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Interview: चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत
दिनांक: 22.०1.०7
विदर्भ (महाराष्टï्र) और बुंदेलखंड में आत्महत्या कर रहे किसानों के परिजनों की सुध लेकर हवाई यात्रा करके लौटे भारतीय किसान यूनियन के राष्टï्रीय अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत अपने चिर-परिचित अंदाज में मिले। किसान भाइयों के बीच हुक्का गुडग़ुड़ाते और अपने पौत्र के साथ खेलते खिलाते हुए अपने गांव सिसौली में ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र और सहयोगी कुलदीप सिंह से मुखातिब हुए तो देश के किसानों की मौजूदा तस्वीर उभर आई। बीच-बीच में घर के काम करते हुए कोल्हू के बैल हांक खुद ही गन्ने का रस निकाल पीने-पिलाने बैठे टिकैत से लम्बी बातचीत के कुछ अंश:-
पिछले एक दशक से किसानों पर संकट बढ़ रहे हैं। किसान आंदोलन कमजोर पड़ रहा है। क्या कारण है?
किसानों के बीच जातिवाद व धर्मवाद बढ़ा है। राजनीतिज्ञों ने भी इसे बढ़ावा दिया है। किसान गरीब हुआ। निर्धनता बढ़ी है। बिना सम्पन्नता के कोई लड़ाई नहीं लड़ाई जा सकती।
क्या आपको नहीं लगता कि किसान यूनियन एनजीओ की तरह लड़ाई लड़ रहा है?
बिल्कुल एनजीओ की तरह लड़ाई है। लोकसभा, विधानसभाओं में किसानों के मुदï्ïदे कोई भी दल नहीं रखता। भाकियू का राजनीतिकरण अब जरूरी लगता है।
क्या किसानों का एजेन्डा बहुराष्टï्रीय कम्पनियां सरकार से सेट करा लेती हैं?
बिल्कुल सही। डंकल प्रस्ताव हो या विश्व व्यापार संगठन की शर्तें इनसे किसानों की हालत लगातार गिरी है। एजेन्डा सेट होने के बाद सरकार इस स्थिति में रहती ही नहीं कि किसानों की बात मान सके।
किसान तमाम संकटों से जूझने के बाद भी एकजुट नहीं है। क्यों?
बिना सम्पन्नता के आंदोलन नहीं चल सकता। मेरा शरीर स्वस्थ नहीं है, तीन आपरेशन हो चुके हैं। जिनको कमान सौंपी है। वे मेरी तरह रूचि नहीं ले रहे हैं और कमान देने के योग्य अभी कोई नेता यूनियन के पास नहीं है। असली बात यह है कि सरकारें बात ही नही सुनतीं। सैकड़ों धरना-प्रदर्शन हुए। कितनी बार एकजुटता दिखाएं।
किसान संगठनों के जनाधार घटने की वजह क्या है?
किसानों की मांगें पूरी नहीं हो पाईं, किसानों को राजनीतिक दलों द्वारा हमेशा लूटा गया, इससे किसान सहम गया जबकि किसानों ने बलिदान भी दिया।
भाकियू का असर कम हुआ, इसका कारण क्या मानते हैं?
यह गलत है। यूनियन का असर देखना है तो इलाहाबाद कुंभ में देखें। कुंभ साधु-संतों का या फिर किसानों का, कितने लाख किसान जमा होंगे। आंक नहीं सकते। 5-6 अक्टूबर को गांव सौरम (मुजफ्ïफरनगर) की किसान पंचायत में दो लाख किसान जमा हुए थे।
क्या भाकियू ने कुछ गलत फैसले लिए जिससे असर कम हुआ?
