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निर्मल ग्राम पुरस्कार
दिनांक : 27._x007f_3.200_x007f__x007f_6
व्यवस्था में विश्वास रखने वालों के लिए यह खबर आघातकारी है। देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राष्टï्रपति को गलत सूचनाओं के जरिए धोखा देने वाले कोई और नहीं भारतीय प्रशासनिक संवर्ग के अफसर थे जिनकी नियुक्ति का पत्र महामहिम की ओर से ही जारी किया जाता है। महामहिम को भेजी गई सूचना निर्मल ग्रामों के बारे में है। जिसमें उन्हें यह बताया गया है कि राज्य में 4_x007f_ ग्राम ऐसे हैं जिन्हें सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत शत प्रतिशत संतृप्त कर दिया गया है। इस योजना में शामिल होने वाले गावों लिए जरूरी है कि सभी घरों में शौचालय हो। गांव का प्रत्येक व्यक्ति इसका इस्तेमाल करता हो। लेकिन पुरस्कृत गांवों के जमीनी निरीक्षण के बाद ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को हालात बेहद खराब मिले।
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र ने लगभग 8_x007f_ साल पहले अपने गांव लमही में जो पहला शुष्क शौचालय बनवाया था। लेकिन वहां आज भी 9_x007f_ प्रतिशत आबादी शौचालय की सुविधा से वंचित है। ऐसे में बनारस के छितौनी गांव को मिला निर्मल ग्राम का पुरस्कार विवाद और वितण्डा का विषय है। जिला मुख्यालय से महज 1_x007f_ किमी. दूर लहरतारा अकेलवा मार्ग पर स्थित छितौनी फिलहाल जश्न में डूबा हुआ है। लेकिन हालात कुछ और ही बयान करते हैं। ग्राम प्रधान सुनिता शर्मा की ही मानें तो, ‘‘गांव में कुल 625 परिवार हैं। अभी तक मात्र 246 शौचालयों का निर्माण हो सका।’’ अन्य जगहों पर मात्र गड्ïढा खोदकर छोड़ दिया गया है। मुन्ना लाल एवं खरबन राजभर ने बताया, ‘‘दो महिने से गड्ïढा खोदे जाने के बाद भी शौचालय बनाने का सामान अभी तक नहीं मिला है।’’ एडीएम पंचायत हरिशंकर सिंह बताते हैं, ‘‘इस गांव के सभी लोगों को शौचालय बनाने के लिए 15-15 सौ रूपए की धनराशि दी जा चुकी है।’’ जबकि गांव वालों की मानें तो, ‘‘तमाम लोग अभी भी इस पैसे की बाट जोह रहे हैं।’’ निर्मल गांव के पुरस्कार से नवाजे गए सरकारी आंकड़े की हकीकत यह है कि अभी तक गांव मे बीडीसी सदस्य फुलप_x009e_ाी देवी और सुभाष के यहां तक शौचालय का निर्माण नहीं हो पाया है।
आइये, बाकी गांवों की हकीकत देखें। बहराइच जिला मुख्यालय से सटे 2_x007f_36 आबादी वाले ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ हठीला के ग्राम पंचायत सदस्य नसीरूद्ïदीन खुदबखुद निर्मल गांव की कलई खोलते हुए कह उठते हैं, ‘‘अभी भी दर्जनों परिवार शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।’’ सिर्फ नसीरूद्ïदीन की बात पर भरोसा न भी करें तो भी मुख्य विकास अधिकारी एस.एन. बिन्द भी निर्मल गांव की निर्मलता पर सवाल उठाते हुए ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहते हैं, ‘‘25-3_x007f_ लोगों के शौचालय अभी नहीं बने हैं। जिन परिवारों ने पहले से शौचालय बनवा रखे थे उन्हें प्रोत्साहन के रूप में धनराशि उपल_x008e_ध करा दी गई है। लेकिन शीघ्र बनवा दिए जाने की उम्मीद जताते हैं।’’ सहारनपुर जनपद के पांच गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चुना गया है। दो गांव तो सचमुच इस कोटि में शरीक किए जाने लायक हैं। लेकिन यहां के छुटमलपुर, मिरगापुर और कुल्हड़ी की स्थिति देखते ही बनती है। बानगी के तौर पर देखें तो मिरगापुर निवासी दलित समुदाय की पूनम बताती हैं, ‘‘हमारे यहां शौचालय नहीं बना है। पांच सौ रूपए में आखिर कैसे बनवाएं शौचालय?’’ छुटमलपुर में नरेश के घर के लोग खुले में ही शौच करने जाते हैं। उसने बातचीत में स्वीकार किया, ‘‘इतने कम पैसे मिले थे कि उसमें निर्माण करा पाना सम्भव नहीं था।’’ फैजाबाद जिले के दोनों गांवोंं शाहजहांपुर और पहाड़ग़ंज की जमीनी हकीकत यह पूछने को मजबूर करती हैै कि जब निर्मल ग्राम ऐसे हैैं तो गन्दे ग्राम कैसे होंंगे? ये दोनों गांव फैैजाबाद नगर से सटेे हुए हैैं। पहाड़ग़ंज के सिर्र्फघोसियाना मुहल्ले में ही मो. जमील, हकीम, अ_x008e_दुल मोकीम, सनीफ मुर्तजा, छोटट्ï्ïन, मेंंहदी, स_x009e_ाार, अ_x008e_बास और इंसान अली आदि के घरों में शौचालय नही हैैं। औरतों व बच्चोंं को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़़ता हैै। गांव की दलित बस्ती का हाल तो और भी बुरा हैै। कई दर्जन ग्रामीणों के पास इतनी भूमि भी नहींं हैै कि वे वहां शौचालय बनवा सकेें। मुस्लिम बाहुुल गांव शाहजहांपुर में भी रशीद, सईद आदि शौचालयों की सुविधा से वंचित हैैंं। वे बताते हैं, ‘‘ग्राम प्रधान मंसूर अहमद अन्सारी ने उन्हेें आश्वस्त किया हैै कि वे पुरस्कार लेकर लौट आएं तो कुुछ करेेंंगे।’’ मगर ग्रामीणों को ऐतबार नहीं हो रहा। अम्बेडकरनगर जिले मेंं कटेेहरी _x008e_लाक केे अटवाई ग्राम का हाल भी कुुछ ऐसा ही हैै। अटवाई के अजय त्रिपाठी ने बताया, ‘‘अखबारों में हमारा गांव स्वच्छ हो गया हैै, यही क्या कम हैै।’’ 35 सौ की आबादी वाले बांदा जिले के छिबाव ग्राम में 364 शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन एक लाभार्थी शकुन्तला की मानें तो, ‘‘गांव में शौचालय का निर्माण हुआ भी। लेकिन आधे-अधूरे शौचालय का निर्माण होने के कारण गांव वासी अभी भी खुले में शौच जाने को अभिशप्त हैं।’’
मिर्जापुर जनपद के तीन गांव-पडऱी, गोढऩपुर और तरकापुर को तथाकथित निर्मल ग्राम का प्रमाण-पत्र हासिल है। सम्पूर्ण स्वच्छता का दावा करने वाले गोढऩपुर में न तो पूरे शौचालय बने हैं। न ही नाली, खड़न्जा। यहां महिलाएं प्रदूषण एवं गन्दगी से उत्पन्न होने वाली तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हैैं। इस गांव के निवासी मोहन सोनकर, बन्टूू, सन्तू बिन्द, राजू मि_x009e_ाल, कैैलाश एवं पप्पू ने बताया, ‘‘शौचालय आधे-अधूरे बने हैं। मजबूरन घर की बहूू-बेटियों और बच्चों को शौच के लिए खुले मैदान में या सड़क़ पर जाना पड़़ता हैै।’’ इससे भी दयनीय स्थिति पंड़ऱी गांव की हैै। इस गांव के राधेश्याम, कैलाश हरिजन, छोटेेलाल, पप्पू आदि ने खुले रूप से कहा, ‘‘सरकार की यह योजना भ्रष्टाचार की भेंंट चढ़़ रही हैै। सरकार द्वारा मिलने वाले पन्द्रह सौ रूपए में से सुविधा शुल्क देना पड़ता है। इसके बाद इतने पैसे नहीं बचते कि शौचालय बनवाया जा सके।’’ इस गांव से लगे हुुए _x008e_लाक कार्यालय पर नवनिर्वाचित महिला _x008e_लाक प्रमुख आशारानी रत्नाकर ने अपनी मुलाकात में बताया, ‘‘सरकारी खानापूर्ति करके गांव को भले ही निर्मल गांव में शामिल किया गया हो परन्तु इस योजना का पूरा लाभ गांव केे दलित, पिछड़़ी जाति के लोगों को नहीं मिल पा रहा है।’’ इसी _x008e_लाक के पूर्व प्रमुख चन्द्रेश सिंह ने भी निर्मल गांव के चयन की प्र्रक्र्रिया पर सवाल उठाते हुुए कहा, ‘‘जिस आधार पर इस गांव को निर्मल गांव घोषित किया गया हैै, उस आधार पर तो पूरा प्रदेश भी निर्मल प्रदेश घोषित हो सकता हैै।’’ पंड़ऱी ग्रामसभा केे गरीबी रेेखा के नीचे जीवन जीने वाली रेखा पत्नी बनारसी, नान्हक पत्नी रामकिशुन, शिवकुमारी पत्नी भागीरथी, राजमती पत्नी प्रदीप, हिना पत्नी हरिहर सभी को गांव केे निर्मल गांव घोषित होने की खुशी हैै किन्तु सभी को गांव के निर्मल होने पर बेसब्री से इन्तजार भी हैै। मथुरा जनपद के दोनो गांव-वृन्दावनी, अजीजपुरा भी कमोबेश निर्मल ग्राम पुरस्कार की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। वृन्दावनी के यूनुस और मामलिया के घरो में शौचालय नहीं बने हैं। वे बताते हैं कि, ‘‘उन्हें बाहर जाना पड़ता है।’’ इस गांव में मैला ढोने वाली दाई को भी देखा जा सकता है। गांव वालों पर भरोसा करें तो 25 फीसदी लोगों को खुले में शौच जाना पड़ता है। हालांकि मथुरा जनपद के दोनो गांव मायावती द्वारा विकास के लिए चयनित अम्बेडकर गांवों की सूची में थे। वृन्दावनी के डा. दशरथ शर्मा कहते हैं, ‘‘अम्बेडकर ग्राम के नाते यहां पहले से ही काफी शौचालय की मुकम्मल व्यवस्था है।’’ मथुरा दिल्ली हाइवे पर स्थित अजीजपुरा के चौधरी हरिवंश पुत्र रोशन बताते हैं, ‘‘गांव में 4_x007f_ फीसदी लोगों के यहां शौच की कोई व्यवस्था नहीं है।’’ मानसिंह पुत्र प्रभू, राजेन्द्र सिंह पुत्र शिवचरन, वंशीलाल पुत्र बृजलाल इसे तस्दीक करते हैं। कागजों पर इस गांव में 13_x007f_ शौचालय पहले से बने थे। अभियान के तहत 14_x007f_ बनाए गए। ग्राम प्रधान खुद द्वारा 1_x007f_2 शौचालय बनवाने का दावा कर रहे हैं। इस तरह गांव में कुल 372 शौचालय बने हैं। जबकि घरों की कुल संख्या 35_x007f_ है।
लखनऊ से 2_x007f_ किमी. की दूरी पर स्थित मु_x009e_ाकीपुर ग्राम प्रधान रज्जन पहलवान के भाई मुशीर बताते हैं कि, ‘‘मु_x009e_ाकीपुर का नाम पिछले वर्ष भी निर्मल ग्राम योजना में शामिल किया गया था। लेकिन विरोधी प्रधान की साजिशों के चलते उनके गांव को पुरस्कार नहीं मिल सका।’’ गांव में घुसते ही ‘‘पहले घर में शौचालय बनवाओ और फिर बहू लाओ’’ नारे लिखे दिखते हैं। लगभग तीन सौ घरों वाले इस गांव में पिछले एक महीने के दौरान लगभग 9_x007f_ फीसदी घरो में पक्के शौचालयों की चहारदीवारी व सेप्टिक टैंक तो बनवा दिए गए हैं। टीन के कूड़ेदान प्रधान जी के घर के अहाते में ढेर हैं। पूछने पर बताया जाता है, ‘‘यह अभी-अभी बनकर आए हैं। प्रधान जी अवार्ड लेने दिल्ली चले गए हैं। जिसकी वजह से यह अभी लग नही पाए हैं।’’ इसी गांव में पैदा हुए 24 वर्षीय सुरेश कुमार बताते हैं, ‘‘हमारे परिवार में 17 सदस्य हैं। शौचालय तो पिछली बार भी बने थे। लेकिन वह बहुत दिन चल नहीं पाए। सो हम लोग फिर खेतों में जाने लगे। अब फिर सरकार ने बनवा तो दिए हैं। थोड़ा आराम तो हो ही गया है।’’ इसी गांव की जगरानी कहती हैं, ‘‘अभी एकै महीना पहिले तो बना है। इकै पहले तो हम लोग से कौनो पूछे नहीं आवत रहे।’’ गांव में शौचालय निर्माण कार्य तो पूरा है। राज्य में इस अभियान के प्रभारी और पंचायत महकमे के उपनिदेशक ए.के. सिंह यह स्वीकार करते हैं, ‘‘यह कार्यक्रम शौचालय बनाने से नहीं बल्कि उसके उपयोग करने की आदत में परिवर्तन पर केन्द्रित है।’’ ऐसा नहीं कि इस योजना का सब कुछ बेहद खराब हो। लखनऊ मण्डल के मु_x009e_ाकीपुर, बरूआ, कुकुही के साथ-साथ कानपुर देहात के शाहजहांपुर, बरौली, मुरादाबाद का गांव अक्की देलरी पुरस्कार की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
