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सिमी और सियासत

Dr. Yogesh mishr
Published on: 17 July 2006 9:18 PM IST
दिनांक: 17.०7.2००6
इन दिनों सूबे में सिमी को लेकर सियासत तेज है। सपा कार्यकारिणी की बैठक के बाद पत्रकारों से मुखातिब होते हुए मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके सहोदर शिवपाल सिंह यादव द्वारा सिमी के बावत दिए गए बयानों ने उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया है। पत्रकारों से मुखातिब होते हुए शिवपाल सिंह यादव ने कहा, ‘‘सिमी कोई आतंकवादी संगठन नहीं है। यह तो मेरे और पार्टी के कई लोगों पर भी लगाया जा चुका है।’’ शिवपाल के इस बयान से मीडियाकर्मी हतप्रभ हुए। इसी मौके पर सिमी के बावत पूछे गए एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सिमी पर हमने प्रतिबंध नहीं लगाया है।’’ लेकिन उसी समय राज्य के प्रमुख सचिव, गृह एस.के. अग्रवाल तथा पुलिस महानिदेशक बुआ सिंह ने कहा, ‘‘सिमी के कार्यकर्ताओं पर कड़ी निगाह है। उनके ठिकानों पर छापे मारे जा रहे हैं।’’ सरकारी हुक्मरानों की गतिविधियां और मुख्यमंत्री के बयान तथा शिवपाल सिंह यादव के रहस्योद्ïघाटन के बाद सिमी समर्थकों और विरोधियों को लेकर सियासत में लंबी और छोटी लकीरें खींची जाने लगीं। राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर ने सिमी को क्लीनचिट देने के मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव और लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव के बयानों पर राज्य सरकार से स्पष्टïीकरण मांग डाला। राजेश्वर ने स्पष्टïीकरण के लिए सरकार को भेजे पत्र में मुंबई विस्फोट में सिमी की भूमिका की जांच के लिए राज्य की पुलिस को छूट देने तथा कानपुर दंगों के आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमें वापस लेने पर राज्य सरकार को पुनर्विचार करने को भी कहा। राजेश्वर की एक रिपोर्ट केन्द्र तक भी पहुंच गई। हालांकि ठीक एक दिन बाद मुजफ्ïफरनगर के शुक्रताल में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने सिमी को क्लीन चिट देने के बावत कोई बयान दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘मीडिया में उनके हवाले से प्रकाशित खबरें शरारतपूर्ण हैं। सिमी को क्लीन चिट जैसी बात कतई नहीं कही।’’ लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने भी सिमी को आतंकी संगठन न मानने से संबंधित उनके हवाले से प्रकाशित खबरों का खंडन किया है। राज्यपाल द्वारा मांगे गए स्पष्टïीकरण तथा केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट से नाराज मुख्यमंत्री मुलायम सिंह बोल उठे, ‘‘राज्यपाल भरोसेमंद नहीं हैं। वह अखबार पढक़र अपना काम करते हैं।’’ मुलायम के इस बयान के बाद कांग्रेस, भाजपा पारंपरिक रूप से ज्ञापन लेकर राजभवन पहुंच गए। लेकिन कांग्रेस की किरकिरी उस समय हुई जब उसकी राज्य इकाई के अध्यक्ष सलमान खुर्शीद पर सिमी के पक्ष में वकालत करने का आरोप सरकारी सियासी हलकों की तरफ से आया। आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्ïदेनजर अपने पारंपरिक ‘माई’ (मुस्लिम यादव) समीकरण बरकरार रखने के लिए मुलायम सिंह द्वारा की जा रही कोशिशें और राज्य में अकलियत के मतदाताओं के लिए बने पीडीएफ और यूडीएफ के चलते मुख्यमंत्री की पेशानी पर पड़ रहे बल ने उन्हें अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए घोषणाओं की बौछार और खजाना खोलने की जरूरत जताई। इसी के चलते मुख्यमंत्री नदवा कालेज तक गए। वहां भी उनके गले एक नई मुसीबत पड़ गई। जूते पहनने में हो रही दिक्कत में मददगार के रूप में जुटे एक मौलाना की तस्वीर साया हो जाने के बाद विरोधियों ने फितरे कसने शुरू कर दिए कि अकलियत के लोगों की मुख्यमंत्री की निगाह में हैसियत इससे बढक़र कुछ है नहीं। मुलायम के ‘माई’ समीकरण को दरकाने में जुटे सियासी दल और उनके नेताओं ने पश्चिमी उ.प्र. में तो मुख्यमंत्री को जूता पहनाते हुए मौलाना की तस्वीर के पोस्टर तक चिपकाये। सिमी की पैरोकारी से भले ही मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुंह मोड़ें लेकिन इस बात का क्या जवाब है कि उन्हीं के आशीर्वाद से कबीना मंत्री का सुख भोग रहे कानपुर के सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल ने वर्ष 2००1 के कानपुर दंगों के आरोपियों के मुकदमें वापस लेने की न केवल सिफारिश की बल्कि उनकी सिफारिश पर मुख्यमंत्री सचिवालय भी सक्रिय हो उठा। इतना ही नही, बहराइच में सिमी के राष्टï्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही और उनके 11 सहयोगियों के खिलाफ दायर उन्माद फैलाने सहित कई मामलों में मुकदमा वापस लेने की अर्जी फास्ट ट्रैक कोर्ट में सरकारी वकील के मार्फत दी गई। सिमी की सियासत ने मुलायम ही नहीं सलमान खुर्शीद द्वारा सिमी के पक्ष में की गई वकालत के चलते कांग्रेस को भी ‘बैकफुट’ पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है। सियासत के इस खेल में मायावती चूंकि खिलाड़ी ही नहीं हैं इसलिए भगवा ब्रिगेड वाली भाजपा भारी है।

