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Interview: मुख्यमंत्री मुलायम सिंह
दिनाँक: ०7.०8.2००6
चार दशक के बाद बतौर मुख्यमंत्री सबसे लम्बा कार्यकाल पूरा करने वाले मुलायम सिंह इन दिनों चौथी बार सरकार बनाने के उत्साह से लबरेज हैं। अमरसिंह को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर के विवाद उन्हें मीडिया की उपज लगते हैं। राजब_x008e_बर का रुख उन्हें सालता जरूर है लेकिन उनके मुताबिक सिनेस्टार अमिताभ इस ओर बहुत पहले इशारा कर चुके थे। पार्टी के अंदर और बाहर की कलह, विपक्ष के तेवर और एकजुटता की रणनीति, सरकार के अल्पजीवी होने के कयासों के बीच लम्बा सफर तय करने के साथ ही साथ सरकार और दल के अंदर, बाहर के तमाम सवालों पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र की मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से हुई लम्बी बातचीत के अंश-
आपका राजनीतिक जीवन शुरू कैसे हुआ?
बचपन से शुरू हुआ। सात साल की उम्र में जेल हो आया। राम मनोहर लोहिया के अखबार ‘चौखम्भा’, ‘संघर्ष’ और ‘जंग’ पढ़ता था। डा. लोहिया के लेखों और लेखन से प्रभावित होकर राजनीति में आया।
आपका राजनीतिक गुरू कौन है?
असली तो मुझे बढ़ाने का काम किया था-नत्थू सिंह ने। उन्होंने हमारे लिए जसवंत नगर सीट छोड़ी थी। उस समय लोहिया जी ने कहा था नत्थू सिंह अब राजनीति करने का तुम्हारा असली समय आया है। 5० की उनकी उम्र रही होगी बोले कि बहुत नौजवान लडक़ा है। इसे मौका मिलना चाहिए। अर्जुन सिंह भदौरिया ने भी राजनीति में हमें आगे बढऩे की प्रेरणा दी।
सपा गठित करने का ख्याल कब आया?
1942 की स्वर्ण जयंती मनाते समय डा. राम मनोहर लोहिया को छोड़ सब नेताओं का नाम लिया गया। यह इसलिए हुआ क्योंकि 1976-77 में इमरजेन्सी में सपा खत्म कर दी गई। हमें यह बुरा लगा कि जिन्होंने लाहौर जेल में 11 दिन जगते हुए काटे। टार्चर सहा। नौजवानों को जगाया। 1942 की क्रान्ति में योगदान दिया। उन्हें भुलाया जा रहा है। हमारे समाजवादी भाई भी उन्हें भूल गये। मुझे लगा कि यह विचारधारा अब थोड़े ही दिन में खत्म हो जाएगी।
कहा जाता है कि राजनीति में स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होते। लेकिन सपा और बसपा में एका के रास्ते बंद हैं। इसकी वजह क्या है?
इसकी वजह यह है बसपा। उसका कोई कार्यक्रम, सिद्घांत नही हैं। कट्ïटर जातिवादी दल है। राजनीतिक दल नहीं है। एक समूह है। गिरोह है। जो केवल स_x009e_ाा के लिए काम करता है। लूटपाट और अधिकारियों के ट्रान्सफर-पोस्टिंग में पैसा वसूलना बसपा का काम है। टिकटों में भी पैसा लिया जा रहा है। डाक बोली जा रही है। पहले सवर्णों को गालियां दी गईं। अब स_x009e_ाा के लिए अपील कर रहे हैं-ब्राम्हणों से। ब्राम्हण नासमझ नही हैं। वह बुद्घिजीवी है। उन्होंने समय-समय पर अपने चिंतन का परिचय दिया है। महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इस बार भी वे बुद्घिमतापूर्ण फैसला लेंगे।
बसपा-सपा का समीकरण देश की सियासत की तस्वीर बदल सकता था। यह समीकरण गेस्ट हाउस कांड से टूटा। इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
बीएसपी को। जिसको भडक़ा दिया। यही लोग हैं भडक़ाने वाले जो आज दिखाई दे रहे हैं आपके सामने। (मुलायम सिंह का संकेत 31 मई 1995 के काशीराम के उस पत्र की ओर था जो उन्होंने सपा से रिश्ते तोड़ सरकार बनाने के लिए तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा को लिखा था। जिसमें जनता दल, सीपीआई, कांग्रेस और भाजपा के विधायकों की मदद से सरकार बनाने का दावा किया गया था)।
अटल बिहारी बाजपेई के निर्वाचन क्षेत्र में साड़ी कांड हुआ था तो ऐसा लग रहा था कि यह राजनीतिक तौर पर यह बाजपेई के लिए काफी नुकसानदेय होगा। लेकिन उस समय आप मददगार के रूप में सामने आए। आपको यह फैसला आज कैसा लगता है?
