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‘बारूद के ढेर पर’
दिनांक: 13._x007f_3.2_x007f__x007f_006
अयोध्या के बाद बनारस के संकटमोचन मन्दिर पर विस्फोट से इस बात का साफ पता चलता है कि सूबे की अहम जगहें भी आतंकी जद से महफूज नहीं हैं। बनारस में ही आतंकियों की यह पहली वारदात नहीं थी। इससे पहले भी बीते 23 फरवरी को दशाश्वमेध घाट पर हुआ विस्फोट और बरामद आरडीएक्स इस बात का साफ संकेत था कि वाराणसी को आतंकवादियों से खतरा है। यह बात दीगर है कि इसे पुलिस ने सिलेण्डर विस्फोट की घटना बताकर लीपापोती कर दी थी। पिछले दिनों खुफिया तन्त्र ने प्रशासन को काशी के जिन क्षेत्रों के लिए विशेष तौर पर सतर्क किया था। उनमें काशी विश्वनाथ मन्दिर और रेलवे स्टेशन प्रमुख थे। इतना ही नहीं, कुछ दिनों पूर्व वाराणसी के वीरापट्ïटी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से कूदकर भागे व बाद में परमानन्दपुर में पकड़े गए लश्कर के आतंकवादी अली अहमद उर्फ अबू हैदर ने वाराणसी में मीडिया के सामने कहा था, ‘‘काशी उसके संगठन के निशाने पर है।’’
लश्कर-ए-तोएबा की एक बार फिर से सक्रियता के मद्ïदेनजर गृह मंत्रालय ने खुफिया महकमे को भेजे एक गोपनीय पत्र में कहा है, ‘‘लश्कर ने एचएएल कानपुर को अपने निशाने पर लिया है। इसके अलावा इण्डियन मिलेट्री अकादमी, देहरादून पर भी लश्कर की निगाहे हैं।’’ गृह मंत्रालय की ओर से जारी पत्र डीडी/11_x007f_34/2 के मुताबिक जम्मू कश्मीर से लश्कर-ए-तोएबा की योजनाओं को कई सुरक्षा एजेन्सियों ने इन्टरसेप्ट किया है। जिसके आधार पर यह सूचना दी जा रही है। इसके अलावा पत्र में उ.प्र. के आसपास लगे पावर प्रोजेक्ट को भी लश्कर के निशाने पर बताया गया है।
दिल्ली में हुई वारदातों के सूत्र पुलिस को राज्य के पश्चिमी इलाकों में हाथ लगते हैं। यह कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि पिछले दिनों दिल्ली में हुए सीरियल बम _x008e_लास्ट की पड़ताल करने वाली एन्टी टेरेरिस्ट सेल के लिए सहारनपुर से की गई एक टेलीफोन काल मददगार साबित हुई। नतीजतन, जांच एजेन्सियों की निगाह सहारनपुर ही नहीं समूचे पश्चिमी उ.प्र. पर गड़ गई। गौरतलब है कि अयोध्या हमले के तार भी पुलिस को सहारनपुर से जुड़े मिले थे। हमले के एक प्रमुख आरोपी डा. इरफान को पुलिस ने सहारनपुर से गिरफ्ïतार किया था। खुफिया सूत्रों की मानें तो लश्कर-ए-तोएबा और जैश-ए-मोहम्मद के कई प्रमुख आतंकवादियों का पश्चिमी उ.प्र. में न केवल आना-जाना रहा है बल्कि यह इलाका उनकी शरणस्थली भी रहा है। लगभग एक दशक पहले कश्मीर के आतंकवादियों द्वारा तीन ब्रिटिश नागरिकों का अपहरण करने के बाद उन्हें सहारनपुर में ही रखा गया था। लश्कर के एक कमाण्डर सालार उर्फ हामिद के अलावा इसी संगठन के मोहम्मद जकारिया का यहां आना-जाना रहा है। इतना ही नहीं, जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर की कर्मस्थली सहारनपुर रही है। बीते 5 जुलाई को हुए अयोध्या हमले की जांच में इस तथ्य का खुलासा हुआ कि हमले के दौरान मारे गए 5 आतंकवादियों में से एक देवबंद गया था। वहां ठहरा था। बुलन्दशहर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्घनगर और अलीगढ़ पुलिस ने महिलाओं को भी आईएसआई के लिए काम करते गिरफ्ïतार किया है। गाजियाबाद पर आईएसआई की गिद्घ दृष्टिï है। यहां का पिलखुआ पाक नागरिकों और बंगलादेशियों के छिपने का सबसे महफूज ठिकाना साबित हो रहा है। यहां सबसे पहला मामला 14 जनवरी, 1994 को प्रकाश में आया। दिल्ली व पिलखुआ पुलिस ने पाक एजेन्ट अ_x008e_दुल करीम उर्फ टुंडा के छिपे होने की सूचना पर अशोक नगर के मकान नम्बर 192 पर छापा मारा। यहां से पुलिस ने आरडीएक्स व दूसरे विस्फोटक पदार्थ, डेटोनेटर बरामद किए। टुंडा पुलिस दबिश से पहले भागने में कामयाब रहा। 