लेकिन इस अनियमितता की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। राज्य सरकार की ओर से निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए 14_x007f_ गांवों के नाम भेजे गए थे। जब केन्द्र की टीम ने इन गांवों का सर्वे किया तो उसे सौ ऐसे गांव मिले जहां एक-दो फीसदी लोग ऐसे बचे थे जिन्होंने शौचालय बनवा तो लिए थे। लेकिन उसका प्रयोग नहीं करते थे। नतीजतन, सौ गांवों को पुरस्कार सूची से बाहर कर दिया गया। जबकि ‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने पाया कि केन्द्र सरकार की टीम ने गांवों के चयन में खासी अनदेखी की है। मसलन, राज्य के पंचायत महकमे के अफसरों की ओर से हरदोई जिले के मकदमपुर और राव बहादुरपुर का नाम निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए संस्तुत किया गया था। लेकिन ‘पता नहीं क्या’ देखकर केन्द्र सरकार की टीम ने हरदोई के कछौना _x008e_लाक के कुकुही गांव को पुरस्कार के लायक समझा वह भी तब जब पंचायत के आला हुक्मरान लखनऊ से जाकर इस गांव में स्वच्छता अभियान से जुड़े कई लोगों को निलम्बित करके आए थे। इसी तरह मुरादाबाद का असालतपुर, बिजनौर का सरकड़ाखेड़ी और कामराजपुर, सीतापुर का रहीमाबाद, उन्नाव का सरथमनिहार, बदायूं का नैथू, श्रावस्ती का मदारा, आजमगढ़ का लोनियाडीह, बलिया का रक्सा डनिया और करैला के साथ-साथ बाराबंकी के बेरहरा, टडवा गतभानपुर तथा मुस्कीनगर में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को ठीक से परवान चढ़ाया गया है। जबकि उन्नाव में इस पुरस्कार के लिए ग्राम पंचायत दोस्तीनगर का नाम भेजा गया था। राज्य सरकार के पंचायत महकमे के दस्तावेजों पर भरोसा किया जाता तो निर्मल ग्राम का पुरस्कार पाने वाले गांवों की तादाद न केवल 4_x007f_ से अधिक होती बल्कि आज जो उंगली उठ रही है वह भी नहीं उठती। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि केन्द्र ने राज्य सरकार की मशीनरी पर भरोसा न कर आईएएस अफसरों और दो स्वयं सेवी संगठनो-आनन्दमयी और ओएसिस को राज्य सरकार द्वारा भेजी गई सूची की हकीकत के पड़ताल का जिम्मा सौंपा था।
-योगेश मिश्र
साथ में फैजाबाद से कृष्ण प्रताप सिंह, मिर्जापुर से राजकुमार शर्मा
नोट:- दिवाकर जी, इसकी फोटो आपको निराला ने भेजी होगी। आगरा से मनीष भेजेंगे, मिर्जापुर से से भी फोटो मिलेगी। वैसे चाहें तो राष्टï्रपति द्वारा पुरस्कार प्रदान करने की भी फोटो लगा सकते हैं।
(योगेश मिश्र)
दिनाँक: 28.०5.2००7
बिजनौर के विकास खंड नजीबाबाद का निर्मल गाँव हर्सुवाड़ा विला अहत माली में इनाम अली के मकान में शौचालय नहीं है। सामने सडक़ नहीं है। नाली नहीं है। घर के सामने टूटी नाली में गंदा पानी भरा है। यही हाल अ_x008e_बास के घर के सामने है। शौचालय के लिए सीट और ईंट दी गयी पर छत पाटने का पैसा और दरवाजा नहीं दिया गया। भूरा मौलुफ के दो शौचालय की छत नहीं है। दीवारों की ऊँचाई साढ़े चार फिट बनाई गई है। भूरा, रियाजुद्ïदीन व मोहम्मद इलियास को सात-सात सौ, ईंट व सीट दी गयी बाकी का पैसा सभी ने खुद लगाया। गाँव में सडक़ें नहीं हैं। नालियाँ टूटी पड़ी हैं। जिनमें गंदा पानी भरा रहता है।
विकास खंड का गाँव काशीरामपुर मे आबादी 17०2 और सीटें सिर्फ 37 आयीं। विधवा जमुना से सीट और किवाड़ वापस ले ली गयी। गाँव में तकरीबन दो सौ घरों में शौचालय नहीं बने। धर्मेन्द्र, दिलावर, इकबाल, मकसूद, चन्द्रो व भु_x009e_ाू सहित सैकड़ों परिवार खुले में शौच के लिए जाते हैं। कामता प्रसाद गुप्ता के सामने तिराहा पर दोनों स्कूलों के सामने और मंदिर के चारों तरफ गंदा पानी इकट्ïठा होता है। प्रधान पति ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘इंदिरा आवास योजना में सभी के शौचालय बनवा दूँगा। गांव की नालियाँ गाँव वालों ने तोड़ी हैं।’’ धर्मपाल, गोपाल आदि को मांगने पर भी शौचालय नहीं मिला। जालपुर निर्मल गाँव की दास्तान निराली है। यहाँ के प्रधान ने केंद्रीय टीम के सर्वे से पहले गाँव में सीटें बाँट दीं और लोगों से खुद शौचालय बनवाने को कहा। ऐसा न होने पर सीटें वापस ले ली गयीं। अनिल कुमार, मुन्ना, गंभीर सिंह के घर सीटें रखी हैं। पर प्रधान ने शौचालय नही बनवाये। मोहम्मद शमीम, मोहम्मद उमर, मोहम्मद शमशाद हुसैन व शमीम अहमद के शौचालय पर दरवाजे व छ_x009e_ो नही हैं। प्रधान श्यामलाल सिंह ने बताया कि 1०9 सीट मिलने के बाद 25० शौचालय व 2००० मीटर लंबी नालियां बनना और पन्द्रह नलों के लगने की जरूरत है। गाँव के पश्चिम में गाँव भागू वाला की तरफ जाने वाली सडक़ सौ मीटर के दायरे में पिछले सात साल से टूटी पड़ी है। जिसमें कीचड़ और गंदा पानी जमा होने से रास्ता लगभग बंद है। इस कीचड़ में एक नल (इंडिया टू मार्का) लगा हुआ है। यहीं ग्रामसभा की जमीन में गाँव का कूड़ा व मैला इकट्ïठा किया जा रहा है और गांव का गंदा पानी भी इसी जमीन पर जमा हो रहा है।
कोतवाली विकास खंड का निर्मल गाँव रायपुर सादात में मल ही मल है। पूरे गाँव में एक भी शुष्क शौचालय नहीं है। दो फीसदी फ्ïलश के 98 फीसदी कमाऊ शौचालय बने हैं, कारणवश गाँव के वाल्मीकि मैला कमाने के गैर कानूनी काम में लगे हैं। राजेश चौहान के दो निजी शौचालयों पर प्रधान ने पुताई कराकर योजना में बना दिखाया है। कालू के घर में शौचालय नहीं है, अ_x008e_दुल अजीज के घर में कमाऊ शौचालय है। घर के सामने नालियों का गंदा पानी जमा है। शफीक अहमद का कमाऊ शौचालय टूट चुका है। सईद के सामने खडंजा ऊंचा है। नाली नहीं बनी है। इस घर में व कामेंद्र दलित के घर में बरसात का पानी घुस जाता है। मोहल्ला कुरैशियान, अम्बेडकर नयी बस्ती, नाईयों का मोहल्ला, मोहल्ला शेख, धोबियों का, फकीरों का, अंसारियों का, कुम्हार व धीमरों का मोहल्ले में शुष्क शौचालय नही हैं। कुछ घरों में कमाऊ व जल प्रवाहित शौचालय दिखाई देते हैं। सहायक विकास अधिकारी के मकान के पास लगे इंडिया टू मार्का नल में दूषित पानी आ रहा है। गाँव वालों ने बताया, ‘‘प्रधान इस हैंडपंप के नीचे से पाइप निकलवाकर ले गया है। देखे गये चारो गांवों में परिक्रमा मार्ग नहीं बना है।’’
अलीगढ़ के विकास खंड बिजौली का गाँव बूलापुर में बने शौचालयों पर दरवाजे न होने की वजह से इसतेमाल में नही आ रहे हैं। नत्थी सिंह का शौचालय पटा नहीं है। दरवाजा उखड़ गया है। छग्गामल और डम्बर सिंह समेत कइयों को शौचालय के दरवाजे नहीं दिए गए। होती सिंह के शौचालय के टैंक का ढक्कन टूटा हुआ होने से प्रदूषण फैल रहा है। रास्ते के किनारे गाँव का कूड़ा जमा किया जा रहा है। हैंडपंप के पास गंदगी और जलभराव है। परिक्रमा मार्ग उबड़-खाबड़ है। पुरस्कार मिलने के बाद हुई एक जाँच में सहायक विकास अधिकारी ने गाँव की असली तस्वीर को झुठलाकर रिपोर्ट दी है।
विकास खंड लोधा का निर्मल ग्राम सिंघारपुर में घुसते ही सडक़ के स्तर से ऊपर बनी एक नाली दिखाई देती है जो बिना नींव के बनायी गयी है। दूसरी नालियों से न जोड़े जाने के कारण इस नाली का कोई अर्थ नही है। गाँव की पोखर को गहरा करवाया गया, पर नालियों में तालमेल न करने के कारण अजयपाल सिंह और शंकरपाल सिंह के मकान के सामने गंदा पानी जमा रहता है और नालियों का पानी पोखर की बजाय दूसरे स्थान पर जमा होकर गाँव में प्रदूषण फैला रहा है। 4० दिन में तैयार कराये गये शौचालयों की दीवार व दरवाजे उखडऩे लगे हैं। यही हाल सार्वजनिक शौचालय का है। दरवाजे हवा के जोर से ही उखड़ रहे हैं। लोग पोखर के किनारे खुले में शौच करके अभी भी गंदगी फैला रहे हैं। गाँव में एक दर्जन स्थानों पर गंदे पानी का भराव है। ट्ïयूबवेल की टंकी को कूड़ाघर बना रखा है। गाँव में परिक्रमा रोड नहीं बनी है।
-अलीगढ़ से कुलदीप सिंह
मिर्जापुर जिले में तीन ग्रामसभाओं को निर्मल गाँव घोषित करके विगत वर्ष जिस तरह सरकारी लीपापोती की गयी थी, उसकी चर्चा अीाी समाप्त भी नहीं हुई थी कि भारत सरकार ने जिले के 14 गाँवों को पुन: निर्मल गाँव घोषित करके इन गाँवों के प्रधानों को 2-2 लाख रूपये का मनमाना पुरस्कार तीन अप्रैल को देश की राजधानी दिल्ली में देश के राष्टï्रपति के हाथों दिलवाकर जिस तरह बखेड़ा खड़ा कर दिया है। उससे सरकार के मानक, चयन प्रक्रिया एवं घोषणाओं के प्रति जनता का विश्वास उठता नजर आ रहा है। जनपद में सिटी _x008e_लाक के जिगनौड़ी, मझवां में रामचंदरपुर, जमालपुर के हसौली, हलिया में बरौंध, राजगढ़ के कुगा खुर्द, खमरिया कलां, गोबरदहां, धनसेरिया, तेंदुआ कलां, खमहवां जमती, नरायनपुर में बरेवां, नियामतपुर कलां, सीखड़ में धनौता, बसारपुर ऐसी ग्रामसभायें हैं। जहाँ आज भी इन गाँवों के दलित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निर्मल गांव की वास्तविकता का भी पता नहीं है। इन गाँवों में आज भी 8० प्रतिशज जनता एवं उनकी बहन-बेटियाँ खुले मैदान में शौच जाने के लिए एवं लाल कार्ड एवं उसके द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से पूरी तरह परिचित नही हैं। इन गाँवों के प्रधानों को जहाँ दिल्ली ले जाकर लालकिला की सैर कराई गयी। राष्टï्रपति से हाथ मिलवाया गया। वहीं इन गाँवों की दलित जनता आज भी दो जून रोटी एवं स्वच्छ शौचालय के लिए मोहताज है। इन गाँवों के दीवारों पर कुछ सरकारी लुभावने नारे लीपीपुती दीवालों पर लिखे दिखाये देते हैं। किन्तु उन नारों से आम लोगों का कोई वास्ता नहीं है। आदिवासी क्षेत्र हलिया के बरौंधा गांव के ग्राम प्रधान रमेश चंद्र मोदनवाल की माली हालत गांव के निर्मल गांव घोषित होने के बाद से सुधरी है। किनतु जनता की बदहाली और बढ़ी है। आदिवासियों के मध्य जब यह संवाददाता पहुँचा तो उन्होंने एक स्वर में बताया, ‘‘गांव का प्रधान सरकार आवास के बदले जनता से खाता खुलवाकर 2००० रूपये बैंक खर्च के नाम वसूल लिया है।’’ उनके आवास को दोयम ईंट से बनाया गया है। इस गांव में रहने वाले बिहारी, अक्षयलाल, जग्गू, सुखउ हरिजन, बनवारी, भग्गू को इस बात का बेहद गम है कि लाल कार्ड गांव के उनहीं समर्थ लोगों को दिया गया है जो प्रधान के चहेते हैं। इस गाँव के दलित बस्ती के जियावन धरकार, खेला, राजेंद्र कालिया, लालता मुसहर, लक्कड़, दयाशंकर मोदलवाल ने जो शौचालय अपने से बनाये हैं वे आज भी अधूरे हैं। इस गांव में 35० शौचालयों का निर्माण होना था। आज भी लगभग 2०० शौचालय जनता को मुँह चिढ़ा रहे हैं। इसी तरह का नजारा राजगढ़ _x008e_लाक के खमरिया कलां में देखने को मिला जहां की महिला ग्राम प्रधान चाहकर अपने प्रधान पति की दबंगई के आगे जनता का भला नहीं कर पा रही हैं। इस गांव के दुक्खी विश्वकर्मा, अमृतलाल, जवाहर गुप्ता, लक्ष्मण हरिजन, कामा यादव, नंदलाल गुप्ता, बचाउ, रामविलास, रामजी, बेचन, गोविन्द विश्वकर्मा गांव में सरकारी योजना के साथ की जा रही धोखाधड़ी से नाराज हैं और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सरकारी योजना की किस तरह से लीपापोती की जा रही है। गाँवों में नालियां बजबजा रही हें। आज भी आधे से अधिक हैंडपंपों पानी निकाल पाने की स्थिति में नहीं हैं। योजना को संचालित करने वाला पंचायतीराज विभाग पूरी तरह ग्राम प्रधान के साथ भ्रष्टïाचार में आकंठित है। पंचायतीराज विभाग के अधिकारी जिस तरह से निर्मल गाँव के नाम पर दलितों के जीवन स्तर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उसकी जांच भारत सरकार को करनी ही चाहिए। उसके साथ ही दलित उत्थान का नारा देकर बनने वाली नई सरकार के लिए भी यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन चुका है। इस योजना में राष्टï्रपति को धोखे में रखकर सरकारी धन का बंदरबाँट किया जा रहा है। इसकी स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए।
-मिर्जापुर से राजकुमार शर्मा
