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अटल बिहारी वाजपेयी की लंबित परियोजना
दिनाँक: 21.०1.2००8
तमाम सरकारी योजनाओं को फाइलों में दम तोड़ते और जमीन पर पूरी तरह न उतर पाने के किस्से आपने जरूर सुने होंगे। नेताओं की घोषणाओं के अमली जामा नहीं पहन पाने की भी कई मिसालें आपके आसपास से जरूर गुजरी होंगी। पर देश के प्रधानमंत्री की योजनाओं पर पानी फेर देने के कम ही उदाहरण आपके सामने होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में इस तरह की तमाम मिसालें चारों ओर पसरी पड़ी हैं। प्रधानमंत्री रहते हुये उनके द्वारा लोकार्पित और घोषित योजनाएं भरपूर पैसों के आवंटन हो जाने के बाद भी पूरी नही हो सकीं। यही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुये बड़े मन से देश की 163 योजनाओं का प्राथमिक एजेंडा तैयार किया था। पर योजना आयोग ने अब उन एजेंडों को कूड़ेदान में डालने का फैसला किया है।
‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में उनके द्वारा लोकार्पित और शिलान्यास की हुई योजनाओं का हाल जानने की पहल की। हमारी तहकीकात बताती है कि तकरीबन 17 करोड़ की लागत से अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में एक नया रेल टर्मिनल बनाने का जो सपना देखा था। उसे पूरा करने की दिशा में लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा जमीन अधिग्रहण के सिवाय कुछ नहीं हो पाया। गोमतीनगर स्टेशन के एक छोर पर बनने वाले इस टर्मिनल की खाली पड़ी जमीन पर प्राइवेट बिल्डर्स ने अपनी गिट्ïटी और मौरंग सजा रखी है। तो दूसरे छोर पर आसपास स्थित कर्मचारी आवासों की तरफ से गाय-भैंसों के तबेले बना दिये गये हैं। कुछ श्रद्घालुओं ने मिलकर खाली पड़ी जमीन पर एक मंदिर भी तामीर करा दिया है। जहां सप्ताहांत पूजा-पाठ व बड़ा प्रवचन होने लगा है। सांसद प्रतिनधि लालजी टंडन बताते हैं, ‘‘इस योजना के लिये सारा सामान आ गया था। लालू प्रसाद यादव ने योजना ही खत्म कर दी।’’
वाजपेयी ने सांसद निधि के सहारे मेडिकल कालेज के पास एक ऐसा साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर बनाने की पहल की थी। जहां बड़ा से बड़ा सेमिनार अथवा कांफ्रेंस कराया जा सके। कन्वेंशन सेंटर में 14००, 4०० और 2०० सीटों वाले ऑडीटोरियम का निर्माण होना था। 22 अगस्त 2००1 को इसका शिलान्यास करते समय इसकी लागत 15 करोड़ रूपये थी जो बढक़र अब 34 करोड़ रूपये हो गयी है। भाजपा के तकरीबन एक दर्जन सांसदों के पैसे से इस कन्वेंशन सेंटर का सिर्फ एक हिस्सा बड़ी मशक्कत के बाद मार्च 2००4 में पूरा हो सका है। इसी हिस्से के आधार पर इस सेंटर का उद्ïघाटन हो गया है। पर इसका दूसरा हिस्सा आज भी पूरा होने की बाट जोह रहा है। लालजी टंडन के मुताबिक, ‘‘अब इसके रखरखाव के लिये शादी _x008e_याह में किराये पर उठाकर पैसे का बंदोबस्त किया जा रहा है।’’
लखनऊ में बढ़ते यातायात के दबाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में नई रिंग रोड की परिकल्पना की गयी थी। फरवरी 2००2 में आरंभ की गयी इस योजना के लिये जरूरी 51.24 करोड़ रूपये मंजूर भी कर दिये गये। सीतापुर रोड से फैजाबाद रोड तक को फोर लेन के मार्फत सर्विस लेन सहित जोडऩे वाली यह परियोजना 18 करोड़ रूपये खर्च होने के बाद अधर में लटकी हुई है। इस परियोजना के तहत आने वाले ओवरब्रिजों में से एक अभी भी अधूरा है। इसी तरह कानपुर रोड को रायबरेली, सुल्तानपुर मार्ग से होकर फैजाबाद मार्ग को जोडऩे वाला अमर शहीद पथ को लक्ष्य के मुताबिक सितंबर 2००4 में पूरा होना था, पर अभी तक पचास फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया है। सितंबर 2००1 में शुरू हुई इस परियोजना की लागत 185 करोड़ रूपये थी। आज इसकी लागत कितनी बढ़ गयी है। यह बताने को कोई तैयार नहीं है। इस परियोजना के तहत आने वाले रेलवे उपरिगामी सेतु अभी एक भी पूरे नहीं क्योंकि ये पुल रेलवे को ही बनाने हैं। तीन साल में पूरी होने वाली इस परियोजना का अभी तक महज 63 फीसदी काम पूरा हो पाया है। वह भी तब, जब कोई आर्थिक संकट नहीं है। फैजाबाद रोड पर पॉलीटेक्रिक के पास उपरिगामी सेतु का निर्माण मई ०2 में शुरू हुआ था। ठीक दो साल बाद नवंबर ०4 में इसे पूरा होना था। लेकिन आज तक महज 44 फीसदी काम पूरा हो पाया है। जबकि 2० अक्टूबर 2००2 को 24 करोड़ की लागत से लोकार्पित सदर और मवैया में बनने वाले सेतुओं का निर्माण भी अधर में है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य की बिजली समस्या से निजात पाने के लिए कूड़े से बिजली बनाने की 88 करोड़ की लागत वाली परियोजना की शुरूआत लखनऊ से करने का सपना अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों को दिखाया था। एशिया बायो एनर्जी लिमिटेड ने यह परियोजना उनके प्रधानमंत्री रहते पूरी भी कर दी थी। जो डेढ़ मेगावाट बिजली भी बना रही थी। जबकि पांच मेगावाट बिजली बननी थी। जिसे पावर कारपोरेशन को 3.49 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से बेचा जा रहा था। बरावन खुर्द दुबग्गा में बिजली बनाने के लिए लगाये गये इस प्लांट में 2० दिसंबर 2००4 से ताला लटक रहा है। परियोजना का कामकाज देख रहे सूत्रों के मुताबिक, ‘‘नगर निगम से जमीन, जैविक और अजैविक कूड़ा देने के लिए कंपनी का समझौता हुआ था। बदले में कंपनी द्वारा नगर निगम को 6० लाख रूपये प्रति वर्ष देने की बात कही गई थी।’’ कहा जाता है कि इस परियोजना की बंदी की बड़ी वजह नगर-निगम द्वारा आवश्यक मात्रा में कूड़ा आपूर्ति न कर पाना रहा है। नगर-निगम द्वारा 6०० टन कूड़े की जगह 3०० टन कूड़ा ही दिया गया। उसमें भी जैविक विघटनीय कूड़े की छंटाई में दिक्कतें आनी लगीं। हालांकि अब नगर-निगम के लोग और नगर विकास के अफसर इसका ठीकरा परियोजना स्थापित करने वाली एजेंसी पर फोड़ते हुये उप श्रमायुक्त कार्यालय द्वारा कंपनी के प्रबंध निदेशक को चेन्नई में नोटिस भिजवाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ले रहे हैं। भारत सरकार के पैसे से शुरू होने वाली इस परियोजना का उद्ïघाटन अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 नवंबर 1998 को किया था। वर्तमान में कूड़े से बिजली बनाने की परियोजना के समीप ही कांशीराम आवास योजना का पत्थर लग चुका है। जिस पर काम भी जारी है।
अपने संसदीय क्षेत्र के अत्यंत गंभीर मरीजों को एक ही छत के नीचे सारी जांच सुविधायें उपल_x008e_ध कराने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने किंग जार्ज चिकित्सा विवि से जुड़े एक ट्रामा सेंटर की भी सौगात दी थी। पूरी तौर पर राज्य सरकार की मदद से बनने वाली इस योजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री रहते हुये 12 जनवरी 1999 को खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। 16.6० करोड़ रूपए की लागत से बनने वाली इस परियोजना में पांच आपरेशन थिएटर, 5०० बेड की क्षमता वाले बड़े वार्ड के साथ ही 2० एम्बुलेंस वाहन क्रय किए जाने थे। इस परियोजना के शिलान्यास के बाद से राज्य में पांच मुख्यमंत्री आये,-गये। लेकिन करोड़ों लोगों को सीधा लाभ पहुंचाने वाला प्रधानमंत्री का यह सपना पांच बरस बाद भी अधूरा है। तीन फेज की इस परियोजना का केवल एक फेज ही अभी तक पूरा हो पाया है। हालांकि इस एक फेज के तहत आने वाली चिकित्सीय सुविधायें जनता को मुहैया कराने की शुरूआत कर दी गयी है। पर धनाभाव के कारण बाकी दोनों फेज के काम जस के तस पड़े हैं। 16.61 करोड़ रूपये की लागत वाली इस परियोजना को फरवरी 2००3 में पूरा हो जाना था। राजकीय निर्माण निगम के परियोजना प्रबंधक के मुताबिक, ‘‘इस परियोजना के लिए फंड की कमी शुरू से बाधा बनी हुई है। तकरीबन सात करोड़ रूपये मिले हैं। जिससे ए _x008e_लाक में भूतल और प्रथम तल का काम पूरा हो पाया है। दूसरे तल की छत तो पड़ी है पर फिनिशिंग का काम बाकी है। बी _x008e_लाक की नींव पड़ चुकी है। पैसा नहीं है इसलिये काम ठप है।’’ 25 दिसंबर 1999 को लखनऊ के मेडिकल कालेज में मरीजों के घरवालों के ठहरने के लिए एक रैन बसेरा का लोकार्पण किया। पर बाद में रैन बसेरा से शिलान्यास का पत्थर भी हटा दिया गया। उसकी जगह पावर कारपोरेशन का स्पाट बिल्डिंग सेंटर बना दिया गया। खास बात यह है कि यह काम बसपा-भाजपा गठबंधन सरकार के समय हुआ। इस मुद्दे को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अमित पुरी ने रैन बसेरा की पुन: स्वरूप वापसी के लिए प्रदर्शन किया। अमित पुरी ने कहा, ‘‘जब अटल जी की लोकार्पित योजनाओं को उनके निर्वाचन क्षेत्र में ही समाप्त कर दिया जाए तो बाकी का अंदाजा लगाया जा सकता है।’’
लखनऊ में अपने भाषणों के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी गोमती को लखनऊ की जीवन रेखा बताते नहीं थकते थे। वह कहते थे, ‘‘गोमती मरी तो शहर मर जायेगा।’’ इसीलिये उन्होंने गोमती नदी को प्रदूषण मुक्त करने के साथ ही साथ उसके घाटों के सुंदरीकरण के लिये रिवर फ्रंट योजना शुरू की थी। पर अटल बिहारी वाजपेयी की यह पहल आज तक पूरी तरह परवान नहीं चढ़ पायी है। 32.5० करोड़ रूपये की योजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री बिहारी वाजपेयी ने 21 मई 2००3 को किया था। रिवर फं्रट के नाम से लोकार्पित इस परियोजना के तहत पक्का पुल से कला कोठी तक गोमती तट की सज्जा करना था। इसके लिये आनन-फानन में दस करोड़ रूपये भी जारी हो गये। गोमती तट विकास परियोजना के तहत सूरज कुंड और कुडिय़ाघाट का निर्माण लविप्रा की ओर से कराया जाना था। प्राधिकरण ने काम शुरू कराया तो पुरातत्व विभाग ने आप_x009e_िा दर्ज कराते हुये सौन्दर्यीकरण की इस योजना के गौरव कुंज हिस्से का काम यह कहकर रोक दिया गया, ‘‘राष्ट्रीय स्तर की संरक्षित स्मारक रेजीडेंसी की चहार दीवारी से 25 मीटर दूरी पर निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’ हालांकि बाद में ‘पता नहीं किन’ आधार पर पुरातत्व विभाग ने अनाप_x009e_िा प्रमाण-पत्र भी जारी किया। पर आज हाल यह है कि गोमती किनारे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग गौरव कुंज विकास योजना के शिलालेख वाली दीवार के पीछे अपनी दैनिक क्रियाएं निपटाते हैं, वहीं शिलालेख के सामने बांस की लकडिय़ों से मोढ़े बनाने वाले लगभग एक दर्जन परिवार, कुछ दूरी पर देशी शराब की एक दुकान व कुछ झोपडिय़ां भी नजर आती हैं। सूरज कुंड पार्क के विपरीत गौरव कुंज नाम की गोमती तट विकास योजना के फेज-2 में डालीगंज से छतर मंजिल तक सुन्दरीकरण प्रस्तावित था। वहीं कला कोठी से पक्का पुल तक प्रस्तावित पहले फेज में कुडिय़ाघाट से कला कोठी तक पक्के घाट का निर्माण व सुंदरीकरण होना था लेकिन कला कोठी मंदिर के पास गोमती के सीने में इस योजना में के बंद हो जाने के बाद से लोहे की सरिया, एंगल, सीमेन्ट, मौरंग दफन है। 32 करोड़ रूपये के कुल बजट में से 1० करोड़ रूपया जारी भी कर दिया गया। यह पैसा आवास विकास परिषद, एलडीए और नगर निगम के हिस्से की अवस्थापना निधि से लिया गया था। इसके अलावा पक्के पुल से कला कोठी के बीच गोमती किनारे की खूबसूरती और सुन्दरीकरण के लिए 5० लाख रूपये की राशि राज्य सरकार की ओर से दी गयी थी। इस परियोजना की डिजाइन लैंड स्केप डिजाइनर एम. शहीर ने तैयार की थी। इस योजना के पहले चरण में कलाकोठी से पक्का पुल तक काम होना था इसमें लैंड स्केपिंग, हरित क्षेत्र, पक्के घाट, प्लेटफार्म और सीढिय़ां आदि बनाये जाने थे। इस काम पर पांच करोड़ रूपये लगने थे। दूसरे चरण में डालीगंज में छतरमंजिल के बीच 11०० मीटर लंबे तट का विकास ‘थीम पार्क’ के रूप में किया जाना था। यहां प्राचीन काल से अब तक का ज्योतिष, कला, शिक्षा, विज्ञान, अध्यात्मक, संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम, पर्यावरण और साहित्य आदि के वर्णन से जुड़ी थीम को विकसित किया जाना था। देश की महान विभूतियों के महत्वपूर्ण कार्यों से जुड़े शिलालेख और मूर्तियां आदि भी लगायी जानीं थीं। अटल बिहारी वाजपेयी के सांसद प्रतिनिधि लालजी टंडन का कहना है, ‘‘थीम पार्क के नाम पर बनाये जा रहे संस्कृति पार्क में ज्योतिष पर ईसा से 3००० साल पहले लिखी गयी लगध ऋषि की किताब, आर्यभट्ïट की गणित की पंरपरा के साथ दर्शकों को यह बताने की कोशिश हो रही थी कि भारत इतना समृद्घ और महान क्यों है। पर यह भी सरकार को रास नहीं आया।’’
गोमती नदी को प्रदूषण से बचाने के लिये आरंभ में 24.12 करोड़ रूपये की परियोजना तैयार की गयी थी। पर प्रस्ताव जब केंद्र सरकार के पास पहुंचा तो तमाम आप_x009e_िायां चस्पा कर दी गयीं। इसके बाद लागत घटाकर 17 करोड़ रूपये कर दी गयी। इसके तहत गोमती नदी की ड्रेजिंग और डिसिल्टिंग का काम होना था। इसमें दस फीसदी यानी 24० लाख रूपये ही राज्य सरकार को देना था। इनमें तीनों विभागों की 8०-8० लाख रूपये की देनदारी तय की गयी थी। आवास एवं नगर विकास विभाग ने पैसे भी दे दिये थे। पर जलनिगम ने लाख कहने के बाद भी मदद नहीं की। करीब पांच किलोमीटर नदी केंद्र सरकार से मिली धनराशि से साफ करायी गयी। कुल सवा लाख घन मीटर कचरा भी निकाला गया। पर धनाभाव के कारण ठप पड़ी परियोजना में निकाला गया कचरा बरसात में बहकर फिर गोमती में समा गया। परियोजना को पूरा होता न देख इस काम को अंजाम देने के लिये आयी कोलकाता की कंपनी ने लखनऊ से चला जाना बेहतर समझा। महापौर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘‘सरकार ने गोमती सफाई अभियान ही बदल दिया। गौरतलब है कि दौलतगंज में 42 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान स्थापित करने की भी योजना थी, जिस पर पचास करोड़ रूपये खर्च होने थे। 2००7 में पूरी होने वाली इस परियोजन का काम तो शुरू हो गया। पर पांच नालों का पानी यह परियोजना शोधित आज भी नहीं कर पा रही है और इसके दूसरे चरण के लिये जरूरी 29 करोड़ रूपये अभी भी नहीं मिले हैं। नदी में नालों का गंदा पानी गिरने से रोकने के लिए 315 करोड़ और इसके सौन्दर्यीकरण के वास्ते 32 करोड़ से अधिक की योजनाओं को हरी झंडी दी गयी। जल निगम के एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘अटल जी प्रधानमंत्री थे तो गोमती में गिरने वाले 26 बड़े पालों को रोकने के लिए गोमती एक्शन प्लान फेज-1 के तहत 24 करोड़ और फेज-दो के तहत 29०.37 करोड़ की परियोजनाअेां की मंजूरी दी गयी। दोनों ही परियोजनाओं में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की जानी थी। इनमें 75 फीसदी धनराशि केंद्र तथा 25 फीसदी राज्य सरकार को लगानी थी। शिलान्यास के बाद इस योजना के मद से करीब 28 करोड़ रूपये जल निगम को दिये गये थे, ताकि आगे का काम शुरू हो सके लेकिन निगम ने यह धनराशि कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर दी। ऐसे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम ठप होना ही था। यही नहीं, दौलतगंज का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार होकर भी बेकार ही है। क्योंकि यह भी नालों का गंदा पानी पूरी तरह रोक पाने में सक्षम नहीं है। दरअसल, दौलतगंज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़े चार नालों से निकलने वाले पानी का आकलन 42 एमएलडी करते हुए इसका निर्माण कराया गया, जबकि इन नालों से इस समय करीब सौ एमएलडी गंदा पानी आ रहा है। ऐसे में इन चार सालों का शेष गंदा पानी अभी भी गोमती में गिर रहा है। महापौर दिनेश शर्मा के मुताबिक, ‘‘तीसरा और चौथा वाटर वक्र्स बड़ी मशक्कत के बाद जेएनयूआरएमएम योजना के तहत पास कराया जा सका है।’’ अपने शहर वासियों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए तीसरे और चौथे वाटर वक्र्स का शिलान्यास भी कठौता झील के आसपास किया था। दो पंपिंग स्टेशन को भी अपडेट करना था। 14० करोड़ की इस योजना में शारदा नदी से पानी लाकर गोमती नदी में डाला जाना था।
1० जून 1999 को प्रधानमंत्री ने अपनी सांसद निधि से लखनऊ के दो सौ पार्कों के सुंदरीकरण कार्यक्रम का शिलान्यास किया। इन पार्कों के सुंदरीकरण का दायित्व नगर निगम, एलडीए व आवास विकास परिषद के कंधों पर था। बीते चार सालों में इन सरकारी महकमों ने अपने हिस्से की आधी पार्कों का सुंदरीकरण कराना गंवारा नहीं समझा। उनके दावों के बावजूद जो पार्क विकसित भी हुए उनमें से अधिकांश समुचित देख-रेख के अभाव में अब पुन: बदहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं।
25 नवंबर 1999 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधानी में 33/11 केवी के दस उपकेन्द्रों के निर्माण का शिलान्यास किया जिस पर चालीस करोड़ रूपये का खर्चा अनुमानित था। इन सभी उपकेन्द्रों का निर्माण कार्य 31 जुलाई 2००2 तक पूरा हो जाना चाहिए था। बिजली विभाग की निष्क्रियता के चलते प्रधानमंत्री नवंबर 2००2 के अपने दौरे में महज छह उपकेन्द्रों भीखमपुर, निरालानगर, राजाजीपुरम, इक्का स्टैण्ड डालीगंज, नादान महल रोड, चन्दर नगर व चौपटियां का ही लोकार्पण कर सके। 25 नवंबर 1999 को शुरू हुये मार्टिनपुरवा में 132 केवी के पारेषण उपकेंद्र की स्थिति यह रही कि इसके लिये जरूरी तकरीबन चार करोड़ रूपये विश्व बैंक ने मुहैया भी करा दिये थे। कुल दस करोड़ की लागत वाली इस परियोजना की धीमी प्रगति के चलते विश्व बैंक ने इससे अपने हाथ खींच लिये। अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिस साफ्टवेयर टेक्रोलॉजी पार्क की नींव रखी गयी थी। वह तैयार नहीं हो पाया बल्कि प्रमोटर कंपनी बीच में ही काम छोडक़र भाग गयी। 27 जून 2००2 को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गयी परिक्रमा रेल सेवा भी अटल के अरमान पूरे नहीं कर सकी। अक्टूबर 2००2 के अपने दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने दिल्ली की तर्ज पर राजधानी लखनऊ में रूमी दरवाजे के निकट लाजपत नगर में 97 हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में अवध हाट के निर्माण का शिलान्यास किया। दो करोड़ की लागत से तैयार होने वाले अवध हाट का कार्य का कार्य भी अभी तक शुरू नहीं हो सका है। इस जमीन को मुलायम सरकार ने एक अल्पसंख्यक संस्थान के लिए आवंटित कर दिया। नगर महापौर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘‘मुलायम सिंह यादव इसे रामपुर लेकर चले गये थे। हमने अवध हाट के लिये धनराशि भी अवमुक्त कर दी है और गोमतीनगर में जमीन भी मुहैया करा दी है।’’ दिनेश शर्मा के मुताबिक, ‘‘मृत पशुओं के शव निस्तारण के लिये भी अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संसदीय क्षेत्र में कार्कश प्लांट लगाने की योजना को भी मंजूरी दी थी। पर मुलायम सिंह यादव के कबीना मंत्री इस योजना को रामपुर लेकर चले गये। हालांकि नगर-निगम ने हैदराबाद की एक संस्था को यह प्लांट लगाने के लिये अब फिर से अनुबंधित कर लिया है। यही नहीं लखनऊ से कानपुर को जोडऩे वाले छह लेन का हाईवे भी आज तक पूरा नहीं हो पाया है।’’ केंद्रीय वि_x009e_ा मंत्री पी. चिदंबरम के बजट में जहां रायबरेली में जश्र का माहौल है वहीं लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नाम पर चल रही दर्जन पर योजनाएं जो पहले से ही अधर में लटकी थीं अब ठप होने की स्थिति में आ गई हैं। लालजी टंडन बताते हैं, ‘‘सरकार की इच्छाशक्ति इन योजनाओं को पूरा करने की नहीं है। पिछली राज्य सरकार के केंद्र से इतने खराब रिश्ते थे कि उसने इन योजनाओं के बावत बात करना उचित नहीं समझा। वर्तमान सरकार ने भी अपने रिश्ते कुछ उससे भी खराब कर लिये हैं। दूसरे माया सरकार की रूचि इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में नहीं है। वह तो कुछ विशेष लोगों के नाम पर विशेष योजना चलाकर थैली भरना चाहती है।’’