मेरा फैसला बिल्कुल सही था। सब लोग लालजी टंडन और उनके सहयोगियों पर आरोप लगा रहे थे। डीएम को हटवाया। लेकिन किसी की नीयत खराब नहीं थी। नतीजतन, लालजी टंडन को फंसाने की मांग मैं क्यों मानता। मेरा टकराव भाजपा से नीतियों को लेकर है। नीतियां नहीं बदली तो भाजपा से हमारा टकराव रहेगा। लेकिन मैं बसपा में तो हूँ नहीं जो बदले की भावना से काम करूँ । पता नहीं कब, कभी भी जैसा शुरू में ही आपने कहा कोई स्थायी रूप से मित्र अथवा शत्रु नहीं होता है तब क्या पता कब, कौन काम आए। देशहित में। समाजहित में। क्या पता है। जो लोग बढ़-बढ़ कर बीजेपी की बात करते हैं। मुलायम सिंह ने कभी समझौता नहीं किया। 1989 के विधानसभा चुनाव पता लगाना मेरा समझौता नहीं था। पार्लियामेन्ट चुनाव में समझौता था। उन लोगों का जो बीजेपी के बल पर उच्च पदों पर पहुंचे लोग हैं। (मुलायम सिंह जनता दल के मार्फत प्रधानमंत्री बने श्री सिंह का नाम लेने से परहेज करते रहे)।
अपने तीनों कार्यकाल में आप खुद क्या अंतर पाते हैं?
मुलायम सिंह ज्यों के त्यों हैं। लोगों की धारणा बदली है। वह भी कुछ मीडिया के लोगों और विशेषकर आरएसएस, बीजेपी के साथ मुझसे ईष्र्या रखने वाले दलों के गलत प्रचार से। जलन रखने वाले कई दल आप देख रहे होंगे। उनकी जलन की राजनीति है। मेरी परिवर्तन की राजनीति है। जलन की राजनीति की उम्र लम्बी नहीं होती। जलन की राजनीति करने वालों को महत्व देना मेरे लिए मुनासिब नहीं है।
बेनी प्रसाद वर्मा की वापसी, जनेश्वर मिश्र का जन्मदिन मनाया जाना समाजवाद के प्रति आपके अचानक उपजे प्रेम की मिसाल के तौर पर पेश किया जा रहा है। यह महज चुनावी गणित है या किसी परिवर्तन का आगाज?
समाजवाद ऐसा विचार है जो हमेशा रहेगा।
पुराने समाजवादियों की पुर्नप्रतिष्ठïा क्या यह नहीं बताती है कि महज अमर सिंह नाकाफी हो गये हैं?
नहीं। ऐसा नहीं है।
सपा के कई कार्यकर्ता अधिकारियों से हाथापाई पर उतारू हैं। ऐसा क्यों है?
हम इस तरह की घटनाओं को अच्छा नहीं मानते। न ही इनके पक्ष मे हैं। लोग जलन के नाते ऐसा प्रचारित कर रहे हैं। ऐसा है नहीं। बसपा के एक विधायक ने नंगी रिवाल्वर सरकारी आफिस में दिखाई, उसी वक्त जब रायबरेली और फिरोजाबाद की घटनाओं को तूल दिया जा रहा था।
कहा जा रहा है कि नगर निगम चुनाव से सरकार पीछे हट रही है। क्योंकि सीधे चुनाव से सपा डरती है?