16 मार्च 1998 को पुलिस ने यहां से टुंडा के रिश्तेदार महमूद आलम को गिरफ्ïतार किया। वह यहां से आईएसआई के लिए चोरी छिपे काम कर रहा था। धौलाना का शमशाद अहमद व उसकी पत्नी अनवरी देवी वर्ष 1993 से अंाखमिचौली खेल रहे हैं। निवाड़ी से महमूदन, हापुड़ से अ_x008e_दुल कय्ïयूम, मोहम्मद नईम, विरासत अली, जकरिया उर्फ नूर मोहम्मद, रफीमुद्ïदीन अ_x008e_दुल्ला की पत्नी गुलाम जन्नत व पिलखुआ से सहौरी बेगम लापता हैं। पुलिस संशय में है कि ये लोग जिंदा भी हैं या नहीं। पुलिस आंकड़ों पर गौर करें तो आज भी दस पाकिस्तानी नागरिक इस इलाके में उनकी पकड़ से बाहर हैं। लश्कर के आतंकवादियों को छिपाए रखने के आरोप में बीते साल हापुड़ पुलिस ने सलीम हुसैन, कल्लन, रफीक अली व रहीश अली को गिरफ्ïतार किया। हालांकि पुलिस आतंकवादियों को नहीं पकड़ सकी। दबिश से पहले ही वे फरार हो गए। इसी दौरान एजाज अहमद के यहां मारी गई दबिश में आईएसआई एजेन्ट हरिनारायण शाह के कपड़े और सामान मिले। मुजफ्फरनगर के रहस्यमयी चमत्कारिक बाबा पर भी विदेश्ीा एजेन्सियों के लिए काम करने के आरोप लगे। बाबा पर पाकिस्तानी होते हुए भी हिन्दुस्तानी नागरिकता और वोटरलिस्ट में नाम डलवाने को लेकर जांच तो बैठाई गई। लेकिन नतीजा शिफर ही रहा। कश्मीर मुठभेड़ में मारे गए गाजी बाबा के तार राज्य के बिजनौर जिले से जुड़े थे। गाजी बाबा के साथ मरने वाले आतंकवादियों में बिजनौर के काजीवाला गांव के जहीर, गांवड़ी के शहाबुद्ïदीन और किरतपुर के मोहम्मद वारिश भी थे। खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘गाजी बाबा भी दो-तीन बार यहां की यात्रा कर चुका था।’’ गाजियाबाद मे जैश-ए-मोहम्मद के एरिया कमाण्डर मंसूर डार के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद शामली में संगठन से जुड़े दो छात्रों के पकड़े जाने से इस बात की पुष्टिï हुई कि पश्चिमी उ.प्र. में आतंकवादियों ने गहरी पैठ बना ली है। पाकिस्तान में बैठे इकबाल काणा के हाथों इस इलाके की बागडोर थी। केन्द्रीय गृहमन्त्री शिवराज पाटिल ने खुद यह स्वीकार किया, ‘‘हिज्ब-ए-इस्लामी, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा, हिजबुल मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठनों ने अपना नेटवर्क पश्चिमी उ.प्र. के कई हिस्सो में फैला लिया है।’’
लखनऊ पर आतंकियों की खास नजर है। इस बात को अभी दो दिन पहले मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव ने सभी दलों के नेताओं के साथ हुई एक गोपनीय बैठक में स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘विधानसभा पर आतंकियों की नजर है।’’ हालांकि तकरीबन एक साल पहले लखनऊ के पुलिस कप्तान नवनीत सिकेरा ने इन खतरों का जिक्र करते हुए अपने मातहतों को सतर्क रहने के निर्देश दिए थे। तब इसे नजरअंदाज कर दिया गया था। पुलिस कप्तान की गोपनीय चिट्ïठी एसटीएसएसपी-2_x007f_/2_x007f__x007f_5/एफ में लिखा था, ‘‘लखनऊ की जिला जेल में लालकिला और सीआरपीएफ कैम्प नई दिल्ली पर हमले के आरोपी मकसूद अहमद और मोहम्मद सईद बन्द हैं। इन्हीं के साथ लखनऊ पुलिस द्वारा 12 मई 2_x007f__x007f_4 को पकड़े गए पाक प्रशिक्षित लश्कर-ए-तोएबा के अतहरूद्ïदीन और मोहम्मद इरफान भी हैं। इसके साथ ही साथ आईएसआई एजेन्टों का मूवमेन्ट लखनऊ में होने के चलते विधानसभा और कई ठिकानों पर खतरा मडऱा रहा है।’’ इस चिट्ïठी में सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह किया गया था कि पाक निवासी लश्कर के हिकमतयार, अबू अमीर और मोहम्मद यार खान उ.