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फेल-पास के खेल में आयोग
दिनांक: 18.2.2००8
लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद के लिए ली गयी परीक्षा के पहले परिणाम में चंद्रभान सिंह अनुक्रमांक-6574 असफल थे लेकिन बाद में ‘आयोग की कृपा बरसी’ तो वह सफल हो गये।
इसी पद के लिए एक सप्ताह के अंतर पर बैकलॉग और सामान्य भर्ती के लिए ली गयी अलग-अलग परीक्षाओं में 7० सवाल सिर्फ क्रमांक बदलकर अभ्यर्थियों के सामने परोस दिये गये।
आयोग ने स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी बनाने के लिए लिखित परीक्षा तो ली पर चयन केवल साक्षात्कार के अंकों के आधार पर कर दिया।
लिखित परीक्षा में सर्वाधिक 126 अंक पाने वाले महेश कुमार मौर्य नौकरी पाने से वंचित रह गये। मंजू देवी, अनुक्रमांक-००5678 को 15० में 1०2 अंक मिले पर वह दोनों परीक्षा परिणामों में इंटरव्यू तक के लिये नहीं बुलायी गयी।
जिस संस्था पर यह जिम्मेदारी है कि वह स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के लिए राज्य सरकार को अधिकारी और कर्मचारी मुहैया कराये, उस पर ही लगातार सवाल उठ रहे हैं। पीसीएस परीक्षाओं को लेकर यह संस्था आरोपों की जद में पहले ही आ चुकी है। अब विवाद स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परीक्षा को लेकर शुरू हो गया है। 2००5 में विज्ञापन आया और 7 मई, 2००6 को परीक्षा ली गयी। तब राज्य में मुलायम राज कायम था। 12 अगस्त, 2००6 को इंटरनेट पर प्रकाशित उत्तरों की पड़ताल के बाद प्रतियोगी छात्रों ने देखा कि कापियां 15 प्रश्नों के गलत उत्तर के आधार पर जांचकर परिणाम घोषित किये गये हैं। नतीजतन, अभ्यर्थियों का गुस्सा भडक़ा। 21 अगस्त को परीक्षा परिणाम रद्द कर दिया गया। 15० वस्तुनिष्ठï सवालों वाली इस परीक्षा में दोबारा परिणाम घोषित करने के लिए 5 उन सवालों को बाहर किया गया जिनके उत्तर वैकल्पिक उत्तरों की सूची में नहीं थे। नतीजतन, दूसरा परिणाम 145 सवालों के उत्तरों के आधार पर तैयार किया गया। साथ ही 15 सवालों के उन उत्तरों को ठीक किया गया जिन्हें गलत होते हुए सही मान कर पहली बार परिणाम घोषित कर दिया था।
नियम के मुताबिक एक सीट पर 9 अभ्यर्थियोंं को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना था पर आयोग की मनमानी के चलते 4846 लोगों को दूसरे परीक्षा परिणाम के बाद साक्षात्कार के लिये बुलाया गया। जबकि 12 अगस्त 2००6 को जो परीक्षा परिणाम आया था, उसके मुताबिक 455० छात्रों को ही साक्षात्कार का अवसर मिलना था। 65००-1०5०० वेतनमान वाले इस राजपत्रित अधिकारी की नियुक्ति हर विकास खंड पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं और स्तरीय सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए होनी थी।
लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार हुये पर आयोग ने पता नहीं किन नियमों का हवाला देकर परिणाम सिर्फ साक्षात्कार के प्राप्तांकों के आधार पर ही घोषित कर दिया। सवाल यह उठता है कि अगर यही करना था तो आवेदन-पत्रों की छटनी के बाद सीधे साक्षात्कार लिया जा सकता था परंतु ऐसा नहीं किया गया? किसी भी परीक्षा में इलाहाबाद और उसके आसपास जुटकर नौकरी की तैयारी करने वाले बच्चों के चयन का आंकड़ा तकरीबन 7० फीसदी होता है पर इस परीक्षा परिणाम में इलाहाबाद को केवल 12 फीसदी जगह मिली। इटावा और मैनपुरी इलाके के सफल उम्मीदवारों की तादाद हैरतअंगेज करने वाली थी।
यही नहीं, आयोग के खेल में 341 छात्रों को प्रथम परीक्षा परिणाम में उत्तीर्ण होने के बाद भी संशोधित परिणाम में अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया। इसमें सबसे दिलचस्प मामला महेश कुमार मौर्य का है, जिन्होंने पहले परीक्षा परिणाम में सर्वाधिक 126 अंक हासिल किये थे लेकिन दूसरे परिणाम में वे पास नहीं हो सके। आयोग के इस हेरफेर में 597 नये अभ्यर्थी सफल होने में कामयाब हुये। आयोग द्वारा जारी की गयी ‘कटऑफ मेरिट’ पर ही गौर करें तो पता चलता है कि सामान्य और ओबीसी में यह 1०4 अंकों की थी जबकि एससी कोटे में 93, एसटी में 58, महिलाओं के लिए 83, विकलांगों के लिए 85, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रितों के लिए 93 और भूतपूर्व सैनिकों के लिए 6० अंकों की कटऑफ मेरिट तैयार हुई थी। पर संशोधित परिणाम इस बात की कलई खोलते हैं कि 63 अंक पाने वाले अलीमुद्दीन अहमद, जिनका अनुक्रमांक 2289० है, पिछड़ा वर्ग कोटे में सफल घोषित हो गये। जबकि इस कोटे की कटऑफ मेरिट 1०4 थी। 2००36 अनुक्रमांक वाले इंद्रदेव को 67 अंक मिले हैं, 2०822 अनुक्रमांक वाले राम बचन यादव को 78 एवं 29156 अनुक्रमांक वाले करमेंद्र कुमार को भी इतने ही अंक हासिल हुए हैं पर यह लोग उन भाग्यशाली उम्मीदवारों में शरीक हो गये जिन्हें 1०4 कटऑफ मेरिट के बाद भी संशोधित परिणाम में सफल घोषित किया गया, जबकि पहले ये अनुत्तीर्ण थे। इतना ही नहीं, 64 अंक पाकर साधना पांडे, 83 अंकों वाले कटऑफ मेरिट को दरकिनार कर चयनित हो गयीं। एससी कोटे में 93 अंकों की अनिवार्य अर्हता के बावजूद भी लक्ष्मण सिंह राना 54 अंक पाकर सफल घोषित हो गये। हद तो यह हो गयी कि अनुक्रमांक-०19831 की अभ्यर्थी अनीता चौधरी और अनुक्रमांक-62००21 के उम्मीदवार रजनीकांत राय का नाम संशोधित सूची में भी नहीं था पर इन दोनों लोगों का चयन आयोग के सदस्यों की ‘कृपा’ से हो गया। अनीता चौधरी को स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परिणाम में 313वां और रजनीकांत राय को 5०7वां स्थान हासिल हुआ। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के पास स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परीक्षा के दोनों परिणाम और प्रश्नपत्र दोनों उपलब्ध हैं। अब तक हमने परिणामों में अनियमितता की बात की लेकिन प्रश्नपत्रों में हुई अनियमितता तो अक्षम्य सी दिखती है। मसलन, मिट्टïी में कितनी कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा होती है। आयोग ने पहले एक