नहीं। ऐसा कहने वालों को पता नहीं है कि पहले 1991 की जनगणना पर चुनाव होने वाला था लेकिन सबको भय था कि कोई अदालत न चला जाय। इसलिए जब 2००1 की जनगणना पर बनी मतदाता सूची प्रकाशित हो गई। इसी बीच आरक्षण को लेकर लोग कोर्ट चले गये। कोर्ट की वजह से देर हो रही है। न्यायालय से निर्देश मिला। हमने कार्यक्रम तय कर दिया।
नौकरशाह सूबा छोडक़र बाहर जाने में भलाई समझ रहे हैं। इसे असंतोष मानते हैं या कोई और वजह?
अभी तक जितने अफसरों को बाहर जाना चाहिए था, उतने भी नहीं गए। एक समय 12०-125 अफसर तक डेपुटेशन पर थे। अभी तो संख्या सौ से नीचे ही है।
आपकी बीमारी को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगीं। इसकी आपको क्या वजह नजर आती है?
(जोरदार ठहाका लगाते हुए) इसके लिए मुझे क्या कहना है। आपके सामने बैठे हैं। रोज दौरा कर रहे हैं। देखिए कितनी घटिया मानसिकता है।
अमर सिंह ने हाल में अजित सिंह के खिलाफ एक बयान दिया। क्या अजित सिंह जाने वाले हैं?
कोई बयान नहीं दिया। कभी नहीं दिया। यह तो पत्रकार मित्रों की कलम है।
एक समय अमरसिंह आपके मुक्तिदाता थे, लेकिन अब कई समस्याओं की जड़ उन्हें माना जा रहा है?
पार्टी में नहीं। कहीं भी नहीं। यह तो अखबार और मीडिया के लोग उछालते रहते हैं। यहाँ तक उछाल दिया रामगोपाल, अखिलेश, शिवपाल कोई पसंद नहीं कर रहा है। मुलायम सिंह नाराज हो गए। अब बताइये। अब ऐसे लोग कभी सफल नही हो सकते। जो जानकारी सही होते हुए भी नजरअंदाज कर रहे हैं।
अमरसिंह को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर भी तमाम लोगों की नाराजगी की वजह आप क्या मानते हैं?
अमरसिंह दिल के साफ हैं। मददगार हैं। वह लोगों को धोखा नहीं देते। यह एहसान फरामोश लोग हैं। समाजवाद कर्म में होता है जिसको दो बार सांसद बनवाया। मदद की। वह लोग बोल रहे हैं हमने मनोविज्ञान पढ़ा है। जो अच्छा आदमी है उसे सब अच्छे लगते हैं। जो बुरा आदमी है उसको सब बुरे लगते हैं।
वीपी का जनमोर्चा आपकी मुश्किल की वजह बन रहा है?
इस पर मुझे कुछ बोलना ही नहीं है।
फिर इन दिनों आपके निशाने पर विश्वनाथ प्रताप सिंह ही क्यों होते हैं?
हमने उन्हें नहीं, दिल्ली सरकार के नाम से कहा कि 1989 में किसानों का दस हजार का कर्जा माफ करने का वायदा किया था। माफ नहीं किया। खाद भी महंगी की। स_x008e_िसडी हमें देनी पड़ी।
आपके निशाने पर कांग्रेस और वीपी हैं। बसपा और भाजपा नहीं है। इसकी क्या वजह मानी जाय?
