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कुलपतियों के फेर में कुलाधिपति

Dr. Yogesh mishr
Published on: 2 Feb 2008 5:55 PM IST
दिनांक: 24.2.2००8
यूं तो प्रदेश के राज्यपाल और विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति ने उम्र का बड़ा हिस्सा उस खुफिया अफसर के बतौर पूरा किया, जो उलझी हुई घटनाओं के तार आसानी से सुलझा लेता था लेकिन ऐसा लगता है कि मौजूदा भूमिका में उनका यह हुनर थक सा गया है। यही वजह है कि वे साक्षात्कारों के कई दौर के बावजूद अभी तक राज्य के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति पद पर किसी को नियुक्त नहीं कर पाए हैं। इस देरी की एक और वजह है कि ठोंक बजाकर पूर्व में नियुक्त किये गये तकरीबन एक दर्जन कुलपतियों के भ्रष्टïाचार में लिप्त होने और बर्खास्त होने के बाद खुद महामहिम का ‘काफिंडेन्स’ भी डोल गया है। उनकी चयन प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगे हैं। इन्होंने कई कुलपति न केवल सरहद से बाहर के चुने बल्कि साक्षात्कार लेने की नई परिपाटी भी डाली। नतीजतन, दूध के जले की तरह वे अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं।

कुलाधिपति टीवी राजेश्वर द्वारा नियुक्त कुलपतियों के भ्रष्टïाचार की कहानी को बयां करने के लिए तो कई पोथी भी कम पड़ जाएगी। पर हम कुछ कुलपतियों के कारनामों पर नजर डालने की कोशिश कर रहे हैं जिन्हें महामहिम की कलम से कुलपति की नौकरी नसीब हुई। उन्हीं की कलम से मंडलायुक्तों की जांच के बाद बर्खास्तगी की मार झेलनी पड़ी। मेरठ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में आचार्य प्रो. अरूण कुमार वरिष्ठï कांग्रेसी नेत्री श्रीमती विमला के पुत्र है और उनकी मां की राजभवन तक पहुंच ने उन्हें 18 नवम्बर, 2००4 को गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति की कुर्सी तो दिला दी लेकिन वे इस गद्ïदी को संभाल न सके। आते ही वे बीएड परीक्षा घोटाले में जा फंसे। जो ओएमआर सीट 2००4 में तीन रुपये में खरीदी गयी थी, 2००5 में 13 रुपये में खरीदी गयी। प्रश्रपत्रों की छपाई में 11 लाख का अंतर आ गया। कोटे से हुई भर्तियों में भी गड़बड़ी हुई। जमकर धन उगाही हुई। मामला कोर्ट में जा पहुंचा जहां सीट से अधिक प्रवेश को अवैध करार दिया गया। जब 19 जून को रोटेशन के नाम पर कुलपति ने अचानक 2० विभागों के अध्यक्षों को बदलने का फरमान जारी कर दिया तो हाईकोर्ट ने उन्हें कड़ी

फटकार लगाते हुए इसे कुलपति पद की गरिमा के विरूद्ध बताया। रोटेशन पर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, ‘‘कुलपति का कार्य गरिमा के अनुरूप नहीं है।’’ नियुक्ति मामले में भी कुलपति की जमकर किरकिरी हुई। हाई कोर्ट को प्रवक्ता, उपाचार्य व आचार्य पदों की भर्ती में हस्तक्षेप करना पड़ा। रोक के बाद भी चयन प्रक्रिया जारी रही। राष्टï्रगौरव प्रश्न पत्र की एक लाख कापियां महज दो दिन में जंच गयीं। चहेती शिक्षिका को 24 परीक्षाओं में परीक्षक की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दे दी गयी। फिजूलखर्ची के चलते विश्वविद्यालय 9 करोड़ के ओवरड्राफ्ट में जा पहुंचा। एक मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कुलपति प्रो. अरूण कुमार को दो माह की सजा भी सुनायी। हालांकि बाद में उन्हें स्टे मिल गया लेकिन मंडलायुक्त राजीव कुमार की जांच रिपोर्ट के आधार पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. चितरंजन मिश्र के मुताबिक,‘‘ अराजक, निरंकुश और स्वेच्छाचारी कुलपति को काफी पहले कार्यमुक्त कर दिया जाना चाहिए था।’’