प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा को सही मानकर परिणाम घोषित किया था, पर बाद में उसे अपने किये का ध्यान आया तो इसका सही उत्तर ०.5 फीसदी घोषित किया गया। इसी तरह बूंद-बूंद सिंचाई के लिए उपयुक्त तरीकों के बावत पूछे गये एक सवाल के जवाब में आयोग ने कापियां तो वैकल्पिक उत्तर ‘डी’ को सच मानकर जांच दी थी पर इसका असली उत्तर ‘बी’ वैकल्पिक कालम में लिखा था। फलों में शर्करा की मात्रा किस फार्म में होती है। इस बावत पूछे गये एक सवाल का जवाब पहले आयोग ने ग्लूकोस माना था जबकि हकीकत यह है कि फ्रक्टोज के रूप में फलों में शर्करा होती है। यही नहीं, बैकलॉग भर्ती की बुकलेट संख्या ‘डी’ का जो पहला सवाल था वही सवाल सामान्य भर्ती की बुकलेट संख्या-‘सी’ के 9वें क्रमांक पर हूबहू रख दिया गया था। ऐसे ही डी बुकलेट के 9वें नंबर का सवाल सामान्य भर्ती की बुकलेट संख्या-सी के 35वें क्रमांक पर था। इस तरह के 42 फीसदी सवालों की पुनरावृत्ति बैकलॉग और सामान्य भर्ती के प्रश्नपत्रों में उजागर हुई। एक प्रतियोगी छात्र संजय सिंह इस पुनरावृत्ति का खुलासा करते हुए कहते हैं, ‘‘ऐसा बैकलॉग के छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था कि पहली बार उन्होंने गलती की हो तो सामान्य भर्ती में वे सवालों के सही उत्तर पहले से ही जानकर अधिक नंबर पा सकें।’’
इन सारी अनियमितताओं से क्षुब्ध प्रतियोगी छात्रों ने अपने असंतोष का इजहार करने के लिए एक फोरम बना डाला। फोरम के नुमाइंदे संजय सिंह और सुधांशु द्विवेदी ने मुख्यमंत्री सचिवालय के प्रमुख सचिव शैलेश कृष्ण से मुलाकात की। शैलेश कृष्ण ने भरोसा जताया है, ‘‘इस मामले की गंभीरता से जांच होगी।’’ सुधांशु द्विवेदी इस पूरी चयन प्रक्रिया पर कुछ इस तरह सवाल खड़ा करते हैं, ‘‘कुछ विशेष बोर्ड के छात्र ही चयनित हुए हैं। वे आयोग के सदस्य सोमेश यादव, जाहिद खान, सीएम सिंह का नाम भी लेते हैं।’’ सुधांशु के मुताबिक, ‘‘आयोग के सदस्य अमी कृष्ण चतुर्वेदी के बोर्ड के परिणामों में सबसे कम अनियमितता हुई है।’’ जबकि विजय प्रताप और राजीव सिंह की मानें तो, ‘‘आयोग के एक सदस्य ने गड़बड़ी के अंदेशे को भांप बोर्ड में बैठने से ही तौबा कर लिया था।’’
छात्रों ने आयोग पर क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टïाचार के आरोप साफ तौर पर सचिव बीबी सिंह से बीते 5 फरवरी को मिलकर जड़े थे। उन्हें एक ज्ञापन भी दिया था। उन्होंने आश्वस्त किया था, ‘‘तीन दिन के अंदर आयोग की ओर से चयनित उम्मीदवारों के क्षेत्रीय और जातीय वर्गीकरण के मुताबिक सूची जारी कर दी जायेगी।’’ लेकिन अभी तक हुआ कुछ नहीं। छात्रों ने राज्य सरकार को सौंपे गये अपने ज्ञापन में चेयरमैन सहित सभी सदस्यों की संपत्ति की सीबीआई जांच कराने के साथ ही साथ चयन के दौरान बोर्ड के सदस्यों द्वारा मोबाइल के किये गये उपयोग की जांच की भी मांग की है। वे साक्षात्कार की वीडियो रिकार्डिंग कराये जाने के साथ ही साथ छात्रों के बीच खत्म हो रही विश्वसनीयता को कायम करने की मांग भी कर रहे हैं।
