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Interview: विनय कटियार
दिनांक: १४-०५-२००६
भाजपा के फायर ब्राण्ड नेता विनय कटियार हाल के रायबरेली लोकसभा उपचुनाव में अपनी उम्मीदवारी के साथ ही पार्टी के दयनीय प्रदर्शन को लेकर खासे क्षु_x008e_ध हैं। उन्हें शिकायत है कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने अपने-अपने उम्मीदवार के लिए जहां शिद्ïदत से जद्ïदोजहद की वहीं उन्हें दल का उस तरह समर्थन हासिल नहीं हुआ, जैसा अन्य दल के नेता और कार्यकर्ता अपने उम्मीदवारों को दे रहे थे। उनकी मानें तो, ‘‘पार्टी नेताओं के दौरों के बाद भी उनके जातीय मतदाताओं में भी उम्मीद का न जगना विचार का सबब है।’’ उन्हें भरोसा है कि जो भी बीस एक हजार वोट उनकी झोली में गए वह केवल उनके सजातीय मतदाताओं वाले ही थे। कटियार एक ओर जहां उमा भारती को वापस लाए जाने की जरूरत महसूस करते हैं। वहीं उमा को भी खामोश रहने की हिदायत देने से नहीं चूकते। चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए वे कई ऐसे सवाल पार्टी फोरम पर उठाने की तैयारी मे हैं। जिससे दल में एक बार फिर भूचाल के संकेत देखे जा सकेंगे। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा महासचिव कटियार से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र की बातचीत के मुख्य अंश:
रायबरेली चुनाव के शर्मनाक पराजय से आप क्या सबक हासिल करते हैं?
वहां हमें इतने कम वोट नहीं मिलते। सोनिया गांधी के नाते एक तरफ केन्द्र सरकार चुनाव लड़ रही थी तो दूसरी तरफ राज्य सरकार। कांग्रेस ने करोड़ों रूपया अन्तिम समय में 5 तारीख को बाँटा। ऐसा बांटा कि हमारे भी लोग कहीं-कहीं से उसकी गिरफ्ïत में आ गए। सपा को लगा कि हमारे तीन-तीन चार-चार विधायक यहीं से हैं। हम कहीं और पीछे रह गए तो क्या होगा? नतीजतन उसने भी पिटारा खोला। 4_x007f_ मन्त्री वोटिंग के दिन तक डेरा डाले रहे। चुनाव आयोग ने बड़ा लचर रूख अख्तियार किया। मैं तो दो सरकारों के बीच में था।
क्या आपको लगता है कि भाजपा की ओर से आपको उचित मदद नहीं मिली?
नहीं। ऐसा नहीं है। लेकिन हमारे नेताओं ने जो सभाएं की। उनमें जो भीड़ थी अगर वह भी वोट में त_x008e_दील होती तो नतीजे कुछ और होते। राजनाथ सिंह की बड़ी-बड़ी सभाएं हुई। चार हुईं। अगर एक सभा का भी वोट मिलता तो बहुत हो जाता। सुषमा स्वराज की भी चार सभाएं हुईं। राजनाथ से कुछ छोटी जरूर थीं। लेकिन ऐसी भी नहीं कि इतने कम वोट मिलें। केशरी नाथ त्रिपाठी और कलराज मिश्र ने भी सभाएं की थीं।
क्या आप सचमुच मानते हैं कि आपको बलि का बकरा बनाया गया?
नहीं। पार्टी का कार्यकर्ता होने के नाते मैंने उसका आदेश माना।
हार की वजह आप अपनी कमजोर उम्मीदवारी मानते हैं या पार्टी की कमजोर साख?
न मैं अपनी पार्टी की कमजोरी मानता हूँ। न उम्मीदवारी की। (लेकिन थोड़ी देर में यह स्वीकार कर लेते हैं) कमजोर तो है ही पार्टी।
आप राज्य इकाई के अध्यक्ष रहे हैं। उ.प्र. में आपकी पार्टी का जनाधार लगातार छीजता जा रहा है? पार्टी को उबरने के लिए क्या करना चाहिए?