नहीं। वीपी का तो हमने नाम ही नहीं लिया आज तक। पत्रकार मित्र छाप दें तो हम खंडन कैसे करें कि हमने नाम ही नहीं लिया था। नाम लेते नहीं। नाम छाप देते हैं। इनका निशाना, सभी दलों का निशाना है मुलायम सिंह। जबकि देश के सामने बहुत बड़े-बड़े संकट हैं-आतंकवाद है, सीमा का सवाल है, मंहगाई है। कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं है। इनके नेता दिल्ली और लखनऊ में बयानबाजी करने वाले लोग हैं। यहां रोजाना छपवाने के लिए राजभवन में चले जायेंगे। मुलायम सिंह को गाली देंगे।
जब आपकी सरकार आई तब लोग उम्मीद कर रहे थे कि आप मायावती को सबक सिखायेंगे। आपने ऐसा नहीं किया?
यह सही है कि कई उनके ऐसे मंत्री हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं। लोकायुक्त की भी रिपोर्ट उनके खिलाफ आ चुकी है। लेकिन अपने आप कानून काम करे तो करे हमने कोई प्रतिशोध की भावना से काम न किया है। न करेंगे।
राजनीति में आपका दुश्मन नम्बर वन कौन है?
हमारा राजनीति में शत्रु कोई नहीं होता। हमारा वैचारिक मतभेद है। वैचारिक मतभेद भी सब से है हमारा। सब अवसरवादी ताकतें एक हो गई हैं। जितने दल बने हैं यहां सबका एजेन्डा है मुलायम सिंह को हटाओ। सपा को भी नहीं!
अगली बार मुख्यमंत्री होंगे तो आपके एजेन्डे में क्या होगा?
एजेन्डा तो सपा का ज्यों का त्यों है। जितने भी हमारे बेरोजगार हैं उन्हें रोजगार देने का प्रयास किया जाएगा और नहीं तो भ_x009e_ाा बढ़ाया जाएगा।
विकास परिषद में ग्रामीण विकास से जुड़ा कोई व्यक्ति अथवा किसानों का कोई नुमाइंदा नहीं है?
ये जो उद्योगपति हैं। इनको बड़ा ज्ञान है। एक-एक मिटïï्ïटी जानते हंै ये लोग। जो गन्ना की चीनी मिल लगाए हैं जिन्होंने एक साथ 28 चीनी मिल लगाए वे गांव को जाने बिना काम कर रहे होंगे।
-योगेश मिश्र
चार दशक के बाद बतौर मुख्यमंत्री सबसे लम्बा कार्यकाल पूरा करने वाले मुलायम सिंह इन दिनों चौथी बार सरकार बनाने के उत्साह से लबरेज हैं। अमरसिंह को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर के विवाद उन्हें मीडिया की उपज लगते हैं। राजब_x008e_बर का रुख उन्हें सालता जरूर है लेकिन उनके मुताबिक सिनेस्टार अमिताभ इस ओर बहुत पहले इशारा कर चुके थे। पार्टी के अंदर और बाहर की कलह, विपक्ष के तेवर और एकजुटता की रणनीति, सरकार के अल्पजीवी होने के कयासों के बीच लम्बा सफर तय करने के साथ ही साथ सरकार और दल के अंदर, बाहर के तमाम सवालों पर ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र की मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से हुई लम्बी बातचीत के अंश-
आपका राजनीतिक जीवन शुरू कैसे हुआ?
बचपन से शुरू हुआ। सात साल की उम्र में जेल हो आया। राम मनोहर लोहिया के अखबार ‘चौखम्भा’, ‘संघर्ष’ और ‘जंग’ पढ़ता था। डा. लोहिया के लेखों और लेखन से प्रभावित होकर राजनीति में आया।
आपका राजनीतिक गुरू कौन है?
असली तो मुझे बढ़ाने का काम किया था-नत्थू सिंह ने। उन्होंने हमारे लिए जसवंत नगर सीट छोड़ी थी। उस समय लोहिया जी ने कहा था नत्थू सिंह अब राजनीति करने का तुम्हारा असली समय आया है। 5० की उनकी उम्र रही होगी बोले कि बहुत नौजवान लडक़ा है। इसे मौका मिलना चाहिए। अर्जुन सिंह भदौरिया ने भी राजनीति में हमें आगे बढऩे की प्रेरणा दी।
सपा गठित करने का ख्याल कब आया?