प्र. में अपना आधार तेजी से बनाने की कोशिश में लगे हैं। इतना ही नहीं, 2_x007f__x007f_2 में लश्कर के एरिया कमाण्डर चांद खां की गिरफ्ïतारी के बाद खुफिया विभाग को मिली जानकारी में लखनऊ में लश्कर के स्लीपिंग मॉड्ïयूल्स होने की बात सामने आई थी। लश्कर के एरिया कमाण्डर चांद खां उर्फ चांद ने उ.प्र. और दिल्ली पुलिस सहित खुफिया विभाग के आला अधिकारियों को जानकारी दी थी कि वह कई बार अपने साथियों के साथ लखनऊ गया। रूका और अपने साथियों से कई योजनाओं पर बात की। कथित तौर पर मोदी की हत्या के लिए अहमदाबाद पहुंचे इशरत और जावेद के भी लखनऊ के लाटूश रोड स्थित होटल और फैजाबाद के इब्राहिमपुर देवली निवासी मेराज के घर रूकने की पुष्टिï हुई थी। लश्कर-ए-तोएबा का बेस कैम्प लखनऊ में बनाकर गरीब युवाओं को संगठन मे भर्ती कराने वाले दो आतंकवादियों को एसटीएफ ने गिरफ्ïतार किया जिनके पास से 4 किलोग्राम विस्फोटक के साथ ही साथ अमेरिका निर्मित 32 बोर की पिस्तौल और भारी मात्रा में कारतूस बरामद हुए। वर्ष 2_x007f__x007f_3 में सिमी ने प्रतिबन्ध के बावजूद लखनऊ के अमीनाबाद में एक सेमिनार आयोजित करके सबको हतप्रभ कर दिया था। उ.प्र. में अपनी तमाम विफलताओं से आहत लश्कर ने स्थानीय सम्पर्कों की मदद के लिए सिमी से हाथ मिलाया। इसकी श्ुारूआत लश्कर के नायब कमाण्डर अमीर-ए-आला ने की। सिमी ने कानपुर में वर्ष 2_x007f__x007f__x007f_ में ही अपनी खासी पैठ बना ली थी। उसी समय हलीम डिग्री कालेज, चमनगंज में एक जलसा आयोजित कराया था। जलसे के ठीक एक साल बाद दंगे के दौरान कानपुर के थाना स्वरूपनगर में विस्फोट में अपर जिलाधिकारी सी.पी. पाठक की हत्या सिमी से जुड़े आतंकवादियों ने अंजाम दिया। इसमें शामिल वाशिद, जुबैर और गुलाम जिलानी से की गई पूछताछ में आरडीएक्स राकेट लांचर, रिमोट डिवाइस व वायरलेस बरामद हुए। आईबी के उच्च पदस्थ अधिकारी की मानें तो, ‘‘प्रतिबन्ध के बाद उ.प्र. और बिहार में यह तहरीक-ए-तजम्मुले इस्लाम के नाम से काम कर रही है। इसकी एक अन्य शाखा तहरीक-ए-तफज्जुले इस्लाम भी है। दोनों इन दिनों सक्रिय हैं और लश्कर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। बाराबंकी, बनारस और सिद्घार्थनगर में सिमी ने अभी हाल में गुप्त बैठकें की हैं।’’ लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादी मोहम्मद हारून के सम्पर्क सूत्र कानपुर में होने की जानकारी पर खुफिया टीम ने वहां छानबीन की। हारून एचएएल में अभियन्ता रहा। सिद्घार्थनगर में पकड़ा गया आईएसआई एजेन्ट कानपुर का अकील था। तमाम आतंकी संगठनों ने अपनी शाखाएं गोरखपुर और बनारस सहित पूर्वांचल के कई इलाकों में खोल दी हैं। मुजफ्ïफरनगर, गाजियाबाद और मेरठ के बाद कानपुर का नाम सबसे ज्यादा खतरे वाले शहर में है। अभिसूचना महकमा की मानें तो, ‘‘कानपुर में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा से लेकर हरकत-उल-अंसार और सिमी की गतिविधियां पश्चिमी उ.प्र. से ज्यादा चल रही हैं। आतंकियों को शरण देने के मामले में भी कानपुर सबसे आगे है।’’
खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘ उ.प्र. के 36 जिलों में आईएसआई की गतिविधियां जारी हैं। 11 बड़े आतंकवादी संगठनों की राज्य में पैठ है।’’ बीते माह पुलिस सप्ताह के दौरान इन संगठनों के बावत खुफिया महकमे की रिपोर्ट पर चर्चा भी हुई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया, ‘‘पासबा-ए-अहले हदीश, अलमंसूरन (लश्कर-ए-तोएबा), अलफुरकान/खुदामुल इस्लाम (जैश-ए-मोहम्मद), हिजबुल मुजाहिद्ïदीन, हरकत-उल-मुजाहिद्ïदीन/जमीअतुल अंसार (हरकत-उल-अंसार), जमायत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रन्ट, जम्मू कश्मीर तहरीकुल मुजाहिदीन, जम्मू कश्मीर इख्तान-उल-मुसलमीन तथा अलबर्क तंजीब के एजेन्टों ने कामकाज उ.