दो साल पूर्व निर्मल ग्राम पुरस्कार की सूची में देश के सबसे बड़े और 52०6 ग्राम पंचायतों वाले उ_x009e_ार प्रदेश के एक भी ग्राम पंचायत का नाम शामिल नहीं था। 2००6 में एकमात्र गगहा _x008e_लाक के ग्रामसभा मितौली का चुनाव निर्मल ग्राम के लिए हुआ। पिछले वर्षों की तुलना में देखें तो सिर्फ गोरखपुर में 16 ग्रामसभा का चुनाव ‘निर्मल ग्राम’ के लिए हुआ। संख्या में बढ़ो_x009e_ारी के पीछे का खेल बेहद शातिराना है। गोरखपुर के चरगांवा _x008e_लाक का विश्व प्रसिद्घ गांव औरंगाबाद का चुनाव निर्मल ग्राम के लिए हुआ। औरंगाबाद टेराकोटा के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है। गाँव के आधा दर्जन शिल्पकार राष्टï्रपति से पुरस्कार पा चुके हैं। गाँव में 276 परिवार हैं। जिला पंचायत राज अधिकारी ने 26० शौचालयों का लक्ष्य दिया था। ग्राम प्रधान के आंकड़े के मुताबिक, ‘‘21० शौचालयों का निर्माण हुआ।’’ 5० शौचालयों में कुछ वापस हो गए या आधे-अधूरे हैं। योजना के तहत 15०० रूपये लाभार्थी को मिलना था। भरवलिया टोला के रामकिशुन के घर बना आधा-अधूरा शौचालय कबाडख़ाने में त_x008e_दील हो चुका है। रामकिशुन के मुताबिक, ‘‘प्रधान ने दस बोरी बालू, 44० ईंट व दो बोरी सीमेन्ट दिया था। प्रधान के ठेकेदार ने ही बनवाया। पैसा है नहीं कि इसे पूरा करूँ।’’ गाँव के दिग्विजय, बच्चन, तीरथ समेत दो दर्जन परिवारों में शौचालय नहीं हैं। पूर्व प्रधान ओमप्रकाश ने शौचालय नहीं बनवाया है। उनकी दलील है, ‘‘कहां का कानून है कि शौचालय जरूरी है।’’ ग्राम प्रधान गुलाब चंद कहते हैं, ‘‘टेराकोटा हमारे जीवन का आधार है। टेराकोटा से ही सम्मान है। ग्राम प्रधानी से कोई लाभ थोड़े ही है। अधिकारी ने कहा राष्टï्रपति पुरस्कार मिलेगा। सो हमने प्रयास किया कि गाँव को एक और राष्टï्रपति पुरस्कार मिल जाए।’’ चरगावां _x008e_लाक के ही नाहरपुर ग्राम को भी निर्मल ग्राम पुरस्कार मिला है। प्रधान पति रामप्रसाद गुप्ता के मुताबिक, ‘‘गांव में 184 परिवार हैं। 157 शौचालय पंचायती विभाग द्वारा बना। 18 निजी शौचालय हैं और 9 इंदिरा आवास के तहत बने हैं।’’ यानी गांव में शत प्रतिशत शौचालय हैं। पर जमीनी हकीकत दूसरी है। गांव के रामवृक्ष के घर शौचालय नहीं है। रामवृक्ष की पत्नी गुड्ïडी देवी बताती हैं, ‘‘जमीन नहीं है, कैसे शौचालय बनवाएं। जनवरी में मुख्य विकास अधिकारी संस्था तिवारी की मौजूदगी में ग्राम प्रधान ने कहा था कि ग्रामसभा की जमीन में शौचालय बनवा देंगे। अीाी तक नहीं बना।’’ 2००3 में बने पंचायत भवन के शौचालय में आज तक सीट नहीं लग सका है। गाँव के चंद्रिका यादव, दूधनाथ, दुखहरन, मूलचंद निषाद, शीतराज जैसे तमाम लोग ऐसे हैं जिनके घर शौचालय नही हैं। उधर राष्टï्रपति पुरस्कार पाकर गदगद ग्राम प्रधान श्रीमती संध्या देवी हकीकत को स्वीकारना ही नहीं चाहतीं। वह कहती हैं, ‘‘25 परिवारों का शौचालय मैंने खुद बनवाया है। हर घर में शौचालय बन गया है।’’
बस्ती जिले को प्रदेश में तीसरा स्थान मिला है। जिले के 1०47 ग्राम पंचायतों में से 29 को निर्मल ग्राम की संस्तुति के लिए भेजा गया था। 19 ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम के लिए चयनित हुए हैं। रूधौली _x008e_लाक के पकड़ी सोयम गांव के बाहर बड़े बोर्ड पर लिखा है, ‘‘निर्मल ग्राम में आपका स्वागत है।’’ सडक़ के किनारे फैली गंदगी दूसरी ही कहानी कहती है। गाँव में 22० शौचालय का लक्ष्य था। ग्राम प्रधान के मुताबिक, ‘‘18० बन गया है।’’ ढाई हजार जनसंख्या वाले गांव में 115० मतदाता हैं। घरों में लाल रंग के शौचालय भले ही नजर आयें पर आधे से अधिक गोदाम बन चुके हैं। किसी शौचालय में भूसा रखा है, कहीं गोबर तो कहीं यह अनाज रखने के काम आ रहा है। गांव के विशम्भर पांडेय कहते हैं, ‘‘ग्राम प्रधान के यह कहने पर कि गांव को पुरस्कार मिलेगा। सभी ने शौचालय बनवा लिया। अब कोई प्रयाग नहीं कर रहा है। शौचालय का प्रमुख उद्ïदेश्य पुरस्कार प्राप्त करना था।’’ शहर में रहने वाली ग्राम प्रधान श्रीमती मीना पांडेय कहती हैं, ‘‘हम तो सिर्फ शौचालय बनवा सकते हैं, लोगों की मानसिकता तो नहीं बदल सकते।’’ संतकबीरनगर के बघौली _x008e_लाक के निर्मल ग्राम गुलरिहां पहुँचने पर गाँव के बाहर ही निर्मल ग्राम पुरस्कार-2००7 की टी शर्ट पहने ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद यादव मिल जाते हैं। राजेंद्र प्रसाद यादव बताते हैं, ‘‘167 मेरे प्रयास से बना। इंदिरा आवास के के 4 हैं। 18 निजी शौचालय हैं। 1०-12 शौचालय अधूरे हैं। दो दिन पहले दिल्ली से आया हूँ, अब पूरा हो जाएगा।’’ ग्राम प्रधान के दावों की पोल ग्रामसभा के अतरौरा टोले में खुलती है। 7० परिवारों में सिर्फ राम चैइतर व चुन्नीलाल के घर शौचालय बना है। 68 परिवारों में कुछ के घर तो काम ही नहीं शुरू हुआ। गड्ïढा खोदकर छोड़ दिया गया है। बदलू कहते हैं, ‘‘ठेकेदार से कहते हैं कि जल्दी करो तो कहता है पैसे दो।’’ गाँव की सीतापती कहती हैं, ‘‘प्रधान से बार-बार कहने के बावजूद काम नहीं शुरू हुआ।’’ जाहिर है भले ही इन प्रधानों के हाथ पुरस्कार लेते वक्त तनिक भी न काँपे हों लेकिन पुरस्कारों की पड़ताल में पंचायतीराज में चल रहे लूट-खसोट की भयावह तस्वीर सामने आती है।
-गोरखपुर से अजय श्रीवास्तव
दो साल पूर्व निर्मल ग्राम पुरस्कार की सूची में देश के सबसे बड़े और 52०6 ग्राम पंचायतों वाले उ_x009e_ार प्रदेश के एक भी ग्राम पंचायत का नाम शामिल नहीं था। इससे राष्टï्रीय मंच पर पूरे प्रदेश की प्रतिष्ठïा प्रभावित हुई थी। लेकिन इस स्थिति में प्रदेश शासन ने नसीहत ली और आज स्थिति यह है कि अकेले गोरखपुर जनपद के 16 ग्राम पंचायतों ने इस पुरस्कार के लिए नाम दर्ज करा लिया।
मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2००6-०7 के लिए जो ग्राम पंचायतें मानक पर खरी उतरी हैं उनमें सहजनवां _x008e_लाक की भीमापार, भगौरा, हरपुर, पाली की तिलौरा, चरगांवा की नाहरपुर, भटहट की औरंगाबाद, पतरा, सरदारनगर की सुरसर देउरी, खोराबार की लालपुर टीकर, बांसगांव की महसिन खास, धनौड़ा खुर्द, गगहा की पिछौरा, गोला की डडिय़ा, बरपार और बड़हलगंज _x008e_लाक की धोबौली व महुलिया पोयल ग्राम पंचायतें शामिल हैं।
इनमें से जिन ग्राम पंचायतों की आबादी एक हजार तक है उन्हें 5० हजार, जिनमें दो हजार तक हैं उनको एक लाख और जिनकी पांच लाख तक है उनको दो लाख रूपये का पुरस्कार मिला है। पिछले साल गगहा _x008e_लाक की मिश्रौली ग्राम पंचायत को यह पुरस्कार मिला था।
शासन के निर्देश के अनुसार निर्मल ग्राम पुरस्कार उन्हीं ग्राम पंचायतों को मिलना है जहां सभी परिवारों के पास शौचालय होंगे तथा ग्राम में कोई भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं जाता होगा। इसके अलावा इस पुरस्कार के लिए कुछ अन्य शर्तें भी हैं।
यथा ग्राम पंचायत क्षेत्र के प्राथमिक, अपर प्राथमिक एवं हायर सेकंड्री स्कूल में छात्रों व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, मूत्रालय की व्यवस्था हो, आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए बेबी फ्रेंडली शौचालय उपल_x008e_ध हो, ग्राम में कोई सर्विस लैट्रिन न हो।
इस योजना में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को शौचालय के लिए सरकार द्वारा 15०० रूपये दिये जाते हैं। जबकि गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी पंचायती राज विभाग की है। जनपद की इस उपल_x008e_िध के संबंध में जब जिला पंचायतराज अधिकारी जयदीप त्रिपाठी ने कहा कि यह पुरस्कार सामान्य पुरस्कार नहीं है। (11.5._x007f_7/गोरखपुर)
सुनकर थोड़ा आश्चर्य अवश्य होगा कि प्रदेश के अत्यंत पिछड़े कहे जाने वाले बुंदेलखंड की आधा दर्जन पंचायतों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चयनित कर लिया गया। विश्वास कीजिये यही सत्य हे िकसंपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिये बुंदेलखंड की 26 ग्राम पंचायतों को न सिर्फ चुना गया अपितु 4 मई 2००7 को देश के महामहिम के द्वारा उन्हें सम्मानित भी करा दिया गया। तो क्या वास्तव में इन पंचायतों की दशा में कुछ सुधार हुआ है? या राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को गुमराह किया गया है? वस्तुस्थिति का जायजा लेने के लिए जब ‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने इन सम्मानित ग्राम पंचायतों का भ्रमण किया तो कई सनसनीखेज तथ्य उजागर हुये।
बाँदा जनपद के विकास खंड वड़ोखर खुर्द की पंचायत चिल्ली के आधे गांव में बिजली नहीं है और चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है। शुद्घ पेयजल तो दूर पीने के पानी की भी किल्लत है। गाँव में डायरिया, पीलिया और क्षय रोग जैसी बीमारियों का बसेरा है। अस्पताल भी गाँव से दूर है और वहाँ तक जाने का रास्ता कच्चा है फिर किस मापदंड पर गाँव को निर्मल गाँव घोषित किया गया है? समझ से परे है। गाँव के बसंतलाल अहिरवार (32) कहते हैं, ‘‘हम का बताई गाँव मैं घूर पड़ा है खुदै देख ल्या’’ इसी गाँव के गिरधारी (65) कहते हैं, ‘‘गाँव में दस साल से टंकी बनी है लेकिन पानी नहीं आ रहा। सूखा के कारण हैंडपंप भी साथ नहीं दे रहे हैं लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।’’ यह पूछने पर कि शौच कहाँ जाते हैं। वे कहते हैं, ‘‘लोग बाग बाहरौ चले जात हैं।’’ गाँव की शान्ती (37) कहती हैं, ‘‘मुझे माँगने पर भी शौचालय नहीं मिला। नालियाँ गंदी पड़ी हैं जिससे मच्छर बढ़ रहे हैं।’’ इसी गाँव के मुल्ली अहिरवार का भी शौचालय अभी तक नहीं बना। ग्रामवासियों ने बताया, ‘‘कमलेश का एक साल का लडक़ा अर्जुन 15 दिनों से डायरिया से और दूसरा लडक़ा संजय (4 वर्ष) पीलिया से पीडि़त है।’’
राष्टï्रीय राजमार्ग पर बाँदा जनपद मुख्यालय से महज 13 किमी की दूरी पर बसे ग्राम डिगवाही की स्थिति भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। हरिजन बस्ती के सात में से पाँच हैंडपंप खराब हैं। गाँव के नत्थू प्रसाद (37 वर्ष) का कहना है, ‘‘सलामत बचे दो हैंडपंपों मेें पानी पीने, नहाने, कपड़े धुलने अैर शौच के बाद किनारे की मिट्ïटी से हाथ आदि धुलने के कार्य किये जाते हैं।’’ गाँव के वृद्घा आरोप लगाते हैं, ‘‘सचिव लैटरन के 5०० और इन्दिरा आवास के 6००० रूपया लेता है। जिसमें देने की कूबत हो, बन जाती है।’’ गाँव की जगिया कहती हैं, ‘‘हम टट्ïटी (लैट्रिन) बाहर जायें चाहें भीतर काय फरक पड़ता है। हमारी खातिर काम तो है नहीं जॉब कार्ड (क्रमांक ०31०42००3०3०11०2) पिछले साल बन गया था पै काम नौय दिने (9 दिन) का मिला है। लरका बहू बाहरै कमाय गे हैं।’’
बाँदा जनपद मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर बने इसी विकासखंड के ग्राम पल्हरी के मजरा किलेदार का पुरवा निवासी मन्नू जमादार का कहना है, ‘‘आज तक उसकी खुड्ïडी (शौचालय) नहीं बनी है।’’ इसी पंचायत के ग्राम पंचायत सदस्य हीरालाल वर्मा कहते हैं, ‘‘वर्ष 1998 में हमारा ग्राम अंबेडकर ग्राम बना। 2००5 में समग्र ग्राम और अब निर्मल ग्राम बनने के बाद भी समस्यायें ज्यों की त्यों हैं। यहाँ संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत 43० शौचालय का प्रस्ताव था। जिसके लिए 7,52,5०० रूपये आया था लेकिन मौके पर 1०० से अधिक शौचालय नही हैं। उनका कहना है, ‘‘हम लोगों की काई गुहार नहीं सुनता, ग्राम सभा की मीटिंग भी आयोजित नहीं होती।’’ मौके पर जाकर देखने पर पता चला कि शरद यादव की लैट्रिन पर नागफनी उगी हुई है व कुबेर कुशवाहा, वासुदेव कुशवाहा, लोटन राजपत, प्रताप राजपूत आदि के शौचालय पर अत्यधिक मिट्ïटी जमा हो जाने से लैट्रिन सीट का कहीं अता-पता नहीं चल रहा है। इसी गाँव के एक और ग्राम पंचायत सदस्य रामगोपाल का कहना है, ‘‘हमें शुद्घ पानी पीने को नही मिलता। गाँव में शुद्घ पेयजल के अभाव से कई गंभीर बीमारियाँ होती हैं। मेरे मित्र गोरेलाल पीलिया से ग्रसित हैं।’’