इसकी निष्पक्ष समीक्षा नहीं होती है। मेरे भी कुछ समझ में नहीं आता है। लेकिन यह जरूर है कि भाजपा की यह हालत एक दूसरे की टांग खिंचाई के कारण है।
आप अपनी हार और पार्टी के खराब प्रदर्शन की मूल वजह क्या मानते हैं?
जो चीजें हुईं। उसे प्रेस में बताना ठीक नही है। जहां समीक्षा होनी चाहिए। वहां बताऊंगा।
क्या आपको लगता है कि आपके दल में पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ ज्यादती होती है?
पार्टी को यह विचार जरूर करना चाहिए कि वोट बैंक कहां है। ब्राम्हण तीन जगह-बसपा, भाजपा और कांग्रेस में निमन्त्रण देकर बैठा है। ठाकुर टेक्टिकल वोटिंग करता है। लिहाजा यह विचार करने की जरूरत है कि किस राजनीतिक दल का जनाधार किस जाति के मतदाता तैयार करते हैं।
कल्याण सिंह और उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता देखने पर मजबूर होना पड़ा। क्या आपको नहीं लगता कि पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ पार्टी सौतेला व्यवहार कर रही है?
इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा। प्रेस के लिए कोई भी समझदार नेता इस बात का जवाब नहीं देगा।
आपको चुनाव के दौरान उमा भारती और खुद की उम्मीदवारी के बीच संघ और विहिप के लोगों में कोई विभ्रम की स्थिति देखने को मिली?
जो राष्टï्रवादी लोग थे उन्हें लगा उमा और कटियार आपस में लड़ रहे हैं। इससे लोग नाराज थे। वह भी चुनाव में प्रकट हुआ जिसके चलते जो जोश बनना चाहिए था पार्टी के प्रति वह बना नहीं। जो हिन्दू संगठित शक्ति है। वह विघटित नहीं होनी चाहिए। इससे विचारधारा कमजोर होती है।
रायबरेली में लोध और कुर्मी मतदाताओं की तादाद खासी है। लेकिन आपके दल के इन दो जातियों के पूर्व अध्यक्ष रहे दिग्गज नेता लोकसभा क्षेत्र तक नहीं पहुंचे। इसकी क्या वजह है?ï
अगर कल्याण सिंह जी का आपरेशन न होता। उनका मैसेज वोटरों में होता तो जरूर दस हजार वोट और बढक़र मिलता। दूसरे नेता के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
क्या आपको लगता है कि उमा भारती की वापसी की कोशिशें होनी चाहिए?
पार्टी को इस पर जरूर विचार करना चाहिए कि जो भूले भटके हैं। उसे एक साथ लाया जाय। सबको मिलकर मुट्ïठी बन्द करने की जरूरत है ताकि पांचों उंगलियां मिलकर काम कर सकें। रामजन्म भूमि आन्दोलन के दौरान ऐसा ही हुआ था।
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अयोध्या आन्दोलन के नायक फिर लखीमपुर खीरी से लोकसभा चुनाव की पराजय और रायबरेली में बीस हजार वोटों से नीचे सिमट जाने के चलते आपका विरोधी खेमा आपकी खिरते व्यक्तित्व को हथियार बनाकर आप पर हमलावर होगा?
हमारा कोई विरोधी खेमा नहीं है। ऐसा बुरा चुनाव नहीं हारा हूँ। लोकसभा का एक चुनाव हारा हूँ। रायबरेली में सब जानते थे कि यह चुनाव हारना है। हम जीतेंगे ऐसा सोचकर भेजा नहीं गया था। रायबरेली में लोस चुनाव गांधी परिवार लड़ता है जबकि अन्य सभी चुनाव कांग्रेस पार्टी। तभी तो लोस छोड़ सभी चुनावों में कांग्रेस की कोई स्थिति नहीं बनती। नहीं दिखती।
आप कह रहे हैं बुरा चुनाव नहीं हारा हूं। लोस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को आपसे दो गुने वोट मिले थे?
