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बैर लिया, बजट दिया

Dr. Yogesh mishr
Published on: 18 Feb 2008 5:55 PM IST
दिनांक: 18.2.2००8
मायावती की चौथी सरकार ने जब अपना पहला बजट पेश किया तो नतीजतन उससे हर बार से कुछ अधिक उम्मीद थी। इसकी वजह भी बेवजह नहीं थी। सत्रह सालों से त्रिशंकु सरकारों का दंश झेलते आ रहे राज्य में स्पष्ट बहुमत की सरकार होने के साथ ही साथ अपने घिसे-पिटे जातीय समीकरणों से आगे निकल कर उन्होंने बहुजन से सर्वजन की ओर रूख किया है। विकास के लिए केंद्र से मांगी गई भारी-भरकम धनराशि के न मिलने के बाद संप्रग सरकार से रिश्तों की खटास सरीखे भी कारण रहे ताकि यह देखा जाए कि लंबे समय से विकास की दौड़ मे फिसड्डी रहे राज्य की सरकार इस मुद्दे पर स्वयं कितनी गंभीर है। पर बारह फरवरी को सदन के पटल पर रखे गए वर्ष 2००8-०9 के एक लाख 12 हजार 4 सौ 72 करोड़ रूपये के बजट में 212 नई परियोजनाओं की व्यवस्था देकर अपनी संजीदगी का जिस तरह इजहार किया है। वह पिछली बार की तुलना में 44 फीसदी अधिक है। उसी तरह बुंदेलखंड और पूर्वांचल के लिए भी इमदाद जुटाकर फौरी जरूरतों और दिक्कतों पर निजात पाने के लिए धनराशि मुहैया करायी है। उससे साफ है कि सरकार कागजी विकास के मकडज़ाल से निकलना चाहती है।

लगभग 3० फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन यापन करती है। प्रदेश के लगभग 75 फीसदी लोग खेती किसानी से जुड़े हैं। कुल आबादी का लगभग 45 प्रतिशत महिलाएं हैं। लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक विद्यालयों में जाने की आयु वर्ग में आती है। आंकड़े गवाह हैं कि देश की प्रति व्यक्ति आय एवं उप्र की प्रति व्यक्ति आय में 52 प्रतिशत का अंतर है। इसे कम करने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में दस प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जिसमें कृषि क्षेत्र में यह लक्ष्य 5.7 प्रतिशत है। अब यह देखना जरूरी है कि कृषि क्षेत्र में यह बढ़त लाने के लिए सरकार किस प्रकार के बजटीय प्रावधान रख रही है। बजट दस्तावेज में यह लिखा है कि कृषि क्षेत्र में अभीष्टï विकास दर की प्राप्ति के लिए कृषि एवं संबद्घ क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश, फसलों की उत्पादकता तथा किसानों की आय में वृद्घि हेतु राष्टï्रीय ग्रामीण विकास योजना को लागू किया जाएगा। इस मद में 283 करोड़ रूपए की व्यवस्था की गयी है। समस्याग्रस्त भूमि को उत्पादक बनाने के लिए किसान हित योजना के मार्फत अगले पांच वर्षों में सात लाख हेक्टेयर भूमि को उपचारित किया जाएगा। समीक्षक उत्कर्ष सिन्हा बताते हैं, ‘‘ वित्त मंत्री ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया कि उप्र में लगभग चार लाख हेक्टेयर भूमि जो सीलिंग से निकली है उसे भूमिहीनों में वितरित करने हेतु कोई अभियान चलाया जाएगा या नहीं? इस जमीन के लिए उनके पास कोई ठोस योजना है या नहीं?’’ भूमि उपचार के जरिए सवा सात करोड़ मानव दिवस सृजित करने का बयान तो वित्त मंत्री ने दिया परंतु भूमिहीनों को दिहाड़ी मजदूरी से निकालकर खेतिहर बनाने के संबंध में सरकार कोई स्पष्टï सोच नहीं प्रदर्शित कर सकी।

एक ओर तो दो कृषि नीतियां, जिनमें से एक जन दबाव के कारण वापस ली जा चुकी है, के जरिये खेती में निजी कंपनियों का रास्ता खोले जाने की कोशिश हो रही है। वहीं नये बजट की अवधारणा ही ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ पर टिकी है। इन दोनों का रिश्ता बहुत साफ है। जमीनों को उपजाऊ बनाने के श्रमिक दिवसों का तो सृजन होगा परंतु उपजाऊ जमीनों का उपभोग तथा उपयोग निजी कंपनियां करेंगी? विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु 8.11 लाख करोड़ के निवेश में से 5.75 लाख करोड़ निजी क्षेत्र से तथा 2.36 लाख करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र से लगाने का लक्ष्य रखा गया है। देखना है कि कहीं निजी क्षेत्र विकास एवं सहभागिता के लालच देकर संसाधनों का दोहन न शुरू कर दें। पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के स्थानीय निदेशक अनिल शुक्ला ने कहा, ‘‘प्रदेश में बिजली उपलब्धता बढ़ाने का प्रयास सराहनीय है लेकिन सरकार ने इस बार भी चीनी मिलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ नहीं सोचा है। घाटे में चल रही मिलों के पुनरोद्घार के बिना गन्ना किसानों की खुशहाली सुनिश्चित नहीं की जा सकती। सरकार को इस मुद्दे पर दीर्घकालीन प्रभाव वाली नीति बनानी चाहिये। जिससे मिलों का उत्पादन और पेराई क्षमता बढ़े।’’ लघु सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत प्रस्तुत परियोजनाओं में कुल ध्यान भूगर्भ जल के दोहन पर है। नलकूपों, ब्लास्टवेल, सतही पम्पसेट की तो बात बजट में है परंतु प्राकृतिक जल संसाधनों को वितरित करने की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। अब सोचनीय यह है कि जब पूरे प्रदेश में भूगर्भ जल की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी है। ऐसे में भूगर्भ जल के दोहन की योजनाओं को प्राथमिकता सूची पर रखना पर्यावरण और परिस्थितिकी के सर्वथा खिलाफ जाता है।

