साथ बाजी मारती दिख रही उमा भारती केे पार्टी के मौलिक मुद्ïदों से जुड़़ाव और कार्यकर्ताओं की मनचाही कहे जाने से यह तो साफ हो गया है कि उमा भारती राज्य में भाजपा को कल्याण सिंह से अधिक नुकसान पहुंंचाएंगी। ऐसा नहीं कि इसे लेकर पार्टी किसी गफलत में हैै। क्योंंकि उमा के सवाल पर केशरीनाथ त्रिपाठी से लेकर राजनाथ सिंह तक सब यह कहकर कन्नी काट लेते हैैंं कि, ‘‘उनकी यात्रा राजनीतिक नहींं हैै। वे पार्टी की सदस्य नहींं हैैं। लिहाजा नो कमेन्ट।’’ लेकिन राजनाथ और केशरीनाथ के गढ़ में हुुंंकार भरने के साथ-साथ भाजपा के उत्कर्ष के मुद्ïदे राम मन्दिर के अयोध्या में अभूतपूर्व उपस्थिति दर्ज करा चुकी उमा भारती भाजपा की ताबूत में अन्तिम कील साबित न हों इसके लिए अब सबको मिलकर कोशिश करनी होगी। क्योंंकि कार्यकर्ताओं की न_x008e_ज पर हाथ रखा जाए तो यह संदेश साफ तौर से पढ़़ा जा सकता हैै।
-योगेश मिश्र
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