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जनसूचना अधिकार अभियान के बावत
दिनांक: 1_x007f_._x007f_7.2_x007f__x007f_006
जनसूचना अधिनियम, 2_x007f__x007f_5 घूस के बिना काम कराने का अचूक अस्त्र साबित हो सकता है। यह हकीकत अब राज्य के लोगों के गले उतरने लगी है। यह बात दीगर है कि इसे हलक के नीचे उतरवाने के लिए ‘जन आन्दोलन का राष्टï्रीय समन्वय’ ‘आशा’, ‘साझी दुनिया’, ‘परिवर्तन’ सरीखी कई स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने मुहिम छेड़ रखी है। उ.प्र. में अरून्धती धुरू, शैलेन्द्र कुमार सिंह, एस.आर. दारापुरी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय लोगों को जनसूचना अधिकार के बावत जागरूक करने में जुटे हुए हैं। इसके नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं। सुलतानपुर में तीन महीने से खराब पड़ा वीरेन्द्र बहादुर सिंह का टेलीफोन सूचना मांगते ही काम करने लगा। बहराइच के अनिल श्रीवास्तव के घर के पास का ढ़ाई महीने से खराब पड़ा ट्रान्सफार्मर आवेदन पड़ते ही दुरूस्त हो गया। राजाजीपुरम के अ_x008e_दुल मुजीब को अपना पासपोर्ट तथा एम.पी. गुप्ता को एक साल की मशक्कत के बाद पत्नी का मृत्यु प्रमाण-पत्र सूचना के अधिकार को लेकर चलाये जा रहे अभियान की मदद से हासिल हुआ। तो जौनपुर जिले के रसूलपुर में जनसूचना अभियान के तहत लगाई गई अर्जी के तत्काल बाद गांव भर के राशन कार्ड बनने शुरू हो गए। गोपनीयता की आड़ लेकर सूचनाएं मुहैया न कराने वाले लोक सेवा आयोग को सूचना आयुक्त की सक्रियता के चलते ही वर्ष 2_x007f__x007f_5 में हुई पीसीएस परीक्षा के परिणाम के बारे में जानकारी इस परीक्षा में बैठे एक अभ्यर्थी को देनी पड़ी। राज्य के 11 जिलों-लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, सुलतानपुर, फैजाबाद, उन्नाव, चन्दौली, बनारस, गोरखपुर, देवरिया, चित्रकूट में स्वयंसेवी संगठन के लोग जनसूचना अधिकार के बावत जनता को जागरूक करने में जुटे हुए हैं।
लखनऊ में ‘घूस को घूसा’ अभियान में शिरकत करने के लिए सरकारी विभागों से त्रस्त लोग इन दिनों अम्बेडकर महासभा के कार्यालय की ओर रूख किए हुए हैं। जुलाई के पहले पखवारे तक चलने वाले इस अभियान के 9वें दिन तक कुल 719 लोगों ने अपनी शिकायतों से स्वयंसेवी संगठन के लोगों को अवगत कराया। इनमें से 349 लोगों के आवेदन-पत्र तैयार कर सम्बन्धित महकमों और अफसरों के पास भेज दिये गये। राज्य के 11 जिलों में चलाए जा रहे अभियान में लोगों को जनसूचना अधिकार के बारे में जानकारी देने के साथ ही साथ आवेदन-पत्र लिखने के तरीके, जनसूचना अधिकारी के नाम और फोन नम्बर सहित वे सभी सहूलियतें बताई और जताई जाती हैं जिससे जानकारी हासिल करने के इस अस्त्र का इस्तेमाल कर अपने साथ हो रही ज्यादती और दिक्कत से जनता निजात पा सके। जागरूक करने में जुटे अरून्धती धुरू, शैलेन्द्र कुमार सिंह, एस.