कृषि कार्य में प्रयुक्त यन्त्रों एवं रासायनिक कीटनाशकों एवं खाद से कर घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी प्रकार बीजों और मोटे अनाजों को करमुक्त कर दिया गया है। जहां सरकार जैविक खाद एवं आईपीएम के प्रोत्साहन की बात करती है वहीं बजट में इसका कोई जिक्र नहीं आता। इसी प्रकार बाढ़ एवं सुखाड़ क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से टिकाऊ उत्पादों के संरक्षण एवं संवर्धक की बात तो नीति में है पर बजटीय प्राविधानों में इसका कोई उल्लेखनीय जिक्र नहीं आता है। बुंदेलखंड के नहरों के आसपास भी नलकूप लगाने एवं ब्लास्ट कूपों पर जोर दिया गया है जो भूगर्भ जल के गिरते स्तर के संदर्भ में देखने पर आत्महत्या सरीखा कृत्य होगा। मौसम बीमा योजना लागू करने पर सरकार संकल्पित दिखते हुए कहती है, ‘‘इसकी भरपाई बीमा कंपनियों द्वारा की जाएगी।’’ परंतु उसका प्रीमियम देने के लिए सरकार ने कोई राशि निर्धारित नहीं की है। क्या यह प्रीमियम बुंदेलखंड के किसान देंगे? यह यक्ष प्रश्न है।

वित्त मंत्री लालजी वर्मा ने बुंदेलखंड के किसानों के सभी प्रकार के कर्जों पर लगने वाले तीन सौ करोड़ के ब्याज माफी की घोषणा भी की और कहा, ‘‘ब्याज के रूप में इस साल सौ करोड़ रूपया सीधे बैंकों को दिया जायेगा। इस पर रिजर्व बैंक के गवर्नर की सहमति मिल गयी है।’’ इससे बुंदेलखंड इलाके में बढ़ रही आत्महत्याओं के दौर के थमने की उम्मीद की जा सकती है। 1०० करोड़ से कृषि विश्वविद्यालय, 33० करोड़ अंबेडकर मेडिकल कालेज पर व्यय किया जायेगा। पूर्वांचल एवं बुंदेलखंड में 35० करोड़, शहरी क्षेत्रों के विकास पर 15० करोड़ का प्रावधान किया गया है। कला एवं संस्कृति लेखा शीर्षक में डा. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, लखनऊ में स्क्रीन वाल के निर्माण हेतु 14 करोड़, शहरी विकास लेखा शीर्षक से अंबेडकर परिवर्तन स्थल के रखरखाव हेतु 8० करोड़ के कारपस फंड की नई व्यवस्था की गयी है। ग्राम तथा लघु उद्योग लेखा शीर्षक से 2० करोड़ का प्रावधान वायुयान भाड़ा युक्तिकरण योजना के लिये किया गया है। वायुयान का भाड़ा ग्राम तथा लघु उद्योग में कैसे रखा गया है यह समझ से परे है। जिस तरह कांशीराम, अंबेडकर की स्मृति में योजनाओं की शुरूआत हुई है उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुलायम सिंह ने कहा, ‘‘पत्थरों का बजट है। आम आदमी की तो उपेक्षा हुई है लेकिन पार्कों में पत्थर लगाने के लिए भारी भरकम धनराशि का प्रावधान किया गया है।’’

बजट पेश करने के बाद पारंपरिक प्रेस कान्फ्रेन्स में वित्त मंत्री लालजी वर्मा, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह तथा मुख्य सचिव प्रशांत कुमार मिश्र ने कहा, ‘‘किसी भी क्षेत्र का पूर्ण रूप से निजीकरण नहीं किया जाएगा। ऊर्जा के क्षेत्र में राज्य सरकार केवल 1136 करोड़ का निवेश करेगी। शेष निवेश निजी क्षेत्र का होगा। गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना पीपीपी के जरिये ही साकार हो रही है।’’ कर विहीन बजट का दावा करने के बाद भी डीटीएच सेवा को कर के दायरे में लाने की बात साफ दिखती है। भले ही बुंदेलखंड और पूर्वांचल की झोली में ढेरों योजनायें डाल दी गयी हों, पर इस बजट से पश्चिम को ताज इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अलावा निराश ही होना पड़ा है। गौरतलब है कि पूर्वांचल क्षेत्र अनुदान निधि के लिए 7०० करोड़ रूपये की व्यवस्था की गयी है। खर्च के हिसाब से बजट का आकार पिछले साल से केवल 11 प्रतिशत बढ़ाया गया है। यह अच्छा है। वहीं सरकार करों की वसूली के साथ कर प्रबंधन में भी काफी चुस्त नजर आ रही है। पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बजट पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है। तुम्हारे आंकड़े झूठे, तेरी बातें किताबी हैं।’’

-योगेश मिश्र


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Dr. Yogesh mishr

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