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ये क्या जगह है दोस्तों!

Dr. Yogesh mishr
Published on: 16 April 2006 6:56 PM IST
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 कपूरथला बाजार में ही पार्लर की आड़ में महिलाओं से मशाज का लुत्फ उठाते नवयुवक।

 मिन्ट, स्ट्रोक, कैपिचीनो _x008e_लास्ट और जेनिसिस के पबों में वीकएण्ड के दिनों में रात 1० से 4 बजे तक घूमता डांस फ्ïलोर, मदहोश युवक-युवतियाँ और उन पर तारी नशा।

 घरेलू पार्टियों में सेल्युलाइट से सेलिब्रिटी को पेश कर थीम आयोजनों के मार्फत अपनी अहमियत का एहसास कराने का लगातार बढ़ता चलन।

ये नजारे न तो मुंबई, दिल्ली के हैं और न ही बेंगलूर या हैदराबाद के। बल्कि लखनऊ के हैं। नवाबों की नगरी अपने पुराने शानो शौकत पर आज भी कायम है। अलब_x009e_ाा मुगलकालीन नवाबों की जगह ‘नए नवाबों’ ने ले ली है। तांगा और बग्घी की जगह मर्सिडीज कारों ने बना ली है। कबूतरबाजी और मुर्गे की लड़ाई अब माफियाओं के वर्चस्व की जंग में त_x008e_दील हो गई है। इत्र और गुलाल के सुगंध के बीच रूमानी अहसास की बातों की जगह ‘इंस्टेंट लव’ वाली ‘डेटिंग’ शुरू हो गई है। जरदोजी और चिकन के कपड़ों की जगह रीबॉक, _x008e_लैकबेरी, एडिडास और लिवाइस चल रहे हैं। गंजिंग की जगह अब मॉल और बिग बाजार ने ले ली है। इन सबके बीच शहर तेजी से बदल रहा है। इस बदलाव से जहाँ हर नौजवान पीढ़ी खुश और उत्साहित है। वहीं लखनऊ के वाशिन्दे होने को एक खास अहसास के रूप में जीने वाले कई तबके के ऐसे लोग भी हैं जिन्हें लग रहा है कि तहजीब और नजाकत का शहर तेजी और तडक़-भडक़ की बाढ़ में धीरे-धीरे डूब रहा है। तभी तो पिछले साल रॉयल फैमिली ऑफ अवध के नुमाइंदों की अगुवाई में शहर की मरती हुई तहजीब का बाकायदा जनाजा निकाला गया था। जिसमें अदब के शहर लखनऊ के मेयर सहित तमाम नामीगिरामी लोगों ने शिरकत कर अवध की फिजा को महफूज बनाये रखने की दुआ की थी। रायल फैमिली ऑफ अवध के नवाब मीरजाफर ने बातचीत में कहा, ‘‘तहजीब, जबान, रवादारी, वजादारी, बड़ों का एहतराम व छोटों का लिहाज खत्म हो गया है। काफी हद तक लिबास भी बदला है। स्प्रिचुअलिटी जो बावस्ता थी अब नजर ही नहीं आती। हजरतगंज से गुजर जायें तो दहशत होती है। पॉलिटिक्स में गुंडे, शोहदे, बदमाशों का दौर इस तहजीब के लिए सबसे नुकसानदेह साबित हुआ।’’

तीन साल पहले लखनऊ आए चैनल वी के वीवा पॉप बैण्ड के सदस्यों ने कहा था कि यहाँ टेलेन्ट नाम की कोई चीज नहीं है। यहाँ यूथ वैसा नहीं है। तब तहजीब के फिक्रमंद लोगों ने राहत की सांस ली थी। लेकिन इसी के बाद से नेशनल, इंटरनेशनल कान्टेस्ट में लखनऊ के युवाओं की शिरकत बढ़ी। आशियाना के रमन ग्लैडरैक्स में मॉडल बने। रोमिला श्रीवास्तव मिस इंडिया तक गयीं। मिसेज इण्डिया में लखनऊ की अमृत ने शोहरत कमाई। दो साल पहले सत्यम सहाय ने मिस्टर इंडिया में लखनऊ का परचम गाड़ा। एक निजी चैनल के टैलेन्ट हन्ट कम्पटीशन में अदिति शर्मा का विजेता होना, विनीत जैन और ट्ïिवंकल वाजपेयी का अपनी जगह बना लेना शहर के बदलते मिजाज का आइना है।