प्र. में तेज कर दिया है।’’ 1992 से 2_x007f__x007f_5 तक आईएसआई के 65 एजेन्ट, 9 आतंकवादी और 45 आश्रयदाता गिरफ्ïतार हुए। 17 जिलों में पाकिस्तान पोषित आतंकवादी संगठनों द्वारा विस्फोट के प्रयास। आतंकियों की नजर में आतंक फैलाने का सबसे आसान तरीका रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में विस्फोट कर बड़े जन समुदाय को नुकसान पहुंचाना है। इसी के मद्ïदेनजर बीते चार सालों में रेलवे स्टेशन और गाडिय़ों में 6 बड़े विस्फोट करने में वे कामयाब हुए हैं। सीमापार के फिदायनी जिस तरह से विस्फोट की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। उसे पता चलता है कि किस कदर आतंकवादियों ने राज्य को साफ्ïट टारगेट बना रखा है। ताजमहल को उड़ाने की धमकी मिल चुकी है। बुन्देलखण्ड इलाके को आतंकवादियों की पैठ से दूर समझा जा रहा था। लेकिन उरई से लखनऊ के 2-डी, सुन्दरनगर, आलमबाग निवासी अतीक अहमद के नाम रेलवे से बुक कराए गए 2_x007f__x007f_ किलो आरडीएक्स पाउडर, एक बोरी डिटोनीटर और इतने ही तारों की बरामदगी ने खुफिया महकमे के कान खड़े कर दिए हैं। में भारी मात्रा में पकड़े गए आरडीएक्स ने पुलिस की नींद उड़ा दी। खुफिया एजेन्सियों से बचने के लिए नौजवानों को कश्मीर के रास्ते पाकिस्तान भेजने की जगह उनकी भर्ती काठमाण्डू में की जा रही है। इसके चलते नेपाल सीमा से लगे महराजगंज, सिद्घार्थनगर, बहराइच और लखीमपुर खीरी जिलों मं आतंकियों की घुसपैठ बढ़ गई है। इस इलाके में नेपाल के माओवादियों की आमद रफ्ïत ने भी इलाके के अमन चैन में सेंध लगाई है। यह बात दीगर है कि इस इलाके को सेफ पैसेज मानते हुए माओवादी यहां कोई वारदात नहीं कर रहे हैं। राज्य का सोनभद्र और चन्दौली जिला नक्सलवादियों के निशाने पर है।
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लश्कर के उ.प्र. कमाण्डर और संकटमोचन विस्फोट के पुलिसिया रिकार्ड में आरोपी कुख्यात आतंकी सालार उर्फ डाक्टर को मुठभेड़ में मार गिराने के बाद पुलिस भले ही जो दावा करे। लेकिन हकीकत यह है कि सालार के मारे जाने से देश अथवा प्रदेश में दहशतगर्दों की हरकतों पर लगाम नहीं लगने वाली। प्रदेश में बीते 15 सालों में हुए जघन्य आतंकवादी घटनाओं में शामिल 3_x007f_ से ज्यादा आतंकवादी अरसे से फरार चल रहे हैं। इनमें अधिकांशत: आईएसआई एजेन्ट हैं। बीते साल 28 जुलाई को श्रमजीवी एक्सप्रेस में विस्फोट करने वालों का कुछ पता नहीं है। इसके अलावा मुजफ्ïफरनगर निवासी हरकत-उल-अंसार का सदस्य महमूद उर्फ मामू, आतंकियों को शरण देने वाला अ_x008e_दुल्ला उर्फ भूरा, मेरठ निवासी सलीम उर्फ जल्ला उर्फ पतला पुलिस की गिरफ्ïत से दूर हैं। 1993 में गाजियाबाद के करीब पीएसी कैम्प में विस्फोट करने वाले अलवर्क अंजीम का सदस्य सलीम, कानपुर में राजधानी एक्सप्रेस में विस्फोट करने वाले लश्कर के कमरूल हसन उर्फ इलियास, 2_x007f__x007f__x007f_ में आगरा में हुए बम विस्फोट में शामिल जैश-ए-मोहम्मद का मोहम्मद यूसुफ और एस.एम. मुश्ताक भी पुलिस और खुफिया एजेन्सियों की पकड़ से बाहर है। वर्ष 2_x007f__x007f__x007f_ में गोमती एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में शामिल हिजबुल के आतंकी अलीगढ़ के अली मोहम्मद, इसी साल कानुपर में हुए बम विस्फोट के आरोपी अरशद, अम्बेडकरनगर के मुश्तकीम और उजैर भी फरार चल रहे हैं। 1992 में अलीगढ़ में पकड़े गए आईएसआई एजेन्ट मोहम्मद यासीन व उसकी पत्नी सरफरोज बेगम भी फरार हैं। गोरखपुर के मेनका सिनेमा हाल में हुए बम विस्फोट में संलिप्त मिर्जा दिलशाद बेग, जिलानी, अफजाल खान, पिलखुआ गाजियाबाद का करीम उर्फ टुंडा, कानपुर राजधानी एक्सप्रेस बम विस्फोट में शामिल हरदोई का मोहम्मद मतीन उर्फ तुफैल भी अभी तक फरार है।