(टिकैत पहले तो माने नहीं, फिर याद दिलवाने पर गलत फैसले लेना स्वीकार किया)-भाकियू का राजनीतिक दल किसान कामगार पार्टी को अजित सिंह को सौंपना एक बड़ी भूल थी। लखनऊ में विधानसभा के सामने चल रहा धरना मुलायम सिंह के भरोसे पर समाप्त किया था पर कोई आश्वासन पूरा नहीं किया गया। यह भी हमारी गलती थी।
देवगौड़ा के साथ हैलीकाप्टर में बैठकर जाना व हैलीपेड सिसौली गांव में बनवाना क्या किसान यूनियन की गलती नहीं थी?
मैं देवगौड़ा के साथ नहीं उड़ा था। हांँ, हैलीपैड के लिए काटी गई फसल की बात करें तो फसल का मुआवजा किसानों को दिलवाया था।
आज की तारीख में सभी राजनीतिक दल व नेता किसानों की बात कर रहे हैं। इसकी क्या वजह है?
कांग्रेस ने किसानों की कर्ज लिमिट एक लाख से बढ़ाकर दो लाख कर दी इससे किसान और अधिक कर्ज में डूबेगा। मनमोहन सिंह निजी रूप से ठीक व्यक्ति हैं, पर चाटुकारों से घिरे हैं। फसल की कीमत मूल्य सूचकांक के बराबर लाएं तब मानें। अटल बिहारी वाजपेयी तो किसान विरोधी हैं। जलती हुई आग पर फूस डालने का काम करते हैं। किसानों के नाम पर आंख-कान मूंद लेते हैं।
मुलायम सिंह व अजित सिंह सरीखे धरती पुत्र के बारे में आपकी क्या राय है?
दोनों ने मिलकर किसानों को लूटा है। मुलायम सिंह ने हमेशा विश्वासघात किया है। ये धरती पुत्र तो क्या आसमान पुत्र भी नहीं हैं। अजित सिंह ने अब इस्तीफा दिया है। चुनाव से पहले। गन्ने का भाव तय हुआ, मुलायम सिंह ने हरित प्रदेश का मखौल बनाया, मुलायम सिंह ने मुजफ्ïफरनगर में किसानों पर लाठीचार्ज कराया, तब इस्तीफा देना चाहिए।
किसानों के अहम मुद्ïदे कौन से हैं, जिन पर लड़ाई लडऩा जरूरी है?
सिंचाई। जलस्तर गिर रहा है। नदियों में बंध व ठोकर बनाना चाहिए। फसलों के वाजिब दाम, किसान कर्जमुक्त, निर्धारित बिजली, समय पर खाद। आजादी के 57 साल बाद शहर तो दुल्हन की तरह सजे खड़े हैं और गांव में जीवन स्तर गिरा है।
आपने भी राजनीतिक दल बनाने की कोशिश की थी क्यों सफल नहीं हुए?
किसान कामगार पार्टी बनाकर अजित सिंह को सौंपी थी। जिसके नौ विधायक भी चुनकर आए, अजित की अनदेखी के कारण असफलता मिली।
भाकियू की कोई राजनीतिक दल बनाने की योजना है?
मैंने अपने बेटे की अध्यक्षता में बहुजन किसान दल का गठन किया है। यह दल अपने प्रत्याशी खड़े करेगा या नहीं 16-17 जनवरी को इलाहाबाद में कुंभ में फैसला लिया जाएगा। यूनियन का अम्बावत गुट भी इसमें शिरकत करेगा।
क्या आपका दल किसी दल से एलायंस करेगा?
जब सारा भारत किसानों का है तो एलायंस किससे और कैसा।
क्या आपको लगता है कि किसानों को भी एकजुट होकर वोट बैंक के रूप में राजनैतिक दलों पर दबाव बनाना चाहिए?