शहर में पब की भरमार हो चली है। मिन्ट, स्ट्रोक और जेनेसिस क्लब के पब में उंगलियों के बीच दबी सिगरेट और जाम के साथ डांस फ्ïलोर पर थिरकते युवाओं का बेलौस बिन्दास अंदाज में मदमस्त और मदहोश हो जाने के लिए वकएण्ड की रातों में दिखना आम चलन है। पबों के लिए 8००-1००० रूपये या सेलिब्रिटी के होने पर तीन से पांच हजार रूपए देने में पेशानी पर बल नहीं पड़ते। बल्कि अपनी अहमियत का अहसास कराने के लिए स्टेप डांस के लिए दिल्ली और मुंबई से पूरी रात थिरकने के लिए बुलाई गई बालाओं पर लाख-दस लाख न्यौछावर कर देना शोभा बन गया है। एक वि_x009e_ाीय कंपनी में आपूर्ति का काम करने वाले, कई नामी गिरामी कंपनियों के डीलर दो उद्योगपतियों की शख्सियत ऐसे आयोजनों के पर्याय के रूप में पसरी है। नौजवान मंत्री भी इस तरह के आयोजनों का लुत्फ उठाने में नहीं चूकना चाहते। अभी पिछले दिनों बाम्बे के डीजे निखिल चिनप्पा की उपस्थिति में लखनऊ के युवाओं की रात रंगीन की। शहर के युवा नई तरह की यौन क्रांति की लहर में बह रहे हैं। जोखिम प्रिय युवाओं में खुद को कामदेव के अवतार के रूप में साबित करने की होड़ मची हुई है। कुकरैल रोड पर तीन-चार घंटों के लिए युवाओं को कमरे मिलने लगे हैं। बेगम हजरत महल पार्क, नदिया किनारे, रेजीडेन्सी, कुकरैल पार्क, अम्बेडकर पार्क, राम मनोहर लोहिया पार्क के अलावा दर्जन भर से अधिक डेटिंग की नई जगह उग आई हैं। रात इन जगहों पर बियर पीते कपल और खुले में सिगरेट के छल्ले उड़ाती नवयौवनाएं अब शहर के लोगों को चौंकाती नही हैं। साइबर कैफे के खास केबिनों में हाट साइट देखते और उसकी कॉपी करते युवाओं से ऊबकर पूर्व पुलिस कप्तान नवनीत सिकेरा द्वारा चलाये गये अभियान से शहर के मादक नवसंस्कृति की पोल खुली। जहाँ तवायफों को अंग प्रदर्शन में हिचक हुआ करती थी। वहाँ पुलिस को अदब के वाशिन्दों को अपने लाडलों और लाडलियों को ठीक से रहने और कपड़े पहनने की नसीहत देनी पड़ती हो।

फैशन शो का चलन बढ़ा है कि छोटी सी दुकान का उद्ïघाटन भी इसका मोहताज हो चला है। जश्र के उद्ïघाटन में मॉडल अदित्री गोवित्रकर तक रैम्प पर उतरी थीं। शहर में फैशन शो को बढ़ावा देने के काम में जुटी मोक्ष इवेन्ट्ïस तमाम कार्यक्रमों में मिस इंडिया, मिस वल्र्ड को शहर में उतार चुकी है। मोक्ष इवेन्ट्ïस के चेयरमैन संजय निगम बताते हैं, ‘‘अब शहर में बड़ी हैपिनिंग होती है। जिन लोगों को लोग पर्दे पर देखते हैं। उन्हें अपनी पार्टियों में देखने की चाहत बढ़ी है। पार्टियां यादगार बनाने की कोशिशें परवान चढऩे लगी हैं।’’ 18वीं शता_x008e_दी के अंत में अवध के नवाब आसिफउद्ïदौला के बेटे नजीर अली की शादी में 35 लाख रूपये खर्च किये थे। लेकिन अपने सरकारी मकान की सजावट को लेकर सुर्खियों में आए एक मंत्री के बेटे की लाडली के पहले जन्म दिन पर ही मुंबई की पॉप सिंगर और रक्त फिल्म में पर्दे पर आ चुकी ऐशने को बुलाकर पचास लाख रूपये बहाये।