-योगेश मिश्र
अयोध्या के बाद बनारस के संकटमोचन मन्दिर पर विस्फोट से इस बात का साफ पता चलता है कि सूबे की अहम जगहें भी आतंकी जद से महफूज नहीं हैं। बनारस में ही आतंकियों की यह पहली वारदात नहीं थी। इससे पहले भी बीते 23 फरवरी को दशाश्वमेध घाट पर हुआ विस्फोट और बरामद आरडीएक्स इस बात का साफ संकेत था कि वाराणसी को आतंकवादियों से खतरा है। यह बात दीगर है कि इसे पुलिस ने सिलेण्डर विस्फोट की घटना बताकर लीपापोती कर दी थी। पिछले दिनों खुफिया तन्त्र ने प्रशासन को काशी के जिन क्षेत्रों के लिए विशेष तौर पर सतर्क किया था। उनमें काशी विश्वनाथ मन्दिर और रेलवे स्टेशन प्रमुख थे। इतना ही नहीं, कुछ दिनों पूर्व वाराणसी के वीरापट्ïटी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से कूदकर भागे व बाद में परमानन्दपुर में पकड़े गए लश्कर के आतंकवादी अली अहमद उर्फ अबू हैदर ने वाराणसी में मीडिया के सामने कहा था, ‘‘काशी उसके संगठन के निशाने पर है।’’
लश्कर-ए-तोएबा की एक बार फिर से सक्रियता के मद्ïदेनजर गृह मंत्रालय ने खुफिया महकमे को भेजे एक गोपनीय पत्र में कहा है, ‘‘लश्कर ने एचएएल कानपुर को अपने निशाने पर लिया है। इसके अलावा इण्डियन मिलेट्री अकादमी, देहरादून पर भी लश्कर की निगाहे हैं।’’ गृह मंत्रालय की ओर से जारी पत्र डीडी/11_x007f_34/2 के मुताबिक जम्मू कश्मीर से लश्कर-ए-तोएबा की योजनाओं को कई सुरक्षा एजेन्सियों ने इन्टरसेप्ट किया है। जिसके आधार पर यह सूचना दी जा रही है। इसके अलावा पत्र में उ.प्र. के आसपास लगे पावर प्रोजेक्ट को भी लश्कर के निशाने पर बताया गया है।
दिल्ली में हुई वारदातों के सूत्र पुलिस को राज्य के पश्चिमी इलाकों में हाथ लगते हैं। यह कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि पिछले दिनों दिल्ली में हुए सीरियल बम _x008e_लास्ट की पड़ताल करने वाली एन्टी टेरेरिस्ट सेल के लिए सहारनपुर से की गई एक टेलीफोन काल मददगार साबित हुई। नतीजतन, जांच एजेन्सियों की निगाह सहारनपुर ही नहीं समूचे पश्चिमी उ.प्र. पर गड़ गई। गौरतलब है कि अयोध्या हमले के तार भी पुलिस को सहारनपुर से जुड़े मिले थे। हमले के एक प्रमुख आरोपी डा. इरफान को पुलिस ने सहारनपुर से गिरफ्ïतार किया था। खुफिया सूत्रों की मानें तो लश्कर-ए-तोएबा और जैश-ए-मोहम्मद के कई प्रमुख आतंकवादियों का पश्चिमी उ.प्र. में न केवल आना-जाना रहा है बल्कि यह इलाका उनकी शरणस्थली भी रहा है। लगभग एक दशक पहले कश्मीर के आतंकवादियों द्वारा तीन ब्रिटिश नागरिकों का अपहरण करने के बाद उन्हें सहारनपुर में ही रखा गया था। लश्कर के एक कमाण्डर सालार उर्फ हामिद के अलावा इसी संगठन के मोहम्मद जकारिया का यहां आना-जाना रहा है। इतना ही नहीं, जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर की कर्मस्थली सहारनपुर रही है। बीते 5 जुलाई को हुए अयोध्या हमले की जांच में इस तथ्य का खुलासा हुआ कि हमले के दौरान मारे गए 5 आतंकवादियों में से एक देवबंद गया था। वहां ठहरा था। बुलन्दशहर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्घनगर और अलीगढ़ पुलिस ने महिलाओं को भी आईएसआई के लिए काम करते गिरफ्ïतार किया है। गाजियाबाद पर आईएसआई की गिद्घ दृष्टिï है। यहां का पिलखुआ पाक नागरिकों और बंगलादेशियों के छिपने का सबसे महफूज ठिकाना साबित हो रहा है। यहां सबसे पहला मामला 14 जनवरी, 1994 को प्रकाश में आया। दिल्ली व पिलखुआ पुलिस ने पाक एजेन्ट अ_x008e_दुल करीम उर्फ टुंडा के छिपे होने की सूचना पर अशोक नगर के मकान नम्बर 192 पर छापा मारा। यहां से पुलिस ने आरडीएक्स व दूसरे विस्फोटक पदार्थ, डेटोनेटर बरामद किए। टुंडा पुलिस दबिश से पहले भागने में कामयाब रहा। 