जनपद हमीरपुर के विकासखंड राठ के अंतर्गत ग्राम पंचायत अतरौलिया कहने को तो ग्राम पंचायत है किंतु वास्तव में यहाँ गाँव के कोई भी चिन्ह नहीं मिलते। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पक्के मकान, आरसीसी की सडक़ें, ब्रम्हानंद महाविद्यालय राठ के पास, कोतवाली राठ और राठ डिपो के सामने बसा यह नगर सरकारी फाइलों में गाँव होने से निर्मल गाँव की श्रेणी में आ गया। सामाजिक कार्यकर्ता वीके द्विवेदी कहते हैं, ‘‘अतरौली पूरी तरह से राठ का एक मुहाल हो गया है। यहाँ 9० फीसदी लोग या तो सरकारी नौकरी में हैं या फिर बिजनेस में कई परिवार ऐसे भी हैं जो फिल्टर या डिस्टल वाटर पीते हैं। सरकारी स्तर पर यहँा कुछ खास नहीं किया गया।’’ अतरौली निवासी पेशे से फोटोग्राफर राकेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘निर्मल गाँव होना फख्र की बात है किंतु आज भी कुछ लोग शौच क्रिया के लिए शौकियन बाहर जाते हैं। टिलवापुरवा के तालाब पर अवैध क_x008e_जा है। इसके संरक्षण के लिए कोई उपाय नहीं किये जा रहे।’’ टिलवापुरवा में गरीब, मजदूर एवं रिक्शा चालक रहते हैं। इनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं है।
इलाहाबाद जनपद में निर्मल ग्राम योजना के तहत विकास खंड मेजा के जरार, विकास खंड बहादुरपुर के रामनगर, विकास खंड फूलपुर के लतीफपुर, विकास खंड प्रतापुर के चक पूरे मियाँ, विकास खंड सैदाबाद के भवानीपुर, विकास खंड धनुपुर के शंकरपुर ग्राम को मानक पर खरे उतरते हुए चुना गया है। निर्मल ग्राम योजना के तहत चयनित इन छह गांवों का जब दौरा किया गया तो यह लगा कि जब तक जन जागरूकता का अभियान ग्रामवासियों के मध्य व्यापक तरीके से प्रसारित और प्रचारित नहीं किया जाता तब तक ये योजना भी महज कागजी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी। बहादुरपुर विकास खंड के रामनगर ग्रामसभा में 1०7 बीपीएल और 138 एपीएल शौचालय का निर्माण तो हुआ है। पर, इनमें से मात्र 5० फीसदी शौचालय ही काम कर रहे हैं। गाँव के नाटे यादव और राघवेंद्र पांडेय भी शौचालय के निर्माण में हेराफेरी और घटिया सामग्री के इस्तेमाल का आरोप लगाते हैं। इतना ही नहीं, गांव के बुजुर्ग ग्रामीण अभी भी घरेलू शौचालय के स्थान पर खेत में ही शौच क्रिया करना पसंद करते हैं। ग्राम प्रधान रेखा यादव कहती हैं, ‘‘ग्रामसभा में प्रेरक रखा गया है। जो ग्रामीणों को शौचालयों के समुचित उपयोग की घर-घर जाकर जानकारी दे रहा है।’’ विकास खंड मेजा के जरार निर्मल गाँव में योजना के तहत 55० बीपीएल और 1०० एपीएल शौचालय बने हैं। पर यहाँ भी घटिया निर्माण की शिकायत आम बात पायी गयी है। गाँव के भगेलू राम कहते हैं, ‘‘इस योजना से भी ग्राम प्रधान अमीर उल्ला खाँ इसे चुनावी रंजिश से प्रेरित आरोप बताते हैं।’’ इस गाँव में शौचालय भले बने हों पर जल निकासी हेतु साधनों खास कर सोख्तों का अभाव नजर आया। विकास खंड फूलपुर के लतीफपुर निर्मल गाँव में 294 बीपीएल और 77 एपीएल पारिवारिक शौचालयों का निर्माण कागज पर दिखाया गया है। पर वास्तविक रूप में कुल लगभग 15० शौचालय ही मानक के आधार पर सही ठहराये जा सकते हैं। गाँव की आंगनबाड़ी का शौचालय भी दुरूस्त हालत में नहीं है। विकास खंड धनपर के सुकंदपुर निर्मल गाँव में 185 बीपीएल और 9० एपीएल शौचालयों का निर्माण हुआ है7 ग्राम प्रधान कमला शर्मा स्वीकारती हैं, ‘‘पूर्ण स्वच्छता अभियान के लिए शासकीय प्रयास अभी ऊँट के मुँह में जीरे के समान हैं।’’ प्रतापपुर विकासखंड के चक पूरे मियाँ ग्राम में 8० बीपीएल और 92 एपीएल शौचालय बने हैं। गाँव के केशवराम आरोप लगाते हैं, ‘‘प्रति शौचालय निर्माण हेतु मिलने वाली 15०० रूपये की धनराशि में अधिकांश ग्राम प्रधान और पंचायत अधिकारी द्वारा हड़प ली जाती है। इसीलिए निर्माण घटिया है।’’ विकासखंड सैदाबाद के भवानीपुर गाँव में 65 बीपीएल और 19० एपीएल शौचालय बने हैं। लेकिन एकल और आंगनबाड़ी में शौचालय निर्माण मानक के विपरीत है। ग्राम प्रधान इसके लिए अधिकारियों का दोष देती हैं।
-इलाहाबाद से रतन दीक्षित
-महाराष्टï्र में जहां सर्वाधिक 2952 ग्राम पंचायत ‘निर्मल ग्राम’ बन चुके हैं। वहीं गुजरात में 1675 तथा उ_x009e_ार प्रदेश में 1296 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम बनाया जा चुका है।
-पंजाब में अब तक सिर्फ आठ ग्राम पंचायत और असम में तीन ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम बनाए गए हैं। बिहार की स्थिति भी कुछ खास नहीं है लेकिन वहां के 51 ग्राम पंचायतों में ग्रामीण सवच्छता अभियान पूरा हो चुका है। उड़ीसा में 66 ग्राम पंचायतें संतृप्त की जा चुकी हैं।
-उ_x009e_ाराखंड और मध्य प्रदेश की इस मामले में स्थिति मध्यम है। इन राज्यों में क्रमश: 487 और 558 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम बनाया जा चुका है।
-मंत्री ने बताया कि संपूर्ण स्वच्छता अभियान में गति लाने के लिए भारत सरकार ने जून 2००3 में पूर्ण रूप से खुले में शौच से मुक्त ग्राम पंचायतों, _x008e_लाकों और जिलों के लिए निर्मल ग्राम पुरस्कार नाम की प्रोत्साहन योजना शुरू की।
-संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) परियोजना पर कुल परिव्यय 1० हजार 337 करोड़ रूपए है। इसमें केंद्र सरकार का अंशदान 6412 करोड़ और राज्य सरकार का अंशदान 2286 करोड़ रूपए है। इसमें लाभार्थियों का अंशदान 2286 करोड़ रूपए है। केंद्र सरकार ने अब तक 2145 करोड़ रूपए आवंटित किए हैं। (19.1._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
-राजधानी के नौ गाँवों-बख्शी का तालाब विकास खंड के चक्र पृथ्वीपुर, कुम्रहवां व बीबीपुर, मलिहाबाद के दौलतपुर, कसमंडी खुर्द व भदवाना, काकोरी का पहिया आजमपुर व गोसाईगंज विकास खंड के रहमतनगर व घुड़सारा को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया है। यह संख्या जिले के कुल 511 गांवों के दो प्रतिशत से भी कम है।
-सरकार प्रत्येक शौचालय के निर्माण के लिए 15०० रूपये की आर्थिक सहायता करती है और चार सौ रूपये ग्रामीणों को भी लगाने होते हैं। यहीं इस योजना को मूर्त रूप देने में दिक्कतें पेश आती हैं। गरीबी की रेखा के नीचे जिदंगी बसर करने वालों के लिए 4०० रूपये खर्च कर पाना कठिन है। उन्होंने बताया कि निर्मल ग्राम पुरस्कारों के लिए उन्हीं गांवों का चयन किया जाता है जहां के हर घर में शौचालय हो।
-निर्मल ग्राम परियोजना के जिला समन्वयक सत्येन्द्र सिंह के अनुसार जिन गांवों के नाम का प्रस्ताव भेजा गया है, उनमें उपयुक्त मानकों के अनुसार 99 फीसदी से अधिक काम पूरा हो चुका है और पुरस्कार वितरण की तारीख तक शेष काम भी पूरा हो जाएगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2००3-०4 में निर्मल ग्राम पुरस्कार की शुरूआत की थी। इस बार पुरस्कारों के लिए देश के विभिन्न भागों से 7००० गाँवों ने दावेदारी पेश की है। चयनित गांवों के ग्राम प्रधानों को गत 4 मई को राष्टï्रपति के हाथों पुरस्कृत होने के लिए दिल्ली भेजा गया। (28.1._x007f_7/लखनऊ/रोली खन्ना)
-बख्शी का तालाब के बीबीपुर गाँव के निवासी हैरत में हैं। उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा है कि अपने गाँव को निर्मल ग्राम बनाने के लिए उन्होंने पिछले साल से जो जतन किये उसका उन्हें कोई सिला नहीं मिला। निर्मल ग्राम की सभी कसौटियों पर खरा उतरने के बावजूद उनके गांव को इस दौड़ से बाहर कर दिया गया और तमगा दे दिया गया उन गांवों को जो इस पुरस्कार के मानक भी पूरे नहीं करते। सिर्फ बीबीपुर ही नहीं, गोसाईगंज के घुड़सारा और मलिहाहाबाद के कसमंडी खुर्द गांवां के निवासी निर्मल ग्रामों की चयन प्रक्रिया में खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
-चयनित ग्राम पंचायतों के शत-प्रतिशत घरों, स्कूल तथा आंगनबाड़ी केंद्र में शौचालय निर्माण व वृक्षारोपण के साथ ही गांव को गंदगीमुक्त भी कराना शामिल था। पुरस्कार की घोषणा हुई तो निर्मल गांव की श्रेणी में सिर्फ चार गांव चुने गए-बख्शी का तालाब का कुम्हरावां व चक पृथ्वीपुर और मलिहाबाद की दौलतपुर व भदवाना। इनमें से चक पृथ्वीपुर और भदवाना में अधूरा काम हुआ है फिर भी उन्हें पुरस्कार के लिए चुन लिया गया।
-बीबीपुर गांव के लोगों ने अपने गांव को निर्मल ग्राम का दर्जा दिलाने के लिए साल भर अथक प्रयास किये। इस गांव के सभी 511 घरों में शौचालय बने हुए हैं जो ऊपर से टिन शेड से ढके हुए हैं।
-यहां के ग्राम प्रधान रमेश पाल दुखी मन से कहते हैं, ‘‘अपने गांव को निर्मल ग्राम बनाने के लिए हम लोगों ने जी जान लगा दी। खूब काम कराया। यहां निरीक्षण करने आये जिलाधिकारी ने भी प्रशंसा की लेकिन इसके बाद भी पता नहीं क्यों उनका गांव पुरस्कार की दौड़ से बाहर हो गया।’’ (4.5.०7/जागरण/लखनऊ)
-उप्र के ग्रामीण स्वच्छता अभियान के समन्वयक एके सिंह के मुताबिक, ‘‘राज्य में खासतौर पर पश्चिमी उप्र में इस मामले में बेहतर कार्य हुआ है। पूर्वी उप्र इस मामले में काफी पीछे है। लेकिन वहां के गोरखपुर और कुशीनगर जिलों में अच्छा कार्य हुआ है। इन जिलों में अच्छा कार्य हुआ है। इन जिलों के 5० ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चयनित किये गये हैं। इस बार राज्य से 13०० पंचायतों ने आवेदन भेजे थे। अगले साल कम से कम पांच हजार पंचायतें दौड़ में होंगी।’’ (28.4._x007f_7/अमर उजाला/नई दिल्ली)
-निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना में पूरे देश से चयनित 24 राज्यों में उप्र को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। इस राज्य की 474 ग्राम पंचायतें इस पुरस्कार के लिए चयनित की गई हैं। इस मामले में महाराष्टï्र अव्वल नंबर पर है, जिसकी 1912 ग्राम पंचायतों को यह पुरस्कार दिया जाएगा। (27.4._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
-ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया, ‘‘देश के सभी गांवों को पूरी तरह से स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ने वर्ष 2०12 तक हर घर में शौचालय बनाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त करने का राष्टï्रव्यापी कार्यक्रम बनाया है।’’
-निर्मल ग्राम पुरस्कारों विजेताओं की संख्या 2००5 में 4०, 2००6 में 769 और इस साल वर्ष 2००7 में चार हजार से अधिक हो गयी है। रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया, ‘‘इस वर्ष निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए 24 राज्यों से कुल 9745 पंचायतों, 12० प्रखंड पंचायतों तथा दो जिला पंचायतों से आवेदन मिले थे। इसमें से 4437 ग्राम पंचायत और प्रखंड पंचायतों का चयन किया गया। (27.4._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