1942 की स्वर्ण जयंती मनाते समय डा. राम मनोहर लोहिया को छोड़ सब नेताओं का नाम लिया गया। यह इसलिए हुआ क्योंकि 1976-77 में इमरजेन्सी में सपा खत्म कर दी गई। हमें यह बुरा लगा कि जिन्होंने लाहौर जेल में 11 दिन जगते हुए काटे। टार्चर सहा। नौजवानों को जगाया। 1942 की क्रान्ति में योगदान दिया। उन्हें भुलाया जा रहा है। हमारे समाजवादी भाई भी उन्हें भूल गये। मुझे लगा कि यह विचारधारा अब थोड़े ही दिन में खत्म हो जाएगी।
कहा जाता है कि राजनीति में स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होते। लेकिन सपा और बसपा में एका के रास्ते बंद हैं। इसकी वजह क्या है?
इसकी वजह यह है बसपा। उसका कोई कार्यक्रम, सिद्घांत नही हैं। कट्ïटर जातिवादी दल है। राजनीतिक दल नहीं है। एक समूह है। गिरोह है। जो केवल स_x009e_ाा के लिए काम करता है। लूटपाट और अधिकारियों के ट्रान्सफर-पोस्टिंग में पैसा वसूलना बसपा का काम है। टिकटों में भी पैसा लिया जा रहा है। डाक बोली जा रही है। पहले सवर्णों को गालियां दी गईं। अब स_x009e_ाा के लिए अपील कर रहे हैं-ब्राम्हणों से। ब्राम्हण नासमझ नही हैं। वह बुद्घिजीवी है। उन्होंने समय-समय पर अपने चिंतन का परिचय दिया है। महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इस बार भी वे बुद्घिमतापूर्ण फैसला लेंगे।
बसपा-सपा का समीकरण देश की सियासत की तस्वीर बदल सकता था। यह समीकरण गेस्ट हाउस कांड से टूटा। इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
बीएसपी को। जिसको भडक़ा दिया। यही लोग हैं भडक़ाने वाले जो आज दिखाई दे रहे हैं आपके सामने। (मुलायम सिंह का संकेत 31 मई 1995 के काशीराम के उस पत्र की ओर था जो उन्होंने सपा से रिश्ते तोड़ सरकार बनाने के लिए तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा को लिखा था। जिसमें जनता दल, सीपीआई, कांग्रेस और भाजपा के विधायकों की मदद से सरकार बनाने का दावा किया गया था)।
अटल बिहारी बाजपेई के निर्वाचन क्षेत्र में साड़ी कांड हुआ था तो ऐसा लग रहा था कि यह राजनीतिक तौर पर यह बाजपेई के लिए काफी नुकसानदेय होगा। लेकिन उस समय आप मददगार के रूप में सामने आए। आपको यह फैसला आज कैसा लगता है?
मेरा फैसला बिल्कुल सही था। सब लोग लालजी टंडन और उनके सहयोगियों पर आरोप लगा रहे थे। डीएम को हटवाया। लेकिन किसी की नीयत खराब नहीं थी। नतीजतन, लालजी टंडन को फंसाने की मांग मैं क्यों मानता। मेरा टकराव भाजपा से नीतियों को लेकर है। नीतियां नहीं बदली तो भाजपा से हमारा टकराव रहेगा। लेकिन मैं बसपा में तो हूँ नहीं जो बदले की भावना से काम करूँ । पता नहीं कब, कभी भी जैसा शुरू में ही आपने कहा कोई स्थायी रूप से मित्र अथवा शत्रु नहीं होता है तब क्या पता कब, कौन काम आए। देशहित में। समाजहित में। क्या पता है। जो लोग बढ़-बढ़ कर बीजेपी की बात करते हैं। मुलायम सिंह ने कभी समझौता नहीं किया। 1989 के विधानसभा चुनाव पता लगाना मेरा समझौता नहीं था। पार्लियामेन्ट चुनाव में समझौता था। उन लोगों का जो बीजेपी के बल पर उच्च पदों पर पहुंचे लोग हैं। (मुलायम सिंह जनता दल के मार्फत प्रधानमंत्री बने श्री सिंह का नाम लेने से परहेज करते रहे)।
अपने तीनों कार्यकाल में आप खुद क्या अंतर पाते हैं?