लखनऊ के लोग अब नयापन चाहने लगे हैं। जिसकी तलाश थीम पार्टियों में होने लगी है। विवाह हो। शाही की सालगिरह, रिंग सेरेमनी या बर्थडे पार्टियाँ। सबमें थीम पार्टियों का चलन बढ़ा है। विवाह समारोहों के अलावा राजधानी में हर महीने 15-2० थीम पार्टियाँ आयोजित होती हैं। इन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए शमसी और मोक्ष इवेन्ट्ïस सहित एक दर्जन से अधिक इवेन्ट कंपनियां व ग्रुप्स हैं। जो एक भी दिन खाली नही रहतीं। इस साल की शुरूआत में उमराव जान फिल्म बनाकर लोगों के दिल तक उतर जाने वाले मुजफ्ïफर अली के बेटे शाद अली के विवाह की थीम अवधी थी। मैक्सिकन, रोमन, बटरफ्ïलाई पंखा, राधाकृष्ण, स्टेन ग्लास थीमों का चलन बढ़ा है। सूबे के बड़े पावर ब्रोकर और इस तरह की पार्टियों के लिए ख्यात मुकेश सिंह कहते हैं, ‘‘इन पार्टियों की खास थीम इन्हें यादगार बनाने के लिए जरूरी है।’’ थीम पार्टियों में ड्रेस कोड का लोग सख्ती से पालन करने लगे हैं। आमतौर पर काले और लाल रंग, सफेद और नीले रंग के कपड़े डे्रस कोड में होते हैं। अभी हाल में हुई एक पार्टी की थीम बालीवुड पर आधारित थी। जिसमें शहर के सैकड़ों लोग हीरो-हीरोइन के गेटअप चढ़ाये पहुंचे। थीम पार्टीज में एहसास से हकीकत में त_x008e_दील होते ख्वाब और आरजुओं की दुकान ने अपने पंख पसार लिए हैं।

गंजिंग यानी लखनऊ की जवान पीढ़ी का पैशन। जुनून। कोई इसे शहर का दिल कहता है तो कोई धडक़न। लेकिन इसकी धीरे-धीरे चमक कम पडऩी शुरू हो गयी है। माल कल्चर ने गंज की रौनक, पैशन को अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है। हालांकि जब ग्राहकों का दिल कहीं और भटकने लगा है तब गंज की रंगतें बरकरार रखने की कोशिशें परवान चढऩे लगी हैं। गंज कार्निवाल मनाया जाने लगा है। हालांकि हजरतगंज ट्रेडर्स यूनियन के अध्यक्ष किशन चंद भम्बवानी कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं कि हम हिल गये हों। जो ग्राहक हमारा है वह कहीं जा ही नहीं सकता है। माल में ग्राहक भगवान नहीं होता है। वहां कोई ग्राहक से बात करने वाला उसे कुछ कहने वाला होता नहीं है।’’

क्लबों की सदस्यता अब पार्टियों में बतकही का शगल है। एमबी क्लब, गोल्फ क्लब, जेनेसिस क्लब, बीटीसी लाइफ स्टाइल, चांस्लर क्लब, जिमखाना क्लब में सदस्यता का शुल्क डेढ़ लाख से पाँच लाख भले ही पहुँच गया हो लेकिन नाम लिखाने वालों की दौड़ थमने का नाम नहीं ले रही है। लेकिन कभी लखनऊ की शान रहा रिफाय आम क्लब, लारेंस टेरेस स्थित लखनऊ क्लब दम तोड़ रहा है। भीड़ पर तारी नशा के चलते वाले कुम अस्सलाम, आइए तशरीफ रखिए। लखनवी नजाकत व अंदाज के ये अल्फाज अब सुनने को नहीं मिलते। लखनवी तहजीब, सलाहियत, नफासत और मीठी शीरी जुबाँ, चौक के फूलों वाली गली से छन-छन कर आती हुई घुघरूओं की झनकार, शायरी के नफीस रंग, नाजुक हुस्न और महफिलें अब नदारद हैं। सूरज की लाली सरीखी हुस्न वाली अमीरन यानी उमराव जान का अक्स अब शहर में नहीं मिलता। उमराव जान के कोठे के सामने की दुकान पर बैठने वाले स_x009e_ाार भाई बताते हैं, ‘‘पांच साल पहले तक इस कोठे पर कलाकार रहते थे। वे कभी तवायफों के लिए काम करते थे। बाद में रेडियो, टीवी से जुड़ गए।’’ परिवर्तन सास्वत है। समय अपने साथ पुरातन को ले जाता है। नूतन को लाता है। संस्कृति बदलती है। लेकिन खतरा तो तब बढ़ता है जब जड़ें सूखने लगती हैं तो फिक्र होना लाजमी है। टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो. युताका असादा लखनऊ में एक जापानी दल लेकर एक अंतर्राष्टï्रीय नाट्ïय समारोह में भाग लेने आए तो उन्होंने टिप्पणी की, ‘‘अब लखनऊ में वो बात नहीं। लखनवी तहजीब भी नहीं दिखती। इसका अफसोस है।’’ शहर के मेयर और पदमश्री एससी राय भी इसे कुछ इस तरह तस्दीक करते हैं, तहज़ीब मर रही है। नए शहर में वह बात नहीं जो होनी चाहिए। हमारी अपनी पहचान खत्म हो गयी तो लखनऊ भी खत्म हो जाएगा।’’ एक रियलिटी शो के रनर लखनऊ के विनीत जैन ने ‘आउटलुक’ साप्ताहिक से कहा, ‘‘लखनऊ में कुछ ऐसा है, जो बांधे रहता है।’’ लेकिन मिर्जादाही रूसवा, रतननाथ सरशार, अ_x008e_दुल हलीम शरर से लेकर अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी और मनोहर श्याम जोशी तक लखनऊ को जिस तरह समझा गया उसी तरह बचाये रखने के लिए दुआओं का दौर जारी है और कहा जा रहा है, ‘‘उम्मीदें बहुत कम सही पर अपनी दुआ है। शहर-ए-सियासत में शराफत बची रहे।’’