-योगेश मिश्र
लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद के लिए ली गयी परीक्षा के पहले परिणाम में चंद्रभान सिंह अनुक्रमांक-6574 असफल थे लेकिन बाद में ‘आयोग की कृपा बरसी’ तो वह सफल हो गये।
इसी पद के लिए एक सप्ताह के अंतर पर बैकलॉग और सामान्य भर्ती के लिए ली गयी अलग-अलग परीक्षाओं में 7० सवाल सिर्फ क्रमांक बदलकर अभ्यर्थियों के सामने परोस दिये गये।
आयोग ने स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी बनाने के लिए लिखित परीक्षा तो ली पर चयन केवल साक्षात्कार के अंकों के आधार पर कर दिया।
लिखित परीक्षा में सर्वाधिक 126 अंक पाने वाले महेश कुमार मौर्य नौकरी पाने से वंचित रह गये। मंजू देवी, अनुक्रमांक-००5678 को 15० में 1०2 अंक मिले पर वह दोनों परीक्षा परिणामों में इंटरव्यू तक के लिये नहीं बुलायी गयी।
जिस संस्था पर यह जिम्मेदारी है कि वह स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के लिए राज्य सरकार को अधिकारी और कर्मचारी मुहैया कराये, उस पर ही लगातार सवाल उठ रहे हैं। पीसीएस परीक्षाओं को लेकर यह संस्था आरोपों की जद में पहले ही आ चुकी है। अब विवाद स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परीक्षा को लेकर शुरू हो गया है। 2००5 में विज्ञापन आया और 7 मई, 2००6 को परीक्षा ली गयी। तब राज्य में मुलायम राज कायम था। 12 अगस्त, 2००6 को इंटरनेट पर प्रकाशित उत्तरों की पड़ताल के बाद प्रतियोगी छात्रों ने देखा कि कापियां 15 प्रश्नों के गलत उत्तर के आधार पर जांचकर परिणाम घोषित किये गये हैं। नतीजतन, अभ्यर्थियों का गुस्सा भडक़ा। 21 अगस्त को परीक्षा परिणाम रद्द कर दिया गया। 15० वस्तुनिष्ठï सवालों वाली इस परीक्षा में दोबारा परिणाम घोषित करने के लिए 5 उन सवालों को बाहर किया गया जिनके उत्तर वैकल्पिक उत्तरों की सूची में नहीं थे। नतीजतन, दूसरा परिणाम 145 सवालों के उत्तरों के आधार पर तैयार किया गया। साथ ही 15 सवालों के उन उत्तरों को ठीक किया गया जिन्हें गलत होते हुए सही मान कर पहली बार परिणाम घोषित कर दिया था।
नियम के मुताबिक एक सीट पर 9 अभ्यर्थियोंं को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना था पर आयोग की मनमानी के चलते 4846 लोगों को दूसरे परीक्षा परिणाम के बाद साक्षात्कार के लिये बुलाया गया। जबकि 12 अगस्त 2००6 को जो परीक्षा परिणाम आया था, उसके मुताबिक 455० छात्रों को ही साक्षात्कार का अवसर मिलना था। 65००-1०5०० वेतनमान वाले इस राजपत्रित अधिकारी की नियुक्ति हर विकास खंड पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं और स्तरीय सुविधाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए होनी थी।
लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार हुये पर आयोग ने पता नहीं किन नियमों का हवाला देकर परिणाम सिर्फ साक्षात्कार के प्राप्तांकों के आधार पर ही घोषित कर दिया। सवाल यह उठता है कि अगर यही करना था तो आवेदन-पत्रों की छटनी के बाद सीधे साक्षात्कार लिया जा सकता था परंतु ऐसा नहीं किया गया? किसी भी परीक्षा में इलाहाबाद और उसके आसपास जुटकर नौकरी की तैयारी करने वाले बच्चों के चयन का आंकड़ा तकरीबन 7० फीसदी होता है पर इस परीक्षा परिणाम में इलाहाबाद को केवल 12 फीसदी जगह मिली। इटावा और मैनपुरी इलाके के सफल उम्मीदवारों की तादाद हैरतअंगेज करने वाली थी।
यही नहीं, आयोग के खेल में 341 छात्रों को प्रथम परीक्षा परिणाम में उत्तीर्ण होने के बाद भी संशोधित परिणाम में अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया। इसमें सबसे दिलचस्प मामला महेश कुमार मौर्य का है, जिन्होंने पहले परीक्षा परिणाम में सर्वाधिक 126 अंक हासिल किये थे लेकिन दूसरे परिणाम में वे पास नहीं हो सके। आयोग के इस हेरफेर में 597 नये अभ्यर्थी सफल होने में कामयाब हुये। आयोग द्वारा जारी की गयी ‘कटऑफ मेरिट’ पर ही गौर करें तो पता चलता है कि सामान्य और ओबीसी में यह 1०4 अंकों की थी जबकि एससी कोटे में 93, एसटी में 58, महिलाओं के लिए 83, विकलांगों के लिए 85, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रितों के लिए 93 और भूतपूर्व सैनिकों के लिए 6० अंकों की कटऑफ मेरिट तैयार हुई थी। पर संशोधित परिणाम इस बात की कलई खोलते हैं कि 63 अंक पाने वाले अलीमुद्दीन अहमद, जिनका अनुक्रमांक 2289० है, पिछड़ा वर्ग कोटे में सफल घोषित हो गये। जबकि इस कोटे की कटऑफ मेरिट 1०4 थी। 2००36 अनुक्रमांक वाले इंद्रदेव को 67 अंक मिले हैं, 2०822 अनुक्रमांक वाले राम बचन यादव को 78 एवं 29156 अनुक्रमांक वाले करमेंद्र कुमार को भी इतने ही अंक हासिल हुए हैं पर यह लोग उन भाग्यशाली उम्मीदवारों में शरीक हो गये जिन्हें 1०4 कटऑफ मेरिट के बाद भी संशोधित परिणाम में सफल घोषित किया गया, जबकि पहले ये अनुत्तीर्ण थे। इतना ही नहीं, 64 अंक पाकर साधना पांडे, 83 अंकों वाले कटऑफ मेरिट को दरकिनार कर चयनित हो गयीं। एससी कोटे में 93 अंकों की अनिवार्य अर्हता के बावजूद भी लक्ष्मण सिंह राना 54 अंक पाकर सफल घोषित हो गये। हद तो यह हो गयी कि अनुक्रमांक-०19831 की अभ्यर्थी अनीता चौधरी और अनुक्रमांक-62००21 के उम्मीदवार रजनीकांत राय का नाम संशोधित सूची में भी नहीं था पर इन दोनों लोगों का चयन आयोग के सदस्यों की ‘कृपा’ से हो गया। अनीता चौधरी को स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परिणाम में 313वां और रजनीकांत राय को 5०7वां स्थान हासिल हुआ। ‘आउटलुक’ साप्ताहिक के पास स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी परीक्षा के दोनों परिणाम और प्रश्नपत्र दोनों उपलब्ध हैं। अब तक हमने परिणामों में अनियमितता की बात की लेकिन प्रश्नपत्रों में हुई अनियमितता तो अक्षम्य सी दिखती है। मसलन, मिट्टïी में कितनी कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा होती है। आयोग ने पहले एक प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा को सही मानकर परिणाम घोषित किया था, पर बाद में उसे