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केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले संस्थानों में आरक्षण
दिनांक: 1_x007f_._x007f_4.200_x007f__x007f_6
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्री अर्जुन सिंह ने पिछड़ी जातियों के लिए जो आरक्षण लागू करने का फैसला लिया है। उसे लेकर पिछड़े वर्ग के नेताओं और छात्रों को भले ही उत्साह से लबरेज देखा जा रहा हो। लेकिन ओबीसी के अलावा अन्य सभी समुदायों में इस फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया है। इस फैसले के बावत हमने राज्य में स्थित केन्द्र सरकार के विश्वविद्यालयों-अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ-साथ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर एवं भारतीय प्रबन्ध संस्थान (आईआईएम), लखनऊ के चुनिन्दा छात्रों और अध्यापकों से राय शुमारी की।
आईआईटी के निदेशक प्रो. संजय गोविन्द धान्डे ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से बातचीत में बताया, ‘‘अभी मेरे पास कोई सरकारी आदेश नहीं आया है। मैंने भी अखबारों से ही जाना है। यह सरकार की नीति है। हम तो लागू करने वाली इकाई हैं। हां, सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ‘मेघा’ को कोई हानि न पहुंचे।’’
गणेश शंकर मेडिकल कालेज, कानपुर के प्राचार्य डा. एस.के. कटियार भी प्रोफेसर धान्डे वाली ही बात दोहराते हुए कहते हैं, ‘‘आरक्षण कितना भी हो लेकिन बौद्घिक सम्पदा को अपना स्थान, महत्व बराबर मिलना चाहिए।’’ एमबीए की तैयारी कर रही निधी अवस्थी का मानना है, ‘‘इससे ज्यादा बुरा और क्या कर सकती है सरकार। 5_x007f_ प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के बाद मेधावी छात्र-छात्राओं के साथ जो खिलवाड़ सरकार करने जा रही है उसके दूरगामी परिणाम होंगे।’’ आईआईटी से बीटेक करने वाले छात्र मयंक सिंह, ‘‘इसे वोट की घिनौनी राजनीति मानते हैं।’’ उनका मानना है कि, ‘‘इससे सामान्य श्रेणी के पतिभावान छात्र बैक बेन्चर बन कर रह जाएंगे।’’ हरबर्ट बटलर टेक्रोलॉजिक इन्सटीट्ïयूट से बीटेक करने वाले मनीष का कहना है, ‘‘यदि सरकार ओबीसी वर्ग को मदद ही करना चाहती है तो पढ़ाई के दौरान आर्थिक और अन्य प्रकार से सहायता दे। ऐसे तो ‘टैलेन्ट’ हीन भावना का शिकार हो कर रह जाएगा।’’
सदियों से शिक्षा जगत का नेतृत्व कर रही काशी के लोग यह जानकर हतप्रभ हैं कि अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लपेटे में बीएचयू भी आ गया है। महामना मालवीय ने 9_x007f_ साल पहले जब लोगों के सहयोग से यह विश्वविद्यालय खोला था, तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका विश्वविद्यालय योग्य एवं प्रतिभावान छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। पिछड़ो के आरक्षण का जो नया चाबुक अर्जुन सिंह ने चलाया है। उससे इस विश्वविद्यालय का क्या हश्र होगा? यह सोचकर पढ़े-लिखे ही नहीं आम आदमी की भी नींद उड़ गई है। आईआईटी परीक्षाओं की पूर्व सन्ध्या पर अर्जुन सिंह द्वारा छोड़े गए आरक्षण बम से कांग्रेस के हुए नफे-नुकसान का पता तो बाद में चलेगा। लेकिन इसने आरक्षण के औचित्य पर नई बहस छेड़ दी है। काशी में चल रही बहस की विशेषता यह है कि आश्चर्यजनक रूप से आरक्षण का लाभ पाने वाला एक बड़ा तबका भी इस प्रस्तावित व्यवस्था का विरोध कर रहा है। बीएचयू अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष डा. प्रमोद राम प्रस्तावित व्यवस्था का विरोध करते हुए कहते हैं, ‘‘इसके चलते समाज में अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है। आरक्षण का लाभ किसी भी वर्ग के केवल सम्पन्न लोगों को ही मिल पाता है।’’