मुलायम सिंह ज्यों के त्यों हैं। लोगों की धारणा बदली है। वह भी कुछ मीडिया के लोगों और विशेषकर आरएसएस, बीजेपी के साथ मुझसे ईष्र्या रखने वाले दलों के गलत प्रचार से। जलन रखने वाले कई दल आप देख रहे होंगे। उनकी जलन की राजनीति है। मेरी परिवर्तन की राजनीति है। जलन की राजनीति की उम्र लम्बी नहीं होती। जलन की राजनीति करने वालों को महत्व देना मेरे लिए मुनासिब नहीं है।
बेनी प्रसाद वर्मा की वापसी, जनेश्वर मिश्र का जन्मदिन मनाया जाना समाजवाद के प्रति आपके अचानक उपजे प्रेम की मिसाल के तौर पर पेश किया जा रहा है। यह महज चुनावी गणित है या किसी परिवर्तन का आगाज?
समाजवाद ऐसा विचार है जो हमेशा रहेगा।
पुराने समाजवादियों की पुर्नप्रतिष्ठïा क्या यह नहीं बताती है कि महज अमर सिंह नाकाफी हो गये हैं?
नहीं। ऐसा नहीं है।
सपा के कई कार्यकर्ता अधिकारियों से हाथापाई पर उतारू हैं। ऐसा क्यों है?
हम इस तरह की घटनाओं को अच्छा नहीं मानते। न ही इनके पक्ष मे हैं। लोग जलन के नाते ऐसा प्रचारित कर रहे हैं। ऐसा है नहीं। बसपा के एक विधायक ने नंगी रिवाल्वर सरकारी आफिस में दिखाई, उसी वक्त जब रायबरेली और फिरोजाबाद की घटनाओं को तूल दिया जा रहा था।
कहा जा रहा है कि नगर निगम चुनाव से सरकार पीछे हट रही है। क्योंकि सीधे चुनाव से सपा डरती है?
नहीं। ऐसा कहने वालों को पता नहीं है कि पहले 1991 की जनगणना पर चुनाव होने वाला था लेकिन सबको भय था कि कोई अदालत न चला जाय। इसलिए जब 2००1 की जनगणना पर बनी मतदाता सूची प्रकाशित हो गई। इसी बीच आरक्षण को लेकर लोग कोर्ट चले गये। कोर्ट की वजह से देर हो रही है। न्यायालय से निर्देश मिला। हमने कार्यक्रम तय कर दिया।
नौकरशाह सूबा छोडक़र बाहर जाने में भलाई समझ रहे हैं। इसे असंतोष मानते हैं या कोई और वजह?
अभी तक जितने अफसरों को बाहर जाना चाहिए था, उतने भी नहीं गए। एक समय 12०-125 अफसर तक डेपुटेशन पर थे। अभी तो संख्या सौ से नीचे ही है।
आपकी बीमारी को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगीं। इसकी आपको क्या वजह नजर आती है?
(जोरदार ठहाका लगाते हुए) इसके लिए मुझे क्या कहना है। आपके सामने बैठे हैं। रोज दौरा कर रहे हैं। देखिए कितनी घटिया मानसिकता है।
अमर सिंह ने हाल में अजित सिंह के खिलाफ एक बयान दिया। क्या अजित सिंह जाने वाले हैं?
कोई बयान नहीं दिया। कभी नहीं दिया। यह तो पत्रकार मित्रों की कलम है।
एक समय अमरसिंह आपके मुक्तिदाता थे, लेकिन अब कई समस्याओं की जड़ उन्हें माना जा रहा है?