अपने किये का ध्यान आया तो इसका सही उत्तर ०.5 फीसदी घोषित किया गया। इसी तरह बूंद-बूंद सिंचाई के लिए उपयुक्त तरीकों के बावत पूछे गये एक सवाल के जवाब में आयोग ने कापियां तो वैकल्पिक उत्तर ‘डी’ को सच मानकर जांच दी थी पर इसका असली उत्तर ‘बी’ वैकल्पिक कालम में लिखा था। फलों में शर्करा की मात्रा किस फार्म में होती है। इस बावत पूछे गये एक सवाल का जवाब पहले आयोग ने ग्लूकोस माना था जबकि हकीकत यह है कि फ्रक्टोज के रूप में फलों में शर्करा होती है। यही नहीं, बैकलॉग भर्ती की बुकलेट संख्या ‘डी’ का जो पहला सवाल था वही सवाल सामान्य भर्ती की बुकलेट संख्या-‘सी’ के 9वें क्रमांक पर हूबहू रख दिया गया था। ऐसे ही डी बुकलेट के 9वें नंबर का सवाल सामान्य भर्ती की बुकलेट संख्या-सी के 35वें क्रमांक पर था। इस तरह के 42 फीसदी सवालों की पुनरावृत्ति बैकलॉग और सामान्य भर्ती के प्रश्नपत्रों में उजागर हुई। एक प्रतियोगी छात्र संजय सिंह इस पुनरावृत्ति का खुलासा करते हुए कहते हैं, ‘‘ऐसा बैकलॉग के छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था कि पहली बार उन्होंने गलती की हो तो सामान्य भर्ती में वे सवालों के सही उत्तर पहले से ही जानकर अधिक नंबर पा सकें।’’
इन सारी अनियमितताओं से क्षुब्ध प्रतियोगी छात्रों ने अपने असंतोष का इजहार करने के लिए एक फोरम बना डाला। फोरम के नुमाइंदे संजय सिंह और सुधांशु द्विवेदी ने मुख्यमंत्री सचिवालय के प्रमुख सचिव शैलेश कृष्ण से मुलाकात की। शैलेश कृष्ण ने भरोसा जताया है, ‘‘इस मामले की गंभीरता से जांच होगी।’’ सुधांशु द्विवेदी इस पूरी चयन प्रक्रिया पर कुछ इस तरह सवाल खड़ा करते हैं, ‘‘कुछ विशेष बोर्ड के छात्र ही चयनित हुए हैं। वे आयोग के सदस्य सोमेश यादव, जाहिद खान, सीएम सिंह का नाम भी लेते हैं।’’ सुधांशु के मुताबिक, ‘‘आयोग के सदस्य अमी कृष्ण चतुर्वेदी के बोर्ड के परिणामों में सबसे कम अनियमितता हुई है।’’ जबकि विजय प्रताप और राजीव सिंह की मानें तो, ‘‘आयोग के एक सदस्य ने गड़बड़ी के अंदेशे को भांप बोर्ड में बैठने से ही तौबा कर लिया था।’’
छात्रों ने आयोग पर क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टïाचार के आरोप साफ तौर पर सचिव बीबी सिंह से बीते 5 फरवरी को मिलकर जड़े थे। उन्हें एक ज्ञापन भी दिया था। उन्होंने आश्वस्त किया था, ‘‘तीन दिन के अंदर आयोग की ओर से चयनित उम्मीदवारों के क्षेत्रीय और जातीय वर्गीकरण के मुताबिक सूची जारी कर दी जायेगी।’’ लेकिन अभी तक हुआ कुछ नहीं। छात्रों ने राज्य सरकार को सौंपे गये अपने ज्ञापन में चेयरमैन सहित सभी सदस्यों की संपत्ति की सीबीआई जांच कराने के साथ ही साथ चयन के दौरान बोर्ड के सदस्यों द्वारा मोबाइल के किये गये उपयोग की जांच की भी मांग की है। वे साक्षात्कार की वीडियो रिकार्डिंग कराये जाने के साथ ही साथ छात्रों के बीच खत्म हो रही विश्वसनीयता को कायम करने की मांग भी कर रहे हैं।
-योगेश मिश्र
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