16 मार्च 1998 को पुलिस ने यहां से टुंडा के रिश्तेदार महमूद आलम को गिरफ्ïतार किया। वह यहां से आईएसआई के लिए चोरी छिपे काम कर रहा था। धौलाना का शमशाद अहमद व उसकी पत्नी अनवरी देवी वर्ष 1993 से अंाखमिचौली खेल रहे हैं। निवाड़ी से महमूदन, हापुड़ से अ_x008e_दुल कय्ïयूम, मोहम्मद नईम, विरासत अली, जकरिया उर्फ नूर मोहम्मद, रफीमुद्ïदीन अ_x008e_दुल्ला की पत्नी गुलाम जन्नत व पिलखुआ से सहौरी बेगम लापता हैं। पुलिस संशय में है कि ये लोग जिंदा भी हैं या नहीं। पुलिस आंकड़ों पर गौर करें तो आज भी दस पाकिस्तानी नागरिक इस इलाके में उनकी पकड़ से बाहर हैं। लश्कर के आतंकवादियों को छिपाए रखने के आरोप में बीते साल हापुड़ पुलिस ने सलीम हुसैन, कल्लन, रफीक अली व रहीश अली को गिरफ्ïतार किया। हालांकि पुलिस आतंकवादियों को नहीं पकड़ सकी। दबिश से पहले ही वे फरार हो गए। इसी दौरान एजाज अहमद के यहां मारी गई दबिश में आईएसआई एजेन्ट हरिनारायण शाह के कपड़े और सामान मिले। मुजफ्फरनगर के रहस्यमयी चमत्कारिक बाबा पर भी विदेश्ीा एजेन्सियों के लिए काम करने के आरोप लगे। बाबा पर पाकिस्तानी होते हुए भी हिन्दुस्तानी नागरिकता और वोटरलिस्ट में नाम डलवाने को लेकर जांच तो बैठाई गई। लेकिन नतीजा शिफर ही रहा। कश्मीर मुठभेड़ में मारे गए गाजी बाबा के तार राज्य के बिजनौर जिले से जुड़े थे। गाजी बाबा के साथ मरने वाले आतंकवादियों में बिजनौर के काजीवाला गांव के जहीर, गांवड़ी के शहाबुद्ïदीन और किरतपुर के मोहम्मद वारिश भी थे। खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘गाजी बाबा भी दो-तीन बार यहां की यात्रा कर चुका था।’’ गाजियाबाद मे जैश-ए-मोहम्मद के एरिया कमाण्डर मंसूर डार के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद शामली में संगठन से जुड़े दो छात्रों के पकड़े जाने से इस बात की पुष्टिï हुई कि पश्चिमी उ.प्र. में आतंकवादियों ने गहरी पैठ बना ली है। पाकिस्तान में बैठे इकबाल काणा के हाथों इस इलाके की बागडोर थी। केन्द्रीय गृहमन्त्री शिवराज पाटिल ने खुद यह स्वीकार किया, ‘‘हिज्ब-ए-इस्लामी, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा, हिजबुल मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठनों ने अपना नेटवर्क पश्चिमी उ.प्र. के कई हिस्सो में फैला लिया है।’’
लखनऊ पर आतंकियों की खास नजर है। इस बात को अभी दो दिन पहले मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव ने सभी दलों के नेताओं के साथ हुई एक गोपनीय बैठक में स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘विधानसभा पर आतंकियों की नजर है।’’ हालांकि तकरीबन एक साल पहले लखनऊ के पुलिस कप्तान नवनीत सिकेरा ने इन खतरों का जिक्र करते हुए अपने मातहतों को सतर्क रहने के निर्देश दिए थे। तब इसे नजरअंदाज कर दिया गया था। पुलिस कप्तान की गोपनीय चिट्ïठी एसटीएसएसपी-2_x007f_/2_x007f__x007f_5/एफ में लिखा था, ‘‘लखनऊ की जिला जेल में लालकिला और सीआरपीएफ कैम्प नई दिल्ली पर हमले के आरोपी मकसूद अहमद और मोहम्मद सईद बन्द हैं। इन्हीं के साथ लखनऊ पुलिस द्वारा 12 मई 2_x007f__x007f_4 को पकड़े गए पाक प्रशिक्षित लश्कर-ए-तोएबा के अतहरूद्ïदीन और मोहम्मद इरफान भी हैं। इसके साथ ही साथ आईएसआई एजेन्टों का मूवमेन्ट लखनऊ में होने के चलते विधानसभा और कई ठिकानों पर खतरा मडऱा रहा है।’’ इस चिट्ïठी में सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह किया गया था कि पाक निवासी लश्कर के हिकमतयार, अबू अमीर और मोहम्मद यार खान उ.प्र. में अपना आधार तेजी से बनाने की कोशिश में लगे हैं। इतना ही नहीं, 2_x007f__x007f_2 में लश्कर के एरिया कमाण्डर चांद खां की गिरफ्ïतारी के बाद खुफिया विभाग को मिली जानकारी में लखनऊ में लश्कर के स्लीपिंग मॉड्ïयूल्स होने की बात सामने आई थी। लश्कर के एरिया कमाण्डर चांद खां उर्फ चांद ने उ.