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (अमुवि) छात्रसंघ के अध्यक्ष भले ही इस फैसले का जोरदार समर्थन कर रहे हों। लेकिन ज्यादातर छात्र व छात्राएं इस फैसले के खिलाफ हैं। छात्रसंघ अध्यक्ष अ_x008e_दुल हफीज गांधी कहते हैं, ‘‘पिछड़ी जातियों को आरक्षण देना सही है।’’ अपनी बात में वह यह जोडऩा नहीं भूलते कि,‘‘पूर्व प्रधानमन्त्री वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों में आरक्षण लागू कराया था। लेकिन शिक्षण संस्थाओं में यह व्यवस्था लागू नहीं थी। अब यूपीए सरकार का यह निर्णय काबिले तारीफ है।’’ हालांकि अमुवि में बीएससी की छात्रा सम्रा फातिमा का कहना है, ‘‘सभी छात्र-छात्राएं बराबर हैं। इसलिए शिक्षण संस्थानों में इस तरह का कोटा फिक्स नहीं होना चाहिए। पिछड़ी या फिर दलित जाति के छात्रों की पढ़ाई के दौरान सरकारें फीस तथा ट्ïयूशन आदि की व्यवस्थाएं करा सकती हैं। दाखिलों में सभी के लिए समान नीति लागू होनी चाहिए।’’
हालांकि एलएलबी के छात्र शारिक इसके ठीक उलट तर्क देते हुए कहते हैं, ‘‘सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को दाखिलों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। उनकी नजर में पिछड़ी जाति ही नहीं, अल्पसंख्यकों को भी आरक्षण मिलना चाहिए।’’ बीए के छात्र मुहम्मद फरह का कहना है, ‘‘दाखिलों में आरक्षण लागू नहीं होना चाहिए। सभी छात्र एक समान होने चाहिए। जिसके ज्यादा अंक हों उसको दाखिले की प्राथमिकता मिलनी चाहिए।’’ अमुवि विधि संकाय के वरिष्ठï रीडर एवं सर सैयद अवेयरनेस पीठ के अध्यक्ष शकील शमदानी का कहना कुछ अलग है। उनका कहना है, ‘‘या तो आरक्षण लागू न हो। आरक्षण लागू हो तो सभी को समान रूप से मिले। पिछड़ी जाति का यह आरक्षण पन्द्रह साल पहले लागू हो जाना चाहिए था। लेकिन उन दिनों इसे मात्र नौकरियों तक सीमित रखा गया था। अब लागू हो रहा है, देरी है।’’
इलाहाबाद विवि को केन्द्रीय दर्जा मिलने के बाद से ही विवि परिसर में ओबीसी आरक्षण को लेकर छात्र समुदाय दो गुटों में स्पष्टï तौर पर पहले से ही विभाजित है। विगत दिनों ओबीसी नेता जहाँ राज्य विश्वविद्यालय एक्ट की तर्ज पर ओबीसी आरक्षण बहाल रखने की मांग को लेकर आन्दोलनरत रहे। वहीं सामान्य श्रेणी के छात्र अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी प्रवेश में ओबीसी आरक्षण समाप्त कराने की हिमायत करते रहे। लेकिन आईआईएम और आईआईटी जैसे केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के केन्द्र सरकार के प्रस्ताव के बाद आरक्षण के मुद्ïदे पर छात्र राजनीति फिर गरम होने लगी है। इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष अजीत यादव ने केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है ‘‘अर्जुन सिंह जी ने अपने इस निर्णय से एक तरह से समानता के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी है। सरकार के इस कदम से शिक्षा के क्षेत्र में शोषित और दबे कुचले पिछड़े वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समानता के आधार पर अवसर प्राप्त होंगे। नि:सन्देह यह एक सराहनीय कदम है। इससे उन लोगों को अवश्य हताशा मिलेगी जो केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने पर पिछड़े वर्ग के छात्रों को आरक्षण से वंचित करने की साजिश रच रहे थे।’’
कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई के बैनर पर चुनाव जीते इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के उपाध्यक्ष ब्रजेन्द्र मिश्रा को अपनी सरकार का यह कदम रास नहीं आ रहा है। उनका मानना है, ‘‘सरकार के इस फैसले से आगे चलकर मेधावी छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा। भले ही केन्द्र में हमारी सरकार है पर छात्रों के व्यापक हित में हम सरकार के अविवेकपूर्ण निर्णय का विरोध करने से हिचकेंगे नहीं।’’
छात्रसंघ के महामन्त्री सुरेश यादव मानव संसाधन विकास मन्त्री अर्जुन सिंह की घोषणा का स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘‘केन्द्र सरकार का यह फैसला मूलत: सामाजिक न्याय आन्देालन की जीत है। संसद में सभी दलों को सरकार के इस निर्णय को समर्थन देना चाहिए। सामान्य वर्गों के छात्रों का भी अहित न हो इसके लिए सीटें अवश्य बढ़ानी चाहिए।’’
कांग्रेस नेता और इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष संजय तिवारी का कहना है कि, ‘‘अर्जुन सिंह का यह कदम पार्टी के लिए आत्मघाती सिद्घ होगा। सरकार को उच्च शिक्षा में आरक्षण के स्थान पर कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए शिक्षा खर्च एवं शिक्षित करने की जिम्मेदारी मुफ्ïत कर देनी चाहिए। सरकार के इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद के प्रबुद्घजनों की तरफ से सोनिया गांधी और अर्जुन सिंह को जल्दी ही विरोध पत्र भेजा जाएगा।’’
इलाहाबाद विवि की छात्रा कु. चंचल सिंह, नेहा शर्मा और मनीषी भार्गव का मानना है, ‘‘सरकार का यह कदम आगे चल कर उच्च शिक्षा के सकारात्मक, विकास के लिए घातक सिद्घ होगा।’’ इनका कहना है कि, ‘‘वोटों की राजनीति के लिए प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं के भविष्य में ग्रहण लगाना सरकार के दिवालिएपन का नमूना है।’’ छात्रनेता सुरेन्द्र चौधरी, रमेश वर्मा, छात्रा अमिता पटेल, नीलम यादव सरकार के फैसले से सहमत हैं। अमिता पटेल का कहना है, ‘‘उच्च शिक्षा के क्ष्ेात्र में उच्च वर्ग की इजारेदारी समाप्त करने के लिए केन्द्र सरकार ने साहसिक कदम उठाया है। सरकार के फैसले के लागू हो जाने के बाद पिछड़े और कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं का मनोबल बढ़ेगा।’’
मोतीलाल नेहरू राष्टï्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के डा. एच.एस. गोयल सरकार के इस फैसले को एक राजनीतिक छलावा मानते हैं। उनका कहना है कि, ‘‘आरक्षण को वर्ग विशेष के विकास से जोड़ कर देखना उचित नहीं। कम से कम देश के विकास में लगातार योगदान दे रहे स्तरीय प्रोफेशनल इन्स्टीट्ïयूशनों की आरक्षण जैसे राजनीतिक संघर्ष की चालों से दूर रखा जाना ही बेहतर होगा।’’
इलाहाबाद विवि के विज्ञान संकाय के प्रोफेसर अरूण कुमार श्रीवास्तव का मानना है, ‘‘आरक्षण के माध्यम से किसी एक वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरे के साथ अन्याय किया जाना न्याय की अवधारणा के खिलाफ है।’’ मध्यकालीन इतिहास विभाग के डा. हेरम्भ चतुर्वेदी के मुताबिक, ‘‘उच्च शिक्षा के केन्द्रों को आरक्षण की क्षुद्र राजनीति का शिकार बनाना अमंगलकारी होगा। बेहतर है सरकार कमजोर वर्ग की शैक्षणिक जागरूकता के ठोस उपाय करे।’’
