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परिवहन महकमे का ब्रेक फेल

Dr. Yogesh mishr
Published on: 7 Jan 2008 6:17 PM IST
दिनांक: ०7.०1.2००8
लंबी सुनवाई और किंतु परंतु के बावजूद जो फैसला लेने के लिए सुप्रीमकोर्ट तैयार नहीं हुयी थी। उसे प्रदेश सरकार ने एक झटके में ले लिया है। हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में 48 साल तक चली लंबी जद्ïदोजहद और सात बार सर्वोच्च अदालत से पराजय के बावजूद उप्र परिवहन निगम के सभी मार्गों पर निजी बसों के संचालन का रास्ता साफ कर दिया गया है। पिछले कई सालों से लगातार लाभ में चल रहे परिवहन निगम की कमर तोडऩे के लिए अदालती फैसलों की अनदेखी करने के इस सरकारी फरमान के पीछे सरकार की नजर निगम के बस अड्ïडों की जमीनों पर है। जिनका सौदा करके वह अपनी झोली और भरना चाहती है।

सरकार के इस हालिया फैसले की कहानी 48 साल पहले दिल्ली-सहारनपुर राष्टï्रीय राजमार्ग को निजी बस संचालकों के लिए खोलने से शुरू हुई थी। उस समय राज्य में बसों के संचालन का काम राजकीय रोडवेज के मार्फत होता था लेकिन आज जब उप्र राज्य सडक़ परिवहन निगम राजकीय रोडवेज के काम को कर रहा है, तब इस एक मार्ग के बदले निजी आपरेटरों पर मेहरबान होते हुए सरकार ने राज्य के सभी 475 मार्गों पर निजी बसों के संचालन का अवसर मुहैया करा दिया है। बीते जुलाई में जब सरकार निजी आपरेटर्स की 48 साल पुरानी मंशा पूरी करने की जुगत में थी, तभी ‘आउटलुक’ साप्ताहिक ने 2 अगस्त के अंक में इसका खुलासा किया था। हालांकि बाद में राज्य सरकार की ओर से परिवहन मंत्री रामअचल राजभर ने जोरदार श_x008e_दों में निगम के निजीकरण और निजी आपरेटरों के लिए राष्टï्रीयकृत मार्ग न खोलने का भरोसा जताया था। पर अब अधिसूचना जारी होने के बाद सरकार के झूठ का खुलासा हो गया है।

26 फरवरी 1959 को दिल्ली-सहारनपुर मार्ग को राष्टï्रीयकृत करने की अधिसूचना जारी हुई थी। यही अधिसूचना झगड़े की असली जड़ है। दिल्ली-सहारनपुर और इससे जुड़े 38 मार्गों को हथियाने के लिए प्राइवेट आपरेटरों ने हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट की शरण ली। कहीं भी उन्हें राहत नहीं मिली पर मोटरयान अधिनियम 1988 में इन्होंने तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री राजेश पायलट से मिलकर कुछ ऐसे संशोधन करवा लिये जिसके मार्फत ये एक ओर आरटीओ कार्यालय से वैधता तिथि खो चुके अपने परमिटों को गैर कानूनी तरीके से नवीनीकरण कराते रहे। निजी आपरेटरों की इस लड़ाई में परिवहन महकमे के अफसर रहे एसपी आर्या ने भी काफी मदद की। राजनाथ सरकार के दौरान यही अफसर मुख्यमंत्री के जब प्रमुख सचिव बने तब भी उन्होंने इस रूट के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में काफी काम किया लेकिन अदालतों का डंडा इस तरह चल रहा था कि सब कुछ चाहने के बाद भी निजी बस मालिकों को सरकारी स्तर पर कोई रियायत मुहैया नहीं करायी जा सकी। वह भी तब, जब मार्गों के राष्टï्रीयकरण करने के खिलाफ आप_x009e_िायां दाखिल करने की तिथि तक कोई भी आप_x009e_िा दर्ज न होने के बावजूद फर्जी प्राप्ति रसीदें निजी बस संचालकों को थमायी गयीं और यहां तक कह दिया गया कि कार्यालय के बदलाव में तमाम कागज गायब हुये, जिसमें इन आपरेटरों की आप_x009e_िायां भी थीं। यह सब कह और करके बीएन अग्रवाल नाम के एक अफसर ने कहकर 2००1 में आपरेटरों की मदद करनी चाही। पर बीते ०1 जून, 2००7 को हाईकोर्ट ने फैसला दिया, ‘‘बीएन अग्रवाल का फैसला गलत था। न तो इनके पास कोई आप_x009e_िा थी। न ही कोई आप_x009e_िा देने का वैधानिक आधार था।’’ सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर दिये गये अपने 71 पेज के फैसले में हाईकोर्ट ने तकरीबन 15० याची आपरेटरों को निर्देश दिया कि वे 5-5 हजार रूपये निगम को जुर्माना दें। प्राइवेट आपरेटर सुप्रीमकोर्ट गये। निगम के एक अफसर के मुताबिक, ‘‘यहां सरकारी वकील ही बहस के दौरान निजी संचालकों की बात करने लगे।’’ इसे भांप निगम के प्रबंध निदेशक संजय भूसरेड्ïडी ने सालिसीटर जनरल जीई वाहनवती और राजू रामचंद्रन सरीखे बड़े वकीलों को खड़ा किया। सर्वोच्च अदालत ने प्राइवेट आपरेटर्स को झाड़ लगाते हुए कहा, ‘‘आप सातवीं बार आ रहे हैं। अब अदालत का और समय बर्बाद न करें।’’ यहीं से प्राइवेट आपरेटरों ने सरकार का दामन थामना शुरू किया। संजय भूसरेड्ïडी को तबादले की मार झेलनी पड़ी।