प्र. और दिल्ली पुलिस सहित खुफिया विभाग के आला अधिकारियों को जानकारी दी थी कि वह कई बार अपने साथियों के साथ लखनऊ गया। रूका और अपने साथियों से कई योजनाओं पर बात की। कथित तौर पर मोदी की हत्या के लिए अहमदाबाद पहुंचे इशरत और जावेद के भी लखनऊ के लाटूश रोड स्थित होटल और फैजाबाद के इब्राहिमपुर देवली निवासी मेराज के घर रूकने की पुष्टिï हुई थी। लश्कर-ए-तोएबा का बेस कैम्प लखनऊ में बनाकर गरीब युवाओं को संगठन मे भर्ती कराने वाले दो आतंकवादियों को एसटीएफ ने गिरफ्ïतार किया जिनके पास से 4 किलोग्राम विस्फोटक के साथ ही साथ अमेरिका निर्मित 32 बोर की पिस्तौल और भारी मात्रा में कारतूस बरामद हुए। वर्ष 2_x007f__x007f_3 में सिमी ने प्रतिबन्ध के बावजूद लखनऊ के अमीनाबाद में एक सेमिनार आयोजित करके सबको हतप्रभ कर दिया था। उ.प्र. में अपनी तमाम विफलताओं से आहत लश्कर ने स्थानीय सम्पर्कों की मदद के लिए सिमी से हाथ मिलाया। इसकी श्ुारूआत लश्कर के नायब कमाण्डर अमीर-ए-आला ने की। सिमी ने कानपुर में वर्ष 2_x007f__x007f__x007f_ में ही अपनी खासी पैठ बना ली थी। उसी समय हलीम डिग्री कालेज, चमनगंज में एक जलसा आयोजित कराया था। जलसे के ठीक एक साल बाद दंगे के दौरान कानपुर के थाना स्वरूपनगर में विस्फोट में अपर जिलाधिकारी सी.पी. पाठक की हत्या सिमी से जुड़े आतंकवादियों ने अंजाम दिया। इसमें शामिल वाशिद, जुबैर और गुलाम जिलानी से की गई पूछताछ में आरडीएक्स राकेट लांचर, रिमोट डिवाइस व वायरलेस बरामद हुए। आईबी के उच्च पदस्थ अधिकारी की मानें तो, ‘‘प्रतिबन्ध के बाद उ.प्र. और बिहार में यह तहरीक-ए-तजम्मुले इस्लाम के नाम से काम कर रही है। इसकी एक अन्य शाखा तहरीक-ए-तफज्जुले इस्लाम भी है। दोनों इन दिनों सक्रिय हैं और लश्कर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। बाराबंकी, बनारस और सिद्घार्थनगर में सिमी ने अभी हाल में गुप्त बैठकें की हैं।’’ लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादी मोहम्मद हारून के सम्पर्क सूत्र कानपुर में होने की जानकारी पर खुफिया टीम ने वहां छानबीन की। हारून एचएएल में अभियन्ता रहा। सिद्घार्थनगर में पकड़ा गया आईएसआई एजेन्ट कानपुर का अकील था। तमाम आतंकी संगठनों ने अपनी शाखाएं गोरखपुर और बनारस सहित पूर्वांचल के कई इलाकों में खोल दी हैं। मुजफ्ïफरनगर, गाजियाबाद और मेरठ के बाद कानपुर का नाम सबसे ज्यादा खतरे वाले शहर में है। अभिसूचना महकमा की मानें तो, ‘‘कानपुर में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा से लेकर हरकत-उल-अंसार और सिमी की गतिविधियां पश्चिमी उ.प्र. से ज्यादा चल रही हैं। आतंकियों को शरण देने के मामले में भी कानपुर सबसे आगे है।’’
खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘ उ.प्र. के 36 जिलों में आईएसआई की गतिविधियां जारी हैं। 11 बड़े आतंकवादी संगठनों की राज्य में पैठ है।’’ बीते माह पुलिस सप्ताह के दौरान इन संगठनों के बावत खुफिया महकमे की रिपोर्ट पर चर्चा भी हुई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया, ‘‘पासबा-ए-अहले हदीश, अलमंसूरन (लश्कर-ए-तोएबा), अलफुरकान/खुदामुल इस्लाम (जैश-ए-मोहम्मद), हिजबुल मुजाहिद्ïदीन, हरकत-उल-मुजाहिद्ïदीन/जमीअतुल अंसार (हरकत-उल-अंसार), जमायत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रन्ट, जम्मू कश्मीर तहरीकुल मुजाहिदीन, जम्मू कश्मीर इख्तान-उल-मुसलमीन तथा अलबर्क तंजीब के एजेन्टों ने कामकाज उ.प्र. में तेज कर दिया है।’’ 1992 से 2_x007f__x007f_5 तक आईएसआई के 65 एजेन्ट, 9 आतंकवादी और 45 आश्रयदाता गिरफ्ïतार हुए। 