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मुम्बई बमकाण्ड के बाद प्रतिबंधित संगठन स्टूडेन्ट इस्लामिक मूवमेन्ट ऑफ इण्डिया (सिमी) के सुर्खियों में आने की वजह के चलते उसके कामकाज की पड़ताल ने खुफिया एजेन्सियों की नींद उड़ा दी है। खुफिया रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंध के बाद सिमी ने अपने हुलिये में बदलाव कर कामकाज जस का तस जारी रखा है। खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘इस संगठन ने 2००1 में प्रतिबंध के बाद अपना मुख्यालय इलाहाबाद में बनाकर तहरीक-ए-तहफूस-ए-इस्लाम और वहादत-ए-इस्लाम के नाम से काम किया। इसके बाद उसने अपने अड्ïडे अलीगढ़ सहित कई जगह बदले। आज की तारीख में इस संगठन का एक कार्यालय अमरावती (महाराष्टï्र) में है। इसके प्रादेशिक मुखिया रिजवान अहमद हैं। इसके कुछ बडे पदाधिकारी अलीगढ़ में भी रहते हैं। खुफियातंत्र की नजरों से बचने के लिए नेपाल की सीमा से सटे गांवों में भी संगठन ने अपनी शाखाएं खोल रखी हैं। प्रदेश स्तर पर बनाई गई 29 आतंकियों की सूची में सिमी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आमिर व अरशद का नाम है। ये दोनों कानपुर के हैं। 1992 में कानपुर के डीएवी कालेज से ग्रेजुएट करने के बाद आमिर सिमी के संस्थापकों में माने जाने वाले डा. अबरार अहमद के सम्पर्क में आया।

वर्ष 2००० में कानपुर दंगे के बाद से सिमी का पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद आमिर पर पांच साल तक राज्य की पुलिस और खुफिया एजेन्सियां हाथ नहीं डाल सकीं। कानपुर दंगे का मास्टर माइंड आमिर पर इनाम भी घोषित था। लेकिन पुलिस के हाथ उस तक नहीं पहुच पाए और आमिर ने एक वकील की मदद से आत्मसमर्पण करने में कामयाबी हासिल कर ली। मुंबई बमकांड के बाद आमिर से कानपुर जेल के बैरक नं.-6 में मुम्बई के आतंकवादी निरोधी दस्ते (एटीएस) तथा एसटीएफ टीम ने पूछताछ की। हालांकि जेल अधिकारी इस बावत कुछ भी कहने से इंकार करते हैं लेकिन खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘आमिर ने पूछताछ के दौरान बांग्लादेश जाने की बात से इंकार किया लेकिन नेपाली संगठनों से उसने दोस्ती की बात कुबूल की है। उसने यह भी स्वीकार किया है कि वह सिमी चीफ अम्मान के भी सम्पर्क में रह चुका है।’’ लेकिन खुफिया दस्तावेजों में दर्ज है कि, ‘‘कानपुर से फरारी के बाद वह न सिर्फ दूरदराज के कई राज्यों में छिपा रहा बल्कि खुफिया रिपोर्टों की मानें तो वह बांग्लादेश में भी एक साल तक रहा।’’ उसने अपनी फरारी का बहुत लम्बा समय बरेली स्थित अपने ससुर की दुकान पर काम करके भी काटा।