जिस चौ. चरण सिंह विवि, मेरठ से अरूण कुमार आए थे, उसके कुलपति के कारनामे भी कम चौंकाऊ नहीं हैं। कुलपति प्रो. रामपाल सिंह का नाम भी प्रशासनिक अनियमितता और वि_x009e_ाीय गड़बडिय़ों में उछला। इनके खिलाफ तत्कालीन प्रमुख सचिव कृषि जीबी पटनायक ने जाँच की थी। जाँच में तकरीबन 18 करोड़ रूपए के निर्माण कार्यों में आर्थिक अनियमितता का इन्हें दोषी पाया गया था। वरिष्ठï नौकरशाह जीबी पटनायक द्वारा की गयी जाँच के नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। राज्य के अच्छे अफसरों में शुमार होने वाले यही पटनायक इन दिनों महामहिम के प्रमुख सचिव हैं। इस विश्वविद्यालय द्वारा दूरस्थ शिक्षा के मामले में की गयी अनियमितताओं और डिग्रियों को ऐन केन प्रकारेण थमाए जाने खुद महामहिम ने भी तल्ख टिपप्णी की थी। आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ए एस कुकला पहले वि_x009e_ाीय अनियमितताओं में कार्य विरत किये गये पर जब उनकी बहाली हुई तो उनके ठेकेदार साथियों ने हवाई फायरिंग करके उनकी वापसी का जश्र मनाया था। बाद में वे अपने ही एक कर्मचारी की हत्या के आरोप में इस कदर फंसे कि इनकी जांच करने वाले आयुक्त डा. अशोक कुमार ने ब्रोशर छापने में गड़बडिय़ों, फार्मेसी और बी एड की भर्तियों और परीक्षाओं में मनमानी करने के साथ ही साथ अंकों में हेराफेरी और हिंदी के गलत प्रश्रपत्र तैयार करने के मामले में दोषी पाया। नतीजतन उन्हें बर्खास्त करना पड़ा।

रुहेलखंड विश्वविद्यालय में वि_x009e_ा अधिकारी रहे रवि शंकर पाण्डेय ने अपने कुलपति द्वारा की गयी अवैध नियुक्तियों और वि_x009e_ाीय अनियमितताओं की खुद शिकायत की थी। कुलपति प्रो. ओम प्रकाश यादव ने आईईटी में वेतनमान के आधार पर नियुक्तियां संभव न होने के बाद भी तीन प्रवक्ताओं को कैरियर एडवांस स्कीम के तहत प्रोन्नति प्रदान कर दी। उन पर अपने साढू के बेटे की हत्या का आरोप भी चस्पा है। अवैध नियुक्तियों और अनाप-शनाप खर्चें के आरोप में डा. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस बी सिंह भी रहे। जिसके चलते इनकी विदाई भी हुई। आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा वाराणसी की टीम ने बहराइच के एक इंस्टीट्ïयूट के कागज पत्र खंगालने के बाद कुलपति के कार्यकाल में जारी धनराशि और कामकाज का ब्_x008e_यौरा मांगा तब नियुक्तियों पर भारी आर्थिक लाभ कमाने के आरोप पुष्टï होने लगे। लखनऊ के मंडलायुक्त विजय शंकर पाण्डेय की जांच रिपोर्ट पर भरोसा करें तो, ‘‘ पुस्तकों के मुद्रण और पाठ्ïयपुस्तकों के भुगतान में खूब पैसा बटोरा गया। कुलपति रहे एस बी सिंह ने तो अपने एक चहेते प्रोफेसर का अनियमित ढंग से भुगतान भी करा दिया। सन 1998 में समाप्त हो गये पदों को सन 2००5 में विज्ञापित कर भर्ती कर डाली। कुलपति के साले अंबरीष प्रताप सिंह को गैर मान्यता प्राप्त संस्था के फर्जी अंकपत्र के आधार पर नियुक्ति दी गई।’’ श्री पांडेय ने अपनी रिपोर्ट में पाठ्ïयपुस्तक छपवाने में अनियमितता, निविदा में नियम विपरीत कार्य कराना, श्रमिक निविदा बैक डेट में स्वीकृत करने, बिना अनुमन्य के सुरक्षा गार्डों की तैनाती तथा बिना व्याख्यान दिए भुगतान करने के कई मामलों का खुलासा किया है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति आरपी सिंह के खिलाफ पिछली मुलायम सरकार में जाँच का जिम्मा दो वरिष्ठï नौकरशाहों-मंजीत सिंह और अविनाश श्रीवास्तव को सौंपा गया था पर काफी दिनों तक जाँच शुरू न हो पाने के बाद मंजीत सिंह की जगह जेएस दीपक को लगाया गया। नेताओं, कर्मचारियों को बुलाकर बयान लिये लेकिन इनकी रिपोर्ट पता नहीं कहाँ गुम हो गई। बाद में मायावती सरकार ने लखनऊ के मंडलायुक्त विजय शंकर पांडेय को जाँच का काम सौंपा। सूत्रों के मुताबिक, ‘‘रिपोर्ट में वि_x009e_ाीय व प्रशासनिक अनियमितताओं के कई आरोप सही पाये गये हैं। यही नहीं, जाँच में निर्माण कार्यों से जुड़ी कई गड़बडिय़ाँ भी उजागर हुई हैं।’’ कुलपति के नजदीकी लोगों की फर्म नयन कंस्ट्रक्शन को किए गए भुगतान, परीक्षा संचालन के संबंध में एक करोड़ रूपये के अतिरिक्त भुगतान के बारे में शासन द्वारा मांगे गए स्पष्टïीकरण भी संतोषजनक नही मिले हैं। कुलपति आवास और गेस्ट हाउस की साज-सज्जा में खर्च की गयी धनराशि में भी कई तरह की गड़बडिय़ाँ रेखांकित की गयी हैं।