व्यवस्था में विश्वास रखने वालों के लिए यह खबर आघातकारी है। देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राष्टï्रपति को गलत सूचनाओं के जरिए धोखा देने वाले कोई और नहीं भारतीय प्रशासनिक संवर्ग के अफसर थे जिनकी नियुक्ति का पत्र महामहिम की ओर से ही जारी किया जाता है। महामहिम को भेजी गई सूचना निर्मल ग्रामों के बारे में है। जिसमें उन्हें यह बताया गया है कि राज्य में 4_x007f_ ग्राम ऐसे हैं जिन्हें सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत शत प्रतिशत संतृप्त कर दिया गया है। इस योजना में शामिल होने वाले गावों लिए जरूरी है कि सभी घरों में शौचालय हो। गांव का प्रत्येक व्यक्ति इसका इस्तेमाल करता हो। लेकिन पुरस्कृत गांवों के जमीनी निरीक्षण के बाद ‘आउटलुक’ साप्ताहिक को हालात बेहद खराब मिले।
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र ने लगभग 8_x007f_ साल पहले अपने गांव लमही में जो पहला शुष्क शौचालय बनवाया था। लेकिन वहां आज भी 9_x007f_ प्रतिशत आबादी शौचालय की सुविधा से वंचित है। ऐसे में बनारस के छितौनी गांव को मिला निर्मल ग्राम का पुरस्कार विवाद और वितण्डा का विषय है। जिला मुख्यालय से महज 1_x007f_ किमी. दूर लहरतारा अकेलवा मार्ग पर स्थित छितौनी फिलहाल जश्न में डूबा हुआ है। लेकिन हालात कुछ और ही बयान करते हैं। ग्राम प्रधान सुनिता शर्मा की ही मानें तो, ‘‘गांव में कुल 625 परिवार हैं। अभी तक मात्र 246 शौचालयों का निर्माण हो सका।’’ अन्य जगहों पर मात्र गड्ïढा खोदकर छोड़ दिया गया है। मुन्ना लाल एवं खरबन राजभर ने बताया, ‘‘दो महिने से गड्ïढा खोदे जाने के बाद भी शौचालय बनाने का सामान अभी तक नहीं मिला है।’’ एडीएम पंचायत हरिशंकर सिंह बताते हैं, ‘‘इस गांव के सभी लोगों को शौचालय बनाने के लिए 15-15 सौ रूपए की धनराशि दी जा चुकी है।’’ जबकि गांव वालों की मानें तो, ‘‘तमाम लोग अभी भी इस पैसे की बाट जोह रहे हैं।’’ निर्मल गांव के पुरस्कार से नवाजे गए सरकारी आंकड़े की हकीकत यह है कि अभी तक गांव मे बीडीसी सदस्य फुलप_x009e_ाी देवी और सुभाष के यहां तक शौचालय का निर्माण नहीं हो पाया है।
आइये, बाकी गांवों की हकीकत देखें। बहराइच जिला मुख्यालय से सटे 2_x007f_36 आबादी वाले ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ हठीला के ग्राम पंचायत सदस्य नसीरूद्ïदीन खुदबखुद निर्मल गांव की कलई खोलते हुए कह उठते हैं, ‘‘अभी भी दर्जनों परिवार शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।’’ सिर्फ नसीरूद्ïदीन की बात पर भरोसा न भी करें तो भी मुख्य विकास अधिकारी एस.एन. बिन्द भी निर्मल गांव की निर्मलता पर सवाल उठाते हुए ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहते हैं, ‘‘25-3_x007f_ लोगों के शौचालय अभी नहीं बने हैं। जिन परिवारों ने पहले से शौचालय बनवा रखे थे उन्हें प्रोत्साहन के रूप में धनराशि उपल_x008e_ध करा दी गई है। लेकिन शीघ्र बनवा दिए जाने की उम्मीद जताते हैं।’’ सहारनपुर जनपद के पांच गांवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चुना गया है। दो गांव तो सचमुच इस कोटि में शरीक किए जाने लायक हैं। लेकिन यहां के छुटमलपुर, मिरगापुर और कुल्हड़ी की स्थिति देखते ही बनती है। बानगी के तौर पर देखें तो मिरगापुर निवासी दलित समुदाय की पूनम बताती हैं, ‘‘हमारे यहां शौचालय नहीं बना है। पांच सौ रूपए में आखिर कैसे बनवाएं शौचालय?’’ छुटमलपुर में नरेश के घर के लोग खुले में ही शौच करने जाते हैं। उसने बातचीत में स्वीकार किया, ‘‘इतने कम पैसे मिले थे कि उसमें निर्माण करा पाना सम्भव नहीं था।’’ फैजाबाद जिले के दोनों गांवोंं शाहजहांपुर और पहाड़ग़ंज की जमीनी हकीकत यह पूछने को मजबूर करती हैै कि जब निर्मल ग्राम ऐसे हैैं तो गन्दे ग्राम कैसे होंंगे? ये दोनों गांव फैैजाबाद नगर से सटेे हुए हैैं। पहाड़ग़ंज के सिर्र्फघोसियाना मुहल्ले में ही मो. जमील, हकीम, अ_x008e_दुल मोकीम, सनीफ मुर्तजा, छोटट्ï्ïन, मेंंहदी, स_x009e_ाार, अ_x008e_बास और इंसान अली आदि के घरों में शौचालय नही हैैं। औरतों व बच्चोंं को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़़ता हैै। गांव की दलित बस्ती का हाल तो और भी बुरा हैै। कई दर्जन ग्रामीणों के पास इतनी भूमि भी नहींं हैै कि वे वहां शौचालय बनवा सकेें। मुस्लिम बाहुुल गांव शाहजहांपुर में भी रशीद, सईद आदि शौचालयों की सुविधा से वंचित हैैंं। वे बताते हैं, ‘‘ग्राम प्रधान मंसूर अहमद अन्सारी ने उन्हेें आश्वस्त किया हैै कि वे पुरस्कार लेकर लौट आएं तो कुुछ करेेंंगे।’’ मगर ग्रामीणों को ऐतबार नहीं हो रहा। अम्बेडकरनगर जिले मेंं कटेेहरी _x008e_लाक केे अटवाई ग्राम का हाल भी कुुछ ऐसा ही हैै। अटवाई के अजय त्रिपाठी ने बताया, ‘‘अखबारों में हमारा गांव स्वच्छ हो गया हैै, यही क्या कम हैै।’’ 35 सौ की आबादी वाले बांदा जिले के छिबाव ग्राम में 364 शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन एक लाभार्थी शकुन्तला की मानें तो, ‘‘गांव में शौचालय का निर्माण हुआ भी। लेकिन आधे-अधूरे शौचालय का निर्माण होने के कारण गांव वासी अभी भी खुले में शौच जाने को अभिशप्त हैं।’’
मिर्जापुर जनपद के तीन गांव-पडऱी, गोढऩपुर और तरकापुर को तथाकथित निर्मल ग्राम का प्रमाण-पत्र हासिल है। सम्पूर्ण स्वच्छता का दावा करने वाले गोढऩपुर में न तो पूरे शौचालय बने हैं। न ही नाली, खड़न्जा। यहां महिलाएं प्रदूषण एवं गन्दगी से उत्पन्न होने वाली तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हैैं। इस गांव के निवासी मोहन सोनकर, बन्टूू, सन्तू बिन्द, राजू मि_x009e_ाल, कैैलाश एवं पप्पू ने बताया, ‘‘शौचालय आधे-अधूरे बने हैं। मजबूरन घर की बहूू-बेटियों और बच्चों को शौच के लिए खुले मैदान में या सड़क़ पर जाना पड़़ता हैै।’’ इससे भी दयनीय स्थिति पंड़ऱी गांव की हैै। इस गांव के राधेश्याम, कैलाश हरिजन, छोटेेलाल, पप्पू आदि ने खुले रूप से कहा, ‘‘सरकार की यह योजना भ्रष्टाचार की भेंंट चढ़़ रही हैै। सरकार द्वारा मिलने वाले पन्द्रह सौ रूपए में से सुविधा शुल्क देना पड़ता है। इसके बाद इतने पैसे नहीं बचते कि शौचालय बनवाया जा सके।’’ इस गांव से लगे हुुए _x008e_लाक कार्यालय पर नवनिर्वाचित महिला _x008e_लाक प्रमुख आशारानी रत्नाकर ने अपनी मुलाकात में बताया, ‘‘सरकारी खानापूर्ति करके गांव को भले ही निर्मल गांव में शामिल किया गया हो परन्तु इस योजना का पूरा लाभ गांव केे दलित, पिछड़़ी जाति के लोगों को नहीं मिल पा रहा है।’’ इसी _x008e_लाक के पूर्व प्रमुख चन्द्रेश सिंह ने भी निर्मल गांव के चयन की प्र्रक्र्रिया पर सवाल उठाते हुुए कहा, ‘‘जिस आधार पर इस गांव को निर्मल गांव घोषित किया गया हैै, उस आधार पर तो पूरा प्रदेश भी निर्मल प्रदेश घोषित हो सकता हैै।’’ पंड़ऱी ग्रामसभा केे गरीबी रेेखा के नीचे जीवन जीने वाली रेखा पत्नी बनारसी, नान्हक पत्नी रामकिशुन, शिवकुमारी पत्नी भागीरथी, राजमती पत्नी प्रदीप, हिना पत्नी हरिहर सभी को गांव केे निर्मल गांव घोषित होने की खुशी हैै किन्तु सभी को गांव के निर्मल होने पर बेसब्री से इन्तजार भी हैै। मथुरा जनपद के दोनो गांव-वृन्दावनी, अजीजपुरा भी कमोबेश निर्मल ग्राम पुरस्कार की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। वृन्दावनी के यूनुस और मामलिया के घरो में शौचालय नहीं बने हैं। वे बताते हैं कि, ‘‘उन्हें बाहर जाना पड़ता है।’’ इस गांव में मैला ढोने वाली दाई को भी देखा जा सकता है। गांव वालों पर भरोसा करें तो 25 फीसदी लोगों को खुले में शौच जाना पड़ता है। हालांकि मथुरा जनपद के दोनो गांव मायावती द्वारा विकास के लिए चयनित अम्बेडकर गांवों की सूची में थे। वृन्दावनी के डा. दशरथ शर्मा कहते हैं, ‘‘अम्बेडकर ग्राम के नाते यहां पहले से ही काफी शौचालय की मुकम्मल व्यवस्था है।’’ मथुरा दिल्ली हाइवे पर स्थित अजीजपुरा के चौधरी हरिवंश पुत्र रोशन बताते हैं, ‘‘गांव में 4_x007f_ फीसदी लोगों के यहां शौच की कोई व्यवस्था नहीं है।’’ मानसिंह पुत्र प्रभू, राजेन्द्र सिंह पुत्र शिवचरन, वंशीलाल पुत्र बृजलाल इसे तस्दीक करते हैं। कागजों पर इस गांव में 13_x007f_ शौचालय पहले से बने थे। अभियान के तहत 14_x007f_ बनाए गए। ग्राम प्रधान खुद द्वारा 1_x007f_2 शौचालय बनवाने का दावा कर रहे हैं। इस तरह गांव में कुल 372 शौचालय बने हैं। जबकि घरों की कुल संख्या 35_x007f_ है।
लखनऊ से 2_x007f_ किमी. की दूरी पर स्थित मु_x009e_ाकीपुर ग्राम प्रधान रज्जन पहलवान के भाई मुशीर बताते हैं कि, ‘‘मु_x009e_ाकीपुर का नाम पिछले वर्ष भी निर्मल ग्राम योजना में शामिल किया गया था। लेकिन विरोधी प्रधान की साजिशों के चलते उनके गांव को पुरस्कार नहीं मिल सका।’’ गांव में घुसते ही ‘‘पहले घर में शौचालय बनवाओ और फिर बहू लाओ’’ नारे लिखे दिखते हैं। लगभग तीन सौ घरों वाले इस गांव में पिछले एक महीने के दौरान लगभग 9_x007f_ फीसदी घरो में पक्के शौचालयों की चहारदीवारी व सेप्टिक टैंक तो बनवा दिए गए हैं। टीन के कूड़ेदान प्रधान जी के घर के अहाते में ढेर हैं। पूछने पर बताया जाता है, ‘‘यह अभी-अभी बनकर आए हैं। प्रधान जी अवार्ड लेने दिल्ली चले गए हैं। जिसकी वजह से यह अभी लग नही पाए हैं।’’ इसी गांव में पैदा हुए 24 वर्षीय सुरेश कुमार बताते हैं, ‘‘हमारे परिवार में 17 सदस्य हैं। शौचालय तो पिछली बार भी बने थे। लेकिन वह बहुत दिन चल नहीं पाए। सो हम लोग फिर खेतों में जाने लगे। अब फिर सरकार ने बनवा तो दिए हैं। थोड़ा आराम तो हो ही गया है।’’ इसी गांव की जगरानी कहती हैं, ‘‘अभी एकै महीना पहिले तो बना है। इकै पहले तो हम लोग से कौनो पूछे नहीं आवत रहे।’’ गांव में शौचालय निर्माण कार्य तो पूरा है। राज्य में इस अभियान के प्रभारी और पंचायत महकमे के उपनिदेशक ए.के. सिंह यह स्वीकार करते हैं, ‘‘यह कार्यक्रम शौचालय बनाने से नहीं बल्कि उसके उपयोग करने की आदत में परिवर्तन पर केन्द्रित है।’’ ऐसा नहीं कि इस योजना का सब कुछ बेहद खराब हो। लखनऊ मण्डल के मु_x009e_ाकीपुर, बरूआ, कुकुही के साथ-साथ कानपुर देहात के शाहजहांपुर, बरौली, मुरादाबाद का गांव अक्की देलरी पुरस्कार की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