-योगेश मिश्र
तमाम सरकारी योजनाओं को फाइलों में दम तोड़ते और जमीन पर पूरी तरह न उतर पाने के किस्से आपने जरूर सुने होंगे। नेताओं की घोषणाओं के अमली जामा नहीं पहन पाने की भी कई मिसालें आपके आसपास से जरूर गुजरी होंगी। पर देश के प्रधानमंत्री की योजनाओं पर पानी फेर देने के कम ही उदाहरण आपके सामने होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में इस तरह की तमाम मिसालें चारों ओर पसरी पड़ी हैं। प्रधानमंत्री रहते हुये उनके द्वारा लोकार्पित और घोषित योजनाएं भरपूर पैसों के आवंटन हो जाने के बाद भी पूरी नही हो सकीं। यही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुये बड़े मन से देश की 163 योजनाओं का प्राथमिक एजेंडा तैयार किया था। पर योजना आयोग ने अब उन एजेंडों को कूड़ेदान में डालने का फैसला किया है।
‘आउटलुक’ साप्ताहिक की टीम ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में उनके द्वारा लोकार्पित और शिलान्यास की हुई योजनाओं का हाल जानने की पहल की। हमारी तहकीकात बताती है कि तकरीबन 17 करोड़ की लागत से अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में एक नया रेल टर्मिनल बनाने का जो सपना देखा था। उसे पूरा करने की दिशा में लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा जमीन अधिग्रहण के सिवाय कुछ नहीं हो पाया। गोमतीनगर स्टेशन के एक छोर पर बनने वाले इस टर्मिनल की खाली पड़ी जमीन पर प्राइवेट बिल्डर्स ने अपनी गिट्ïटी और मौरंग सजा रखी है। तो दूसरे छोर पर आसपास स्थित कर्मचारी आवासों की तरफ से गाय-भैंसों के तबेले बना दिये गये हैं। कुछ श्रद्घालुओं ने मिलकर खाली पड़ी जमीन पर एक मंदिर भी तामीर करा दिया है। जहां सप्ताहांत पूजा-पाठ व बड़ा प्रवचन होने लगा है। सांसद प्रतिनधि लालजी टंडन बताते हैं, ‘‘इस योजना के लिये सारा सामान आ गया था। लालू प्रसाद यादव ने योजना ही खत्म कर दी।’’
वाजपेयी ने सांसद निधि के सहारे मेडिकल कालेज के पास एक ऐसा साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर बनाने की पहल की थी। जहां बड़ा से बड़ा सेमिनार अथवा कांफ्रेंस कराया जा सके। कन्वेंशन सेंटर में 14००, 4०० और 2०० सीटों वाले ऑडीटोरियम का निर्माण होना था। 22 अगस्त 2००1 को इसका शिलान्यास करते समय इसकी लागत 15 करोड़ रूपये थी जो बढक़र अब 34 करोड़ रूपये हो गयी है। भाजपा के तकरीबन एक दर्जन सांसदों के पैसे से इस कन्वेंशन सेंटर का सिर्फ एक हिस्सा बड़ी मशक्कत के बाद मार्च 2००4 में पूरा हो सका है। इसी हिस्से के आधार पर इस सेंटर का उद्ïघाटन हो गया है। पर इसका दूसरा हिस्सा आज भी पूरा होने की बाट जोह रहा है। लालजी टंडन के मुताबिक, ‘‘अब इसके रखरखाव के लिये शादी _x008e_याह में किराये पर उठाकर पैसे का बंदोबस्त किया जा रहा है।’’
लखनऊ में बढ़ते यातायात के दबाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में नई रिंग रोड की परिकल्पना की गयी थी। फरवरी 2००2 में आरंभ की गयी इस योजना के लिये जरूरी 51.24 करोड़ रूपये मंजूर भी कर दिये गये। सीतापुर रोड से फैजाबाद रोड तक को फोर लेन के मार्फत सर्विस लेन सहित जोडऩे वाली यह परियोजना 18 करोड़ रूपये खर्च होने के बाद अधर में लटकी हुई है। इस परियोजना के तहत आने वाले ओवरब्रिजों में से एक अभी भी अधूरा है। इसी तरह कानपुर रोड को रायबरेली, सुल्तानपुर मार्ग से होकर फैजाबाद मार्ग को जोडऩे वाला अमर शहीद पथ को लक्ष्य के मुताबिक सितंबर 2००4 में पूरा होना था, पर अभी तक पचास फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया है। सितंबर 2००1 में शुरू हुई इस परियोजना की लागत 185 करोड़ रूपये थी। आज इसकी लागत कितनी बढ़ गयी है। यह बताने को कोई तैयार नहीं है। इस परियोजना के तहत आने वाले रेलवे उपरिगामी सेतु अभी एक भी पूरे नहीं क्योंकि ये पुल रेलवे को ही बनाने हैं। तीन साल में पूरी होने वाली इस परियोजना का अभी तक महज 63 फीसदी काम पूरा हो पाया है। वह भी तब, जब कोई आर्थिक संकट नहीं है। फैजाबाद रोड पर पॉलीटेक्रिक के पास उपरिगामी सेतु का निर्माण मई ०2 में शुरू हुआ था। ठीक दो साल बाद नवंबर ०4 में इसे पूरा होना था। लेकिन आज तक महज 44 फीसदी काम पूरा हो पाया है। जबकि 2० अक्टूबर 2००2 को 24 करोड़ की लागत से लोकार्पित सदर और मवैया में बनने वाले सेतुओं का निर्माण भी अधर में है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य की बिजली समस्या से निजात पाने के लिए कूड़े से बिजली बनाने की 88 करोड़ की लागत वाली परियोजना की शुरूआत लखनऊ से करने का सपना अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों को दिखाया था। एशिया बायो एनर्जी लिमिटेड ने यह परियोजना उनके प्रधानमंत्री रहते पूरी भी कर दी थी। जो डेढ़ मेगावाट बिजली भी बना रही थी। जबकि पांच मेगावाट बिजली बननी थी। जिसे पावर कारपोरेशन को 3.49 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से बेचा जा रहा था। बरावन खुर्द दुबग्गा में बिजली बनाने के लिए लगाये गये इस प्लांट में 2० दिसंबर 2००4 से ताला लटक रहा है। परियोजना का कामकाज देख रहे सूत्रों के मुताबिक, ‘‘नगर निगम से जमीन, जैविक और अजैविक कूड़ा देने के लिए कंपनी का समझौता हुआ था। बदले में कंपनी द्वारा नगर निगम को 6० लाख रूपये प्रति वर्ष देने की बात कही गई थी।’’ कहा जाता है कि इस परियोजना की बंदी की बड़ी वजह नगर-निगम द्वारा आवश्यक मात्रा में कूड़ा आपूर्ति न कर पाना रहा है। नगर-निगम द्वारा 6०० टन कूड़े की जगह 3०० टन कूड़ा ही दिया गया। उसमें भी जैविक विघटनीय कूड़े की छंटाई में दिक्कतें आनी लगीं। हालांकि अब नगर-निगम के लोग और नगर विकास के अफसर इसका ठीकरा परियोजना स्थापित करने वाली एजेंसी पर फोड़ते हुये उप श्रमायुक्त कार्यालय द्वारा कंपनी के प्रबंध निदेशक को चेन्नई में नोटिस भिजवाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ले रहे हैं। भारत सरकार के पैसे से शुरू होने वाली इस परियोजना का उद्ïघाटन अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 नवंबर 1998 को किया था। वर्तमान में कूड़े से बिजली बनाने की परियोजना के समीप ही कांशीराम आवास योजना का पत्थर लग चुका है। जिस पर काम भी जारी है।
अपने संसदीय क्षेत्र के अत्यंत गंभीर मरीजों को एक ही छत के नीचे सारी जांच सुविधायें उपल_x008e_ध कराने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने किंग जार्ज चिकित्सा विवि से जुड़े एक ट्रामा सेंटर की भी सौगात दी थी। पूरी तौर पर राज्य सरकार की मदद से बनने वाली इस योजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री रहते हुये 12 जनवरी 1999 को खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। 16.6० करोड़ रूपए की लागत से बनने वाली इस परियोजना में पांच आपरेशन थिएटर, 5०० बेड की क्षमता वाले बड़े वार्ड के साथ ही 2० एम्बुलेंस वाहन क्रय किए जाने थे। इस परियोजना के शिलान्यास के बाद से राज्य में पांच मुख्यमंत्री आये,-गये। लेकिन करोड़ों लोगों को सीधा लाभ पहुंचाने वाला प्रधानमंत्री का यह सपना पांच बरस बाद भी अधूरा है। तीन फेज की इस परियोजना का केवल एक फेज ही अभी तक पूरा हो पाया है। हालांकि इस एक फेज के तहत आने वाली चिकित्सीय सुविधायें जनता को मुहैया कराने की शुरूआत कर दी गयी है। पर धनाभाव के कारण बाकी दोनों फेज के काम जस के तस पड़े हैं। 16.61 करोड़ रूपये की लागत वाली इस परियोजना को फरवरी 2००3 में पूरा हो जाना था। राजकीय निर्माण निगम के परियोजना प्रबंधक के मुताबिक, ‘‘इस परियोजना के लिए फंड की कमी शुरू से बाधा बनी हुई है। तकरीबन सात करोड़ रूपये मिले हैं। जिससे ए _x008e_लाक में भूतल और प्रथम तल का काम पूरा हो पाया है। दूसरे तल की छत तो पड़ी है पर फिनिशिंग का काम बाकी है। बी _x008e_लाक की नींव पड़ चुकी है। पैसा नहीं है इसलिये काम ठप है।’’ 25 दिसंबर 1999 को लखनऊ के मेडिकल कालेज में मरीजों के घरवालों के ठहरने के लिए एक रैन बसेरा का लोकार्पण किया। पर बाद में रैन बसेरा से शिलान्यास का पत्थर भी हटा दिया गया। उसकी जगह पावर कारपोरेशन का स्पाट बिल्डिंग सेंटर बना दिया गया। खास बात यह है कि यह काम बसपा-भाजपा गठबंधन सरकार के समय हुआ। इस मुद्दे को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अमित पुरी ने रैन बसेरा की पुन: स्वरूप वापसी के लिए प्रदर्शन किया। अमित पुरी ने कहा, ‘‘जब अटल जी की लोकार्पित योजनाओं को उनके निर्वाचन क्षेत्र में ही समाप्त कर दिया जाए तो बाकी का अंदाजा लगाया जा सकता है।’’
लखनऊ में अपने भाषणों के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी गोमती को लखनऊ की जीवन रेखा बताते नहीं थकते थे। वह कहते थे, ‘‘गोमती मरी तो शहर मर जायेगा।’’ इसीलिये उन्होंने गोमती नदी को प्रदूषण मुक्त करने के साथ ही साथ उसके घाटों के सुंदरीकरण के लिये रिवर फ्रंट योजना शुरू की थी। पर अटल बिहारी वाजपेयी की यह पहल आज तक पूरी तरह परवान नहीं चढ़ पायी है। 32.5० करोड़ रूपये की योजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री बिहारी वाजपेयी ने 21 मई 2००3 को किया था। रिवर फं्रट के नाम से लोकार्पित इस परियोजना के तहत पक्का पुल से कला कोठी तक गोमती तट की सज्जा करना था। इसके लिये आनन-फानन में दस करोड़ रूपये भी जारी हो गये। गोमती तट विकास परियोजना के तहत सूरज कुंड और कुडिय़ाघाट का निर्माण लविप्रा की ओर से कराया जाना था। प्राधिकरण ने काम शुरू कराया तो पुरातत्व विभाग ने आप_x009e_िा दर्ज कराते हुये सौन्दर्यीकरण की इस योजना के गौरव कुंज हिस्से का काम यह कहकर रोक दिया गया, ‘‘राष्ट्रीय स्तर की संरक्षित स्मारक रेजीडेंसी की चहार दीवारी से 25 मीटर दूरी पर निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’ हालांकि बाद