दूरस्थ शिक्षा के मामले में प्रदेश के सात विवि के कुलपतियों के गोरखधंधे दो साल पहले उजागर हो चुके हैं। इनमें कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि-कुलपति प्रो. पीके सिंह, फैजाबाद के नरेंद्र देव कृषि विवि-कुलपति प्रो. बीबी सिंह, हालांकि वे चार महीने पहले सेवानिवृ_x009e_ा हो गए थे इसलिए बर्खास्तगी से बच निकले। चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विवि जौनपुर-कुलपति प्रो. नरेश चंद्र गौतम, महात्मा ज्योतिबा फूले विवि रूहेलखंड, बरेली-कुलपति प्रो. जेडएच जैदी, बुंदेलखंड विवि झांसी-कुलपति प्रो. रमेश चंद्रा, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विवि, मेरठ-कुलपति डा. प्रेमपाल सिंह शरीक थे। खुद राजभवन ने माना, ‘‘इन विश्वविद्यालयों द्वारा पूरे देश में दूरस्थ शिक्षा के नाम पर केंद्र चलाए जा रहे थे जो कि गलत हैं।’’ पीपी सिंह द्वारा नियुक्ति के जरिये करोड़ों रूपये वसूलने की पुष्टिï के साथ ही साथ भाई-भतीजों के जरिये लाखों की कमाई के आरोप जाँच कमेटी ने सही पाए। सवाल यह उठता है कि आखिर वह कौन सी पहुँच है जो कि इस ‘माननीय’ कुलपति की इतनी गलतियां मुलायम और अब मायावती तथा राजभवन ने दरकिनार की?

तीन बार छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति रहे सर्वज्ञ सिंह कटियार हर कार्यकाल में विवादित रहे। मुलायम से नजदीकियों के चलते उनकी हिटलरशही बदस्तूर जारी रही। वे विश्वविद्यालय से वेतन भी लेते रहे और आईआईटी से पेंशन भी। लगातार आठ वर्षों तक ये क्रम चलता रहा, फरवरी 2००7 में आडिट की आप_x009e_िा के बाद उनसे पैसे की वापसी शुरू की गई है। बीते जून में कुलपतियों की बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री राकेशधर त्रिपाठी के कान कटियार की शिकायतें सुनते-सुनते इतने पक गए थे कि वह फट पड़े। मंत्री ने कहा, ‘‘सबसे ज्यादा शिकायतें तो आपको लेकर ही हैं। आपसे मिलने के लिए छात्र व शिक्षक तो दूर सांसद-विधायक तक को घंटों इंतजार करना पड़ता है। ’’ मंत्री ने संबद्घता देने के लिए पांच प्रतिशत शुल्क वसूलने संबंधी पत्रावली भी तलब की। इसके बावजूद इस कुलपति को हटाने में राजभवन आगे नहीं आया तो राज्य सरकार को ही कुलपति पद पर बने रहने की अधिकतम आयु 68 साल से 65 साल करनी पड़ी। इस नये नियम के बाद कटियार और शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति हरि गौतम हट पाए। हालांकि गौतम के खिलाफ कोई मामला नहीं था। पर इसी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. महेन्द्र भंडारी के खिलाफ जांच में 16 मामले प्रमाणित हुए। भंडारी ने अपने कार्यकाल में तकरीबन 2०० नियुक्तियां की। अदालत ने नियुक्तियों को अवैध ठहराकर निरस्त भी किया। लेकिन उन्हें भी अपना कार्यकाल पूरा करने का समय मुहैया करा दिया गया? हालात इतने बदतर हो गये हैं कि 9० फीसदी कुलपतियों को गंभीर वि_x009e_ाीय अनियमितताओं और नौकरी देने में की गयी गड़बडिय़ों के चलते बर्खास्तगी की मार झेलनी पड़ी। इस बाबत उच्च शिक्षा मंत्री राकेशधर त्रिपाठी कहते हैं,‘‘कुलपतियों को मिले असीमित वि_x009e_ाीय अधिकारों के दुरूपयेाग की शिकायतें मिलने के बाद सरकार ने इस बावत कानून बनाने का निर्णय लिया है।’’ लोग भरोसा जता रहे हैं कि अब जबकि दूसरे चरण में कुलपतियों की तैनाती का दौर राजभवन में जारी है। अपनी पिछली नियुक्तियों से वह सबक जरूर लेगे।

-योगेश मिश्र


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Dr. Yogesh mishr

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