-योगेश मिश्र

-अदब के शहर लखनऊ में गंगा-जमुनी तहजीब की शुरूआत 1775 में नवाब आसफउद्ïदौला के जमाने में शुरू हुई लेकिन अपने उरोज पर पहुंची नवाब वाजिद अली शाह के समय। इस समय हिंदुओं ने अजारदारी और मुसलमानों ने होली-दीवाली को गले लगा लिया था। वे एक दूसरे की महफिलों, तकरीबात में शरीक होने लगे थे। सेकुलर मजहब के लिए अवध में और उसका मरकज लखनऊ होने के नाते खासी जगह थी। नवाब आसफउद्ïदौला के समय में एक बार होली और मुहर्रम साथ-साथ पड़ गयी। नवाब ने ताजिया उठाया और होली में भी शिरकत की। लेकिन यह मिसालें अब मिलती नही हैं। आजादी से आज तक हिन्दू-मुस्लिम दंगे से महफूज रहे शहर को बीते मार्च महीने में न जाने किसकी नजर लग गयी और दंगा भडक़ा। दो हिन्दू, दो मुसलमान मारे गये। पिछले साल की फरवरी के पहले तक कभी भी यहाँ के लोगों ने दंगे की दहशत नहीं झेली थी। यहाँ के खुशनसीब लोगों को 1947 के विभाजन और 1992 में बाबरी विध्वंस का दिन भी दंगे की तपिश से राहत मिली रही। लेकिन बीती दस फरवरी 2००5 को दसवीं मोहर्रम के दिन शिया-सुन्नी आपस में भिड़ उठे। तीन लोग मारे गये। तकरीबन पांच दशक बाद 1999 में तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत की कोशिशों का नतीजा था कि अजादारी का प्रतिबंधित जुलूस अमनचैन से निकला। सदाकांत बताते हैं, ‘‘यह लखनऊ की तासीर का तकाजा था। इस गंगा-जमुनी तहजीब की खास वजह चिकन, जरदोजी, आरी और मुक्कैश का काम भी था।’’ इनके कारीगर मूलत: मुसलमान होते हैं और साहूकार गैर मुस्लिम। इन दोनों के कारोबारी रिश्तों में इस तहजीब की डोर को बड़ी शिद्ïदत से बांधा है। तभी तो यहाँ पंडिताइन की मस्जिद है तो राजा झाऊलाल और राजा टिकैतराय ने इमामबाड़ा तामीर करवाया। कहा तो यहाँ तक जाता है कि पुराना अलीगंज का हनुमान मंदिर नवाब वाजिद अली शाह की वालिदा ने बनवाया था। साहित्यकार सुशील सिद्घार्थ इसे तस्दीक करते हुए कहते हैं, ‘‘यह इकलौता मंदिर है। जिसके कलश पर चांद और तारे हैं।’’ लखनऊ के अतीत से साबका रखने वाले योगेश प्रवीन की मानें तो, ‘‘आयातित लोगों के भारी मिलावट ने सारी गुणव_x009e_ाा नष्टï कर दी। यूरिया मिली तो दूध कहाँ रह जाएगा।’’