लेकिन इस अनियमितता की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। राज्य सरकार की ओर से निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए 14_x007f_ गांवों के नाम भेजे गए थे। जब केन्द्र की टीम ने इन गांवों का सर्वे किया तो उसे सौ ऐसे गांव मिले जहां एक-दो फीसदी लोग ऐसे बचे थे जिन्होंने शौचालय बनवा तो लिए थे। लेकिन उसका प्रयोग नहीं करते थे। नतीजतन, सौ गांवों को पुरस्कार सूची से बाहर कर दिया गया। जबकि ‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने पाया कि केन्द्र सरकार की टीम ने गांवों के चयन में खासी अनदेखी की है। मसलन, राज्य के पंचायत महकमे के अफसरों की ओर से हरदोई जिले के मकदमपुर और राव बहादुरपुर का नाम निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए संस्तुत किया गया था। लेकिन ‘पता नहीं क्या’ देखकर केन्द्र सरकार की टीम ने हरदोई के कछौना _x008e_लाक के कुकुही गांव को पुरस्कार के लायक समझा वह भी तब जब पंचायत के आला हुक्मरान लखनऊ से जाकर इस गांव में स्वच्छता अभियान से जुड़े कई लोगों को निलम्बित करके आए थे। इसी तरह मुरादाबाद का असालतपुर, बिजनौर का सरकड़ाखेड़ी और कामराजपुर, सीतापुर का रहीमाबाद, उन्नाव का सरथमनिहार, बदायूं का नैथू, श्रावस्ती का मदारा, आजमगढ़ का लोनियाडीह, बलिया का रक्सा डनिया और करैला के साथ-साथ बाराबंकी के बेरहरा, टडवा गतभानपुर तथा मुस्कीनगर में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को ठीक से परवान चढ़ाया गया है। जबकि उन्नाव में इस पुरस्कार के लिए ग्राम पंचायत दोस्तीनगर का नाम भेजा गया था। राज्य सरकार के पंचायत महकमे के दस्तावेजों पर भरोसा किया जाता तो निर्मल ग्राम का पुरस्कार पाने वाले गांवों की तादाद न केवल 4_x007f_ से अधिक होती बल्कि आज जो उंगली उठ रही है वह भी नहीं उठती। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि केन्द्र ने राज्य सरकार की मशीनरी पर भरोसा न कर आईएएस अफसरों और दो स्वयं सेवी संगठनो-आनन्दमयी और ओएसिस को राज्य सरकार द्वारा भेजी गई सूची की हकीकत के पड़ताल का जिम्मा सौंपा था।
-योगेश मिश्र
साथ में फैजाबाद से कृष्ण प्रताप सिंह, मिर्जापुर से राजकुमार शर्मा
नोट:- दिवाकर जी, इसकी फोटो आपको निराला ने भेजी होगी। आगरा से मनीष भेजेंगे, मिर्जापुर से से भी फोटो मिलेगी। वैसे चाहें तो राष्टï्रपति द्वारा पुरस्कार प्रदान करने की भी फोटो लगा सकते हैं।
(योगेश मिश्र)
दिनाँक: 28.०5.2००7
बिजनौर के विकास खंड नजीबाबाद का निर्मल गाँव हर्सुवाड़ा विला अहत माली में इनाम अली के मकान में शौचालय नहीं है। सामने सडक़ नहीं है। नाली नहीं है। घर के सामने टूटी नाली में गंदा पानी भरा है। यही हाल अ_x008e_बास के घर के सामने है। शौचालय के लिए सीट और ईंट दी गयी पर छत पाटने का पैसा और दरवाजा नहीं दिया गया। भूरा मौलुफ के दो शौचालय की छत नहीं है। दीवारों की ऊँचाई साढ़े चार फिट बनाई गई है। भूरा, रियाजुद्ïदीन व मोहम्मद इलियास को सात-सात सौ, ईंट व सीट दी गयी बाकी का पैसा सभी ने खुद लगाया। गाँव में सडक़ें नहीं हैं। नालियाँ टूटी पड़ी हैं। जिनमें गंदा पानी भरा रहता है।
विकास खंड का गाँव काशीरामपुर मे आबादी 17०2 और सीटें सिर्फ 37 आयीं। विधवा जमुना से सीट और किवाड़ वापस ले ली गयी। गाँव में तकरीबन दो सौ घरों में शौचालय नहीं बने। धर्मेन्द्र, दिलावर, इकबाल, मकसूद, चन्द्रो व भु_x009e_ाू सहित सैकड़ों परिवार खुले में शौच के लिए जाते हैं। कामता प्रसाद गुप्ता के सामने तिराहा पर दोनों स्कूलों के सामने और मंदिर के चारों तरफ गंदा पानी इकट्ïठा होता है। प्रधान पति ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘इंदिरा आवास योजना में सभी के शौचालय बनवा दूँगा। गांव की नालियाँ गाँव वालों ने तोड़ी हैं।’’ धर्मपाल, गोपाल आदि को मांगने पर भी शौचालय नहीं मिला। जालपुर निर्मल गाँव की दास्तान निराली है। यहाँ के प्रधान ने केंद्रीय टीम के सर्वे से पहले गाँव में सीटें बाँट दीं और लोगों से खुद शौचालय बनवाने को कहा। ऐसा न होने पर सीटें वापस ले ली गयीं। अनिल कुमार, मुन्ना, गंभीर सिंह के घर सीटें रखी हैं। पर प्रधान ने शौचालय नही बनवाये। मोहम्मद शमीम, मोहम्मद उमर, मोहम्मद शमशाद हुसैन व शमीम अहमद के शौचालय पर दरवाजे व छ_x009e_ो नही हैं। प्रधान श्यामलाल सिंह ने बताया कि 1०9 सीट मिलने के बाद 25० शौचालय व 2००० मीटर लंबी नालियां बनना और पन्द्रह नलों के लगने की जरूरत है। गाँव के पश्चिम में गाँव भागू वाला की तरफ जाने वाली सडक़ सौ मीटर के दायरे में पिछले सात साल से टूटी पड़ी है। जिसमें कीचड़ और गंदा पानी जमा होने से रास्ता लगभग बंद है। इस कीचड़ में एक नल (इंडिया टू मार्का) लगा हुआ है। यहीं ग्रामसभा की जमीन में गाँव का कूड़ा व मैला इकट्ïठा किया जा रहा है और गांव का गंदा पानी भी इसी जमीन पर जमा हो रहा है।
कोतवाली विकास खंड का निर्मल गाँव रायपुर सादात में मल ही मल है। पूरे गाँव में एक भी शुष्क शौचालय नहीं है। दो फीसदी फ्ïलश के 98 फीसदी कमाऊ शौचालय बने हैं, कारणवश गाँव के वाल्मीकि मैला कमाने के गैर कानूनी काम में लगे हैं। राजेश चौहान के दो निजी शौचालयों पर प्रधान ने पुताई कराकर योजना में बना दिखाया है। कालू के घर में शौचालय नहीं है, अ_x008e_दुल अजीज के घर में कमाऊ शौचालय है। घर के सामने नालियों का गंदा पानी जमा है। शफीक अहमद का कमाऊ शौचालय टूट चुका है। सईद के सामने खडंजा ऊंचा है। नाली नहीं बनी है। इस घर में व कामेंद्र दलित के घर में बरसात का पानी घुस जाता है। मोहल्ला कुरैशियान, अम्बेडकर नयी बस्ती, नाईयों का मोहल्ला, मोहल्ला शेख, धोबियों का, फकीरों का, अंसारियों का, कुम्हार व धीमरों का मोहल्ले में शुष्क शौचालय नही हैं। कुछ घरों में कमाऊ व जल प्रवाहित शौचालय दिखाई देते हैं। सहायक विकास अधिकारी के मकान के पास लगे इंडिया टू मार्का नल में दूषित पानी आ रहा है। गाँव वालों ने बताया, ‘‘प्रधान इस हैंडपंप के नीचे से पाइप निकलवाकर ले गया है। देखे गये चारो गांवों में परिक्रमा मार्ग नहीं बना है।’’
अलीगढ़ के विकास खंड बिजौली का गाँव बूलापुर में बने शौचालयों पर दरवाजे न होने की वजह से इसतेमाल में नही आ रहे हैं। नत्थी सिंह का शौचालय पटा नहीं है। दरवाजा उखड़ गया है। छग्गामल और डम्बर सिंह समेत कइयों को शौचालय के दरवाजे नहीं दिए गए। होती सिंह के शौचालय के टैंक का ढक्कन टूटा हुआ होने से प्रदूषण फैल रहा है। रास्ते के किनारे गाँव का कूड़ा जमा किया जा रहा है। हैंडपंप के पास गंदगी और जलभराव है। परिक्रमा मार्ग उबड़-खाबड़ है। पुरस्कार मिलने के बाद हुई एक जाँच में सहायक विकास अधिकारी ने गाँव की असली तस्वीर को झुठलाकर रिपोर्ट दी है।
विकास खंड लोधा का निर्मल ग्राम सिंघारपुर में घुसते ही सडक़ के स्तर से ऊपर बनी एक नाली दिखाई देती है जो बिना नींव के बनायी गयी है। दूसरी नालियों से न जोड़े जाने के कारण इस नाली का कोई अर्थ नही है। गाँव की पोखर को गहरा करवाया गया, पर नालियों में तालमेल न करने के कारण अजयपाल सिंह और शंकरपाल सिंह के मकान के सामने गंदा पानी जमा रहता है और नालियों का पानी पोखर की बजाय दूसरे स्थान पर जमा होकर गाँव में प्रदूषण फैला रहा है। 4० दिन में तैयार कराये गये शौचालयों की दीवार व दरवाजे उखडऩे लगे हैं। यही हाल सार्वजनिक शौचालय का है। दरवाजे हवा के जोर से ही उखड़ रहे हैं। लोग पोखर के किनारे खुले में शौच करके अभी भी गंदगी फैला रहे हैं। गाँव में एक दर्जन स्थानों पर गंदे पानी का भराव है। ट्ïयूबवेल की टंकी को कूड़ाघर बना रखा है। गाँव में परिक्रमा रोड नहीं बनी है।
-अलीगढ़ से कुलदीप सिंह
मिर्जापुर जिले में तीन ग्रामसभाओं को निर्मल गाँव घोषित करके विगत वर्ष जिस तरह सरकारी लीपापोती की गयी थी, उसकी चर्चा अीाी समाप्त भी नहीं हुई थी कि भारत सरकार ने जिले के 14 गाँवों को पुन: निर्मल गाँव घोषित करके इन गाँवों के प्रधानों को 2-2 लाख रूपये का मनमाना पुरस्कार तीन अप्रैल को देश की राजधानी दिल्ली में देश के राष्टï्रपति के हाथों दिलवाकर जिस तरह बखेड़ा खड़ा कर दिया है। उससे सरकार के मानक, चयन प्रक्रिया एवं घोषणाओं के प्रति जनता का विश्वास उठता नजर आ रहा है। जनपद में सिटी _x008e_लाक के जिगनौड़ी, मझवां में रामचंदरपुर, जमालपुर के हसौली, हलिया में बरौंध, राजगढ़ के कुगा खुर्द, खमरिया कलां, गोबरदहां, धनसेरिया, तेंदुआ कलां, खमहवां जमती, नरायनपुर में बरेवां, नियामतपुर कलां, सीखड़ में धनौता, बसारपुर ऐसी ग्रामसभायें हैं। जहाँ आज भी इन गाँवों के दलित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निर्मल गांव की वास्तविकता का भी पता नहीं है। इन गाँवों में आज भी 8० प्रतिशज जनता एवं उनकी बहन-बेटियाँ खुले मैदान में शौच जाने के लिए एवं लाल कार्ड एवं उसके द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से पूरी तरह परिचित नही हैं। इन गाँवों के प्रधानों को जहाँ दिल्ली ले जाकर लालकिला की सैर कराई गयी। राष्टï्रपति से हाथ मिलवाया गया। वहीं इन गाँवों की दलित जनता आज भी दो जून रोटी एवं स्वच्छ शौचालय के लिए मोहताज है। इन गाँवों के दीवारों पर कुछ सरकारी लुभावने नारे लीपीपुती दीवालों पर लिखे दिखाये देते हैं। किन्तु उन नारों से आम लोगों का कोई वास्ता नहीं है। आदिवासी क्षेत्र हलिया के बरौंधा गांव के ग्राम प्रधान रमेश चंद्र मोदनवाल की माली हालत गांव के निर्मल गांव घोषित होने के बाद से सुधरी है। किनतु जनता की बदहाली और बढ़ी है। आदिवासियों के मध्य जब यह संवाददाता पहुँचा तो उन्होंने एक स्वर में बताया, ‘‘गांव का प्रधान सरकार आवास के बदले जनता से खाता खुलवाकर 2००० रूपये बैंक खर्च के नाम वसूल लिया है।’’ उनके आवास को दोयम ईंट से बनाया गया है। इस गांव में रहने वाले बिहारी, अक्षयलाल, जग्गू, सुखउ हरिजन, बनवारी, भग्गू को इस बात का बेहद गम है कि लाल कार्ड गांव के उनहीं समर्थ लोगों को दिया गया है जो प्रधान के चहेते हैं। इस गाँव के दलित बस्ती के जियावन धरकार, खेला, राजेंद्र कालिया, लालता मुसहर, लक्कड़, दयाशंकर मोदलवाल ने जो शौचालय अपने से बनाये हैं वे आज भी अधूरे हैं। इस गांव में 35० शौचालयों का निर्माण होना था। आज भी लगभग 2०० शौचालय जनता को मुँह चिढ़ा रहे हैं। इसी तरह का नजारा राजगढ़ _x008e_लाक के खमरिया कलां में देखने को मिला जहां की महिला ग्राम प्रधान चाहकर अपने प्रधान पति की दबंगई के आगे जनता का भला नहीं कर पा रही हैं। इस गांव के दुक्खी विश्वकर्मा, अमृतलाल, जवाहर गुप्ता, लक्ष्मण हरिजन, कामा यादव, नंदलाल गुप्ता, बचाउ, रामविलास, रामजी, बेचन, गोविन्द विश्वकर्मा गांव में सरकारी योजना के साथ की जा रही धोखाधड़ी से नाराज हैं और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सरकारी योजना की किस तरह से लीपापोती की जा रही है। गाँवों में नालियां बजबजा रही हें। आज भी आधे से अधिक हैंडपंपों पानी निकाल पाने की स्थिति में नहीं हैं। योजना को संचालित करने वाला पंचायतीराज विभाग पूरी तरह ग्राम प्रधान के साथ भ्रष्टïाचार में आकंठित है। पंचायतीराज विभाग के अधिकारी जिस तरह से निर्मल गाँव के नाम पर दलितों के जीवन स्तर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उसकी जांच भारत सरकार को करनी ही चाहिए। उसके साथ ही दलित उत्थान का नारा देकर बनने वाली नई सरकार के लिए भी यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन चुका है। इस योजना में राष्टï्रपति को धोखे में रखकर सरकारी धन का बंदरबाँट किया जा रहा है। इसकी स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए।
-मिर्जापुर से राजकुमार शर्मा