में ‘पता नहीं किन’ आधार पर पुरातत्व विभाग ने अनाप_x009e_िा प्रमाण-पत्र भी जारी किया। पर आज हाल यह है कि गोमती किनारे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग गौरव कुंज विकास योजना के शिलालेख वाली दीवार के पीछे अपनी दैनिक क्रियाएं निपटाते हैं, वहीं शिलालेख के सामने बांस की लकडिय़ों से मोढ़े बनाने वाले लगभग एक दर्जन परिवार, कुछ दूरी पर देशी शराब की एक दुकान व कुछ झोपडिय़ां भी नजर आती हैं। सूरज कुंड पार्क के विपरीत गौरव कुंज नाम की गोमती तट विकास योजना के फेज-2 में डालीगंज से छतर मंजिल तक सुन्दरीकरण प्रस्तावित था। वहीं कला कोठी से पक्का पुल तक प्रस्तावित पहले फेज में कुडिय़ाघाट से कला कोठी तक पक्के घाट का निर्माण व सुंदरीकरण होना था लेकिन कला कोठी मंदिर के पास गोमती के सीने में इस योजना में के बंद हो जाने के बाद से लोहे की सरिया, एंगल, सीमेन्ट, मौरंग दफन है। 32 करोड़ रूपये के कुल बजट में से 1० करोड़ रूपया जारी भी कर दिया गया। यह पैसा आवास विकास परिषद, एलडीए और नगर निगम के हिस्से की अवस्थापना निधि से लिया गया था। इसके अलावा पक्के पुल से कला कोठी के बीच गोमती किनारे की खूबसूरती और सुन्दरीकरण के लिए 5० लाख रूपये की राशि राज्य सरकार की ओर से दी गयी थी। इस परियोजना की डिजाइन लैंड स्केप डिजाइनर एम. शहीर ने तैयार की थी। इस योजना के पहले चरण में कलाकोठी से पक्का पुल तक काम होना था इसमें लैंड स्केपिंग, हरित क्षेत्र, पक्के घाट, प्लेटफार्म और सीढिय़ां आदि बनाये जाने थे। इस काम पर पांच करोड़ रूपये लगने थे। दूसरे चरण में डालीगंज में छतरमंजिल के बीच 11०० मीटर लंबे तट का विकास ‘थीम पार्क’ के रूप में किया जाना था। यहां प्राचीन काल से अब तक का ज्योतिष, कला, शिक्षा, विज्ञान, अध्यात्मक, संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम, पर्यावरण और साहित्य आदि के वर्णन से जुड़ी थीम को विकसित किया जाना था। देश की महान विभूतियों के महत्वपूर्ण कार्यों से जुड़े शिलालेख और मूर्तियां आदि भी लगायी जानीं थीं। अटल बिहारी वाजपेयी के सांसद प्रतिनिधि लालजी टंडन का कहना है, ‘‘थीम पार्क के नाम पर बनाये जा रहे संस्कृति पार्क में ज्योतिष पर ईसा से 3००० साल पहले लिखी गयी लगध ऋषि की किताब, आर्यभट्ïट की गणित की पंरपरा के साथ दर्शकों को यह बताने की कोशिश हो रही थी कि भारत इतना समृद्घ और महान क्यों है। पर यह भी सरकार को रास नहीं आया।’’
गोमती नदी को प्रदूषण से बचाने के लिये आरंभ में 24.12 करोड़ रूपये की परियोजना तैयार की गयी थी। पर प्रस्ताव जब केंद्र सरकार के पास पहुंचा तो तमाम आप_x009e_िायां चस्पा कर दी गयीं। इसके बाद लागत घटाकर 17 करोड़ रूपये कर दी गयी। इसके तहत गोमती नदी की ड्रेजिंग और डिसिल्टिंग का काम होना था। इसमें दस फीसदी यानी 24० लाख रूपये ही राज्य सरकार को देना था। इनमें तीनों विभागों की 8०-8० लाख रूपये की देनदारी तय की गयी थी। आवास एवं नगर विकास विभाग ने पैसे भी दे दिये थे। पर जलनिगम ने लाख कहने के बाद भी मदद नहीं की। करीब पांच किलोमीटर नदी केंद्र सरकार से मिली धनराशि से साफ करायी गयी। कुल सवा लाख घन मीटर कचरा भी निकाला गया। पर धनाभाव के कारण ठप पड़ी परियोजना में निकाला गया कचरा बरसात में बहकर फिर गोमती में समा गया। परियोजना को पूरा होता न देख इस काम को अंजाम देने के लिये आयी कोलकाता की कंपनी ने लखनऊ से चला जाना बेहतर समझा। महापौर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘‘सरकार ने गोमती सफाई अभियान ही बदल दिया। गौरतलब है कि दौलतगंज में 42 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान स्थापित करने की भी योजना थी, जिस पर पचास करोड़ रूपये खर्च होने थे। 2००7 में पूरी होने वाली इस परियोजन का काम तो शुरू हो गया। पर पांच नालों का पानी यह परियोजना शोधित आज भी नहीं कर पा रही है और इसके दूसरे चरण के लिये जरूरी 29 करोड़ रूपये अभी भी नहीं मिले हैं। नदी में नालों का गंदा पानी गिरने से रोकने के लिए 315 करोड़ और इसके सौन्दर्यीकरण के वास्ते 32 करोड़ से अधिक की योजनाओं को हरी झंडी दी गयी। जल निगम के एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘अटल जी प्रधानमंत्री थे तो गोमती में गिरने वाले 26 बड़े पालों को रोकने के लिए गोमती एक्शन प्लान फेज-1 के तहत 24 करोड़ और फेज-दो के तहत 29०.37 करोड़ की परियोजनाअेां की मंजूरी दी गयी। दोनों ही परियोजनाओं में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की जानी थी। इनमें 75 फीसदी धनराशि केंद्र तथा 25 फीसदी राज्य सरकार को लगानी थी। शिलान्यास के बाद इस योजना के मद से करीब 28 करोड़ रूपये जल निगम को दिये गये थे, ताकि आगे का काम शुरू हो सके लेकिन निगम ने यह धनराशि कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर दी। ऐसे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम ठप होना ही था। यही नहीं, दौलतगंज का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार होकर भी बेकार ही है। क्योंकि यह भी नालों का गंदा पानी पूरी तरह रोक पाने में सक्षम नहीं है। दरअसल, दौलतगंज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़े चार नालों से निकलने वाले पानी का आकलन 42 एमएलडी करते हुए इसका निर्माण कराया गया, जबकि इन नालों से इस समय करीब सौ एमएलडी गंदा पानी आ रहा है। ऐसे में इन चार सालों का शेष गंदा पानी अभी भी गोमती में गिर रहा है। महापौर दिनेश शर्मा के मुताबिक, ‘‘तीसरा और चौथा वाटर वक्र्स बड़ी मशक्कत के बाद जेएनयूआरएमएम योजना के तहत पास कराया जा सका है।’’ अपने शहर वासियों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए तीसरे और चौथे वाटर वक्र्स का शिलान्यास भी कठौता झील के आसपास किया था। दो पंपिंग स्टेशन को भी अपडेट करना था। 14० करोड़ की इस योजना में शारदा नदी से पानी लाकर गोमती नदी में डाला जाना था।
1० जून 1999 को प्रधानमंत्री ने अपनी सांसद निधि से लखनऊ के दो सौ पार्कों के सुंदरीकरण कार्यक्रम का शिलान्यास किया। इन पार्कों के सुंदरीकरण का दायित्व नगर निगम, एलडीए व आवास विकास परिषद के कंधों पर था। बीते चार सालों में इन सरकारी महकमों ने अपने हिस्से की आधी पार्कों का सुंदरीकरण कराना गंवारा नहीं समझा। उनके दावों के बावजूद जो पार्क विकसित भी हुए उनमें से अधिकांश समुचित देख-रेख के अभाव में अब पुन: बदहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं।
25 नवंबर 1999 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधानी में 33/11 केवी के दस उपकेन्द्रों के निर्माण का शिलान्यास किया जिस पर चालीस करोड़ रूपये का खर्चा अनुमानित था। इन सभी उपकेन्द्रों का निर्माण कार्य 31 जुलाई 2००2 तक पूरा हो जाना चाहिए था। बिजली विभाग की निष्क्रियता के चलते प्रधानमंत्री नवंबर 2००2 के अपने दौरे में महज छह उपकेन्द्रों भीखमपुर, निरालानगर, राजाजीपुरम, इक्का स्टैण्ड डालीगंज, नादान महल रोड, चन्दर नगर व चौपटियां का ही लोकार्पण कर सके। 25 नवंबर 1999 को शुरू हुये मार्टिनपुरवा में 132 केवी के पारेषण उपकेंद्र की स्थिति यह रही कि इसके लिये जरूरी तकरीबन चार करोड़ रूपये विश्व बैंक ने मुहैया भी करा दिये थे। कुल दस करोड़ की लागत वाली इस परियोजना की धीमी प्रगति के चलते विश्व बैंक ने इससे अपने हाथ खींच लिये। अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिस साफ्टवेयर टेक्रोलॉजी पार्क की नींव रखी गयी थी। वह तैयार नहीं हो पाया बल्कि प्रमोटर कंपनी बीच में ही काम छोडक़र भाग गयी। 27 जून 2००2 को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गयी परिक्रमा रेल सेवा भी अटल के अरमान पूरे नहीं कर सकी। अक्टूबर 2००2 के अपने दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने दिल्ली की तर्ज पर राजधानी लखनऊ में रूमी दरवाजे के निकट लाजपत नगर में 97 हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में अवध हाट के निर्माण का शिलान्यास किया। दो करोड़ की लागत से तैयार होने वाले अवध हाट का कार्य का कार्य भी अभी तक शुरू नहीं हो सका है। इस जमीन को मुलायम सरकार ने एक अल्पसंख्यक संस्थान के लिए आवंटित कर दिया। नगर महापौर दिनेश शर्मा कहते हैं, ‘‘मुलायम सिंह यादव इसे रामपुर लेकर चले गये थे। हमने अवध हाट के लिये धनराशि भी अवमुक्त कर दी है और गोमतीनगर में जमीन भी मुहैया करा दी है।’’ दिनेश शर्मा के मुताबिक, ‘‘मृत पशुओं के शव निस्तारण के लिये भी अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संसदीय क्षेत्र में कार्कश प्लांट लगाने की योजना को भी मंजूरी दी थी। पर मुलायम सिंह यादव के कबीना मंत्री इस योजना को रामपुर लेकर चले गये। हालांकि नगर-निगम ने हैदराबाद की एक संस्था को यह प्लांट लगाने के लिये अब फिर से अनुबंधित कर लिया है। यही नहीं लखनऊ से कानपुर को जोडऩे वाले छह लेन का हाईवे भी आज तक पूरा नहीं हो पाया है।’’ केंद्रीय वि_x009e_ा मंत्री पी. चिदंबरम के बजट में जहां रायबरेली में जश्र का माहौल है वहीं लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नाम पर चल रही दर्जन पर योजनाएं जो पहले से ही अधर में लटकी थीं अब ठप होने की स्थिति में आ गई हैं। लालजी टंडन बताते हैं, ‘‘सरकार की इच्छाशक्ति इन योजनाओं को पूरा करने की नहीं है। पिछली राज्य सरकार के केंद्र से इतने खराब रिश्ते थे कि उसने इन योजनाओं के बावत बात करना उचित नहीं समझा। वर्तमान सरकार ने भी अपने रिश्ते कुछ उससे भी खराब कर लिये हैं। दूसरे माया सरकार की रूचि इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में नहीं है। वह तो कुछ विशेष लोगों के नाम पर विशेष योजना चलाकर थैली भरना चाहती है।’’
-योगेश मिश्र
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