अमन के साथ जी रहे शहरवासियों को अब बढ़ते अपराध के चलते अमन की दुआएं मांगने पर मजबूर होना पड़ रहा है। महिलाएँ महफूज नही रह गई हैं। पुलिस कप्तान के घर के सामने उग्र प्रेमी अपनी माशूका पर तेजाब डालने में हिचक नहीं करता है। तो अपनी बहू को शोहदों से बचाने की कोशिश करने वाली मेहर को शोहदों की गोली का शिकार होना पड़ता है। प्यारे में विफल प्रेमियों के कारनामों से शहर कई बार दहला है। आशियाना बलात्कार कांड, पुलिस बलात्कारियों के साथ खड़ी होकर मुल्जिमों के पक्ष में हलफनामा लगवाने में जुटी है। तो आधा दर्जन से अधिक माननीयों के गिरोह शहर की आबो हवा खराब करने में जुटे हैं। स्वचालित हथियारों से दिनदहाड़े कत्लेआम करना और फिर पुलिस के दामन से सरपरस्ती हासिल करना अपराधियों का शगल हो गया है। पुलिस की सरपरस्ती में बदमाश मुखबिर बनकर अपने दुश्मनों का कत्लेआम तो करवाते ही हैं। जमीन के बेजा धंधों से अकूत सम्प_x009e_िा भी कमाते हैं। सोना उगलती जमीनों के धंधे का ही तकाजा है कि अकेले रह रहे बुजुर्ग असुरक्षित हैं। रेलवे के ठेकों ने शहर को माफियाओं का गढ़ बना दिया है। स्क्रैप के कारोबार ने तमाम माफियाओं को अपने गिरोह चलाने के लिए कुबेर का खजाना मुहैया कराया है। कभी गलियों में भी अदब से पेश आने वाले शहर में बात-बात पर गोलियों की धमक और स्वचालित हथियारों की गूंज सुनना यहाँ के वाशिन्दों का शगल बन गया है। निरंतर बढ़ रहे खौफनाक मामलों के प्रति सरकार व जिला प्रशासन के रवैये ने लोगों की फिक्र और बढ़ायी है।

पुराने लखनऊ जिसे नवाब के वंशज असल लखनऊ भी कहते हैं, के स्वाद अब के लखनऊ के लोगों की जीभ पर नहीं चढ़ रहे हैं। राजा की ठंडाई हो या राधेलाल की लस्सी, सेवक या भैरो की पूड़ी, जलेबी या फिर चौक की रेवडिय़ाँ या मक्खन-मलाई। इनके कद्रदानों की तादाद फास्टफूड के लगातार बढ़ रहे रेस्टोरेन्ट व शीतल पेय की बोतलों ने हासिये पर लाकर खड़ी कर दी है। चौक के चौराहे पर पुश्तों से ठंडाई बेचते आ रहे राजा ठंडाई की दुकान पर फिल्म अभिनेता राजकुमार, मीना कुमारी, पृथ्वीराज कपूर और केएन सहगल भी आ चुके हैं। वहीं राजनीति के बड़े दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी राजा की ठंडाई के कायल लोगों में शुमार हैं। राजा ठंडाई के मालिक राजकुमार त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘नए शहर से वही लोग अब भी कदरदान हैं जो असल लखनऊ में जाकर बस गये हैं। वे खुद आते हैं। बच्चों को लाते हैं।’’ इजहार संस परफ्ïयूमर्स के इमरान अहमद अ_x008e_बासी बताते हैं, ‘‘पहले इत्र की माँग रजवाड़े परिवारों में हुआ करती थी। जिन लोगों को इत्र लगाने का शऊर था वे बीच में कंगाल हो गये थे। उन दिनों तंबाकू वालों ने रोजगार को जगाये रखा। लेकिन अब थोड़ी उम्मीद बढ़ी है।’’ पुराने लखनऊ के निवासी अन्नू मिश्र इसकी वजह बयां करते हुए कहते हैं, ‘‘पुराने लखनऊ में दिखावा तो है नहीं। लोगों को फैशन चाहिये। शो चाहिये। सामान नैप्किन लगाकर परोसे जायें। यहाँ इसकी जगह स्वाद और शुद्घता का ख्याल रखा जाता है। जिसकी जरूरत लोगों में खत्म हो गयी है।’’ हां, यह जरूर है कि टुंडे कबाब ने इस दौर में भी अपने लजीज स्वाद की वजह से अपनी जगह बरकरार रखी है।

-योगेश मिश्र
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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