दो साल पूर्व निर्मल ग्राम पुरस्कार की सूची में देश के सबसे बड़े और 52०6 ग्राम पंचायतों वाले उ_x009e_ार प्रदेश के एक भी ग्राम पंचायत का नाम शामिल नहीं था। 2००6 में एकमात्र गगहा _x008e_लाक के ग्रामसभा मितौली का चुनाव निर्मल ग्राम के लिए हुआ। पिछले वर्षों की तुलना में देखें तो सिर्फ गोरखपुर में 16 ग्रामसभा का चुनाव ‘निर्मल ग्राम’ के लिए हुआ। संख्या में बढ़ो_x009e_ारी के पीछे का खेल बेहद शातिराना है। गोरखपुर के चरगांवा _x008e_लाक का विश्व प्रसिद्घ गांव औरंगाबाद का चुनाव निर्मल ग्राम के लिए हुआ। औरंगाबाद टेराकोटा के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है। गाँव के आधा दर्जन शिल्पकार राष्टï्रपति से पुरस्कार पा चुके हैं। गाँव में 276 परिवार हैं। जिला पंचायत राज अधिकारी ने 26० शौचालयों का लक्ष्य दिया था। ग्राम प्रधान के आंकड़े के मुताबिक, ‘‘21० शौचालयों का निर्माण हुआ।’’ 5० शौचालयों में कुछ वापस हो गए या आधे-अधूरे हैं। योजना के तहत 15०० रूपये लाभार्थी को मिलना था। भरवलिया टोला के रामकिशुन के घर बना आधा-अधूरा शौचालय कबाडख़ाने में त_x008e_दील हो चुका है। रामकिशुन के मुताबिक, ‘‘प्रधान ने दस बोरी बालू, 44० ईंट व दो बोरी सीमेन्ट दिया था। प्रधान के ठेकेदार ने ही बनवाया। पैसा है नहीं कि इसे पूरा करूँ।’’ गाँव के दिग्विजय, बच्चन, तीरथ समेत दो दर्जन परिवारों में शौचालय नहीं हैं। पूर्व प्रधान ओमप्रकाश ने शौचालय नहीं बनवाया है। उनकी दलील है, ‘‘कहां का कानून है कि शौचालय जरूरी है।’’ ग्राम प्रधान गुलाब चंद कहते हैं, ‘‘टेराकोटा हमारे जीवन का आधार है। टेराकोटा से ही सम्मान है। ग्राम प्रधानी से कोई लाभ थोड़े ही है। अधिकारी ने कहा राष्टï्रपति पुरस्कार मिलेगा। सो हमने प्रयास किया कि गाँव को एक और राष्टï्रपति पुरस्कार मिल जाए।’’ चरगावां _x008e_लाक के ही नाहरपुर ग्राम को भी निर्मल ग्राम पुरस्कार मिला है। प्रधान पति रामप्रसाद गुप्ता के मुताबिक, ‘‘गांव में 184 परिवार हैं। 157 शौचालय पंचायती विभाग द्वारा बना। 18 निजी शौचालय हैं और 9 इंदिरा आवास के तहत बने हैं।’’ यानी गांव में शत प्रतिशत शौचालय हैं। पर जमीनी हकीकत दूसरी है। गांव के रामवृक्ष के घर शौचालय नहीं है। रामवृक्ष की पत्नी गुड्ïडी देवी बताती हैं, ‘‘जमीन नहीं है, कैसे शौचालय बनवाएं। जनवरी में मुख्य विकास अधिकारी संस्था तिवारी की मौजूदगी में ग्राम प्रधान ने कहा था कि ग्रामसभा की जमीन में शौचालय बनवा देंगे। अीाी तक नहीं बना।’’ 2००3 में बने पंचायत भवन के शौचालय में आज तक सीट नहीं लग सका है। गाँव के चंद्रिका यादव, दूधनाथ, दुखहरन, मूलचंद निषाद, शीतराज जैसे तमाम लोग ऐसे हैं जिनके घर शौचालय नही हैं। उधर राष्टï्रपति पुरस्कार पाकर गदगद ग्राम प्रधान श्रीमती संध्या देवी हकीकत को स्वीकारना ही नहीं चाहतीं। वह कहती हैं, ‘‘25 परिवारों का शौचालय मैंने खुद बनवाया है। हर घर में शौचालय बन गया है।’’
बस्ती जिले को प्रदेश में तीसरा स्थान मिला है। जिले के 1०47 ग्राम पंचायतों में से 29 को निर्मल ग्राम की संस्तुति के लिए भेजा गया था। 19 ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम के लिए चयनित हुए हैं। रूधौली _x008e_लाक के पकड़ी सोयम गांव के बाहर बड़े बोर्ड पर लिखा है, ‘‘निर्मल ग्राम में आपका स्वागत है।’’ सडक़ के किनारे फैली गंदगी दूसरी ही कहानी कहती है। गाँव में 22० शौचालय का लक्ष्य था। ग्राम प्रधान के मुताबिक, ‘‘18० बन गया है।’’ ढाई हजार जनसंख्या वाले गांव में 115० मतदाता हैं। घरों में लाल रंग के शौचालय भले ही नजर आयें पर आधे से अधिक गोदाम बन चुके हैं। किसी शौचालय में भूसा रखा है, कहीं गोबर तो कहीं यह अनाज रखने के काम आ रहा है। गांव के विशम्भर पांडेय कहते हैं, ‘‘ग्राम प्रधान के यह कहने पर कि गांव को पुरस्कार मिलेगा। सभी ने शौचालय बनवा लिया। अब कोई प्रयाग नहीं कर रहा है। शौचालय का प्रमुख उद्ïदेश्य पुरस्कार प्राप्त करना था।’’ शहर में रहने वाली ग्राम प्रधान श्रीमती मीना पांडेय कहती हैं, ‘‘हम तो सिर्फ शौचालय बनवा सकते हैं, लोगों की मानसिकता तो नहीं बदल सकते।’’ संतकबीरनगर के बघौली _x008e_लाक के निर्मल ग्राम गुलरिहां पहुँचने पर गाँव के बाहर ही निर्मल ग्राम पुरस्कार-2००7 की टी शर्ट पहने ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद यादव मिल जाते हैं। राजेंद्र प्रसाद यादव बताते हैं, ‘‘167 मेरे प्रयास से बना। इंदिरा आवास के के 4 हैं। 18 निजी शौचालय हैं। 1०-12 शौचालय अधूरे हैं। दो दिन पहले दिल्ली से आया हूँ, अब पूरा हो जाएगा।’’ ग्राम प्रधान के दावों की पोल ग्रामसभा के अतरौरा टोले में खुलती है। 7० परिवारों में सिर्फ राम चैइतर व चुन्नीलाल के घर शौचालय बना है। 68 परिवारों में कुछ के घर तो काम ही नहीं शुरू हुआ। गड्ïढा खोदकर छोड़ दिया गया है। बदलू कहते हैं, ‘‘ठेकेदार से कहते हैं कि जल्दी करो तो कहता है पैसे दो।’’ गाँव की सीतापती कहती हैं, ‘‘प्रधान से बार-बार कहने के बावजूद काम नहीं शुरू हुआ।’’ जाहिर है भले ही इन प्रधानों के हाथ पुरस्कार लेते वक्त तनिक भी न काँपे हों लेकिन पुरस्कारों की पड़ताल में पंचायतीराज में चल रहे लूट-खसोट की भयावह तस्वीर सामने आती है।
-गोरखपुर से अजय श्रीवास्तव
दो साल पूर्व निर्मल ग्राम पुरस्कार की सूची में देश के सबसे बड़े और 52०6 ग्राम पंचायतों वाले उ_x009e_ार प्रदेश के एक भी ग्राम पंचायत का नाम शामिल नहीं था। इससे राष्टï्रीय मंच पर पूरे प्रदेश की प्रतिष्ठïा प्रभावित हुई थी। लेकिन इस स्थिति में प्रदेश शासन ने नसीहत ली और आज स्थिति यह है कि अकेले गोरखपुर जनपद के 16 ग्राम पंचायतों ने इस पुरस्कार के लिए नाम दर्ज करा लिया।
मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2००6-०7 के लिए जो ग्राम पंचायतें मानक पर खरी उतरी हैं उनमें सहजनवां _x008e_लाक की भीमापार, भगौरा, हरपुर, पाली की तिलौरा, चरगांवा की नाहरपुर, भटहट की औरंगाबाद, पतरा, सरदारनगर की सुरसर देउरी, खोराबार की लालपुर टीकर, बांसगांव की महसिन खास, धनौड़ा खुर्द, गगहा की पिछौरा, गोला की डडिय़ा, बरपार और बड़हलगंज _x008e_लाक की धोबौली व महुलिया पोयल ग्राम पंचायतें शामिल हैं।
इनमें से जिन ग्राम पंचायतों की आबादी एक हजार तक है उन्हें 5० हजार, जिनमें दो हजार तक हैं उनको एक लाख और जिनकी पांच लाख तक है उनको दो लाख रूपये का पुरस्कार मिला है। पिछले साल गगहा _x008e_लाक की मिश्रौली ग्राम पंचायत को यह पुरस्कार मिला था।
शासन के निर्देश के अनुसार निर्मल ग्राम पुरस्कार उन्हीं ग्राम पंचायतों को मिलना है जहां सभी परिवारों के पास शौचालय होंगे तथा ग्राम में कोई भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं जाता होगा। इसके अलावा इस पुरस्कार के लिए कुछ अन्य शर्तें भी हैं।
यथा ग्राम पंचायत क्षेत्र के प्राथमिक, अपर प्राथमिक एवं हायर सेकंड्री स्कूल में छात्रों व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, मूत्रालय की व्यवस्था हो, आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए बेबी फ्रेंडली शौचालय उपल_x008e_ध हो, ग्राम में कोई सर्विस लैट्रिन न हो।
इस योजना में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को शौचालय के लिए सरकार द्वारा 15०० रूपये दिये जाते हैं। जबकि गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी पंचायती राज विभाग की है। जनपद की इस उपल_x008e_िध के संबंध में जब जिला पंचायतराज अधिकारी जयदीप त्रिपाठी ने कहा कि यह पुरस्कार सामान्य पुरस्कार नहीं है। (11.5._x007f_7/गोरखपुर)
सुनकर थोड़ा आश्चर्य अवश्य होगा कि प्रदेश के अत्यंत पिछड़े कहे जाने वाले बुंदेलखंड की आधा दर्जन पंचायतों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चयनित कर लिया गया। विश्वास कीजिये यही सत्य हे िकसंपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिये बुंदेलखंड की 26 ग्राम पंचायतों को न सिर्फ चुना गया अपितु 4 मई 2००7 को देश के महामहिम के द्वारा उन्हें सम्मानित भी करा दिया गया। तो क्या वास्तव में इन पंचायतों की दशा में कुछ सुधार हुआ है? या राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को गुमराह किया गया है? वस्तुस्थिति का जायजा लेने के लिए जब ‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने इन सम्मानित ग्राम पंचायतों का भ्रमण किया तो कई सनसनीखेज तथ्य उजागर हुये।
बाँदा जनपद के विकास खंड वड़ोखर खुर्द की पंचायत चिल्ली के आधे गांव में बिजली नहीं है और चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है। शुद्घ पेयजल तो दूर पीने के पानी की भी किल्लत है। गाँव में डायरिया, पीलिया और क्षय रोग जैसी बीमारियों का बसेरा है। अस्पताल भी गाँव से दूर है और वहाँ तक जाने का रास्ता कच्चा है फिर किस मापदंड पर गाँव को निर्मल गाँव घोषित किया गया है? समझ से परे है। गाँव के बसंतलाल अहिरवार (32) कहते हैं, ‘‘हम का बताई गाँव मैं घूर पड़ा है खुदै देख ल्या’’ इसी गाँव के गिरधारी (65) कहते हैं, ‘‘गाँव में दस साल से टंकी बनी है लेकिन पानी नहीं आ रहा। सूखा के कारण हैंडपंप भी साथ नहीं दे रहे हैं लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।’’ यह पूछने पर कि शौच कहाँ जाते हैं। वे कहते हैं, ‘‘लोग बाग बाहरौ चले जात हैं।’’ गाँव की शान्ती (37) कहती हैं, ‘‘मुझे माँगने पर भी शौचालय नहीं मिला। नालियाँ गंदी पड़ी हैं जिससे मच्छर बढ़ रहे हैं।’’ इसी गाँव के मुल्ली अहिरवार का भी शौचालय अभी तक नहीं बना। ग्रामवासियों ने बताया, ‘‘कमलेश का एक साल का लडक़ा अर्जुन 15 दिनों से डायरिया से और दूसरा लडक़ा संजय (4 वर्ष) पीलिया से पीडि़त है।’’
राष्टï्रीय राजमार्ग पर बाँदा जनपद मुख्यालय से महज 13 किमी की दूरी पर बसे ग्राम डिगवाही की स्थिति भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। हरिजन बस्ती के सात में से पाँच हैंडपंप खराब हैं। गाँव के नत्थू प्रसाद (37 वर्ष) का कहना है, ‘‘सलामत बचे दो हैंडपंपों मेें पानी पीने, नहाने, कपड़े धुलने अैर शौच के बाद किनारे की मिट्ïटी से हाथ आदि धुलने के कार्य किये जाते हैं।’’ गाँव के वृद्घा आरोप लगाते हैं, ‘‘सचिव लैटरन के 5०० और इन्दिरा आवास के 6००० रूपया लेता है। जिसमें देने की कूबत हो, बन जाती है।’’ गाँव की जगिया कहती हैं, ‘‘हम टट्ïटी (लैट्रिन) बाहर जायें चाहें भीतर काय फरक पड़ता है। हमारी खातिर काम तो है नहीं जॉब कार्ड (क्रमांक ०31०42००3०3०11०2) पिछले साल बन गया था पै काम नौय दिने (9 दिन) का मिला है। लरका बहू बाहरै कमाय गे हैं।’’
बाँदा जनपद मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर बने इसी विकासखंड के ग्राम पल्हरी के मजरा किलेदार का पुरवा निवासी मन्नू जमादार का कहना है, ‘‘आज तक उसकी खुड्ïडी (शौचालय) नहीं बनी है।’’ इसी पंचायत के ग्राम पंचायत सदस्य हीरालाल वर्मा कहते हैं, ‘‘वर्ष 1998 में हमारा ग्राम अंबेडकर ग्राम बना। 2००5 में समग्र ग्राम और अब निर्मल ग्राम बनने के बाद भी समस्यायें ज्यों की त्यों हैं। यहाँ संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत 43० शौचालय का प्रस्ताव था। जिसके लिए 7,52,5०० रूपये आया था लेकिन मौके पर 1०० से अधिक शौचालय नही हैं। उनका कहना है, ‘‘हम लोगों की काई गुहार नहीं सुनता, ग्राम सभा की मीटिंग भी आयोजित नहीं होती।’’ मौके पर जाकर देखने पर पता चला कि शरद यादव की लैट्रिन पर नागफनी उगी हुई है व कुबेर कुशवाहा, वासुदेव कुशवाहा, लोटन राजपत, प्रताप राजपूत आदि के शौचालय पर अत्यधिक मिट्ïटी जमा हो जाने से लैट्रिन सीट का कहीं अता-पता नहीं चल रहा है। इसी गाँव के एक और ग्राम पंचायत सदस्य रामगोपाल का कहना है, ‘‘हमें शुद्घ पानी पीने को नही मिलता। गाँव में शुद्घ पेयजल के अभाव से कई गंभीर बीमारियाँ होती हैं। मेरे मित्र गोरेलाल पीलिया से ग्रसित हैं।’’