केन्द्रीय खुफिया एजेन्सियां इस बात की पुष्टिï करती हैं कि प्रतिबंध के बाद भी नये नाम से कानपुर में इन दिनों यह संगठन ‘हमदर्दी’ के सहारे चल रहा है। ये संगठन की पहली इकाई कहलाते हैं। निष्ठïावान साबित होने पर इन्हें ‘इख्वान’ का दर्जा दिया जाता है। सिमी में ‘अंसार’ कहे जाने वाले कार्यकर्ता लश्कर के लिए काम करते हैं। शहर में सबसे पहले इख्वानों की भर्ती 1999 में हलीम मुस्लिम कालेज के मैदान में हुई थी। तबसे यह संगठन शहर की घनी आबादी वाले इलाकों में अपनी गतिविधियां चला रहा है। सिमी कानपुर समेत देश के तीन शहरों में इख्वान कान्फ्रेन्स आयोजित कर चुकी है। कानपुर में तो इस कान्फ्रेन्स में टेनरी मालिकों और कई डाक्टरों ने भी बढ़-चढक़र हिस्सा लिया था। कानपुर में सिमी की बैठकें बासमण्डी स्थित एक लाइब्रेरी में सम्पन्न होती थीं। लश्कर के पकड़े गए आतंकवादियों ने इस बात की पुष्टिï की है कि सिमी के लोगों के सीधे रिश्ते लश्कर-ए-तैयबा से हैं। खुफिया सूत्रों की मानें तो, ‘‘इख्वानों को सिमी समझाती है कि वे मुस्लिम तादाद बढाएं। जहां मुस्लिम आबादी कम है उस जिले को जा रही सारी सडक़ों के मुहाने पर दुकान, होटल और मकान बनवा दें ताकि जरूरत पडऩे पर शहर के सारे रास्ते बंद किए जा सकें। इसके साथ ही जिन पॉकेट्ïस में मुसलमान अधिक हों वहां के हिन्दुओं की जमीन को किसी भी रेट से खरीदने के लिए भी उकसाया जाता है।’’

इस संगठन ने अपनी पहली दस्तक 14 अगस्त 2००० में शहर के पॉश इलाके आर्यनगर में प्रेशर कुकर से विस्फोट कर दी थी। इस मामले में पुलिस ने जुबैर को गिरफ्ïतार किया था। बाद में जुबैर की निशानदेही पर जफर को भी पकड़ा गया। जफर बाद में फर्जी जमानत कराकर फरार हो गया, फिर उसे दिल्ली पुलिस ने आईएसआई एजेन्ट के साथ पकड़ा था। 1999 से लेकर 2००2 तक तकरीबन 11 आतंकी केवल कानपुर शहर से पकड़े जा चुके हैं। इनमें जफर, बिलाल, नदीम, जुबैर, अ_x008e_दुल, अकील, मुन्ना पाकिस्तानी, प्रदीप उर्फ आकाश, बिहारी सहजीवाला, यूनुस और रजी हसन शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ पुलिस को राष्टï्रविरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के पुख्ता सबूत मिले हैं। समय समय पर देश के खुफिया संगठन ‘रा’ और ‘आईबी’ शहर के रक्षा प्रतिष्ठïानों, आयल डिपो और एचएएल पर आतंकी हमले की आशंका को लेकर स्थानीय प्रशासन को आगाह करते रहे हैं।

एकतरफ सिमी से जुड़े लोग शहर से लेकर पूरे प्रदेश में तबाही मचाने के काम को अंजाम दे रहे हैं, दूसरी तरफ शहर के कबीना मंत्री का दर्जा पाये सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल ने मुख्यमन्त्री को एक पत्र भेजकर आग्रह किया है कि, ‘‘2००1 के दंगे में आरोपित लोगों से मुकदमें वापस ले लिये जायें।’’ इन दंगों में एसडीएम सीपी पाठक सहित कुल 14 लोग मारे गये थे। जांच के बाद इस मामले में सिमी के प्रमुख सुलेमान, रेहान, फकीर व आमिर दोषी पाये गये थे। अग्रवाल द्वारा भेजे गये पत्र के संदर्भ में मुख्यमन्त्री के विशेष सचिव शम्भू सिंह यादव ने 23 जून को जिला प्रशासन से इस बावत तफ्ïसील से आख्या पेश करने को कहा है। अग्रवाल के इस अल्पसंख्यक प्रेम के पीछे वोटों की राजनीति है। जिस विधानसभा क्षेत्र (जनरलगंज) से वे अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं वहां मुस्लिम मतदाता ही निर्णायक साबित होते रहे हैं। सिमी पर सरकार की मेहरबानी का अंदाज इससे भी लगता है कि सिमी के राष्टï्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही और उसके 11 अन्य सहयोगियों पर से बहराइच के एक मामले में मुकदमा वापस लेने की अनुमति के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में जिला शासकीय अधिवक्ता ने मुकदमा वापस लेने के लिए अर्जी लगाई है।