पार्टी में नहीं। कहीं भी नहीं। यह तो अखबार और मीडिया के लोग उछालते रहते हैं। यहाँ तक उछाल दिया रामगोपाल, अखिलेश, शिवपाल कोई पसंद नहीं कर रहा है। मुलायम सिंह नाराज हो गए। अब बताइये। अब ऐसे लोग कभी सफल नही हो सकते। जो जानकारी सही होते हुए भी नजरअंदाज कर रहे हैं।
अमरसिंह को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर भी तमाम लोगों की नाराजगी की वजह आप क्या मानते हैं?
अमरसिंह दिल के साफ हैं। मददगार हैं। वह लोगों को धोखा नहीं देते। यह एहसान फरामोश लोग हैं। समाजवाद कर्म में होता है जिसको दो बार सांसद बनवाया। मदद की। वह लोग बोल रहे हैं हमने मनोविज्ञान पढ़ा है। जो अच्छा आदमी है उसे सब अच्छे लगते हैं। जो बुरा आदमी है उसको सब बुरे लगते हैं।
वीपी का जनमोर्चा आपकी मुश्किल की वजह बन रहा है?
इस पर मुझे कुछ बोलना ही नहीं है।
फिर इन दिनों आपके निशाने पर विश्वनाथ प्रताप सिंह ही क्यों होते हैं?
हमने उन्हें नहीं, दिल्ली सरकार के नाम से कहा कि 1989 में किसानों का दस हजार का कर्जा माफ करने का वायदा किया था। माफ नहीं किया। खाद भी महंगी की। स_x008e_िसडी हमें देनी पड़ी।
आपके निशाने पर कांग्रेस और वीपी हैं। बसपा और भाजपा नहीं है। इसकी क्या वजह मानी जाय?
नहीं। वीपी का तो हमने नाम ही नहीं लिया आज तक। पत्रकार मित्र छाप दें तो हम खंडन कैसे करें कि हमने नाम ही नहीं लिया था। नाम लेते नहीं। नाम छाप देते हैं। इनका निशाना, सभी दलों का निशाना है मुलायम सिंह। जबकि देश के सामने बहुत बड़े-बड़े संकट हैं-आतंकवाद है, सीमा का सवाल है, मंहगाई है। कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं है। इनके नेता दिल्ली और लखनऊ में बयानबाजी करने वाले लोग हैं। यहां रोजाना छपवाने के लिए राजभवन में चले जायेंगे। मुलायम सिंह को गाली देंगे।
जब आपकी सरकार आई तब लोग उम्मीद कर रहे थे कि आप मायावती को सबक सिखायेंगे। आपने ऐसा नहीं किया?
यह सही है कि कई उनके ऐसे मंत्री हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं। लोकायुक्त की भी रिपोर्ट उनके खिलाफ आ चुकी है। लेकिन अपने आप कानून काम करे तो करे हमने कोई प्रतिशोध की भावना से काम न किया है। न करेंगे।
राजनीति में आपका दुश्मन नम्बर वन कौन है?
हमारा राजनीति में शत्रु कोई नहीं होता। हमारा वैचारिक मतभेद है। वैचारिक मतभेद भी सब से है हमारा। सब अवसरवादी ताकतें एक हो गई हैं। जितने दल बने हैं यहां सबका एजेन्डा है मुलायम सिंह को हटाओ। सपा को भी नहीं!
अगली बार मुख्यमंत्री होंगे तो आपके एजेन्डे में क्या होगा?
एजेन्डा तो सपा का ज्यों का त्यों है। जितने भी हमारे बेरोजगार हैं उन्हें रोजगार देने का प्रयास किया जाएगा और नहीं तो भ_x009e_ाा बढ़ाया जाएगा।
विकास परिषद में ग्रामीण विकास से जुड़ा कोई व्यक्ति अथवा किसानों का कोई नुमाइंदा नहीं है?
ये जो उद्योगपति हैं। इनको बड़ा ज्ञान है। एक-एक मिटïï्ïटी जानते हंै ये लोग। जो गन्ना की चीनी मिल लगाए हैं जिन्होंने एक साथ 28 चीनी मिल लगाए वे गांव को जाने बिना काम कर रहे होंगे।
-योगेश मिश्र
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