आर. दारापुरी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय और उनके सहयोगियों की मानें तो सबसे अच्छा काम फैजाबाद के जिलाधिकारी आमोद कुमार के यहाँ हो रहा है। सीतापुर में जिलाधिकारी रहते हुए आमोद कुमार ने जनवाणी के नाम से इसी तरह का एक कार्यक्रम चलाकर लोगों को न केवल दिक्कतों से निजात दिलाने का मार्ग दिखाया था बल्कि राज्य सरकार ने भी आमोद को लेकर देश भर में अपनी पीठ थपथपाई थी। हरदोई में 3 तारीख तक कोई भी व्यवस्था नहीं थी। जनसूचना के बावत कोई शिकायत नहीं आई थी। लेकिन सीतापुर में डीडीओ माखनलाल ने सरकारी खानापूर्ति की जगह अपनी तरफ से रसीद छपवाकर सूचना के अधिकार का उपयोग करने का माहौल मुहैया कराया लेकिन उन्नाव में जनसूचना अधिकारी नामित किए गए सिटी मजिस्ट्रेट से जब विभागों के जनसूचना अधिकारियों के नाम और पतों के बावत जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा, ‘‘सूची चाहिए तो इसी कानून के तहत आवेदन लगा दीजिये।’’ उन्नाव में अक्टूबर से अभी तक महज 29 लोगों ने अर्जियां दी हैं। चन्दौली में नगद धनराशि लेने की जगह चालान जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे चालान जमा करने के लिए संस्तुति का जिम्मा कई ऐसे अफसरों के हवाले है, जिनके खिलाफ ही सवाल पूछा जा रहा है। मसलन, यहाँ एक हजार एकड़ पर बने भेड़ फार्म के बावत पूछे गये सवाल का संस्तुति अधिकारी पशुधन महकमे का ही एक अफसर है। इस फार्म में भेड़ें तो नही हंै लेकिन भेड़ की जगह उनके लिए आवंटित धनराशि आदमी चर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि कानून के तहत सवाल पूछने की फीस जमा कराने के लिए किसी से ‘अपू्रव’ कराने की जरूरत नहीं है। बनारस की भी स्थिति खराब ही है। वहां एडीएम प्रोटोकाल के हवाले जनसूचना अधिकार का काम है। उनके महकमे के बाबू ने ‘आशा’ के सहयोगियों को एक दिन बाद ही कह दिया, ‘‘क्या हम यही काम करने के लिए बैठे हैं।’’ बनारस में तकरीबन सौ लोग रोजाना अपनी शिकायतें लेकर आ रहे हैं। हरदोई में भी शिकायतें लाने वालों की तादाद इसी के आसपास है। देवरिया में जनसूचना अधिकार के तहत अर्जी लगाने के लिए तो तमाम लोग आते हैं पर रोज बीस से ज्यादा अर्जियां लग नही पा रही हैं। लखनऊ में यह आंकड़ा 7_x007f_ के आसपास का है। हालांकि अभियान से जुड़े एस.आर. दारापुरी की मानें तो, ‘‘अभियान की शुरूआत से ही उनके मोबाइल पर रोजाना 4-5 सौ कालें अर्जी लगवाने और जानकारी के लिए आती हैं लेकिन सरकारी रवैया टालने वाला है।’’ छ: जिलों का दौरा करके लौटै मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय ने जनसूचना अधिकार अभियान की प्रगति रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, ‘‘सबसे अधिक दिक्कत सुलतानपुर में हुई। जिलाधिकारी को कलेक्ट्रेट में सहयोगियों का बैठना तक नागवार गुजरा। इसके लिए एसडीएम और एडीएम ने गिरफ्ïतार कर लिए जाने की भी बात कही।’’ ‘आशा’ के कार्यकर्ताओं को एसडीएम ने गिरफ्ïतारी का आदेश पढक़र सुनाया तो वे बोले, ‘‘आदेश बड़ा होता है या कानून।’’ हम कानून का पालन कराने और उसके बारे में सिखाने के लिए ही तो बैठे हैं। साथ खड़े एडीएम का जवाब था, ‘‘कानून भारत सरकार का है, इसलिए केन्द्रीय कार्यालयों में जाओ।’’ जिलाधिकारी सुलतानपुर इस कानून के बावत कहती हैं, ‘‘हम 1_x007f_ रूपये नहीं ले रहे हैं। बिना फीस के जानकारी दे रहे हैं।’’ लेकिन दिक्कत यह है कि बिना फीस के मेहरबानी के तौर पर दी जा रही जानकारियों के बावत याचिकाकर्ता ऊपर के किसी दरवाजे पर दस्तक नहीं दे पायेंगे। खुद सूचना आयुक्त यह स्वीकार कर चुके हैं, ‘‘अब तक जितने जिलो में गए हैं उनमें कोई ऐसा जिला नहीं मिला, जहां सूचना के अधिकार कानून का पांच फीसदी हिस्सा भी लागू किया गया हो।’’