-योगेश मिश्र
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्री अर्जुन सिंह ने पिछड़ी जातियों के लिए जो आरक्षण लागू करने का फैसला लिया है। उसे लेकर पिछड़े वर्ग के नेताओं और छात्रों को भले ही उत्साह से लबरेज देखा जा रहा हो। लेकिन ओबीसी के अलावा अन्य सभी समुदायों में इस फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया है। इस फैसले के बावत हमने राज्य में स्थित केन्द्र सरकार के विश्वविद्यालयों-अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ-साथ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर एवं भारतीय प्रबन्ध संस्थान (आईआईएम), लखनऊ के चुनिन्दा छात्रों और अध्यापकों से राय शुमारी की।
आईआईटी के निदेशक प्रो. संजय गोविन्द धान्डे ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से बातचीत में बताया, ‘‘अभी मेरे पास कोई सरकारी आदेश नहीं आया है। मैंने भी अखबारों से ही जाना है। यह सरकार की नीति है। हम तो लागू करने वाली इकाई हैं। हां, सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ‘मेघा’ को कोई हानि न पहुंचे।’’
गणेश शंकर मेडिकल कालेज, कानपुर के प्राचार्य डा. एस.के. कटियार भी प्रोफेसर धान्डे वाली ही बात दोहराते हुए कहते हैं, ‘‘आरक्षण कितना भी हो लेकिन बौद्घिक सम्पदा को अपना स्थान, महत्व बराबर मिलना चाहिए।’’ एमबीए की तैयारी कर रही निधी अवस्थी का मानना है, ‘‘इससे ज्यादा बुरा और क्या कर सकती है सरकार। 5_x007f_ प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के बाद मेधावी छात्र-छात्राओं के साथ जो खिलवाड़ सरकार करने जा रही है उसके दूरगामी परिणाम होंगे।’’ आईआईटी से बीटेक करने वाले छात्र मयंक सिंह, ‘‘इसे वोट की घिनौनी राजनीति मानते हैं।’’ उनका मानना है कि, ‘‘इससे सामान्य श्रेणी के पतिभावान छात्र बैक बेन्चर बन कर रह जाएंगे।’’ हरबर्ट बटलर टेक्रोलॉजिक इन्सटीट्ïयूट से बीटेक करने वाले मनीष का कहना है, ‘‘यदि सरकार ओबीसी वर्ग को मदद ही करना चाहती है तो पढ़ाई के दौरान आर्थिक और अन्य प्रकार से सहायता दे। ऐसे तो ‘टैलेन्ट’ हीन भावना का शिकार हो कर रह जाएगा।’’
सदियों से शिक्षा जगत का नेतृत्व कर रही काशी के लोग यह जानकर हतप्रभ हैं कि अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लपेटे में बीएचयू भी आ गया है। महामना मालवीय ने 9_x007f_ साल पहले जब लोगों के सहयोग से यह विश्वविद्यालय खोला था, तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका विश्वविद्यालय योग्य एवं प्रतिभावान छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। पिछड़ो के आरक्षण का जो नया चाबुक अर्जुन सिंह ने चलाया है। उससे इस विश्वविद्यालय का क्या हश्र होगा? यह सोचकर पढ़े-लिखे ही नहीं आम आदमी की भी नींद उड़ गई है। आईआईटी परीक्षाओं की पूर्व सन्ध्या पर अर्जुन सिंह द्वारा छोड़े गए आरक्षण बम से कांग्रेस के हुए नफे-नुकसान का पता तो बाद में चलेगा। लेकिन इसने आरक्षण के औचित्य पर नई बहस छेड़ दी है। काशी में चल रही बहस की विशेषता यह है कि आश्चर्यजनक रूप से आरक्षण का लाभ पाने वाला एक बड़ा तबका भी इस प्रस्तावित व्यवस्था का विरोध कर रहा है। बीएचयू अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष डा. प्रमोद राम प्रस्तावित व्यवस्था का विरोध करते हुए कहते हैं, ‘‘इसके चलते समाज में अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है। आरक्षण का लाभ किसी भी वर्ग के केवल सम्पन्न लोगों को ही मिल पाता है।’’