पिछली बार गिरीश चन्द्र पाण्डेय जो वोट पाए उसके पीछे लोगों की उम्मीद थी कि केंद्र में अटल बिहारी की सरकार बनेगी। तब अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमन्त्री भी थे।
-योगेश मिश्र
भाजपा के फायर ब्राण्ड नेता विनय कटियार हाल के रायबरेली लोकसभा उपचुनाव में अपनी उम्मीदवारी के साथ ही पार्टी के दयनीय प्रदर्शन को लेकर खासे क्षु_x008e_ध हैं। उन्हें शिकायत है कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने अपने-अपने उम्मीदवार के लिए जहां शिद्ïदत से जद्ïदोजहद की वहीं उन्हें दल का उस तरह समर्थन हासिल नहीं हुआ, जैसा अन्य दल के नेता और कार्यकर्ता अपने उम्मीदवारों को दे रहे थे। उनकी मानें तो, ‘‘पार्टी नेताओं के दौरों के बाद भी उनके जातीय मतदाताओं में भी उम्मीद का न जगना विचार का सबब है।’’ उन्हें भरोसा है कि जो भी बीस एक हजार वोट उनकी झोली में गए वह केवल उनके सजातीय मतदाताओं वाले ही थे। कटियार एक ओर जहां उमा भारती को वापस लाए जाने की जरूरत महसूस करते हैं। वहीं उमा को भी खामोश रहने की हिदायत देने से नहीं चूकते। चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए वे कई ऐसे सवाल पार्टी फोरम पर उठाने की तैयारी मे हैं। जिससे दल में एक बार फिर भूचाल के संकेत देखे जा सकेंगे। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा महासचिव कटियार से ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र की बातचीत के मुख्य अंश:
रायबरेली चुनाव के शर्मनाक पराजय से आप क्या सबक हासिल करते हैं?
वहां हमें इतने कम वोट नहीं मिलते। सोनिया गांधी के नाते एक तरफ केन्द्र सरकार चुनाव लड़ रही थी तो दूसरी तरफ राज्य सरकार। कांग्रेस ने करोड़ों रूपया अन्तिम समय में 5 तारीख को बाँटा। ऐसा बांटा कि हमारे भी लोग कहीं-कहीं से उसकी गिरफ्ïत में आ गए। सपा को लगा कि हमारे तीन-तीन चार-चार विधायक यहीं से हैं। हम कहीं और पीछे रह गए तो क्या होगा? नतीजतन उसने भी पिटारा खोला। 4_x007f_ मन्त्री वोटिंग के दिन तक डेरा डाले रहे। चुनाव आयोग ने बड़ा लचर रूख अख्तियार किया। मैं तो दो सरकारों के बीच में था।
क्या आपको लगता है कि भाजपा की ओर से आपको उचित मदद नहीं मिली?
नहीं। ऐसा नहीं है। लेकिन हमारे नेताओं ने जो सभाएं की। उनमें जो भीड़ थी अगर वह भी वोट में त_x008e_दील होती तो नतीजे कुछ और होते। राजनाथ सिंह की बड़ी-बड़ी सभाएं हुई। चार हुईं। अगर एक सभा का भी वोट मिलता तो बहुत हो जाता। सुषमा स्वराज की भी चार सभाएं हुईं। राजनाथ से कुछ छोटी जरूर थीं। लेकिन ऐसी भी नहीं कि इतने कम वोट मिलें। केशरी नाथ त्रिपाठी और कलराज मिश्र ने भी सभाएं की थीं।
क्या आप सचमुच मानते हैं कि आपको बलि का बकरा बनाया गया?
नहीं। पार्टी का कार्यकर्ता होने के नाते मैंने उसका आदेश माना।
हार की वजह आप अपनी कमजोर उम्मीदवारी मानते हैं या पार्टी की कमजोर साख?
न मैं अपनी पार्टी की कमजोरी मानता हूँ। न उम्मीदवारी की। (लेकिन थोड़ी देर में यह स्वीकार कर लेते हैं) कमजोर तो है ही पार्टी।
आप राज्य इकाई के अध्यक्ष रहे हैं। उ.प्र. में आपकी पार्टी का जनाधार लगातार छीजता जा रहा है? पार्टी को उबरने के लिए क्या करना चाहिए?