लखनऊ में जनसूचना अधिकार के बावत सवाल पूछने वालों की बड़ी दिक्कत सचिवालय में प्रवेश को लेकर है। विधानसभा और सचिवालय में प्रवेश की सुरक्षा को लेकर सरकार को मिली जानकारी तो आड़े आ ही रही है साथ ही साथ कई विभागों में जनसूचना अधिकारी उन अफसरों को बना दिया गया है जिन्हें प्रवेश-पत्र जारी करवाने का अधिकार ही नहीं है। स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय में सहायक सूचना अधिकारी विनोद कुमार नामक एक ऐसे व्यक्ति को बनाया है, जिसने तबादले से बचने के लिए सेवाकाल की सूचना छुपाई थी। अधिक मामले पासपोर्ट कार्यालय, पुलिस और शिक्षा महकमे से जुड़े आ रहे हैं। जुलाई के पहले हफ्ïते की कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार ने पीएसी, एसटीएफ, अभिसूचना एवं सुरक्षा मुख्यालय को सूचना के अधिकार अधिनियम 2_x007f__x007f_5 के दायरे से बाहर कर दिया। सूचना कानून की धारा 24 (4) में राज्यों को कुछ इकाईयों को इस अधिनियम से छूट देने का प्राविधान है।
सूचना कानून को हल्के से लेना राज्य के कई अफसरों को भारी पड़ रहा है। मुख्य सचिव नवीन चन्द्र बाजपेई ने इस कानून के क्रियान्वयन में शिथिलता बरतने वाले तकरीबन 7_x007f_ विभागाध्यक्षों को ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन सूचना आयुक्त को लेकर सरकार की गम्भीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बहुत समय तक उन्हें कार्यालय ही मयस्सर नही हुआ। वह घर से काम चलाते रहे। काफी दिनों बाद उन्हें एक सचिव दिया गया जिसे जुलाई महीने में ही सेवामुक्त होना है। खुद सूचना आयुक्त न्यायमूर्ति एम.ए. खान को अधिनियम में कई खामियां नजर आ रही हैं। उनके मुताबिक सबसे बड़ी खामी यह है कि आयोग के आदेश नेताओं या अधिकारियों के लिए बाध्यकारी नही हैं। वे आयोग को उपभोक्ता फोरम से भी गया गुजरा मानते हैं। सूचना का अधिकार कानून एवं पारदर्शिता पर आयोजित राष्टï्रीय संगोष्ठïी में वह खुद चुटकी लेते हुए स्वीकार कर चुके हैं, ‘‘कानून बनाने वाले लोगों को अब लग रहा है इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई। केन्द्र का कानून था इसलिए पास हो गया।’’ हालांकि इसी संगोष्ठïी में राज्यसभा के महासचिव डा. योगेन्द्र नारायण ने उम्मीद जताई कि, ‘‘इससे पारदर्शी प्रशासन का सपना पूरा हो सकेगा। भ्रष्टïाचार पर अंकुश लग सकेगा।’’
सूचना के अधिकार को लेकर जनप्रतिनिधि कितने लापरवाह हैं। इसका नजारा बीते 15 जुलाई को गोरखपुर में दिखा। गोरखपुर की ‘गांव, गीत और हम’ मंच ने ‘सूचना का अधिकार-जन प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठïी आयोजित की थी। संगोष्ठïी में बतौर वक्ता गोरखपुर मंडल के सात विधायकों को आमन्त्रित किया गया था। सातों विधायकों ने आयोजकों को लिखित व मौखिक रूप से आश्वस्त किया था कि वे संगोष्ठïी में जरूर शिरकत करेंगे लेकिन सिर्फ चार विधायक ही संगोष्ठïी के लिए समय निकाल पाये। विधान परिषद सदस्य गणेश शंकर पाण्डेय और मानीराम विधायक कमलेश पासवान कब आये, और कब चले गये किसी को पता तक नहीं चला। कमलेश पासवान का संक्षिप्त संबोधन ऐसा था जैसे वे अपने वोटरों से रूबरू हैं। पासवान ने कहा, ‘‘जब भी जरूरत होगी उपस्थित रहूंगा, कानून अच्छा है।’’ गोरखपुर सदर विधायक डा. राधा मोहन दास अग्रवाल इकलौते वक्ता थे, जिन्होंने सार्थक बात की। उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव के वक्त सूचना के अधिकार का कानून अचूक हथियार के रूप में काम आ सकता है। जनता को जानने का अधिकार है कि वह जिसे अपना रहनुमा चुनने जा रही है, वह कितनी हत्याएं, बलात्कार व डकैती को अंजाम दे चुका है। सूचना पाने का नशा होना चाहिए। ऐसा हुआ तो यह कानून भ्रष्टïाचार के खात्मे का औजार बन जायेगा।’’ संगोष्ठïी में जिन तीन विधायकों ने आने की जरूरत नहीं समझी वे हैं, विधान परिषद सदस्य डा. वाई.डी. सिंह, पिपराइच विधायक जितेन्द्र कुमार जायसवाल, सहजनवां विधायक जी.एम. सिंह। हालांकि इन तीनों विधायकों को ‘रूचि व लाभ’ के विषयों में शिरकत करने के लिए पर्याप्त फुर्सत रहती है। डा. वाई.डी. सिंह भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के आभा मंडल से खुद को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। बसपा विधायक जी.एम. सिंह ‘रियल हीरो’ के बजाए ‘फिल्मी हीरो’ बन गए हैं, लिहाजा वक्त की तंगी है। ‘गरीब वोटरेां’ में साड़ी बांटने में सूबे में रिकार्ड बनाने वाले पिपराइच विधायक जितेन्द्र कुमार जायसवाल का तर्क है, ‘‘संगोष्ठïी के अलावा भी विधायक की तमाम जिम्मेदारियां हैं।’’ सवाल सिर्फ यह नहीं है विधायकों ने संगोष्ठïी में हिस्सा नहीं लिया, और जिन्होंने शिरकत किया, वे भी लफ्ïफाजी करते रहे। सवाल यह है कि आखिर कैसे ये फीता काटने वाले कार्यक्रमों में तुरंत जाते हैं। पूर्व मन्त्री व पुराने समाजवादी नेता केदारनाथ सिंह कहते हैं, ‘‘आज के जनप्रतिनिधियों को ऐसे संवेदनशील विषयों पर कोई जानकारी ही नहीं है, लिहाजा वे ऐसे कार्यक्रमों से कतराते हैं।’’ कार्यक्रम के संयोजक आलोक सिंह कहते हैं, ‘‘हमने सूचना के अधिकार के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के वास्ते चौरीचौरा से मगहर तक की तीन दिवसीय पदयात्रा की, यह कार्यक्रम भी इसी उद्ïदेश्य से आयोजित था। कार्यक्रम में आना व न आना विधायकों के विवेक का विषय है।’’ विधायकों को सूचना के अधिकार को लेकर निष्क्रियता तब थी, जबकि गोरखपुर में इस कानून को लेकर लगातार कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय ने भी जागरूकता अभियान में हिस्सा लिया। पीपुल्स फोरम के तत्वाधान में आयोजित ‘घूस को घूसा’ अभियान में साहित्यकार परमानन्द श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘जनमानस में सूचनाओं की विस्फोट होने पर ही यह अधिकार कामयाब होगा।’’
नोट:- दिवाकर जी, पिछली बार भाषा जी ने जनसूचना के अधिकार पर कुछ इनपुट मंगवाए थे। वह छपा नहीं है। अगर इस बार छप रहा हो तो इस सामग्री को भी इनपुट में इस्तेमाल कर लीजिएगा। इसे गोरखपुर से अजय श्रीवास्तव ने भेजा है।