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (अमुवि) छात्रसंघ के अध्यक्ष भले ही इस फैसले का जोरदार समर्थन कर रहे हों। लेकिन ज्यादातर छात्र व छात्राएं इस फैसले के खिलाफ हैं। छात्रसंघ अध्यक्ष अ_x008e_दुल हफीज गांधी कहते हैं, ‘‘पिछड़ी जातियों को आरक्षण देना सही है।’’ अपनी बात में वह यह जोडऩा नहीं भूलते कि,‘‘पूर्व प्रधानमन्त्री वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों में आरक्षण लागू कराया था। लेकिन शिक्षण संस्थाओं में यह व्यवस्था लागू नहीं थी। अब यूपीए सरकार का यह निर्णय काबिले तारीफ है।’’ हालांकि अमुवि में बीएससी की छात्रा सम्रा फातिमा का कहना है, ‘‘सभी छात्र-छात्राएं बराबर हैं। इसलिए शिक्षण संस्थानों में इस तरह का कोटा फिक्स नहीं होना चाहिए। पिछड़ी या फिर दलित जाति के छात्रों की पढ़ाई के दौरान सरकारें फीस तथा ट्ïयूशन आदि की व्यवस्थाएं करा सकती हैं। दाखिलों में सभी के लिए समान नीति लागू होनी चाहिए।’’
हालांकि एलएलबी के छात्र शारिक इसके ठीक उलट तर्क देते हुए कहते हैं, ‘‘सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को दाखिलों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। उनकी नजर में पिछड़ी जाति ही नहीं, अल्पसंख्यकों को भी आरक्षण मिलना चाहिए।’’ बीए के छात्र मुहम्मद फरह का कहना है, ‘‘दाखिलों में आरक्षण लागू नहीं होना चाहिए। सभी छात्र एक समान होने चाहिए। जिसके ज्यादा अंक हों उसको दाखिले की प्राथमिकता मिलनी चाहिए।’’ अमुवि विधि संकाय के वरिष्ठï रीडर एवं सर सैयद अवेयरनेस पीठ के अध्यक्ष शकील शमदानी का कहना कुछ अलग है। उनका कहना है, ‘‘या तो आरक्षण लागू न हो। आरक्षण लागू हो तो सभी को समान रूप से मिले। पिछड़ी जाति का यह आरक्षण पन्द्रह साल पहले लागू हो जाना चाहिए था। लेकिन उन दिनों इसे मात्र नौकरियों तक सीमित रखा गया था। अब लागू हो रहा है, देरी है।’’
इलाहाबाद विवि को केन्द्रीय दर्जा मिलने के बाद से ही विवि परिसर में ओबीसी आरक्षण को लेकर छात्र समुदाय दो गुटों में स्पष्टï तौर पर पहले से ही विभाजित है। विगत दिनों ओबीसी नेता जहाँ राज्य विश्वविद्यालय एक्ट की तर्ज पर ओबीसी आरक्षण बहाल रखने की मांग को लेकर आन्दोलनरत रहे। वहीं सामान्य श्रेणी के छात्र अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी प्रवेश में ओबीसी आरक्षण समाप्त कराने की हिमायत करते रहे। लेकिन आईआईएम और आईआईटी जैसे केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के केन्द्र सरकार के प्रस्ताव के बाद आरक्षण के मुद्ïदे पर छात्र राजनीति फिर गरम होने लगी है। इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष अजीत यादव ने केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है ‘‘अर्जुन सिंह जी ने अपने इस निर्णय से एक तरह से समानता के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी है। सरकार के इस कदम से शिक्षा के क्षेत्र में शोषित और दबे कुचले पिछड़े वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समानता के आधार पर अवसर प्राप्त होंगे। नि:सन्देह यह एक सराहनीय कदम है। इससे उन लोगों को अवश्य हताशा मिलेगी जो केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने पर पिछड़े वर्ग के छात्रों को आरक्षण से वंचित करने की साजिश रच रहे थे।’’
कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई के बैनर पर चुनाव जीते इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के उपाध्यक्ष ब्रजेन्द्र मिश्रा को अपनी सरकार का यह कदम रास नहीं आ रहा है। उनका मानना है, ‘‘सरकार के इस फैसले से आगे चलकर मेधावी छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा। भले ही केन्द्र में हमारी सरकार है पर छात्रों के व्यापक हित में हम सरकार के अविवेकपूर्ण निर्णय का विरोध करने से हिचकेंगे नहीं।’’
छात्रसंघ के महामन्त्री सुरेश यादव मानव संसाधन विकास मन्त्री अर्जुन सिंह की घोषणा का स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘‘केन्द्र सरकार का यह फैसला मूलत: सामाजिक न्याय आन्देालन की जीत है। संसद में सभी दलों को सरकार के इस निर्णय को समर्थन देना चाहिए। सामान्य वर्गों के छात्रों का भी अहित न हो इसके लिए सीटें अवश्य बढ़ानी चाहिए।’’
कांग्रेस नेता और इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष संजय तिवारी का कहना है कि, ‘‘अर्जुन सिंह का यह कदम पार्टी के लिए आत्मघाती सिद्घ होगा। सरकार को उच्च शिक्षा में आरक्षण के स्थान पर कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए शिक्षा खर्च एवं शिक्षित करने की जिम्मेदारी मुफ्ïत कर देनी चाहिए। सरकार के इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद के प्रबुद्घजनों की तरफ से सोनिया गांधी और अर्जुन सिंह को जल्दी ही विरोध पत्र भेजा जाएगा।’’
इलाहाबाद विवि की छात्रा कु. चंचल सिंह, नेहा शर्मा और मनीषी भार्गव का मानना है, ‘‘सरकार का यह कदम आगे चल कर उच्च शिक्षा के सकारात्मक, विकास के लिए घातक सिद्घ होगा।’’ इनका कहना है कि, ‘‘वोटों की राजनीति के लिए प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं के भविष्य में ग्रहण लगाना सरकार के दिवालिएपन का नमूना है।’’ छात्रनेता सुरेन्द्र चौधरी, रमेश वर्मा, छात्रा अमिता पटेल, नीलम यादव सरकार के फैसले से सहमत हैं। अमिता पटेल का कहना है, ‘‘उच्च शिक्षा के क्ष्ेात्र में उच्च वर्ग की इजारेदारी समाप्त करने के लिए केन्द्र सरकार ने साहसिक कदम उठाया है। सरकार के फैसले के लागू हो जाने के बाद पिछड़े और कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं का मनोबल बढ़ेगा।’’
मोतीलाल नेहरू राष्टï्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के डा. एच.एस. गोयल सरकार के इस फैसले को एक राजनीतिक छलावा मानते हैं। उनका कहना है कि, ‘‘आरक्षण को वर्ग विशेष के विकास से जोड़ कर देखना उचित नहीं। कम से कम देश के विकास में लगातार योगदान दे रहे स्तरीय प्रोफेशनल इन्स्टीट्ïयूशनों की आरक्षण जैसे राजनीतिक संघर्ष की चालों से दूर रखा जाना ही बेहतर होगा।’’
इलाहाबाद विवि के विज्ञान संकाय के प्रोफेसर अरूण कुमार श्रीवास्तव का मानना है, ‘‘आरक्षण के माध्यम से किसी एक वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरे के साथ अन्याय किया जाना न्याय की अवधारणा के खिलाफ है।’’ मध्यकालीन इतिहास विभाग के डा. हेरम्भ चतुर्वेदी के मुताबिक, ‘‘उच्च शिक्षा के केन्द्रों को आरक्षण की क्षुद्र राजनीति का शिकार बनाना अमंगलकारी होगा। बेहतर है सरकार कमजोर वर्ग की शैक्षणिक जागरूकता के ठोस उपाय करे।’’
-योगेश मिश्र
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