इसकी निष्पक्ष समीक्षा नहीं होती है। मेरे भी कुछ समझ में नहीं आता है। लेकिन यह जरूर है कि भाजपा की यह हालत एक दूसरे की टांग खिंचाई के कारण है।
आप अपनी हार और पार्टी के खराब प्रदर्शन की मूल वजह क्या मानते हैं?
जो चीजें हुईं। उसे प्रेस में बताना ठीक नही है। जहां समीक्षा होनी चाहिए। वहां बताऊंगा।
क्या आपको लगता है कि आपके दल में पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ ज्यादती होती है?
पार्टी को यह विचार जरूर करना चाहिए कि वोट बैंक कहां है। ब्राम्हण तीन जगह-बसपा, भाजपा और कांग्रेस में निमन्त्रण देकर बैठा है। ठाकुर टेक्टिकल वोटिंग करता है। लिहाजा यह विचार करने की जरूरत है कि किस राजनीतिक दल का जनाधार किस जाति के मतदाता तैयार करते हैं।
कल्याण सिंह और उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता देखने पर मजबूर होना पड़ा। क्या आपको नहीं लगता कि पिछड़े वर्ग के नेताओं के साथ पार्टी सौतेला व्यवहार कर रही है?
इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा। प्रेस के लिए कोई भी समझदार नेता इस बात का जवाब नहीं देगा।
आपको चुनाव के दौरान उमा भारती और खुद की उम्मीदवारी के बीच संघ और विहिप के लोगों में कोई विभ्रम की स्थिति देखने को मिली?
जो राष्टï्रवादी लोग थे उन्हें लगा उमा और कटियार आपस में लड़ रहे हैं। इससे लोग नाराज थे। वह भी चुनाव में प्रकट हुआ जिसके चलते जो जोश बनना चाहिए था पार्टी के प्रति वह बना नहीं। जो हिन्दू संगठित शक्ति है। वह विघटित नहीं होनी चाहिए। इससे विचारधारा कमजोर होती है।
रायबरेली में लोध और कुर्मी मतदाताओं की तादाद खासी है। लेकिन आपके दल के इन दो जातियों के पूर्व अध्यक्ष रहे दिग्गज नेता लोकसभा क्षेत्र तक नहीं पहुंचे। इसकी क्या वजह है?ï
अगर कल्याण सिंह जी का आपरेशन न होता। उनका मैसेज वोटरों में होता तो जरूर दस हजार वोट और बढक़र मिलता। दूसरे नेता के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
क्या आपको लगता है कि उमा भारती की वापसी की कोशिशें होनी चाहिए?
पार्टी को इस पर जरूर विचार करना चाहिए कि जो भूले भटके हैं। उसे एक साथ लाया जाय। सबको मिलकर मुट्ïठी बन्द करने की जरूरत है ताकि पांचों उंगलियां मिलकर काम कर सकें। रामजन्म भूमि आन्दोलन के दौरान ऐसा ही हुआ था।
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अयोध्या आन्दोलन के नायक फिर लखीमपुर खीरी से लोकसभा चुनाव की पराजय और रायबरेली में बीस हजार वोटों से नीचे सिमट जाने के चलते आपका विरोधी खेमा आपकी खिरते व्यक्तित्व को हथियार बनाकर आप पर हमलावर होगा?
हमारा कोई विरोधी खेमा नहीं है। ऐसा बुरा चुनाव नहीं हारा हूँ। लोकसभा का एक चुनाव हारा हूँ। रायबरेली में सब जानते थे कि यह चुनाव हारना है। हम जीतेंगे ऐसा सोचकर भेजा नहीं गया था। रायबरेली में लोस चुनाव गांधी परिवार लड़ता है जबकि अन्य सभी चुनाव कांग्रेस पार्टी। तभी तो लोस छोड़ सभी चुनावों में कांग्रेस की कोई स्थिति नहीं बनती। नहीं दिखती।
आप कह रहे हैं बुरा चुनाव नहीं हारा हूं। लोस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को आपसे दो गुने वोट मिले थे?
पिछली बार गिरीश चन्द्र पाण्डेय जो वोट पाए उसके पीछे लोगों की उम्मीद थी कि केंद्र में अटल बिहारी की सरकार बनेगी। तब अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमन्त्री भी थे।
-योगेश मिश्र
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