-योगेश मिश्र
जनसूचना अधिनियम, 2_x007f__x007f_5 घूस के बिना काम कराने का अचूक अस्त्र साबित हो सकता है। यह हकीकत अब राज्य के लोगों के गले उतरने लगी है। यह बात दीगर है कि इसे हलक के नीचे उतरवाने के लिए ‘जन आन्दोलन का राष्टï्रीय समन्वय’ ‘आशा’, ‘साझी दुनिया’, ‘परिवर्तन’ सरीखी कई स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने मुहिम छेड़ रखी है। उ.प्र. में अरून्धती धुरू, शैलेन्द्र कुमार सिंह, एस.आर. दारापुरी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय लोगों को जनसूचना अधिकार के बावत जागरूक करने में जुटे हुए हैं। इसके नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं। सुलतानपुर में तीन महीने से खराब पड़ा वीरेन्द्र बहादुर सिंह का टेलीफोन सूचना मांगते ही काम करने लगा। बहराइच के अनिल श्रीवास्तव के घर के पास का ढ़ाई महीने से खराब पड़ा ट्रान्सफार्मर आवेदन पड़ते ही दुरूस्त हो गया। राजाजीपुरम के अ_x008e_दुल मुजीब को अपना पासपोर्ट तथा एम.पी. गुप्ता को एक साल की मशक्कत के बाद पत्नी का मृत्यु प्रमाण-पत्र सूचना के अधिकार को लेकर चलाये जा रहे अभियान की मदद से हासिल हुआ। तो जौनपुर जिले के रसूलपुर में जनसूचना अभियान के तहत लगाई गई अर्जी के तत्काल बाद गांव भर के राशन कार्ड बनने शुरू हो गए। गोपनीयता की आड़ लेकर सूचनाएं मुहैया न कराने वाले लोक सेवा आयोग को सूचना आयुक्त की सक्रियता के चलते ही वर्ष 2_x007f__x007f_5 में हुई पीसीएस परीक्षा के परिणाम के बारे में जानकारी इस परीक्षा में बैठे एक अभ्यर्थी को देनी पड़ी। राज्य के 11 जिलों-लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, सुलतानपुर, फैजाबाद, उन्नाव, चन्दौली, बनारस, गोरखपुर, देवरिया, चित्रकूट में स्वयंसेवी संगठन के लोग जनसूचना अधिकार के बावत जनता को जागरूक करने में जुटे हुए हैं।
लखनऊ में ‘घूस को घूसा’ अभियान में शिरकत करने के लिए सरकारी विभागों से त्रस्त लोग इन दिनों अम्बेडकर महासभा के कार्यालय की ओर रूख किए हुए हैं। जुलाई के पहले पखवारे तक चलने वाले इस अभियान के 9वें दिन तक कुल 719 लोगों ने अपनी शिकायतों से स्वयंसेवी संगठन के लोगों को अवगत कराया। इनमें से 349 लोगों के आवेदन-पत्र तैयार कर सम्बन्धित महकमों और अफसरों के पास भेज दिये गये। राज्य के 11 जिलों में चलाए जा रहे अभियान में लोगों को जनसूचना अधिकार के बारे में जानकारी देने के साथ ही साथ आवेदन-पत्र लिखने के तरीके, जनसूचना अधिकारी के नाम और फोन नम्बर सहित वे सभी सहूलियतें बताई और जताई जाती हैं जिससे जानकारी हासिल करने के इस अस्त्र का इस्तेमाल कर अपने साथ हो रही ज्यादती और दिक्कत से जनता निजात पा सके। जागरूक करने में जुटे अरून्धती धुरू, शैलेन्द्र कुमार सिंह, एस.