इसके बाद सरकार का मन इन प्राइवेट आपरेटरों पर ऐसा ‘पसीजा’ कि 21 जून, 2००7 को मंत्रि परिषद की बैठक में प्रमुख सचिव परिवहन प्रदीप शुक्ल ने जनता को अच्छी परिवहन सुविधा मुहैया कराने के लिए निजी क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण एजेंसी से सर्वे कराने का प्रस्ताव पेश कर दिया। एजेंसी की अध्ययन रिपोर्ट क्या है? यह तो शायद प्रमुख सचिव और कुछ चुनिंदा अफसर जानते होंगे। पर सरकार ने सभी राष्टï्रीयकृत मार्गों को निजी बसों के लिए खोल दिया। जबकि कानून के मुताबिक किसी भी राज्य के सभी मार्ग प्राइवेट आपरेटर्स के लिए नहीं खोले जा सकते। राज्य के 86 फीसदी रूट पहले से ही निजी बस संचालकों के हाथ में हैं। निगम को केवल 14 फीसदी मार्गों का अधिकार हासिल है। निगम की कमर तोडऩे का यह फैसला सरकार ने तब लिया, जब वह पिछले तीन सालों से लगातार लाभ में चल रही है। इस साल अब तक 42 करोड़ रूपये का लाभ हो चुका है। तकरीबन 9००० रूपये औसत की पगार निगम अपने 36००० कर्मचारियों को दे रही है। 1134 नई बसें उसने इस साल बेड़े में डाली हैं। इससे पहले के पांच वर्षों में भी औसतन 1००० नई बसें इसने अपने बेड़े मे शामिल की हैं। लाभ की यह स्थिति तब है, जब महाराष्टï्र, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में शत प्रतिशत राष्टï्रीयकृत मार्ग हैं और उप्र में सिर्फ 14 फीसदी। निगम के 6239 और प्राइवेट आपरेटरों के पास 18००० बसे हैं। यात्रीकर के रूप में निगम सरकार को 195 करोड़ रूपये देता है जबकि निजी बस संचालक मात्र 145 करोड़ रूपये देते हैं। निगम को श्रेष्ठï दक्षता के तीन पुरस्कार भी हाल में मिले हैं। अब रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष प्रीतम दास, यूपी रोडवेज इम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष रामजी त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘हम निजी बसों को राष्टï्रीयकृत मार्ग पर नही चलने देंगे। हम अपने पैरों पर खड़े हैं सरकार हमें गिराने की कोशिश करेगी तो नतीजा भुगतना पड़ेगा।’’

राष्टï्रीयकृत मार्गों को खोलने के बाद अब चतुर सुजान अफसरों की निगाह परिवहन निगम की 7००० करोड़ रूपये के 24० बस अड्ïडों की संप_x009e_िायों पर है। तभी तो आनन-फानन में इन्हें भी निजी हाथों में लीज पर देने का फरमान जारी कर दिया गया है। सरकार की तेजी इससे भी समझी जा सकती है कि गंगा एक्सप्रेस-वे पर बात करने लखनऊ आए एनएचएआई के चेयरमैन एन. गोकुलराम और भूतल परिवहन सचिव ब्रह्मद_x009e_ा से बात करने प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ल प्रबंध निदेशक किशन सिंह अटोरिया को ले बिना किसी कार्यक्रम के जा धमके। सूत्रों के मुताबिक, ‘‘केंद्र के दोनों अफसरों ने प्रमुख सचिव से निगम को तोडक़र कंपनी बनाने का कारण जानना चाहा।’’ पर केंद्रीय अफसरों ने उनकी अनसुनी कर कर्नाटक और महाराष्टï्र के परिवहन सचिवों से शुक्ल की बात करा दी। पर निजीकरण कर कायाकल्प करने के जुनून में जुटे प्रमुख सचिव का तर्क है, ‘‘निजी संचालक परिवहन सेवाओं को सप्लीमेन्ट करेंगे।’’ लेकिन वह पता नहीं क्यों इस बात की अनदेखी करना चाह रहे हैं कि उनके निगम का लोड फैक्टर अभी भी 66 फीसदी ही है। मतलब 34 सीटें बसों में औसतन खाली रहती हैं। प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ल ने बताया, ‘‘यह निर्णय यात्रियों को अधिक सुविधा देने के लिए उठाया गया है।’’ सरकार प्रतिदिन यात्रा करने वाले 3963 लाख यात्रियों का कितना ख्याल रखती है। यह राज्य के किसी इलाके में प्राइवेट आपरेटरों के लिए छोड़े गये मार्गों की बसों की स्थिति और यात्रियों के साथ हो रही बदसलूकी से समझी जा सकती है। निजी आपरेटरों के लिए राष्टï्रीयकृत मार्ग खोलने की सरकारी अधिसूचना से यह हालात और बदतर होंगे यह साफ होता है। क्योंकि सर्वोच्च अदालत के मुताबिक अधिसूचना में आपरेटर और बसों की संख्या भी होनी चाहिये लेकिन सरकार ने अनगिनत आपरेटरों के लिए रास्ते खोले हैं। डग्गामार बसें पहले ही परिवहन महकमे की कमर तोड़ रही थीं। अब जब यह बसें सरकारी बस अड्ïडों से चलेंगी, तब के हालात आसानी से समझे जा सकते हैं। पर जिस तरह राज्य भर के श्रमिक संगठन सरकार के इस फैसले के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं उससे साफ है कि निजीकरण का हथियार सरकार पर वूमरेंग कर सकता है।

-योगेश मिश्र


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Dr. Yogesh mishr

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