सितम्बर 2००5 में तीसरी बार सिमी पर प्रतिबन्ध लगाने का सवाल उठा तो मुलायम सरकार की ओर से इसका समर्थन नहीं हुआ। राज्य की ओर से 21 जून, 2००5 को केन्द्र को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘राज्य में सिमी की सक्रिय गतिविधियां नही हैं। सिमी के खिलाफ कोई नया मामला पंजीकृत नहीं हुआ है।’’ गृह विभाग के विशेष कार्याधिकारी आर.एस. अग्रवाल ने यह स्वीकार किया कि, ‘‘प्रदेश में सिमी की कोई गतिविधि नहीं दिखाई पड़ी है।’’ लेकिन इस बात का खुलासा किया कि सिमी पर तीसरी बार प्रतिबन्ध आयद किये जाने के समय इसके लिए गठित ट्रि_x008e_यूनल की ओर से 11 जिले के 67 लोगों, जिनके रिश्ते सिमी से बताये जाते हैं, को नोटिस तामील कराने की जिम्मेदारी सूबाई सरकार को दी गई। सर्वाधिक 16 लोग मुरादाबाद के थे जिन्हें नोटिस तामील करानी थी। इनके अलावा फैजाबाद के 12, बहराइच और श्रावस्ती के दस-दस लोगों के साथ संत रविदासनगर के 5 लोगों को नोटिस तामील करायी गई इनमें आजमगढ़, सिद्घार्थनगर, गोण्डा और शाहजहांपुर के 4-4 तथा गोरखपुर के तीन, रामपुर के दो व मऊ के तीन लोग सिमी से रिश्तों के बाबत चिन्हित किये गये थे। विधि विरूद्घ क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967 के तहत 27 सितम्बर, 2००1 को सिमी पर दो साल के लिए प्रतिबंध आयद किया गया था। राज्य सरकार और उसके आला हुक्मरान भले ही केन्द्र को इस सूचना से अवगत कराकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान रहे हों कि, ‘‘प्रदेश में सिमी कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं चला रहा है।’’ लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले ही साल 28 जुलाई 2००5 को जौनपुर में हुए ट्रेन बम विस्फोट में ही शासन की ओर से ही सिमी का हाथ बताया गया था। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने 8 फरवरी 2००6 को सिमी पर तीसरी पर प्रतिबन्ध आयद करते हुए गृह मंत्रालय की ओर से जारी भारी भरकम रिपोर्ट की हकीकत से भी आंख मूंदने में अपनी भलाई समझी। इस रिपोर्ट में सिमी के बारे में कई खुलासे किये गये। मसलन, रिपोर्ट बताती है कि सिमी कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता। उसे अन्तर्राष्टï्रीय इस्लामिक कानूनों की जरूरत है। गौरतलब है कि 16 सितम्बर, 2००1 को बहराइच में उ_x009e_ोजक और साम्प्रदायिक उन्माद भडक़ाने वाले भाषण देने के आरोप में फलाही और उनके सहयोगियों पर मुकदमा चल रहा है। प्रदेश में सिमी के पदाधिकारियों पर 65 मुकदमें चल रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने जनसूचना अधिकार के तहत सिमी के पक्ष में राज्य सरकार की ओर से भेजी गई रिपोर्ट के दस्तावेज मांगे हैं।

सिमी का जन्म अलीगढ़ में हुआ। हमास और अलकायदा इसके आदर्श हैं। कानपुर के अलावा, अलीगढ़, लखनऊ, मेरठ, आजमगढ़, वाराणसी, इलाहाबाद, रामपुर और बिजनौर में भी सिमी की गतिविधियों पर निगाह रखने के निर्देश जारी किये गये हैं। इन शहरों के अलावा कुल 34 जिलों में सिमी के कामकाज फैले हुए हैं। राज्य में सिमी की जड़ों की पुष्टिï इस बात से भी होती है कि सिमी के राष्टï्रीय अध्यक्ष इसी सूबे के आजमगढ़ जनपद के रहने वाले हैं। अकबरपुर में संदिग्ध लोगों को मोबाइल कनेक्शन दिलाने के आरोप में मोहम्मद शफीक को उठाया गया है। सिमी का नया अड्ïडा पटना के समीप एक कस्बे में है। गौरतलब है कि बनारस के संकटमोचन मन्दिर पर हमले के बाद इस कस्बे पर पुलिस ने छापा भी मारा था। राज्य के इन्टेलीजेन्स महकमें की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो, ‘‘सिमी अकलियत के लोगों को बताने की कोशिश करता है कि वह एक पवित्र संगठन है। उसका काम अल्लाह का काम करना है। विदेशों से उसे मोटी रकम भी मुहैया हो रही है।’’ खुफिया महकमों ने इस बात की गम्भीरता से पुष्टिï की है कि, ‘‘सिमी की भूमिगत गतिविधियां जारी हैं। दावत-ए-इस्लामी के मार्फत भी सिमी के लोगों का मिलना-जुलना कई बार हुआ है और जारी भी है।’’

-योगेश मिश्र


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Dr. Yogesh mishr

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