आर. दारापुरी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय और उनके सहयोगियों की मानें तो सबसे अच्छा काम फैजाबाद के जिलाधिकारी आमोद कुमार के यहाँ हो रहा है। सीतापुर में जिलाधिकारी रहते हुए आमोद कुमार ने जनवाणी के नाम से इसी तरह का एक कार्यक्रम चलाकर लोगों को न केवल दिक्कतों से निजात दिलाने का मार्ग दिखाया था बल्कि राज्य सरकार ने भी आमोद को लेकर देश भर में अपनी पीठ थपथपाई थी। हरदोई में 3 तारीख तक कोई भी व्यवस्था नहीं थी। जनसूचना के बावत कोई शिकायत नहीं आई थी। लेकिन सीतापुर में डीडीओ माखनलाल ने सरकारी खानापूर्ति की जगह अपनी तरफ से रसीद छपवाकर सूचना के अधिकार का उपयोग करने का माहौल मुहैया कराया लेकिन उन्नाव में जनसूचना अधिकारी नामित किए गए सिटी मजिस्ट्रेट से जब विभागों के जनसूचना अधिकारियों के नाम और पतों के बावत जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा, ‘‘सूची चाहिए तो इसी कानून के तहत आवेदन लगा दीजिये।’’ उन्नाव में अक्टूबर से अभी तक महज 29 लोगों ने अर्जियां दी हैं। चन्दौली में नगद धनराशि लेने की जगह चालान जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे चालान जमा करने के लिए संस्तुति का जिम्मा कई ऐसे अफसरों के हवाले है, जिनके खिलाफ ही सवाल पूछा जा रहा है। मसलन, यहाँ एक हजार एकड़ पर बने भेड़ फार्म के बावत पूछे गये सवाल का संस्तुति अधिकारी पशुधन महकमे का ही एक अफसर है। इस फार्म में भेड़ें तो नही हंै लेकिन भेड़ की जगह उनके लिए आवंटित धनराशि आदमी चर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि कानून के तहत सवाल पूछने की फीस जमा कराने के लिए किसी से ‘अपू्रव’ कराने की जरूरत नहीं है। बनारस की भी स्थिति खराब ही है। वहां एडीएम प्रोटोकाल के हवाले जनसूचना अधिकार का काम है। उनके महकमे के बाबू ने ‘आशा’ के सहयोगियों को एक दिन बाद ही कह दिया, ‘‘क्या हम यही काम करने के लिए बैठे हैं।’’ बनारस में तकरीबन सौ लोग रोजाना अपनी शिकायतें लेकर आ रहे हैं। हरदोई में भी शिकायतें लाने वालों की तादाद इसी के आसपास है। देवरिया में जनसूचना अधिकार के तहत अर्जी लगाने के लिए तो तमाम लोग आते हैं पर रोज बीस से ज्यादा अर्जियां लग नही पा रही हैं। लखनऊ में यह आंकड़ा 7_x007f_ के आसपास का है। हालांकि अभियान से जुड़े एस.आर. दारापुरी की मानें तो, ‘‘अभियान की शुरूआत से ही उनके मोबाइल पर रोजाना 4-5 सौ कालें अर्जी लगवाने और जानकारी के लिए आती हैं लेकिन सरकारी रवैया टालने वाला है।’’ छ: जिलों का दौरा करके लौटै मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय ने जनसूचना अधिकार अभियान की प्रगति रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, ‘‘सबसे अधिक दिक्कत सुलतानपुर में हुई। जिलाधिकारी को कलेक्ट्रेट में सहयोगियों का बैठना तक नागवार गुजरा। इसके लिए एसडीएम और एडीएम ने गिरफ्ïतार कर लिए जाने की भी बात कही।’’ ‘आशा’ के कार्यकर्ताओं को एसडीएम ने गिरफ्ïतारी का आदेश पढक़र सुनाया तो वे बोले, ‘‘आदेश बड़ा होता है या कानून।’’ हम कानून का पालन कराने और उसके बारे में सिखाने के लिए ही तो बैठे हैं। साथ खड़े एडीएम का जवाब था, ‘‘कानून भारत सरकार का है, इसलिए केन्द्रीय कार्यालयों में जाओ।’’ जिलाधिकारी सुलतानपुर इस कानून के बावत कहती हैं, ‘‘हम 1_x007f_ रूपये नहीं ले रहे हैं। बिना फीस के जानकारी दे रहे हैं।’’ लेकिन दिक्कत यह है कि बिना फीस के मेहरबानी के तौर पर दी जा रही जानकारियों के बावत याचिकाकर्ता ऊपर के किसी दरवाजे पर दस्तक नहीं दे पायेंगे। खुद सूचना आयुक्त यह स्वीकार कर चुके हैं, ‘‘अब तक जितने जिलो में गए हैं उनमें कोई ऐसा जिला नहीं मिला, जहां सूचना के अधिकार कानून का पांच फीसदी हिस्सा भी लागू किया गया हो।’’
