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Interview: मौलाना कल्वे जव्वाद
दिनांक: 23-_x007f_5-2_x007f__x007f_006
अल्पसंख्यक समुदाय के आधार पर गठित होने वाला पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रण्ट भले ही गठन से पहले ही तमाम विवादों की जद में आ गया हो। लेकिन फ्रण्ट के नवनियुक्त अध्यक्ष और शिया धर्म गुरू मौलाना कल्वे जव्वाद खासे उत्साहित हैं। उन्हें भरोसा है कि अगर उनकी इस मुहिम में उलेमा साथ देंगे तो कामयाबी हासिल होगी। उलेमाओं का सपोर्ट भी उन्हें एक्टिव चाहिए। वह मानते हैं कि आजादी के 57 साल बाद यह प्रयोग पहली मर्तबा हो रहा है इसलिए इसकी कामयाबी आसान नहीं है। दुश्वारियां तो आएंगी ही। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र ने अल्पसंख्यक मतदाताओं को एक मंच पर लाने के लिए गठित संगठन पीडीएफ के उठापटक के बीच ही फ्रण्ट के सदर कल्बे जव्वाद से बात की। पेश हैं बातचीत के अंश:-
मुसलमानों के अलग फ्रन्ट की जरूरत क्यों महसूस करते हैं?
मुसलमानों से सिर्फ वोट लिए गए हैं। उन्हें स_x009e_ाा में कोई भागीदारी नहीं मिली। अब हम पावर शेयर करना चाहते हैं। हम चुनाव लड़ेंगे। हमारे लोग जीतकर आएंगे। तब हम अपनी शर्तों पर उन्हें समर्थन और स_x009e_ाा में हिस्सेदारी लेंगे।
क्या आपको नहीं लगता कि अल्पसंख्यक समुदाय के अलग दल बनाने से साम्प्रदायिक शक्तियों को बढ़ावा मिलेगा?
मायावती दलितों के आधार पर बहुजन समाज पार्टी का गठन कर स_x009e_ाा के शीर्ष पर जा सकती हैं। तब जातीय उन्माद क्यों नहीं हुआ? फिर मुसलमानों के अलग दल बनाने से साम्प्रदायिक ताकतें कैसे मजबूत होंगी?
सभी राजनीतिक दलों में मुसलमानों की नुमाइन्दगी है। यहां तक कि भाजपा में भी उन्हे मन्त्री पद से नवाजा जाता है। फिर किस तरह का पावर शेयर करना चाहते हैं?
मुसलमान नेता अपनी-अपनी पार्टियों के तो वफादार हैं। लेकिन कौम के वफादार नहीं हैं। ये मुसलमान नेता वही करते हैं। जो इनकी पार्टी चाहती है। इन्हें कौम की दिक्कतों से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
बाबरी विध्वंस के बाद मुसलमानों ने मुलायम सिंह को अंगीकार किया। क्या उनसे मोहभंग हो गया है?
मुझे यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि मुलायम सिंह से जितनी उम्मीद थी। उस पर वह खरे नहीं उतरे। मुलायम के शासनकाल में एक जाति विशेष के लोग ही फायदा उठाने में कामयाब रहे। उन्होंने सबसे ज्यादा नाइंसाफी उर्दू जबान के साथ की है। संस्कृत मृत भाषा है उसे अनिवार्य कर दिया है। उर्दू जिन्दा भाषा है उसे मारने की साजिश हो रही है।
किस राजनीतिक दल को आप अपनी कौम के मतदाताओं के कल्याणकारी कार्यों के लिए अच्छे नम्बर देंगे?
हम तो किसी को नम्बर नहीं देंगे। सबने नुकसान पहुँचाया है। यूज किया है। सबकी निगेटिव मार्किंग होगी।
-योगेश मिश्र
अल्पसंख्यक समुदाय के आधार पर गठित होने वाला पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रण्ट भले ही गठन से पहले ही तमाम विवादों की जद में आ गया हो। लेकिन फ्रण्ट के नवनियुक्त अध्यक्ष और शिया धर्म गुरू मौलाना कल्वे जव्वाद खासे उत्साहित हैं। उन्हें भरोसा है कि अगर उनकी इस मुहिम में उलेमा साथ देंगे तो कामयाबी हासिल होगी। उलेमाओं का सपोर्ट भी उन्हें एक्टिव चाहिए। वह मानते हैं कि आजादी के 57 साल बाद यह प्रयोग पहली मर्तबा हो रहा है इसलिए इसकी कामयाबी आसान नहीं है। दुश्वारियां तो आएंगी ही। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के योगेश मिश्र ने अल्पसंख्यक मतदाताओं को एक मंच पर लाने के लिए गठित संगठन पीडीएफ के उठापटक के बीच ही फ्रण्ट के सदर कल्बे जव्वाद से बात की। पेश हैं बातचीत के अंश:-
मुसलमानों के अलग फ्रन्ट की जरूरत क्यों महसूस करते हैं?
मुसलमानों से सिर्फ वोट लिए गए हैं। उन्हें स_x009e_ाा में कोई भागीदारी नहीं मिली। अब हम पावर शेयर करना चाहते हैं। हम चुनाव लड़ेंगे। हमारे लोग जीतकर आएंगे। तब हम अपनी शर्तों पर उन्हें समर्थन और स_x009e_ाा में हिस्सेदारी लेंगे।
क्या आपको नहीं लगता कि अल्पसंख्यक समुदाय के अलग दल बनाने से साम्प्रदायिक शक्तियों को बढ़ावा मिलेगा?
मायावती दलितों के आधार पर बहुजन समाज पार्टी का गठन कर स_x009e_ाा के शीर्ष पर जा सकती हैं। तब जातीय उन्माद क्यों नहीं हुआ? फिर मुसलमानों के अलग दल बनाने से साम्प्रदायिक ताकतें कैसे मजबूत होंगी?
सभी राजनीतिक दलों में मुसलमानों की नुमाइन्दगी है। यहां तक कि भाजपा में भी उन्हे मन्त्री पद से नवाजा जाता है। फिर किस तरह का पावर शेयर करना चाहते हैं?
मुसलमान नेता अपनी-अपनी पार्टियों के तो वफादार हैं। लेकिन कौम के वफादार नहीं हैं। ये मुसलमान नेता वही करते हैं। जो इनकी पार्टी चाहती है। इन्हें कौम की दिक्कतों से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
बाबरी विध्वंस के बाद मुसलमानों ने मुलायम सिंह को अंगीकार किया। क्या उनसे मोहभंग हो गया है?
मुझे यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि मुलायम सिंह से जितनी उम्मीद थी। उस पर वह खरे नहीं उतरे। मुलायम के शासनकाल में एक जाति विशेष के लोग ही फायदा उठाने में कामयाब रहे। उन्होंने सबसे ज्यादा नाइंसाफी उर्दू जबान के साथ की है। संस्कृत मृत भाषा है उसे अनिवार्य कर दिया है। उर्दू जिन्दा भाषा है उसे मारने की साजिश हो रही है।
किस राजनीतिक दल को आप अपनी कौम के मतदाताओं के कल्याणकारी कार्यों के लिए अच्छे नम्बर देंगे?
हम तो किसी को नम्बर नहीं देंगे। सबने नुकसान पहुँचाया है। यूज किया है। सबकी निगेटिव मार्किंग होगी।
-योगेश मिश्र
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