होना तो यही चाहिए। हो जाए तो सोने पे सुहागा। किसानों का राज होगा। पर सभी किसान और किसान संगठनों का एक होना नामुमकिन है। किसान नेताओं की ईष्र्या और अभियान किसानों को एकजुट नहीं होने देता-
माया त्यागनी सहज है, सहज है प्रिया मोह।
मान, बड़ाई ईष्र्या त्यागना दुर्लभ होय।।
-योगेश मिश्र
विदर्भ (महाराष्टï्र) और बुंदेलखंड में आत्महत्या कर रहे किसानों के परिजनों की सुध लेकर हवाई यात्रा करके लौटे भारतीय किसान यूनियन के राष्टï्रीय अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत अपने चिर-परिचित अंदाज में मिले। किसान भाइयों के बीच हुक्का गुडग़ुड़ाते और अपने पौत्र के साथ खेलते खिलाते हुए अपने गांव सिसौली में ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के विशेष संवाददाता योगेश मिश्र और सहयोगी कुलदीप सिंह से मुखातिब हुए तो देश के किसानों की मौजूदा तस्वीर उभर आई। बीच-बीच में घर के काम करते हुए कोल्हू के बैल हांक खुद ही गन्ने का रस निकाल पीने-पिलाने बैठे टिकैत से लम्बी बातचीत के कुछ अंश:-
पिछले एक दशक से किसानों पर संकट बढ़ रहे हैं। किसान आंदोलन कमजोर पड़ रहा है। क्या कारण है?
किसानों के बीच जातिवाद व धर्मवाद बढ़ा है। राजनीतिज्ञों ने भी इसे बढ़ावा दिया है। किसान गरीब हुआ। निर्धनता बढ़ी है। बिना सम्पन्नता के कोई लड़ाई नहीं लड़ाई जा सकती।
क्या आपको नहीं लगता कि किसान यूनियन एनजीओ की तरह लड़ाई लड़ रहा है?
बिल्कुल एनजीओ की तरह लड़ाई है। लोकसभा, विधानसभाओं में किसानों के मुदï्ïदे कोई भी दल नहीं रखता। भाकियू का राजनीतिकरण अब जरूरी लगता है।
क्या किसानों का एजेन्डा बहुराष्टï्रीय कम्पनियां सरकार से सेट करा लेती हैं?
बिल्कुल सही। डंकल प्रस्ताव हो या विश्व व्यापार संगठन की शर्तें इनसे किसानों की हालत लगातार गिरी है। एजेन्डा सेट होने के बाद सरकार इस स्थिति में रहती ही नहीं कि किसानों की बात मान सके।
किसान तमाम संकटों से जूझने के बाद भी एकजुट नहीं है। क्यों?
बिना सम्पन्नता के आंदोलन नहीं चल सकता। मेरा शरीर स्वस्थ नहीं है, तीन आपरेशन हो चुके हैं। जिनको कमान सौंपी है। वे मेरी तरह रूचि नहीं ले रहे हैं और कमान देने के योग्य अभी कोई नेता यूनियन के पास नहीं है। असली बात यह है कि सरकारें बात ही नही सुनतीं। सैकड़ों धरना-प्रदर्शन हुए। कितनी बार एकजुटता दिखाएं।
किसान संगठनों के जनाधार घटने की वजह क्या है?
किसानों की मांगें पूरी नहीं हो पाईं, किसानों को राजनीतिक दलों द्वारा हमेशा लूटा गया, इससे किसान सहम गया जबकि किसानों ने बलिदान भी दिया।
भाकियू का असर कम हुआ, इसका कारण क्या मानते हैं?
यह गलत है। यूनियन का असर देखना है तो इलाहाबाद कुंभ में देखें। कुंभ साधु-संतों का या फिर किसानों का, कितने लाख किसान जमा होंगे। आंक नहीं सकते। 5-6 अक्टूबर को गांव सौरम (मुजफ्ïफरनगर) की किसान पंचायत में दो लाख किसान जमा हुए थे।
क्या भाकियू ने कुछ गलत फैसले लिए जिससे असर कम हुआ?