जनपद हमीरपुर के विकासखंड राठ के अंतर्गत ग्राम पंचायत अतरौलिया कहने को तो ग्राम पंचायत है किंतु वास्तव में यहाँ गाँव के कोई भी चिन्ह नहीं मिलते। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पक्के मकान, आरसीसी की सडक़ें, ब्रम्हानंद महाविद्यालय राठ के पास, कोतवाली राठ और राठ डिपो के सामने बसा यह नगर सरकारी फाइलों में गाँव होने से निर्मल गाँव की श्रेणी में आ गया। सामाजिक कार्यकर्ता वीके द्विवेदी कहते हैं, ‘‘अतरौली पूरी तरह से राठ का एक मुहाल हो गया है। यहाँ 9० फीसदी लोग या तो सरकारी नौकरी में हैं या फिर बिजनेस में कई परिवार ऐसे भी हैं जो फिल्टर या डिस्टल वाटर पीते हैं। सरकारी स्तर पर यहँा कुछ खास नहीं किया गया।’’ अतरौली निवासी पेशे से फोटोग्राफर राकेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘निर्मल गाँव होना फख्र की बात है किंतु आज भी कुछ लोग शौच क्रिया के लिए शौकियन बाहर जाते हैं। टिलवापुरवा के तालाब पर अवैध क_x008e_जा है। इसके संरक्षण के लिए कोई उपाय नहीं किये जा रहे।’’ टिलवापुरवा में गरीब, मजदूर एवं रिक्शा चालक रहते हैं। इनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं है।
इलाहाबाद जनपद में निर्मल ग्राम योजना के तहत विकास खंड मेजा के जरार, विकास खंड बहादुरपुर के रामनगर, विकास खंड फूलपुर के लतीफपुर, विकास खंड प्रतापुर के चक पूरे मियाँ, विकास खंड सैदाबाद के भवानीपुर, विकास खंड धनुपुर के शंकरपुर ग्राम को मानक पर खरे उतरते हुए चुना गया है। निर्मल ग्राम योजना के तहत चयनित इन छह गांवों का जब दौरा किया गया तो यह लगा कि जब तक जन जागरूकता का अभियान ग्रामवासियों के मध्य व्यापक तरीके से प्रसारित और प्रचारित नहीं किया जाता तब तक ये योजना भी महज कागजी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी। बहादुरपुर विकास खंड के रामनगर ग्रामसभा में 1०7 बीपीएल और 138 एपीएल शौचालय का निर्माण तो हुआ है। पर, इनमें से मात्र 5० फीसदी शौचालय ही काम कर रहे हैं। गाँव के नाटे यादव और राघवेंद्र पांडेय भी शौचालय के निर्माण में हेराफेरी और घटिया सामग्री के इस्तेमाल का आरोप लगाते हैं। इतना ही नहीं, गांव के बुजुर्ग ग्रामीण अभी भी घरेलू शौचालय के स्थान पर खेत में ही शौच क्रिया करना पसंद करते हैं। ग्राम प्रधान रेखा यादव कहती हैं, ‘‘ग्रामसभा में प्रेरक रखा गया है। जो ग्रामीणों को शौचालयों के समुचित उपयोग की घर-घर जाकर जानकारी दे रहा है।’’ विकास खंड मेजा के जरार निर्मल गाँव में योजना के तहत 55० बीपीएल और 1०० एपीएल शौचालय बने हैं। पर यहाँ भी घटिया निर्माण की शिकायत आम बात पायी गयी है। गाँव के भगेलू राम कहते हैं, ‘‘इस योजना से भी ग्राम प्रधान अमीर उल्ला खाँ इसे चुनावी रंजिश से प्रेरित आरोप बताते हैं।’’ इस गाँव में शौचालय भले बने हों पर जल निकासी हेतु साधनों खास कर सोख्तों का अभाव नजर आया। विकास खंड फूलपुर के लतीफपुर निर्मल गाँव में 294 बीपीएल और 77 एपीएल पारिवारिक शौचालयों का निर्माण कागज पर दिखाया गया है। पर वास्तविक रूप में कुल लगभग 15० शौचालय ही मानक के आधार पर सही ठहराये जा सकते हैं। गाँव की आंगनबाड़ी का शौचालय भी दुरूस्त हालत में नहीं है। विकास खंड धनपर के सुकंदपुर निर्मल गाँव में 185 बीपीएल और 9० एपीएल शौचालयों का निर्माण हुआ है7 ग्राम प्रधान कमला शर्मा स्वीकारती हैं, ‘‘पूर्ण स्वच्छता अभियान के लिए शासकीय प्रयास अभी ऊँट के मुँह में जीरे के समान हैं।’’ प्रतापपुर विकासखंड के चक पूरे मियाँ ग्राम में 8० बीपीएल और 92 एपीएल शौचालय बने हैं। गाँव के केशवराम आरोप लगाते हैं, ‘‘प्रति शौचालय निर्माण हेतु मिलने वाली 15०० रूपये की धनराशि में अधिकांश ग्राम प्रधान और पंचायत अधिकारी द्वारा हड़प ली जाती है। इसीलिए निर्माण घटिया है।’’ विकासखंड सैदाबाद के भवानीपुर गाँव में 65 बीपीएल और 19० एपीएल शौचालय बने हैं। लेकिन एकल और आंगनबाड़ी में शौचालय निर्माण मानक के विपरीत है। ग्राम प्रधान इसके लिए अधिकारियों का दोष देती हैं।
-इलाहाबाद से रतन दीक्षित
-महाराष्टï्र में जहां सर्वाधिक 2952 ग्राम पंचायत ‘निर्मल ग्राम’ बन चुके हैं। वहीं गुजरात में 1675 तथा उ_x009e_ार प्रदेश में 1296 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम बनाया जा चुका है।
-पंजाब में अब तक सिर्फ आठ ग्राम पंचायत और असम में तीन ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम बनाए गए हैं। बिहार की स्थिति भी कुछ खास नहीं है लेकिन वहां के 51 ग्राम पंचायतों में ग्रामीण सवच्छता अभियान पूरा हो चुका है। उड़ीसा में 66 ग्राम पंचायतें संतृप्त की जा चुकी हैं।
-उ_x009e_ाराखंड और मध्य प्रदेश की इस मामले में स्थिति मध्यम है। इन राज्यों में क्रमश: 487 और 558 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम बनाया जा चुका है।
-मंत्री ने बताया कि संपूर्ण स्वच्छता अभियान में गति लाने के लिए भारत सरकार ने जून 2००3 में पूर्ण रूप से खुले में शौच से मुक्त ग्राम पंचायतों, _x008e_लाकों और जिलों के लिए निर्मल ग्राम पुरस्कार नाम की प्रोत्साहन योजना शुरू की।
-संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) परियोजना पर कुल परिव्यय 1० हजार 337 करोड़ रूपए है। इसमें केंद्र सरकार का अंशदान 6412 करोड़ और राज्य सरकार का अंशदान 2286 करोड़ रूपए है। इसमें लाभार्थियों का अंशदान 2286 करोड़ रूपए है। केंद्र सरकार ने अब तक 2145 करोड़ रूपए आवंटित किए हैं। (19.1._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
-राजधानी के नौ गाँवों-बख्शी का तालाब विकास खंड के चक्र पृथ्वीपुर, कुम्रहवां व बीबीपुर, मलिहाबाद के दौलतपुर, कसमंडी खुर्द व भदवाना, काकोरी का पहिया आजमपुर व गोसाईगंज विकास खंड के रहमतनगर व घुड़सारा को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया है। यह संख्या जिले के कुल 511 गांवों के दो प्रतिशत से भी कम है।
-सरकार प्रत्येक शौचालय के निर्माण के लिए 15०० रूपये की आर्थिक सहायता करती है और चार सौ रूपये ग्रामीणों को भी लगाने होते हैं। यहीं इस योजना को मूर्त रूप देने में दिक्कतें पेश आती हैं। गरीबी की रेखा के नीचे जिदंगी बसर करने वालों के लिए 4०० रूपये खर्च कर पाना कठिन है। उन्होंने बताया कि निर्मल ग्राम पुरस्कारों के लिए उन्हीं गांवों का चयन किया जाता है जहां के हर घर में शौचालय हो।
-निर्मल ग्राम परियोजना के जिला समन्वयक सत्येन्द्र सिंह के अनुसार जिन गांवों के नाम का प्रस्ताव भेजा गया है, उनमें उपयुक्त मानकों के अनुसार 99 फीसदी से अधिक काम पूरा हो चुका है और पुरस्कार वितरण की तारीख तक शेष काम भी पूरा हो जाएगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2००3-०4 में निर्मल ग्राम पुरस्कार की शुरूआत की थी। इस बार पुरस्कारों के लिए देश के विभिन्न भागों से 7००० गाँवों ने दावेदारी पेश की है। चयनित गांवों के ग्राम प्रधानों को गत 4 मई को राष्टï्रपति के हाथों पुरस्कृत होने के लिए दिल्ली भेजा गया। (28.1._x007f_7/लखनऊ/रोली खन्ना)
-बख्शी का तालाब के बीबीपुर गाँव के निवासी हैरत में हैं। उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा है कि अपने गाँव को निर्मल ग्राम बनाने के लिए उन्होंने पिछले साल से जो जतन किये उसका उन्हें कोई सिला नहीं मिला। निर्मल ग्राम की सभी कसौटियों पर खरा उतरने के बावजूद उनके गांव को इस दौड़ से बाहर कर दिया गया और तमगा दे दिया गया उन गांवों को जो इस पुरस्कार के मानक भी पूरे नहीं करते। सिर्फ बीबीपुर ही नहीं, गोसाईगंज के घुड़सारा और मलिहाहाबाद के कसमंडी खुर्द गांवां के निवासी निर्मल ग्रामों की चयन प्रक्रिया में खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
-चयनित ग्राम पंचायतों के शत-प्रतिशत घरों, स्कूल तथा आंगनबाड़ी केंद्र में शौचालय निर्माण व वृक्षारोपण के साथ ही गांव को गंदगीमुक्त भी कराना शामिल था। पुरस्कार की घोषणा हुई तो निर्मल गांव की श्रेणी में सिर्फ चार गांव चुने गए-बख्शी का तालाब का कुम्हरावां व चक पृथ्वीपुर और मलिहाबाद की दौलतपुर व भदवाना। इनमें से चक पृथ्वीपुर और भदवाना में अधूरा काम हुआ है फिर भी उन्हें पुरस्कार के लिए चुन लिया गया।
-बीबीपुर गांव के लोगों ने अपने गांव को निर्मल ग्राम का दर्जा दिलाने के लिए साल भर अथक प्रयास किये। इस गांव के सभी 511 घरों में शौचालय बने हुए हैं जो ऊपर से टिन शेड से ढके हुए हैं।
-यहां के ग्राम प्रधान रमेश पाल दुखी मन से कहते हैं, ‘‘अपने गांव को निर्मल ग्राम बनाने के लिए हम लोगों ने जी जान लगा दी। खूब काम कराया। यहां निरीक्षण करने आये जिलाधिकारी ने भी प्रशंसा की लेकिन इसके बाद भी पता नहीं क्यों उनका गांव पुरस्कार की दौड़ से बाहर हो गया।’’ (4.5.०7/जागरण/लखनऊ)
-उप्र के ग्रामीण स्वच्छता अभियान के समन्वयक एके सिंह के मुताबिक, ‘‘राज्य में खासतौर पर पश्चिमी उप्र में इस मामले में बेहतर कार्य हुआ है। पूर्वी उप्र इस मामले में काफी पीछे है। लेकिन वहां के गोरखपुर और कुशीनगर जिलों में अच्छा कार्य हुआ है। इन जिलों में अच्छा कार्य हुआ है। इन जिलों के 5० ग्राम पंचायत निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चयनित किये गये हैं। इस बार राज्य से 13०० पंचायतों ने आवेदन भेजे थे। अगले साल कम से कम पांच हजार पंचायतें दौड़ में होंगी।’’ (28.4._x007f_7/अमर उजाला/नई दिल्ली)
-निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना में पूरे देश से चयनित 24 राज्यों में उप्र को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। इस राज्य की 474 ग्राम पंचायतें इस पुरस्कार के लिए चयनित की गई हैं। इस मामले में महाराष्टï्र अव्वल नंबर पर है, जिसकी 1912 ग्राम पंचायतों को यह पुरस्कार दिया जाएगा। (27.4._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
-ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया, ‘‘देश के सभी गांवों को पूरी तरह से स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ने वर्ष 2०12 तक हर घर में शौचालय बनाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त करने का राष्टï्रव्यापी कार्यक्रम बनाया है।’’
-निर्मल ग्राम पुरस्कारों विजेताओं की संख्या 2००5 में 4०, 2००6 में 769 और इस साल वर्ष 2००7 में चार हजार से अधिक हो गयी है। रघुवंश प्रसाद सिंह ने बताया, ‘‘इस वर्ष निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए 24 राज्यों से कुल 9745 पंचायतों, 12० प्रखंड पंचायतों तथा दो जिला पंचायतों से आवेदन मिले थे। इसमें से 4437 ग्राम पंचायत और प्रखंड पंचायतों का चयन किया गया। (27.4._x007f_7/सहारा/नई दिल्ली)
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