17 जिलों में पाकिस्तान पोषित आतंकवादी संगठनों द्वारा विस्फोट के प्रयास। आतंकियों की नजर में आतंक फैलाने का सबसे आसान तरीका रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में विस्फोट कर बड़े जन समुदाय को नुकसान पहुंचाना है। इसी के मद्ïदेनजर बीते चार सालों में रेलवे स्टेशन और गाडिय़ों में 6 बड़े विस्फोट करने में वे कामयाब हुए हैं। सीमापार के फिदायनी जिस तरह से विस्फोट की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। उसे पता चलता है कि किस कदर आतंकवादियों ने राज्य को साफ्ïट टारगेट बना रखा है। ताजमहल को उड़ाने की धमकी मिल चुकी है। बुन्देलखण्ड इलाके को आतंकवादियों की पैठ से दूर समझा जा रहा था। लेकिन उरई से लखनऊ के 2-डी, सुन्दरनगर, आलमबाग निवासी अतीक अहमद के नाम रेलवे से बुक कराए गए 2_x007f__x007f_ किलो आरडीएक्स पाउडर, एक बोरी डिटोनीटर और इतने ही तारों की बरामदगी ने खुफिया महकमे के कान खड़े कर दिए हैं। में भारी मात्रा में पकड़े गए आरडीएक्स ने पुलिस की नींद उड़ा दी। खुफिया एजेन्सियों से बचने के लिए नौजवानों को कश्मीर के रास्ते पाकिस्तान भेजने की जगह उनकी भर्ती काठमाण्डू में की जा रही है। इसके चलते नेपाल सीमा से लगे महराजगंज, सिद्घार्थनगर, बहराइच और लखीमपुर खीरी जिलों मं आतंकियों की घुसपैठ बढ़ गई है। इस इलाके में नेपाल के माओवादियों की आमद रफ्ïत ने भी इलाके के अमन चैन में सेंध लगाई है। यह बात दीगर है कि इस इलाके को सेफ पैसेज मानते हुए माओवादी यहां कोई वारदात नहीं कर रहे हैं। राज्य का सोनभद्र और चन्दौली जिला नक्सलवादियों के निशाने पर है।
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लश्कर के उ.प्र. कमाण्डर और संकटमोचन विस्फोट के पुलिसिया रिकार्ड में आरोपी कुख्यात आतंकी सालार उर्फ डाक्टर को मुठभेड़ में मार गिराने के बाद पुलिस भले ही जो दावा करे। लेकिन हकीकत यह है कि सालार के मारे जाने से देश अथवा प्रदेश में दहशतगर्दों की हरकतों पर लगाम नहीं लगने वाली। प्रदेश में बीते 15 सालों में हुए जघन्य आतंकवादी घटनाओं में शामिल 3_x007f_ से ज्यादा आतंकवादी अरसे से फरार चल रहे हैं। इनमें अधिकांशत: आईएसआई एजेन्ट हैं। बीते साल 28 जुलाई को श्रमजीवी एक्सप्रेस में विस्फोट करने वालों का कुछ पता नहीं है। इसके अलावा मुजफ्ïफरनगर निवासी हरकत-उल-अंसार का सदस्य महमूद उर्फ मामू, आतंकियों को शरण देने वाला अ_x008e_दुल्ला उर्फ भूरा, मेरठ निवासी सलीम उर्फ जल्ला उर्फ पतला पुलिस की गिरफ्ïत से दूर हैं। 1993 में गाजियाबाद के करीब पीएसी कैम्प में विस्फोट करने वाले अलवर्क अंजीम का सदस्य सलीम, कानपुर में राजधानी एक्सप्रेस में विस्फोट करने वाले लश्कर के कमरूल हसन उर्फ इलियास, 2_x007f__x007f__x007f_ में आगरा में हुए बम विस्फोट में शामिल जैश-ए-मोहम्मद का मोहम्मद यूसुफ और एस.एम. मुश्ताक भी पुलिस और खुफिया एजेन्सियों की पकड़ से बाहर है। वर्ष 2_x007f__x007f__x007f_ में गोमती एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में शामिल हिजबुल के आतंकी अलीगढ़ के अली मोहम्मद, इसी साल कानुपर में हुए बम विस्फोट के आरोपी अरशद, अम्बेडकरनगर के मुश्तकीम और उजैर भी फरार चल रहे हैं। 1992 में अलीगढ़ में पकड़े गए आईएसआई एजेन्ट मोहम्मद यासीन व उसकी पत्नी सरफरोज बेगम भी फरार हैं। गोरखपुर के मेनका सिनेमा हाल में हुए बम विस्फोट में संलिप्त मिर्जा दिलशाद बेग, जिलानी, अफजाल खान, पिलखुआ गाजियाबाद का करीम उर्फ टुंडा, कानपुर राजधानी एक्सप्रेस बम विस्फोट में शामिल हरदोई का मोहम्मद मतीन उर्फ तुफैल भी अभी तक फरार है।
-योगेश मिश्र
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