(टिकैत पहले तो माने नहीं, फिर याद दिलवाने पर गलत फैसले लेना स्वीकार किया)-भाकियू का राजनीतिक दल किसान कामगार पार्टी को अजित सिंह को सौंपना एक बड़ी भूल थी। लखनऊ में विधानसभा के सामने चल रहा धरना मुलायम सिंह के भरोसे पर समाप्त किया था पर कोई आश्वासन पूरा नहीं किया गया। यह भी हमारी गलती थी।
देवगौड़ा के साथ हैलीकाप्टर में बैठकर जाना व हैलीपेड सिसौली गांव में बनवाना क्या किसान यूनियन की गलती नहीं थी?
मैं देवगौड़ा के साथ नहीं उड़ा था। हांँ, हैलीपैड के लिए काटी गई फसल की बात करें तो फसल का मुआवजा किसानों को दिलवाया था।
आज की तारीख में सभी राजनीतिक दल व नेता किसानों की बात कर रहे हैं। इसकी क्या वजह है?
कांग्रेस ने किसानों की कर्ज लिमिट एक लाख से बढ़ाकर दो लाख कर दी इससे किसान और अधिक कर्ज में डूबेगा। मनमोहन सिंह निजी रूप से ठीक व्यक्ति हैं, पर चाटुकारों से घिरे हैं। फसल की कीमत मूल्य सूचकांक के बराबर लाएं तब मानें। अटल बिहारी वाजपेयी तो किसान विरोधी हैं। जलती हुई आग पर फूस डालने का काम करते हैं। किसानों के नाम पर आंख-कान मूंद लेते हैं।
मुलायम सिंह व अजित सिंह सरीखे धरती पुत्र के बारे में आपकी क्या राय है?
दोनों ने मिलकर किसानों को लूटा है। मुलायम सिंह ने हमेशा विश्वासघात किया है। ये धरती पुत्र तो क्या आसमान पुत्र भी नहीं हैं। अजित सिंह ने अब इस्तीफा दिया है। चुनाव से पहले। गन्ने का भाव तय हुआ, मुलायम सिंह ने हरित प्रदेश का मखौल बनाया, मुलायम सिंह ने मुजफ्ïफरनगर में किसानों पर लाठीचार्ज कराया, तब इस्तीफा देना चाहिए।
किसानों के अहम मुद्ïदे कौन से हैं, जिन पर लड़ाई लडऩा जरूरी है?
सिंचाई। जलस्तर गिर रहा है। नदियों में बंध व ठोकर बनाना चाहिए। फसलों के वाजिब दाम, किसान कर्जमुक्त, निर्धारित बिजली, समय पर खाद। आजादी के 57 साल बाद शहर तो दुल्हन की तरह सजे खड़े हैं और गांव में जीवन स्तर गिरा है।
आपने भी राजनीतिक दल बनाने की कोशिश की थी क्यों सफल नहीं हुए?
किसान कामगार पार्टी बनाकर अजित सिंह को सौंपी थी। जिसके नौ विधायक भी चुनकर आए, अजित की अनदेखी के कारण असफलता मिली।
भाकियू की कोई राजनीतिक दल बनाने की योजना है?
मैंने अपने बेटे की अध्यक्षता में बहुजन किसान दल का गठन किया है। यह दल अपने प्रत्याशी खड़े करेगा या नहीं 16-17 जनवरी को इलाहाबाद में कुंभ में फैसला लिया जाएगा। यूनियन का अम्बावत गुट भी इसमें शिरकत करेगा।
क्या आपका दल किसी दल से एलायंस करेगा?
जब सारा भारत किसानों का है तो एलायंस किससे और कैसा।
क्या आपको लगता है कि किसानों को भी एकजुट होकर वोट बैंक के रूप में राजनैतिक दलों पर दबाव बनाना चाहिए?
होना तो यही चाहिए। हो जाए तो सोने पे सुहागा। किसानों का राज होगा। पर सभी किसान और किसान संगठनों का एक होना नामुमकिन है। किसान नेताओं की ईष्र्या और अभियान किसानों को एकजुट नहीं होने देता-
माया त्यागनी सहज है, सहज है प्रिया मोह।
मान, बड़ाई ईष्र्या त्यागना दुर्लभ होय।।
-योगेश मिश्र
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