लखनऊ में जनसूचना अधिकार के बावत सवाल पूछने वालों की बड़ी दिक्कत सचिवालय में प्रवेश को लेकर है। विधानसभा और सचिवालय में प्रवेश की सुरक्षा को लेकर सरकार को मिली जानकारी तो आड़े आ ही रही है साथ ही साथ कई विभागों में जनसूचना अधिकारी उन अफसरों को बना दिया गया है जिन्हें प्रवेश-पत्र जारी करवाने का अधिकार ही नहीं है। स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय में सहायक सूचना अधिकारी विनोद कुमार नामक एक ऐसे व्यक्ति को बनाया है, जिसने तबादले से बचने के लिए सेवाकाल की सूचना छुपाई थी। अधिक मामले पासपोर्ट कार्यालय, पुलिस और शिक्षा महकमे से जुड़े आ रहे हैं। जुलाई के पहले हफ्ïते की कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार ने पीएसी, एसटीएफ, अभिसूचना एवं सुरक्षा मुख्यालय को सूचना के अधिकार अधिनियम 2_x007f__x007f_5 के दायरे से बाहर कर दिया। सूचना कानून की धारा 24 (4) में राज्यों को कुछ इकाईयों को इस अधिनियम से छूट देने का प्राविधान है।
सूचना कानून को हल्के से लेना राज्य के कई अफसरों को भारी पड़ रहा है। मुख्य सचिव नवीन चन्द्र बाजपेई ने इस कानून के क्रियान्वयन में शिथिलता बरतने वाले तकरीबन 7_x007f_ विभागाध्यक्षों को ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन सूचना आयुक्त को लेकर सरकार की गम्भीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बहुत समय तक उन्हें कार्यालय ही मयस्सर नही हुआ। वह घर से काम चलाते रहे। काफी दिनों बाद उन्हें एक सचिव दिया गया जिसे जुलाई महीने में ही सेवामुक्त होना है। खुद सूचना आयुक्त न्यायमूर्ति एम.ए. खान को अधिनियम में कई खामियां नजर आ रही हैं। उनके मुताबिक सबसे बड़ी खामी यह है कि आयोग के आदेश नेताओं या अधिकारियों के लिए बाध्यकारी नही हैं। वे आयोग को उपभोक्ता फोरम से भी गया गुजरा मानते हैं। सूचना का अधिकार कानून एवं पारदर्शिता पर आयोजित राष्टï्रीय संगोष्ठïी में वह खुद चुटकी लेते हुए स्वीकार कर चुके हैं, ‘‘कानून बनाने वाले लोगों को अब लग रहा है इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई। केन्द्र का कानून था इसलिए पास हो गया।’’ हालांकि इसी संगोष्ठïी में राज्यसभा के महासचिव डा. योगेन्द्र नारायण ने उम्मीद जताई कि, ‘‘इससे पारदर्शी प्रशासन का सपना पूरा हो सकेगा। भ्रष्टïाचार पर अंकुश लग सकेगा।’’
सूचना के अधिकार को लेकर जनप्रतिनिधि कितने लापरवाह हैं। इसका नजारा बीते 15 जुलाई को गोरखपुर में दिखा। गोरखपुर की ‘गांव, गीत और हम’ मंच ने ‘सूचना का अधिकार-जन प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठïी आयोजित की थी। संगोष्ठïी में बतौर वक्ता गोरखपुर मंडल के सात विधायकों को आमन्त्रित किया गया था। सातों विधायकों ने आयोजकों को लिखित व मौखिक रूप से आश्वस्त किया था कि वे संगोष्ठïी में जरूर शिरकत करेंगे लेकिन सिर्फ चार विधायक ही संगोष्ठïी के लिए समय निकाल पाये। विधान परिषद सदस्य गणेश शंकर पाण्डेय और मानीराम विधायक कमलेश पासवान कब आये, और कब चले गये किसी को पता तक नहीं चला। कमलेश पासवान का संक्षिप्त संबोधन ऐसा था जैसे वे अपने वोटरों से रूबरू हैं। पासवान ने कहा, ‘‘जब भी जरूरत होगी उपस्थित रहूंगा, कानून अच्छा है।’’ गोरखपुर सदर विधायक डा. राधा मोहन दास अग्रवाल इकलौते वक्ता थे, जिन्होंने सार्थक बात की। उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव के वक्त सूचना के अधिकार का कानून अचूक हथियार के रूप में काम आ सकता है। जनता को जानने का अधिकार है कि वह जिसे अपना रहनुमा चुनने जा रही है, वह कितनी हत्याएं, बलात्कार व डकैती को अंजाम दे चुका है। सूचना पाने का नशा होना चाहिए। ऐसा हुआ तो यह कानून भ्रष्टïाचार के खात्मे का औजार बन जायेगा।’’ संगोष्ठïी में जिन तीन विधायकों ने आने की जरूरत नहीं समझी वे हैं, विधान परिषद सदस्य डा. वाई.डी. सिंह, पिपराइच विधायक जितेन्द्र कुमार जायसवाल, सहजनवां विधायक जी.एम. सिंह। हालांकि इन तीनों विधायकों को ‘रूचि व लाभ’ के विषयों में शिरकत करने के लिए पर्याप्त फुर्सत रहती है। डा. वाई.डी. सिंह भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के आभा मंडल से खुद को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। बसपा विधायक जी.एम. सिंह ‘रियल हीरो’ के बजाए ‘फिल्मी हीरो’ बन गए हैं, लिहाजा वक्त की तंगी है। ‘गरीब वोटरेां’ में साड़ी बांटने में सूबे में रिकार्ड बनाने वाले पिपराइच विधायक जितेन्द्र कुमार जायसवाल का तर्क है, ‘‘संगोष्ठïी के अलावा भी विधायक की तमाम जिम्मेदारियां हैं।’’ सवाल सिर्फ यह नहीं है विधायकों ने संगोष्ठïी में हिस्सा नहीं लिया, और जिन्होंने शिरकत किया, वे भी लफ्ïफाजी करते रहे। सवाल यह है कि आखिर कैसे ये फीता काटने वाले कार्यक्रमों में तुरंत जाते हैं। पूर्व मन्त्री व पुराने समाजवादी नेता केदारनाथ सिंह कहते हैं, ‘‘आज के जनप्रतिनिधियों को ऐसे संवेदनशील विषयों पर कोई जानकारी ही नहीं है, लिहाजा वे ऐसे कार्यक्रमों से कतराते हैं।’’ कार्यक्रम के संयोजक आलोक सिंह कहते हैं, ‘‘हमने सूचना के अधिकार के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के वास्ते चौरीचौरा से मगहर तक की तीन दिवसीय पदयात्रा की, यह कार्यक्रम भी इसी उद्ïदेश्य से आयोजित था। कार्यक्रम में आना व न आना विधायकों के विवेक का विषय है।’’ विधायकों को सूचना के अधिकार को लेकर निष्क्रियता तब थी, जबकि गोरखपुर में इस कानून को लेकर लगातार कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय ने भी जागरूकता अभियान में हिस्सा लिया। पीपुल्स फोरम के तत्वाधान में आयोजित ‘घूस को घूसा’ अभियान में साहित्यकार परमानन्द श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘जनमानस में सूचनाओं की विस्फोट होने पर ही यह अधिकार कामयाब होगा।’’
नोट:- दिवाकर जी, पिछली बार भाषा जी ने जनसूचना के अधिकार पर कुछ इनपुट मंगवाए थे। वह छपा नहीं है। अगर इस बार छप रहा हो तो इस सामग्री को भी इनपुट में इस्तेमाल कर लीजिएगा। इसे गोरखपुर से अजय श्रीवास्तव ने भेजा है।
-योगेश मिश्र
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